• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
 
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    صفة الوضوء
    تركي بن إبراهيم الخنيزان
  •  
    التمييز بين «الرواية» و«النسخة» في «صحيح البخاري»
    د. هيثم بن عبدالمنعم بن الغريب صقر
  •  
    أسماء الله الحسنى من خلال الجزء (السابع والعشرون) ...
    محمد نور حكي علي
  •  
    شرح متن طالب الأصول: (1) معنى البسملة
    أبو الحسن هشام المحجوبي ويحيى بن زكرياء ...
  •  
    من أقوال السلف في أسماء الله الحسنى: (القريب، ...
    فهد بن عبدالعزيز عبدالله الشويرخ
  •  
    قبسات من علوم القرآن (3)
    قاسم عاشور
  •  
    من دعاء الرسول صلى الله عليه وسلم
    الشيخ محمد جميل زينو
  •  
    اتقوا الأرحام
    أ. د. زكريا محمد هيبة
  •  
    ورع وإخلاص طلاب علم الأمس... مشاعل تنير دروب ...
    نوال محمد سعيد حدور
  •  
    {ونضع الموازين القسط ليوم القيامة} (خطبة)
    د. محمود بن أحمد الدوسري
  •  
    تفسير قوله تعالى: {يا أيها الذين آمنوا إن تطيعوا ...
    سعيد مصطفى دياب
  •  
    إزالة الغفلة (خطبة)
    الشيخ د. إبراهيم بن محمد الحقيل
  •  
    اتقوا فتنة التبرج
    د. لحرش عبد السلام
  •  
    كثرة تلاوته صلى الله عليه وسلم القرآنَ على فراشه ...
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    عمى البصيرة يورد المهالك
    د. عبدالرحمن بن سعيد الحازمي
  •  
    شرح أحاديث الطهارة
    لطيفة بنت عبداللطيف
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

الموت (خطبة) (باللغة الهندية)

الموت (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 28/11/2022 ميلادي - 5/5/1444 هجري

الزيارات: 5785

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

मृत्यु


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़र रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात


आदरणीय सज्जनो अल्लाह की पूजा एक महान उद्दश्य एवं मुराद है,दुनिया एवं आखि़रत में इसके बेशबहा लाभ प्राप्त होते हैं,कसरत से आज्ञाकारिता के कार्य करना और मोहर्रेमात से बचना दुनिया एवं आखि़रत में सौभग्य व तौफीक़ लाभान्वित होने का एक श्रेष्ठ कारण है,मुसलमान को चाहिए कि ऐसा मार्ग अपनाए जिस पर चल कर दिल की सुधार हो और आज्ञाकारिता में वृद्धि हो।


ईमानी भाइयो एक ऐसी चीज़ जिसका उल्लेख पवित्र क़ुरान और नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की कोली एवं फेली ह़दीस में आया है,एक ऐसी चीज़ जो दिलों को पूजा एवं प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित रकती है और आज्ञाकारिता के कार्य को आसान बना देता है,ऐसी चीज़ जो ह़राम शहवत की अग्नि को बुझा देता है,वह ऐसी वास्तविकता है कि हम जितना भी उससे गाफिल रहें,अपने निर्धारित समय पर वह हम से मिल कर ही रहेगी,नि:संदेह वह ख़ामोश वाइज व नासिह है जो अमीर व ग़रीब एवं स्वस्थ व रोगी किसी को भी नहीं छोड़ता।

وَكُلُّ أُنَاسٍ سَوْفَ تَدْخُلُ بَيْنَهُمْ
دُوَيْهِيَّةٌ تَصْفَرُّ مِنْهَا الأَنَامِلُ

अर्थात: प्रत्येक मनुष्य को एक ऐसे रोग (मृत्यु) का शिकार होना है जिस से उुंगलियां पीली हो जाती हैं।


ए आदरणीय मोमिनो हमारे नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरीक़ा था कि आप समय समय पर अपने सह़ाबा को नसीहत किया करते थे,ताकि वे मलूल न हों,हम समय समय पर अल्लाह की ओर कूच कर जाने वाले मनुष्य के जनाज़े में भाग लेते हैं,जो अपना जीवन गुज़ार कर धरती के अंदर अपना आवास अपना लेता है,उसके परिजन उसे छोड़ जाते हैं और वह हिसाब किताब का सामना करता है।


अल्लाह के बंदो मौत कुछ लोगों के लिए सवेद के सौभाग्य एवं उपकार की ओर टरनिंग पोएंट होती है,जबकि कुछ लोगों के लिए शकावत एवं यातना की ओर टरनिंग पोएंट होती है,यह अवधी लंबी भी हो सकती है और संक्षिप्त भी।


ए नमाजि़यो कुछ लोगों के लिए मौत आसान होती है,मोमिन की आत्मा निकलने की कैफीयत का उल्लेख आया है: (ऐसी आसानी से आत्मा शरीर से निकल जाती है जैसे घरे से पानी का बोंद बह जाता है)।हम ने कितने लोगों के प्रति सुना है कि वह सभा में अथवा नमाज़ में थे कि उनकी मृत्यु हो गई।


मृत्यु कभी कभी अति कठिन होती है जिस से मोमिन का पाप क्षमा होता और उसकी शुद्धिकरण होती है,नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है: स्वादों को समाप्त करने वाली (अर्थाता मृत्यु) को कसरत से याद किया करो ।इसे अह़मद और निसाई ने वर्णन किया है और अल्बानी ने सह़ीह़ कहा है।इमाम क़रत़ुबी फरमाते हैं: हमारे विद्धानों का कहना है:नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान: स्वादों को समाप्त करने वाली (अर्थाता मृत्यु) को कसरत से याद किया करो ।एक संक्षिप्त कलाम है जो वाज व नसीहत को सम्मिलित है और बलीगतरीन मोएजत है ।


मेरे आदरणीय भाइयो मृत्यु स्वयं उद्देश्य एवं मुराद नहीं है,बल्कि इसे याद करने का उद्देश्य इस पर लागू होने वाली चीज़ें हैं,क्योंकि मौत को याद करने के कुछ लोभ हैं,जिन में से कुछ ये हैं:

यह मृत्यु की तैयारी पर प्रोत्साहित करती है,आत्मा का मोहासबा करने पर तैयार करती है,मोहासबा का लाभ यह है कि मनुष्य कसरत से पुण्य के कार्य करता है और मोहरेमात से बचता है और नदामत करता है,मौत की याद आज्ञाकारिता की ओर बोलाती है,इसकी याद से कठिनाइयां आसान हो जाती हैं,तौबा का भाव पैदा होता है और मनुष्य अपनी कमी को दूर करने का प्रयास करता है।


मृत्यु की याद दिलों को नम्र करती,आँखों को रोलाती,धर्म का भाव पैदा करती और आत्मा की इच्छा को कुचलती है।


मृत्यु की याद मनुष्य को यह दावत देती है कि दिल से कीना कपट दूर करे,भाइयों को क्षमा करे और उनकी मजबूरियों को समझते हुए उनका उजर स्वीकार करे।


मृत्यु की याद पापों से दूर रखती और कठोर हृदय को भी मोम बना देती है।


ह़ज़रत बरा बिन आ़ज़िब रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि:हम एक जनाज़े में रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे,आप एक क़ब्र के किनारे पर बैठ गए और एतना रोए कि मिट्टी गीली हो गई,फिर फरमाया: भाइयो ऐसी चीज़ (क़ब्र) के लिए तैयारी करो इसे अह़मद और इब्ने माजा ने वर्णन किया है और अल्बानी ने इसे ह़सन कहा है।


दकका का कथन है: जो व्यक्ति कसरत से मृत्यु को याद करता है,अल्लाह तआ़ला उसे तीन चीज़ें प्रदान करता है:तौबा में जल्दी,हृदय की किनाअत,वंदना में नशात।और जो व्यक्ति मौत को भुला देता है वह तीन कठिनाइयों में घिर जाता है:तौबा में टाल-मटोल,जीवीका पर कनाअत न करना और प्रार्थना में सुस्ती करना ।


ए अल्लाह के बंदो कब तक गफलत की चादर ओढ़े कर हम टाल-मटोल करते रहें,जब कि हमारी आँखों के सामने कसरत से अचानक की मृत्यु हो रही है।

تَزَوَّدْ مِنَ التَّقْوَى فَإِنَّكَ لاَ تَدْرِي
إِذَا جَنَّ لَيْلٌ هَلْ تَعِيشُ إِلَى الفَجْرِ
فَكَمْ مِنْ صَحِيحٍ مَاتَ مِنْ غَيْرِ عِلَّةٍ
وَكَمْ مِنْ سَقِيمٍ عَاشَ حِينًا مِنَ الدَّهْرِ
وَكَمْ مِنْ صَبِيٍّ يُرْتَجَى طُولُ عُمْرِهِ
وَقَدْ نُسِجَتْ أَكْفَانُهُ وَهْوُ لاَ يَدْرِي


अर्थात: तक़्वा (धर्मनिष्ठा) का तौशा अपनाओ कि तुम नहीं जानते,जब रात आएगी तो तुम फजर तक जीवित रहोगे अथवा नहीं।कितने स्वस्थ लोग की बिना किसी रोग के मृत्यु हो गई और कितने ही रोगी लोग लंबे समय तक जीवित रहे।कितने बच्चे ऐसे हैं जिनके लंबे जीवन की आशा की जाती है किन्तु उनके कफन बुने जा चुके हैं और वह उससे बेखबर हैं।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

इस्लामी भाइयो

मृत्यु का दस्तक आते ही अ़कल और तौबा का दरवाजा बंद हो जाता है,अ़ब्दुल्लाह बिन अ़र्म रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है कि नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: नि:संदेह अल्लाह तआ़ला उस समय तक बंदे की तौबा स्वीकार करता है जब तक नजा का समय न आ जाए ।


मृत्यु के समय मनुष्य की अच्छाई एवं बुराई स्पष्ट होती है,उसका परिणाम स्पष्ट हो जाता है,मृत्यु के समय मोमिनों के पास फरिश्ते (यह कहते हुए) अवतरित होते हैं:

﴿ أَلَّا تَخَافُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَبْشِرُوا بِالْجَنَّةِ الَّتِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ * نَحْنُ أَوْلِيَاؤُكُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآَخِرَةِ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَشْتَهِي أَنْفُسُكُمْ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ * نُزُلًا مِنْ غَفُورٍ رَحِيمٍ ﴾ [فصلت: 30 - 32].


अर्थात:

ए प्यारे सज्जनो क़ब्रिस्तान का दर्शन करें और उस समय की कल्पना करें जब आप को कंधे दिये जाएंगे,इस लिए नहीं याद करें कि आप का जीवन निढाल हो जाए और निराश हो कर बैठ जाएं,बल्कि अल्लाह की क़सम इस लिए याद करें कि आप का जीवन खुशगवार हो और आप की स्थिति अच्छा हो जाए,क्योंकि जिस नबी ने यह फरमाया कि: : स्वादों को समाप्त करने वाली (अर्थाता मृत्यु) को कसरत से याद किया करो उसी नबी ने यह भी फरमाया: सांसारिक व्सतुओं में से पत्नी और सुगंध मुझे बहुत पसंद हैं ।और उसी नबी ने यह भी फरमाया: (पत्नी से संभोग करते हुए) तुम्हारे अंग में सदक़ा (दान) है,सह़ाबा ने पूछा:हम में से कोई अपनी (शारीरिक) इच्छा पूरी करता है तो क्या इस में भी पुण्य मिलता है आप ने फरमाया: बताओ यदि यह (इच्छा) अवैध स्थान पर पूरी करता तो क्या उसे पाप नहीं होता इसी प्रकार से जब वह इसे वैद्ध स्थान पर पूरी करता है तो इसके लिए पुण्य है ।मृत्यु को याद करने का उद्देश्य यह है कि मनुष्य अपनी कोतािहयो को पुर्ति करले,और अपनी अच्छाइयों पर स्थिर रहे और अधिक से अधिक सदाचार के कार्य करे,जब तक कि शरीर में प्राण है,क्योंकि आज हमें अ़मल का अवसर मिला हुआ है और हिसाब व किताब का नहीं,और कल हिसाब होगा किन्तु अ़मल का अवसर नहीं होगा,बुद्धिमान वह है जो अपने पालनहार से मिलने की तैयारी करता है और अपने लिए जखीरा भेजता है,मैं और आप अथवा लाभ का सौदा कर रहे हैं अथवा हानि का व्यापार।

لاَ دَارَ لِلْمَرْءِ بَعْدَ المَوْتِ يَسْكُنُهُا
إِلاَّ الَّتِي كَانَ قَبْلَ المَوْتِ يَبْنِيهَا
فَإِنْ بَنَاهَا بِخَيْرٍ طَابَ مَسْكَنُهَا
وَإِنْ بَنَاهَا بَشَرٍّ خَابَ بَانِيهَا


अर्थात: मृत्यु के पश्चात मनुष्य को कोई घर नहीं होता सिवाए उस घर के जिसे वह मृत्यु के पूर्व (अपने अ़मल से) निर्माण करता है,यदि सदाचारों के आधार पर उसने वह घर निर्माण किया हो तो उसका आवास भी अच्छा होता है और यदि कदाचारों के आधार पर उसका निर्माण किया हो तो वह हानि में होता है।


أعوذ بالله من الشيطان الرجيم:

﴿ كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ وَإِنَّمَا تُوَفَّوْنَ أُجُورَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فَمَنْ زُحْزِحَ عَنِ النَّارِ وَأُدْخِلَ الْجَنَّةَ فَقَدْ فَازَ وَمَا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا إِلَّا مَتَاعُ الْغُرُورِ ﴾ [آل عمران: 185].


 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • من مشكاة النبوة (6) "أين ابن عمك" (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (7) الطفلة والصلاة!! (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (8) حفظ الجميل (خطبة) (باللغة الهندية)
  • تعظيم صلاة الفريضة وصلاة الليل (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الأم (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الإحسان إلى الناس ونفعهم (خطبة) (باللغة الهندية)

مختارات من الشبكة

  • {ونضع الموازين القسط ليوم القيامة} (خطبة)(مقالة - موقع د. محمود بن أحمد الدوسري)
  • إزالة الغفلة (خطبة)(مقالة - موقع الشيخ إبراهيم بن محمد الحقيل)
  • خطبة: موسى عليه السلام وحياته لله عز وجل(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: العدل ضمان والخير أمان(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الورد والآس من مناقب ابن عباس (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أنين مسجد (4) وجوب صلاة الجماعة وأهميتها (خطبة)(مقالة - موقع د. صغير بن محمد الصغير)
  • عاشوراء بين ظهور الحق وزوال الباطل (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • على ضفاف عاشوراء {ودمرنا ما كان يصنع فرعون وقومه} (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: يكفي إهمالا يا أبي(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: فتنة التكاثر(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • موافقة رسمية على مشروع تطويري لمسجد بمدينة سلاو يخدم التعليم والمجتمع
  • بعد انتظار طويل.. وضع حجر الأساس لأول مسجد في قرية لوغ
  • فعاليات متنوعة بولاية ويسكونسن ضمن شهر التراث الإسلامي
  • بعد 14 عاما من البناء.. افتتاح مسجد منطقة تشيرنومورسكوي
  • مبادرة أكاديمية وإسلامية لدعم الاستخدام الأخلاقي للذكاء الاصطناعي في التعليم بنيجيريا
  • جلسات تثقيفية وتوعوية للفتيات المسلمات بعاصمة غانا
  • بعد خمس سنوات من الترميم.. مسجد كوتيزي يعود للحياة بعد 80 عاما من التوقف
  • أزناكايفو تستضيف المسابقة السنوية لحفظ وتلاوة القرآن الكريم في تتارستان

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 20/1/1447هـ - الساعة: 16:46
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب