• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
 
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    القران الكريم في أيدينا، فليكن في القلوب
    أ. د. فؤاد محمد موسى
  •  
    مقام العبودية الحقة (خطبة)
    د. عبدالرزاق السيد
  •  
    الصدقات والطاعات سبب السعادة في الدنيا والآخرة
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
  •  
    الخشوع المتخيل! الخشوع بين الأسطورة والواقع
    شهاب أحمد بن قرضي
  •  
    الانقياد لأوامر الشرع (خطبة)
    د. غازي بن طامي بن حماد الحكمي
  •  
    الوقت في الكتاب والسنة ومكانته وحفظه وإدارته ...
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    تفسير قوله تعالى: {قل يا أهل الكتاب تعالوا إلى ...
    الشيخ أ. د. سليمان بن إبراهيم اللاحم
  •  
    تفسير سورة العلق
    أبو عاصم البركاتي المصري
  •  
    النهي عن الوفاء بنذر المعصية
    فواز بن علي بن عباس السليماني
  •  
    الدرس السادس والعشرون: الزكاة
    عفان بن الشيخ صديق السرگتي
  •  
    الخلاصة في تفسير آية الجلابيب وآية الزينة
    د. محمد بن علي بن جميل المطري
  •  
    خطبة: وقفة محاسبة في زمن الفتن
    الشيخ عبدالله محمد الطوالة
  •  
    فضل التبكير إلى صلاة الجمعة والتحذير من التخلف ...
    د. أمين بن عبدالله الشقاوي
  •  
    مختصر رسالة إلى القضاة
    الشيخ عبدالله بن جار الله آل جار الله
  •  
    كيف أكون سعيدة؟
    د. عالية حسن عمر العمودي
  •  
    أوقات إجابة الدعاء والذين يستجاب دعاؤهم
    الشيخ محمد جميل زينو
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

فاعبد الله مخلصا له الدين (خطبة) (باللغة الهندية)

فاعبد الله مخلصا له الدين (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 17/12/2022 ميلادي - 24/5/1444 هجري

الزيارات: 4624

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

(अल्‍लाह ही की प्रार्थना करें,उसी के लिए धर्म को शुद्ध करते हुए)


ऐ ईमानी भाइयोमैं आप को और स्‍वयं को तक्‍़वा (धर्मनिष्‍ठा) की वसीयत करता हूं,क्‍योंकि अल्‍लाह ने अपने मखलूक को बेकार पैदा नहीं किया,और उन्‍हें यूंही नहीं छोड़ा बल्कि उन्‍हें एक महान उद्देश्‍य के लिए पैदा किया जिसे आकाश एवं पृथ्‍वी और पहाड़ों पर प्रस्‍तुत किया गया तो सबने उसे उठाने से इंकार कर दिया और उससे डर गए:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلاً سَدِيداً * يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَنْ يُطِعْ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزاً عَظِيماً * إِنَّا عَرَضْنَا الْأَمَانَةَ عَلَى السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَنْ يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْإِنْسَانُ إِنَّهُ كَانَ ظَلُومًا جَهُولًا﴾ [الأحزاب: 70 – 72].

अर्थात:हे ईमान वालोअल्‍लाह से डरो तथा सहीह और सीधी बात बोलो।वह सुधार देगा तुम्‍हारे लिये तुम्‍हारे कर्मों को,तथा क्षमा कर देगा तुम्‍हारे पापों को और जो अनुपालन करेगा अल्‍लाह तथा उस के रसूल का तो उस ने बड़ी सफलता प्राप्‍त कर ली।हम ने प्रस्‍तुत किया अमानत को आकाशों तथा धरती एवं पर्वतों पर तो उन सब ने इन्‍कार कर दिया उन का भार उठाने से,तथा डर गये उस से,किन्‍तु उस का भार से लिया मनुष्‍य ने,वास्‍तव में वह बड़ा अत्‍याचारी अज्ञान है।


एक महान प्रार्थना अर्थात दिली प्रार्थना पर आज हमारा चर्चा होगा,धीरता एवं शक्ति के साथ इसे करने से पुण्‍य में वृद्धि होती है,इससे कठिनाइयां दूर होती हैं,और इसके कारण बंदा मोह़म्‍मद मुस्‍तफ़ा सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की शिफाअ़त (परामर्श) का पात्र होगा,यह प्रार्थना अन्‍य समस्‍त प्रार्थनाओं से जुड़ी हुई है,इसके द्वारा बंदा बंदगी (वंदना) का आनंद महसूस करता है,इसका आश्‍य अल्‍लाह की प्रार्थना को शुद्ध करना है।


सत्‍य पवित्र हस्‍ती का कथन है:

﴿ فَاعْبُدِ اللَّهَ مُخْلِصًا لَهُ الدِّينَ ﴾ [الزمر: 2]

अ‍र्थात: अत: इबादत (वंदना) करो अल्‍लाह की शुद्ध करते हुए उस के लिये धर्म को।


तथा अल्‍लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ أَلَا لِلَّهِ الدِّينُ الْخَالِصُ ﴾ [الزمر: 3]

अर्थात:सुन लोशुद्ध धर्म अल्‍लाह ही के लिये (योग्‍य) है।


तथा अल्‍लाह का कथन है:

﴿وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ حُنَفَاء ﴾ [البينة: 5]

अर्थात:और उन्‍हें केवल यही आदेश दिया गया था कि वे धर्म को शुद्ध कर रखें।


शैखैन ने एक ह़दीस का वर्णन किया है:समस्‍त आ़माल नीयत पर आधारित हैं और समस्‍त अ़मल का परिणाम सारे मनुष्‍य को उसकी नीयत के अनुसार ही मिलेगा।इमाम बोखारी ने इसी ह़दीस से अपनी सह़ी का आरंभ किया है,आप सलल्‍लाहु अलैहि सवल्‍लम अधिक फरमाते हैं:क्‍़यामत में मेरी शिफाअ़त (परामर्श) से सबसे अधिक वह व्‍यक्ति लाभान्वित होगा,जो सत्‍य हृदय से अथवा स्‍तय मन से «لا إله إلا الله» कहेगा।इसे बोखारी ने रिवायत किया है।


नियत एवं अल्‍लाह की प्रसन्‍नता की चाहत के अध्‍याय में अनेक ह़दीसें आई हैं।


ई़ज्‍़ज़ो बिन अ़ब्‍दुस्‍सलाम फरमाते हैं:एखलास (निष्‍कपटता) यह है कि अल्‍लाह की आज्ञाकारिता के द्वारा उसी की प्रसन्‍नता चाही जाए और उसके द्वारा अल्‍लाह के सिवा किसी अन्‍य की प्रसन्‍नता का इरादा न किया जाए।समाप्‍त


ऐ सज्‍जनों के समूहएखलास (निष्‍कपटता) के कई श्रेणी एवं विभिन्‍न चरण हैं,अधिकतर बंदे अल्‍लाह के पुण्‍य को प्राप्‍त करने के उद्देश्‍य से और उसकी यातना से डरते हुए उसकी निकटता प्राप्‍त करते हैं,और यह एक अति उत्‍तम एवं र्स्‍वश्रेष्‍ठ गुण है,इससे बड़ा स्‍थान यह है कि अल्‍लाह की निकटता केवल अल्‍लाह के लिए प्राप्‍त किया जाए,इसी लिए आप ऐसे व्‍यक्तिा को (जिस के अंदर यह गुण स्थिरता के साथ पाई जाती हो) पाएंगे कि वह हर प्रकार के आदेशों को बड़ा समझता है और उन्‍हें पूरा करता है,चाहे वह आदेश अनिवार्य हों अथवा सुन्‍नत,चाहे उसके प्रति कोई ऐसी सद्ग्‍ुणआई हो जो उसके प्रति प्रोत्‍साहित करती हो,अथवा उस विषय में कोई सद्ग्‍ुणनहीं आई हो,वह उन आदेशों के आदेश देने वाली पवित्र हस्‍ती के सम्‍मान में उन्‍हें करता है,इसी प्रकार से वह निषेधों से भी बचता है चाहे वे निषेध ह़राम हों अथवा मकरूह (जिसका न करना अच्‍छा हो),चाहे चाहे उसके प्रति कोई चेतावनीआई हो अथवा उन निषोधों से केवल इस उद्देश्‍य के साथ बचता है ताकि वह अल्‍लाह का सम्‍मान कर सके।


ऐ अल्‍लाह के बंदोजब सम्‍मान,एखलास एवं आज्ञाकारिता व वंदना प्रबलहोती है तो अल्‍लाह से लज्‍जा एवं आत्‍मा को आलसी समझने का भाव बढ़ जाता है,इसी लिए बंदा अपने कर्मों की अस्‍वीकृति से डरा रहता है:

﴿ وَالَّذِينَ يُؤْتُونَ مَا آتَوا وَّقُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ أَنَّهُمْ إِلَى رَبِّهِمْ رَاجِعُون ﴾ [المؤمنون: 60].

अर्थात:और जो करते हैं जो कुछ भी करें,और उन के दिल काँपते रहते हैं कि वे अपने पालनहार की ओर फिर कर जाने वाले हैं।


जब वंदना करने वाले के हृदय में एखलास(निष्‍कपटता)प्रबलहोता है तो वह कर्मों के दिखावे एवं स्‍वयं प्रशंसा से दूर रहता है,क्‍योंकि उसके अंदर अल्‍लाह के इस कथन का भाव पाया जाता है:

﴿ وَلَكِنَّ اللَّهَ حَبَّبَ إِلَيْكُمُ الْإِيمَانَ وَزَيَّنَهُ فِي قُلُوبِكُمْ وَكَرَّهَ إِلَيْكُمُ الْكُفْرَ وَالْفُسُوقَ وَالْعِصْيَانَ أُوْلَئِكَ هُمُ الرَّاشِدُونَ ﴾[الحجرات: 7]

अर्थात:परन्‍तु अल्‍लाह ने प्रिय बना दिया है तुम्‍हारे लिये ईमान को तथा सुशोभित कर दिया है उसे तुम्‍हारे दिलों में और अप्रिय बना दिया है तुम्‍हारे लिये कुफ्र तथा उल्‍लंघन और अवैज्ञा को,और यही लोग संमार्ग पर हैं।


तथा अल्‍लाह के इस कथन का भी इहसास होता है:

﴿ وَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ مَا زَكَى مِنْكُمْ مِنْ أَحَدٍ أَبَدًا وَلَكِنَّ اللَّهَ يُزَكِّي مَنْ يَشَاءُ ﴾ [النور: 21]

अर्थात:और यदि तुम पर अल्‍लाह का अनुग्रह और उस की दया न होती,तो तुम में से कोई पवित्र कभी नहीं होता।परन्‍तु अल्‍लाह पवित्र करता है जिसे चाहे,और अल्‍लाह सब कुछ सुनने जानने वाला है।


और अल्‍लाह तआ़ला ने हमें ऐसे आज्ञाकारीएवंतहज्‍जुद पढ़ने वाले लोगों के प्रति सूचना दी है जो रात में ब‍हुत कम सोया करते थे,कि वह सुबह के समय इस्तिगफार किया करते थे,तथा फर्ज़ नमाज़ के पश्‍चात हमारे लिए इस्तिगफार को अनिवार्य कर दिया गया है और ह़ज के महव्‍त के बावजूद उसमे भी ह़ाजियों को इस्तिगफार का आदेश दिया गया:

﴿ ثُمَّ أَفِيضُواْ مِنْ حَيْثُ أَفَاضَ النَّاسُ وَاسْتَغْفِرُواْ اللّهَ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾[البقرة: 199].

अर्थात:फिर तुम भी वहीं से फिरो जहाँ से लोग फिरते हैं,तथा अल्‍लाह से क्षमा माँगो,निश्‍चय अल्‍लाह अति क्षमाशील,दयावान है।


ऐ अल्‍लाह के बंदोएखलास (निष्‍कपटता) के अनेक लाभ हैं,एखलास (निष्‍कपटता) के कारण स्‍वर्ग में प्रवेश मिलता और नरक से मुक्ति मिलती है,एखलास (निष्‍कपटता) के कारण कठिनाइयां दूर होती हैं और दुआ़ स्‍वीकार होती है,उन तीन व्‍यक्तियों की घटना छुपी नहीं,जिन पर चट्टान बाधा बना,अत: सभों ने कहा:हे अल्‍लाहयदि मैं ने वह अ़मल तेरी प्रसन्‍नता की प्राप्ति के लिए किया था तो तू हम से कठिनाई को दूर करदे,अल्‍लाह ने उनसे (कठिनाई) को दूर कर दिया),एखलास (निष्‍कपटता) के कारण ज्ञान में वृद्धि होता है:

﴿ وَاتَّقُواْ اللّهَ وَيُعَلِّمُكُمُ اللّهُ ﴾[البقرة: 282]

अर्थात:तथा अल्‍लाह से डरो और अल्‍लाह तुम्‍हें सिखा रहा है।


एखलास (निष्‍कपटता) उत्‍पीड़न एवं दुराचार से बचाता है:

﴿ كَذَلِكَ لِنَصْرِفَ عَنْهُ السُّوءَ وَالْفَحْشَاء إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُخْلَصِينَ ﴾ [يوسف: 24]

अर्थात:इस प्रकार हम ने (उसे सावधान) किया ताकि उस से बुराई तथा निर्लज्‍जा को दूर कर दें,वास्‍तव में वह हमारे शुद्ध भक्‍तों में था।


एक कि़राअत (अनुलेखन) में के مخلَصین स्‍थान पर مخلِصین पढ़ा गया है।


एखलास (निष्‍कपटता) के कारण मबाह़ (वैध) चीज़ों पर भी बंदे को पुण्‍य मिलता है,मोआ़ज़ बिन जबल रज़ीअल्‍लाहु अंहु फरमाते हैं:जिस प्रकार जागने की अवस्‍था में जिस पुण्‍य की आशा मैं अल्‍लाह से रखता हूं सोने की अवस्‍था के पुण्‍य का भी उसी प्रकार से उस से आशा रखता हूं।


एखलास (निष्‍कपटता) के कारण बंदा क्‍़यामत के दिन छाए के नीचे होगा,एखलास (निष्‍कपटता) के शक्ति के कारण भौतिकरूप से समान अ़मलों के पुण्‍य में वृद्धि होती है,एखलास (निष्‍कपटता) ज्ञान एवं अ़मल में बरकत डालदेता है,एखलास (निष्‍कपटता) के कारण बंदा प्रार्थना एवं वंदना का आनंद ले पाता है और एखलास (निष्‍कपटता) के कारण दिखावा एवं निफाक (पाखण्‍ड) समाप्‍त होता है।


हे अल्‍लाह हमें क्षमा प्रदान कर,हे दोनों जहां के पालनहारहमें हिदायत दे और तू हमें अपने मुखलिस (निष्‍ठवान) बंदों में से बना।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पहश्‍चात


एखलास (निष्‍कपटता) जीवन के लिए एक विशाल मैदान है,जिस में जीवन के समस्‍त भाग शामिल हैं:

﴿ قُلْ إِنَّ صَلاَتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ [الأنعام 162]

अर्थात:आप कह दें कि निश्‍चय मेरी नमाज़ और मेरी कुर्बानी तथा मेरा जीवन-मरण संसार के पालनहार अल्‍लाह के लिये है।


एखलास (निष्‍कपटता) समाज में मुसलमानों की गतिविधियों को बढ़ा देता है,इस लिए कि वह सदाचार अल्‍लाह की प्रसन्‍नता के लिए करता है, यद्यपि कोई कोई अन्‍य उसके उस अ़मल से अवगत न हो।


एखलास (निष्‍कपटता) मुसलमान को कदाचार करने एवं उसमें नियमितता अपनाने की शक्ति प्रदान करता है,इस लिए कि उसकी निगरानी कोई उत्‍तरदायीनहीं करता बल्कि उसका रब करता है,और वह अपने अ़मल के बदले की आशा سمیع (सुनने वाले),व بصیر (देखने वाले) और علیم (जानने वाले) व خبیر (सूचना रखने वाले) परवरदिगार से करता है।


एखलास(निष्‍कपटता) पूरा करने में बंदों के श्रेणी विविद्ध होते हैं,और एखलास(निष्‍कपटता) को पूरा करने के इस विविद्धता का कारण मुखलसीन (निष्‍ठवानों) के श्रेणी की विविद्धता है,इसी लिए कहा जाता है कि नीयत विद्वानों का व्‍यापार है,उदाहरण स्‍वरूप जो वि‍वाह का न्‍योता स्‍वीकार करता है उस के लिए संभव है कि शरई़ दावत को स्‍वीकार करने पर जो पुण्‍य होता है,उसकी नीयत करे,और न्‍योता नेदे वालों को प्रसन्‍न करने की नीयत रखे,लोगों से मोसाफह और उनसे सलाम करने की नीयत रखे,और यदि विवाह किसी परिजन की हो तो सिलहरह़मी (न्‍योता को जोड़ने) की भी नीयत करे,इस प्रकार से एक अ़मल में चार नीयतें शामिल होंगीं।


ऐ मित्रोएखलास(निष्‍कपटता) पैदा करने के कई तरीके हैं:अल्‍लाह का सम्‍मान करना,मनुष्‍य एकांत एवं संगत में एक समान हो,और यदि एकांम में उसका अ़मल अधिक अच्‍छा हो तो यह अधिक उत्‍तम अ़मल है।


ए ईमानी भाइयोसदाचार दो प्रकार के होते हैं:प्रथम प्रकार:संक्रामक आ़माल हैं जिन का लाभ दूसरे को नहीं मिलता,जैसे नमाज़,रोज़ा,ये ऐसे आ़माल हैं जिन में नीयत अनिवार्य है, यद्यपि अ़मल करने वाले की नीयत यह हो कि वाजिब अदा हो जाए,फिर भी उसे पुण्‍य दिया जाएगा।


द्वतीय प्रकार:अकर्मक आ़माल जिन का लाभ दूसरे को भी प्राप्‍त होता है,जैसे कष्‍टदायक चीज़ को हटाना,विद्धानों का इस विषय में विवाद है,कुछ का कहना है कि यदि वह नीयत करेगा तब ही उसे पुण्‍य दिया जाएगा,इय लिए कि ह़दीस है: "انما الاعمال بالنیات" उसके अतिरिक्‍त भी इसके प्रमाण हैं,कुछ विद्धानों कहा है कि दूसरे लोगों का इससे लाभ उठाने पर उसे पुण्‍य दिया जाएगा, यद्यपि उसे करते समय उसने उसकी नीयत न की हो,इसी लिए आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने बताया कि जो व्‍यक्ति कोई बीज बोए तो उसे इसके कारण पुण्‍य मिलगा।इस‍का दूसरा प्रमाण अल्‍लाह का यह कथन है:

﴿ لَا خَيْرَ فِي كَثِيرٍ مِنْ نَجْوَاهُمْ إِلَّا مَنْ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوْ مَعْرُوفٍ أَوْ إِصْلَاحٍ بَيْنَ النَّاسِ ﴾ [النساء: 114]

अर्थात:उन के अधिकांश सरगोशी में कोई भलाई नहीं होती,परन्‍तु जो दान अथवा सदाचार या लोगों में सुधार कराने का आदेश दे।


और यदि बंदा केवल सुधार के लिए उसे करे तो भी उसमे खैर है,अल्‍लाह अधिक फरमाता है:

﴿ وَمَن يَفْعَلْ ذَلِكَ ابْتَغَاء مَرْضَاتِ اللّهِ فَسَوْفَ نُؤْتِيهِ أَجْراً عَظِيماً ﴾ [النساء: 114]

अर्थात:और जो कोई ऐसे कर्म अल्‍लाह की प्रसन्‍नता के लिये करेगा तो हम उसे बहुत भारी प्रतिफल प्रदान करेंगे।


यह उस खैर पर एक अधिक चीज़ है जिसका अल्‍लाह ने आयत के आरंभ में उल्‍लेख किया है,और इसमें कोई संदेह नहीं कि नियत के साथ अ़मल करने का पुण्‍य सबसे अधिक होता है।


इब्‍ने मोबारक रहि़महुल्‍लाहु के इस कथन से हम चर्चा को समाप्‍त करते हैं:कभी कभी छोटे अ़मल को नीयत बड़ा कर देती है,और कभी बड़े अ़मल को नीयत छोटा कर देती है।

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • فاعبد الله مخلصا له الدين (خطبة)
  • فاعبد الله مخلصا له الدين (خطبة) (باللغة الأردية)
  • خطبة: فاعبد الله مخلصا له الدين (باللغة البنغالية)
  • خطبة: فاعبد الله مخلصا له الدين (باللغة النيبالية)

مختارات من الشبكة

  • قل إني أمرت أن أعبد الله مخلصا له الدين (حلقة مرئية)(مادة مرئية - مكتبة الألوكة)
  • بل الله فاعبد وكن من الشاكرين(مقالة - آفاق الشريعة)
  • تفسير: (واذكر في الكتاب موسى إنه كان مخلصا وكان رسولا نبيا)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • كيف أكون مخلصا؟(مقالة - آفاق الشريعة)
  • تفسير: (رب السماوات والأرض وما بينهما فاعبده واصطبر لعبادته هل تعلم له سميا)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • اتق المحارم تكن أعبد الناس (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: {واعبد ربك حتى يأتيك اليقين}(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شرح حديث اتق المحارم تكن أعبد الناس (4) (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شرح حديث اتق المحارم تكن أعبد الناس (3) (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شرح حديث اتق المحارم تكن أعبد الناس (2) (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • النسخة الثانية عشرة من يوم المسجد المفتوح في توومبا
  • تخريج دفعة جديدة من الحاصلين على إجازات علم التجويد بمدينة قازان
  • تخرج 220 طالبا من دارسي العلوم الإسلامية في ألبانيا
  • مسلمو سابينسكي يحتفلون بمسجدهم الجديد في سريدنيه نيرتي
  • مدينة زينيتشا تحتفل بالجيل الجديد من معلمي القرآن في حفلها الخامس عشر
  • بعد 3 سنوات أهالي كوكمور يحتفلون بإعادة افتتاح مسجدهم العريق
  • بعد عامين من البناء افتتاح مسجد جديد في قرية سوكوري
  • بعد 3 عقود من العطاء.. مركز ماديسون الإسلامي يفتتح مبناه الجديد

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1446هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 27/12/1446هـ - الساعة: 10:21
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب