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الله الديان (خطبة) (باللغة الهندية)

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تاريخ الإضافة: 29/10/2022 ميلادي - 4/4/1444 هجري

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शीर्षक:

अल्लाह के शुभ नाम (الدیّان) [बदला एवं यातना देने वाला] [1]


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात

ईमानी भाइयो


अल्लाह तआ़ला के जो शुभ नाम ह़दीस में आए हैं उन में से एक नाम:الدیّانभी है,आइए इसका प्रमाण,अर्थ एवं मतलब और मुसलमान के जीवन पर इसके प्रभाव से अवगत हो कर अपने ईमान में वृद्धि करते हैं,जाबिर बिन अ़ब्दुल्लाह रज़ीअल्लाहु अंहुमा फरमाते हैं: मुझे एक ह़दीस के विषय में मालूम हुआ कि अमुक व्यक्ति ने उसे नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुना है,अत: मैं ने एक उूंट खरीदा,उस पर अपना कजावा कसा,फिर एक महीने तक यात्रा करता रहा,यहाँ तक कि उसे पास शाम देश पहुँचा,तो देखा कि वह अ़ब्दुल्लाह बिन ओनैस हैं,मैं ने दरबान से कहा:उन से जा कर कहो कि जाबिर दरवाजे पर है,उस ने पूछा:अ़ब्दुल्लाह के पुत्र मैं ने कहा:हाँ,वह अपने वस्त्र रोंदते हुए बाहर आए और मुझ से गले लग गए,मैं भी गले लगा लिया,मैं ने कहा:मुझे पता चला है कि कि़सास के विषय में एक ह़दीस आप ने अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुनी है,तो मुझे डर हुआ कि कहीं वह ह़दीस सुनने से पहले ही आप की अथवा मेरी मृत्यु हो जाए,उन्हों ने कहा:मैं ने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से फरमाते हुए सुना: अल्लाह तआ़ला क़्यामत के दिन बंदों अथवा फरमाया लोगों को नंगे पैर नंगे शरीर बिना ख़तने (लिंगाग्रचर्म-उच्छेदन/परिशुद्ध) के और निढाल अवस्था में मह़शर के मैदान में इकट्ठा करेगा,फिर उन्हें ऐसी आवाज से पुकारे गा जिसे दूर वाले भी निकट वाले के जैसा सुनेंगे,कहेगा:मैं الدیّان(बदला एवं यातना देने वाला) हूँ,मैं المِلک (राजा) हूँ,किसी नरकवासी को यह अनुमति नहीं कि नरक में चला जाए और उसका कोई अधिकार किसी स्वर्गवासी के पास हो,यहाँ तक कि मैं उससे उसका बदला न लेलूँ,और न ही किसी स्वर्गवासी को यह अनुमति है कि स्वर्ग में प्रवेश कर जाए और उस के पास किसी नरकवासी का कोई अधिकार हो यहाँ तक कि मैं उससे उसका दबला न लेलूँ,चाहे थप्पड़ ही क्यों न हो,उन्होंने कहा:हम ने कहा:यह कैसे होगा कि जब हम नंगे शरीर और बिना ख़तने के आएंगे,आपने फरमाया:पुण्यों एवं पापों का मामला होगा ।इस ह़दीस को अह़मद और तिरमिज़ी ने वर्णन किया है और अल्बानी ने इसे ह़सन कहा है।


ईमानी भाइयो الدیّانके अर्थ हैं:बदला एवं यातना देने वाला और हि़साब व किताब लेने वाला,क़्यामत के दिन अल्लाह तआ़ला समस्त पूर्व एवं पश्चात के लोगों को नंगे शरीर इकट्ठा करेगा,उनके शरीर पर कोई वस्त्र न होगा,वे नंगे होंगे,बिना ख़तने (लिंगाग्रचर्म-उच्छेदन/परिशुद्ध) के होंगे,विवश अवस्था में होंगे,उनके पास संसार की कोई चीज़ न होगी,फिर अल्लाह उनका हि़साब व किताब लेगा और उन्होंने दुनिया में जो कार्य किए होंगे,उनके आधार पर उन्हें बदला देगा।


प्रलय के दिन को یوم الدین इसी लिए कहा जाता है कि वह हि़साब व किताब एवं बदला व यातना का दिन है:

﴿ يَوْمَئِذٍ يُوَفِّيهِمُ اللَّهُ دِينَهُمُ الْحَقَّ ﴾

अर्थात:उस दिन अल्लाह उन को उन का पूरा न्यायपूर्वक बदला देगा।

इब्ने अ़ब्बास फरमाते हैं:(دِينَهُمُ) का आशय है:उनका हि़साब व किताब।


अल्लाह तआ़ला काफिरों के विषय में बयान फरमाता है:

﴿ أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَدِينُونَ ﴾

अर्थात:क्या जब हम मर जायेंगे तथा मिट्टी और अस्थियाँ हो जाएंगे तो क्या हमें (कर्मों का) प्रतिफल दिया जायेगा।


इब्ने अ़ब्बास फरमाते हैं:हम अपने अ़मलें के आधार पर बदला दिए जाएंगे।

आदरणीय सज्जनो


जब बुद्धिमान व्यक्ति को यह पता चल जाए कि अल्लाह तआ़ला बदला व यातना देने वाला है,और क़्यामत का दिन बदला व यातना का दिन है और वह अपने समस्त अच्छे बुरे अ़मलों को अपने समक्ष पाएंगे,तो वह व्यक्ति उस दिन की तैयारी में लग जाएगा,बुद्धिमान वह है जो अवसर और अ़मल के संसार में स्वयं की समीक्षाकरले,अबू दरदा रज़ीअल्लाहु अंहु फरमाते हैं: पुण्य नष्ट नहीं होता,पाप भुलाया नहीं जाता,बदला देने वाला (الدیّان) सोता नहीं,इस लिए आप जैसा चाहें वैसा बन कर रहें,जैसा करेंगे वैसा ही पाएंगे ।


अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु की ह़दीस है: क्या तुम जानते हो कि मुफ्लिस (निर्धन) कौन ह सह़ाबा ने कहा:हमारे लिए मुफ्लिस वह है जिसके न दिरहम हो,न कोई सामान।आपने फरमाया: मेरी उम्मत का मुफ्लिल वह व्यक्ति है जो प्रलय के दिन नमाज़,रोज़ा और ज़कात ले कर आएगा और इस प्रकार से आएगा कि (दुनिया में) उसको गाली दी होगी,उस पर बोहतान लगाया होगा,उसका धन खाया होगा,उसका रक्त बहाया होगा और उस को मारा होगा,तो उस के पुण्यों में से उस को भी दिया जाएगा और उस को भी दिया जाएगा और यदि उस पर जो बोझ है उसकी पूर्ति से पहले उस के समस्त पुण्य समाप्त हो जाएंगे तो उन के पापों को ले कर उस पर डाल दिया जाएगा,फिर उस को नरक में फेंक दिया जाएगा ।इसे मुस्लिम ने रिवायत किसा है।


उस दिन अल्लाह तआ़ला बदले एवं यातना का पूर्णतायह होगा कि स्वयं बंदों के बीच निर्णय करने के लिए ह़श्र के मैदान में पदार्पण करेगा:


﴿ وَجَاء رَبُّكَ وَالْمَلَكُ صَفّاً صَفّاً ﴾ [الفجر: 22].

अर्थात:और तेरा पालनहार स्वयं पदार्पण करेगा,और फरिश्ते पंक्तियों में होंगे।


आ़यशा रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है: (एक व्यक्ति नबी पाक सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने आकर बैठा,उस ने कहा:अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे दो दास हैं,जो मुझ से झूट बोलते हैं,मेरे धन में गबन करते हैं और मेरा अवज्ञा करते हैं,मैं उन्हें गालियां देता हूँ मारता हूँ,मेरा उनका निर्णय कैसे होगा आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: उन्होंने तुम्हारे साथ गबन किया है,और तुम्हारा अवज्ञा किया है तुम से जो झूट बोले हैं उन सब की गिनती तथा हि़साब होगा।तुम ने उन्हों जो यातनाएं दी हैं उन की भी गिनती व हि़साब होगा औ यदि तुम्हारा दण्ड उनके अपराध से कम हुआ तो तुम्हार कृपा व दया होगा।यदि तुम्हारा दण्ड उन के अपराध के बराबर हुआ तो तुम और वे बराबर छूट जाओगे,न तुम्हारा अधिकार उन पर रहेगा और न उन का अधिकार तुम पर,और यदि तुम्हारा दण्ड उन के अपराध से अधिक हुआ तो तुझ से उन के साथ अत्याचार का बदला लिया जाएगा,(यह सुन कर) वह व्यक्ति रोता पीटता हुआ वापस हुआ,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: क्या तुम अल्लाह की पुस्तक नहीं पढ़ते (अल्लाह ने फरमाया है):

﴿ وَنَضَعُ الْمَوَازِينَ الْقِسْطَ ليَوْمِ الْقِيَامَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَإِنْ كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا وَكَفَى بِنَا حَاسِبِينَ ﴾ [الأنبياء: 47]

अर्थात:और हम रख देंगे न्याय का तराजू प्रलय के दिन,फिर नहीं अत्याचार किया जायेगा किसी पर कुछ भी,तथा यदि होगा राई के दाने के बराबर (किसी का कर्म) तो हम उसे सामने ला देंगे,और हम बस (काफ़ी) हैं हिसाब लेने वाले।


उस व्यक्ति ने कहा:अल्लाह की क़सम मैं अपने और उन के लिए इससे अच्छा और कोई बात नहीं पाता कि हम एक दूसरे से अलग हो जाएं,मैं आप को गवाह बन कर कहता हूँ कि वह सब स्वतंत्र हैं।इस ह़दीस को अह़मद और तिरमिज़ी ने वर्णन किया है और अल्बानी ने इसे सह़ीह़ कहा है।


अल्लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुर्आन की बरकत से माला-माल फरमाए।


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله...

प्रशंसाओं के पश्चात:

अल्लाह तआ़ला के शुभ नाम के ज्ञान से बंदे के जीवन पर बहुमूल्य प्रभाव पड़ते हैं,अल्लाह के शुभ नाम (الدیّان) पर ईमान लाने के कुछ प्रभाव ये हैं:अल्लाह तआ़ला का भय और बंदों पर अत्याचार करने से बचना,क्योंकि बंदा जानता है कि नि:संदेह एक ऐसा दिन आने वाला है जिस में धनी व दरिद्र,दीन व मंत्री का अंतर मिट जाएगा,सब के सब न्याय करने वाले ह़ाकिम (न्यायाधीश) के समक्ष खड़े होंगे,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ह़दीस है: जिस ने अपने दास पर लांछनलगाया जबकि वह उस लांछनसे मुक्त हो तो उसे क़्यामत के दिन कोड़े मारे जाएंगे।हाँ,यदि दास ऐसा हो जैसा उस ने कहा तो दण्ड नहीं होगा ।बोख़ारी


अल्लाह के बंदे प्रत्येक प्रकार के अत्याचार व अन्याय एवं कष्ट व दु:ख पहुँचाने से बचें,संभव है कि संसार में पीड़ित चुप रहे और अपने अधिकार की मांग ने करेअथवा मांग करने की शक्ति न रखे किन्तु क़्यामत के दिन वह आप से अपना अधिकार अवश्य वसूल करेगा।


अल्लाह के शुभ नाम الدیّان पर ईमान लाने का एक प्रभाव यह भी है कि:इस दुनिया में पीड़ित व्यक्ति को संतुष्टि मिलती है,वह इस प्रकार से कि नि:संदेह एक ऐसा दिन आने वाला है जिस में الدیّان अत्याचारों से बदला लेगा और अत्याचारों के अत्याचार का बदला ले कर पीड़ितों के दिल को ठंडक पहुँचाएगा:

﴿ وَلاَ تَحْسَبَنَّ اللّهَ غَافِلاً عَمَّا يَعْمَلُ الظَّالِمُونَ إِنَّمَا يُؤَخِّرُهُمْ لِيَوْمٍ تَشْخَصُ فِيهِ الأَبْصَارُ ﴾ [إبراهيم: 42]

अर्थात:और तुम कदापि अल्लाह को उस से अचेत न समझो जो अत्याचार कर हैं,वह तो उन्हें उस दिन के लिये टाल रहा है,जिस दिन आखें खुली रह जायेंगी।


जब अल्लाह तआ़ला जो (الدیّان) है वह पशुओं को आपस में एक दूसरे का अधिकार दिलाएगा तो मनुष्य जो मुसलमान एवं आदरणीय है,उसके विषय में क्या कहना आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: क़्यामत के दिन तुम सब अधिकार वालों के अधिकार उन को अदा करोगे,यहाँ तक कि उस बकरी का बदला भी जिस के सींग तोड़ दिये गए होंगे,सींगों वाली बकरी से पूरा पूरा लिया जाएगा ।(मुस्लिम)


अल्लाह के शुभ नाम (الدیّان) पर ईमान लाने का एक प्रभाव यह भी है कि:जिस व्यक्ति को अल्लाह तआ़ला लोगों के बीच न्यायाधीश बना कर आज़मात है अथवा दुनिया में उनके बीच बदला व यातना तय करने का दायित्व देता है,वह उनके बीच यथासंभव न्याय करता है।


अल्लाह के शुभ नाम (الدیّان) पर ईमान लाने का एक प्रभाव यह भी है कि:अमानतदारी (प्रत्ययी कर्तव्य) के साथ कर्तव्यों को पूरा करने की लालसा पैदा होती है,दूसरों के प्रति भलाई एवं शुभचिंतन का भाव पैदा होता है,उन्हें धोखा देने से बचता है।

أما والله إنّ الظلم لؤمٌ
وما زال المسيءُ هو الظلوم.
إلى ديّان يوم الدين نمضي
وعند الله تجتمع الخصوم.


अर्थात: अल्लाह के शुभ नाम पर ईमान लाने का एक प्रभाव यह भी है कि:अल्लाह के समक्ष मनुष्य तौबा करता है,बंदों के अत्याचारों से स्वयं को पवित्र रखता है और अधिकार वालों को अधिकार पहुँचाता है।


अल्लाह की क़सम अत्याचार निंदाके योग्य है।दुर्व्यवहार करने वाला ही अत्याचारी है।क़्यामत के दिन हम सब बदला व यातना देने वाले पालनहार (الدیّان) के समक्ष उपस्थित होंगे और अल्लाह के समक्ष ही समस्त शत्रुओं का मनसमूह लगेगा।


صلى الله عليه وسلم.

 



[1] उपदेश की सामग्री डाक्टर अलबदर की पुस्तक فقه الأسماء الحسنى और शैख़ अलजलील की पुस्तक ولله الأسماء الحسنى से लिया गया है।





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