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ضرورة طلب الهداية من الله (باللغة الهندية)

ضرورة طلب الهداية من الله (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 1/6/2022 ميلادي - 2/11/1443 هجري

الزيارات: 6885

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अल्‍लाह से हिदायत मांगने की आवश्‍यकता

प्रशंसाओं के पश्‍चात


मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वा(धर्मनिष्‍ठा)अपनाने की वसीयत करता हूँ:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللّهَ وَابْتَغُواْ إِلَيهِ الْوَسِيلَةَ وَجَاهِدُواْ فِي سَبِيلِهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ﴾[المائدة 35]

अर्थात:हे ईमान वालोअल्‍लाह की अवैज्ञासे डरते रहो,और उस की ओर वसीला खोजो,तथा उस की राह में


जिहाद करो,ताकि तु सफल हो जाओ।


ऐ सज्‍जनों के समूहपवित्र क़ुरान की र्स्‍वश्रेष्‍ठ सूरत सूरह फातिह़ा है,इस सूरह का प्रथम आधा भाग प्रशंसा,स्‍तुति एवं प्रशस्ति से निर्मित है,एवं शेष आधा भाग दुआ़ से सम्मिलित है,इसी लिए इस सूरह के सस्‍वर पाठ के पश्‍चात इस महान दुआ़ की स्‍वकृति के लिए हमारे लिए आमीन कहना अनिवार्य है।


तो क्‍या हम अपने सस्‍वर पाठ एवं आमीन के समय इस दुआ़ को समझते हैं,अथवा फिर हम केवल इसका सस्‍वर पाठ करलेते और आमीन कहते हैं,जबकि हमारे दिल बेखबर एवं लापरवाह होते हैं


यह ऐसा मामला है जो दुआ़ के प्रभाव को समाप्‍त करदेता और उसकी स्‍वीकृति में बाधा बनता है,क्‍या हम हिदायत(निर्देश) का महत्‍व व स्‍थान एवं उसके लिए हमेशा अल्‍लाह के प्रति अपनी आवश्‍यकता को महसूस करते हैंबल्कि हमें अल्‍लाह की हिदायत(निर्देश) की आवश्‍यकता है।


ऐ सज्‍जनों के समूहआइए हम कुछ ऐसे नोसूस(इस्‍लामी प्रमाणों)पर विचार करते हैं,जो हिदायत के महत्‍व एवं स्‍थान और उसके प्रति हमारी आवश्‍यकता को स्‍पष्‍ट करते हैं,क्‍योंकि हिदायत(निर्देश)के अनेक श्रेणी एवं वर्ग हैं।


ऐ ईमानी भाइयोहिदायत का मांगना आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की द़आ़ओं का एक अंग होता था,अत: इब्‍ने मस्‍उू़द रज़ीअल्‍लाहु अंहु ने रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से वर्णित किया है कि आप यह कहा करते थे:اللهمَّ إني أسألُك الهدى والتقى، والعفافَ والغنى "अर्थात:ऐ अल्‍लाहमैं तुझसे हिदायत मांगता हूँ,तक्‍़वा मांगता हूँ,शुद्धता मांगता हूँ और धनवनता एवं प्रचुरता मांगता हूँ(इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णित किया है)।


ऐ मित्रोआपके समक्ष एक ह़दीस प्रस्‍तुत की जा रही है,इस ह़दीस में अल्‍लाह का प्रशंसा व स्‍तुति एवं उसके पश्‍चात दुआ़ पर विचार करें,अत: सह़ी मुस्लिम में अबू सलमा बिन अ़ब्‍दुर्रह़मान बिन औ़फ से वर्णित है वह कहते हैं:मैं ने मोमिनों की माता आ़यशा रज़ीअल्‍लाहु अंहा से पूछा कि नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम अपनी नमाज़ को किस चीज़ से आरंभ करते थेतो उन्‍हों ने कहा:आप जब रात में उठ कर अपनी नमाज़ शुरू करते करते तो कहते:ऐ अल्‍लाहऐ जिब्रील व मीकाईल व इसराफील के रब,तू ही अपने बंदों के मध्‍य निर्णय करेगा जिस में वह झगड़ते थे,ऐ अल्‍लाहजिन बातों में विवाद है तू ही अपने आदेश से मुझे उन में से जो सत्‍य है उस पर चला,नि:संदेह तू ही जिसे चाहे सीधे मार्ग पर चलाता है।


ऐ रह़मान के बंदोक़ुरान की महानतम सूहर में इस दुआ़ पर विचार करें,यह ऐसी दुआ़ है जिसे तौह़ीद(ऐकेश्‍वरवाद) के पश्‍चात सबसे महान प्रार्थना में अनिवार्य किया गया है,हम हर रकअ़त में इस दुआ़ पर आमीन कहते हैं,नमाज़ हिदायत(निर्देश)है,क़ुरान का सस्‍वर पाठ हिदायत है,इसके बावजूद भी अल्‍लाह ने हमार लिए यह निश्चिय किया है कि हम हिदायत मांगें,हमें सिराते मुस्तिक़ीम(सत्‍य एवं सीधे मार्ग)के समस्‍त विवरणों का ज्ञान नहीं किन्‍तु उनके ज्ञान की हमें आवश्‍यकता है,क्‍योंकि बहुत सारे मसलों हम को पता नहीं हैं और अनेक विवादित मसले ऐसे हैं जिनका समझना हमारे लिए कठिन है।


तथा हमें सिराते मुस्तिक़ीम(सत्‍य एवं सीधे मार्ग) पर जमे रहने का जो भी विस्‍तृत ज्ञान है हम उसे पूरे तौर पर करने में समर्थ नहीं हैं,इसी लिए उसके ज्ञान के पश्‍चात भी हमारे लिए यह आवश्‍यक है कि अल्‍लाह हमें(उसे करने की) शक्ति प्रदान करे,और उसे करना हमारे लिए आसान करदे,फिर जो भी हमें ज्ञान प्राप्‍त होता है और हम उसे करने के समर्थ होजाते है,(फिर भी) हमें उसे पूरे तौर पर करने की तौफीक़ नहीं मिलती,इसी लिए हम कभी उसे आलस के कारण छोड़ देते हैं,इसी लिए उसे करने के लिए हमें अल्‍लाह के तौफीक़ की आवश्‍यकता होती है,तथा हमें जिसका ज्ञान होता है,हम उसे करने में समर्थ भी होते हैं और उसको करने की तौफीक़ भी मिलती है,(फिर भी)हमें इस बात की आवश्‍यकता होती है कि हम उसे सह़ी ढ़ंग से केवल अल्‍लाह ही के‍ लिए करें,तथा हम जिस से अवगत भी होते,उसके समर्थ भी होते और सही ढ़ंग से उस पर अ़मल भी करते हैं,(फिर भी)हमें इस बात की आवश्‍यकता होती है कि हम उसे ऐसे संदेहों से दूर रखें जो उसे नष्‍ट करने वाले अथवा उसके पुण्‍य को कम करने वाले हों "


﴿ لَا تُبْطِلُواْ صَدَقَٰتِكُم بِٱلْمَنِّ وَٱلْأَذَىٰ ﴾ [البقرة:264].

अर्थात:उपकार जता कर तथा दु:ख दे कर,अपने दानों को व्‍यर्थ न करो।


﴿ يَٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُواْ ٱلرَّسُولَ وَلَا تُبْطِلُوٓاْ أَعْمَٰلَكُمْ ﴾ [محمد:33].

अर्थात:हे लोगो जो ईमान लाये होआज्ञा मानो अल्‍लाह की,तथा आज्ञा मानो रसूल की तथा व्‍यर्थ न करो अपने कर्मों को।


कभी स्‍वयं को ही उत्‍तम समझने से अ़मल नष्‍ट हो जाता है और कभी अल्‍लाह के सामने अहंकार एवं अभिमान का प्रदर्शन करने से अ़मल नष्‍ट हो जाता है,इसी लिए हमें सत्‍य पर जमे रहने की आवश्‍यकता है।


हिदायत के अनेक श्रेणी हैं,मानो बंदा जब बंदगी में प्रगति करता जाता है,वह उच्‍च चोटी से निकट होता जाता है,शैखुल इस्‍लाम इब्‍ने तैमिया रहि़महुल्‍लाहु फरमाते हैं:बंदा पर ऐसी नियमितता के साथ पढ़ी जाने वाली दुआ़ फर्ज़ की गई है‍ जिसे हर नमाज़ में दुहराया जाता है,बल्कि फर्ज़ एवं नफल रकआ़तों में भी(उस दुआ़ को दोहराया जाता है)और इसका आश्‍य वह दुआ़ है जो उम्‍मुल क़ुरान(क़ुरान की माता)( سورہ الفاتحة)में शामिल है,और वह अल्‍लाह का यह कथन है:


﴿ اهدِنَــــا الصِّرَاطَ المُستَقِيمَ  * صِرَاطَ الَّذِينَ أَنعَمتَ عَلَيهِمْ غَيرِ المَغضُوبِ عَلَيهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ ﴾ [الفاتحة:6 /7].

अर्थात:हमें सुपथसीधी मार्गदिखा।उन का मार्ग जिन पर तू ने पुरस्‍कार किया उन का नहीं जिन पर तैरा प्रकोप हुआ,और न उन का जो कुपथगुमराहहो गये।


इस लिए कि हर बंदा हमेशा इस दुआ़ के उद्देश्‍य(अर्थ)को समझने का महताज होता है,और यह सिराते मुस्तिक़ीम(सत्‍य एवं सीधे मार्ग) की हिदायत है।(अलफतावा 22/399)।


ऐ मित्रोहिदायत के महत्‍व को स्‍पष्‍ट करने वाला एक प्रमाण यह भी है कि रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने ह़ज़रत अ़ली रज़ीअल्‍लाहु अंहु को हिदायत मांगने का निर्द्रश फरमाया,अत: ह़ज़रत अ़ली बिन अबू त़ालिब से वर्णित है वह कहते हैं,रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने मुझे फरमाया कि कहो:ऐ अल्‍लाहमुझे हिदायत दे,और सत्‍य पर स्थिर रख,और हिदायत(का नाम लेते हुए)उससे सीधे मार्ग पर चलने की नियत रखो,सत्‍यता के साथ तीर के जैसे सीधा रहने अर्थात सीधे मार्ग पर जमे रहने की नियत करो।(इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णित किया है)।


ऐ रह़मान के बंदोरसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम जो दुआ़एं अधिक किया करते थे उनमें से एक यह भी है:

"یا مقلب القلوب ثبت قلبی علی دینك"

(ऐ दिलों को पलटने वाले मेरे दिल को तू अपने धर्म पर स्थिर रख)।


जैसा कि सोनन में प्रमाणित है,अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम समृद्धि के पश्‍चात विपत्ति से शरण मांगते थे और अल्‍लाह तआ़ला ने हमें راسخین فی العلم ज्ञान के पक्‍के लोग की दुआ़ के विषय में सूचना दी है:

" ﴿ رَبَّنَا لا تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِنْ لَدُنْكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنْتَ الْوَهَّابُ ﴾ "[آل عمران:8]

अर्थात:हे हमारे पालनहारहमारे दिलों को हमें मार्गदर्शन देने के पश्‍चात कुटिल न कर,तथा हमें अपनी दया प्रदान कर,वास्‍तव में तू बहुत बड़ा दाता है।


यदि راسخین فی العلم ज्ञान के पक्‍के लोगइस प्रकार की दुआ़ करते हैं तो उनके अतिरिक्‍त अन्‍य लोगों को इस प्रकार की दुआ़ तो और अधिक करनी चाहिए,अल्‍लाह के खलील(मित्र) इब्रहीम अलैहिस्‍सलाम को देखें कि कैसे उन्‍हों ने अल्‍लाह से यह दुआ़ की कि अल्‍लाह उन्‍हें शिर्क से बचाए:

"﴿ وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِيمُ رَبِّ ٱجۡعَلۡ هَٰذَا ٱلۡبَلَدَ ءَامِنٗا وَٱجۡنُبۡنِي وَبَنِيَّ أَن نَّعۡبُدَ ٱلۡأَصۡنَام ﴾ [ابراهيم 35].

अर्थात:तथा याद करो जब इबराहीम ने प्रार्थना की:हे मेरे पालनहारइस नगर मक्‍काको शान्ति का नगर बना दे,और मुझे तथा मेरे पुत्रों को मूतिै पूजा से बचा ले।


ऐ अल्‍लाहमहानता एवं आदर के मालिक,हम तुझ से इस पावन घड़ी में हिदायत एवं तक्‍़वा,शुद्धता व पवित्रता एवं प्रचुरता मांगते हैं,ऐ महानता एवं आदर के मालिक:

﴿ ٱهْدِنَا ٱلصِّرَاطَ ٱلْمُسْتَقِيمَ صِرَاطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِم وَلاَ ٱلضَّآلِّينَ ﴾ [الفاتحة:6,7].

अर्थात:हमें सुपथ सीधी मार्ग दिखा।उन का मार्ग जिन पर तू ने पुरस्‍कार किया उन का नहीं जिन पर तैरा प्रकोप हुआ,और न ही उन का जो कुपथ गुमराह हो गये।


﴿ رَبَّنَا لا تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِنْ لَدُنْكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنْتَ الْوَهَّابُ ﴾ [آل عمران:8].

 

अर्थात:हे हमारे पालनहारहमारे दिलों को हमें मार्गदर्शन देने के पश्‍चात कुटिल न कर,तथा हमें अपनी दया प्रदान कर,वास्‍तव में तू बहुत बड़ा दाता है।


अल्‍लाह से तौबा व इस्तिगफार किजीए नि:संदेह वह अति अधिक क्षमाशील है।
♦♦ ♦♦ ♦♦

द्वतीय उपदेश



प्रशंसाओं के पश्‍चात

ऐ रह़मान के बंदो


नि:संदेह अल्‍लाह ही हिदायत देने वाला है,और अल्‍लाह ने हिदायत के लिए कुछ ऐसे मार्ग बताए हैं जो हिदायत तक पहुंचाते हैं,एक मार्ग दुआ़ करना और अल्‍लाह की रस्‍सी की शक्तिपूर्वक से थामना है,हमारी नजरों से अनेक नबवी दुआ़एं गुज़र चुकी हैं,और ह़दीसे कुदसी में आया है:ऐ मेरे बंदोतुम सब गुमराह हो मगर जिसे मैं हिदायत प्रदान कर दूँ,इस लिए तुम मुझ से हिदायत मांगो मैं तुम्‍हें हिदायत प्रदान कर दूंगा।इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णित किया है


﴿ وَمَن يَعْتَصِم بِٱللَّهِ فَقَدْ هُدِىَ إِلَىٰ صِرَٰطٍۢ مُّسْتَقِيمٍۢ ﴾ [آل عمران:101].

अर्थात:और जिस ने अल्‍लाह को थाम लिया तो उसे सुपथ दिखा दिया गया।


हिदायत तक ले जाने वाला एक दूसरा मार्ग है अल्‍लाह के कलाम (पुस्‍तकका सस्‍वर पाठ,उसमें विचार,उसको सुनना और उस पर अ़मल करना:

﴿ ذَٰلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ ۛ فِيهِ ۛ هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ ﴾ [البقرة2].

अर्थात:यह पुस्‍तक है,जिस में कोई संशय संदेह नहीं,उन को सीधी डगर दिखाने के लिये है,जो अल्‍लाह से डरते है।


﴿ قَدْ جَاءَكُمْ مِنَ اللَّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُبِينٌ * يَهْدِي بِهِ اللَّهُ مَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَهُ سُبُلَ السَّلَامِ وَيُخْرِجُهُمْ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ بِإِذْنِهِ وَيَهْدِيهِمْ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ ﴾ [المائدة:16،15].

अर्थात:तुम्‍हारे पास हमारे रसूल आगये हैं,जो तुम्‍हारे लिये उन बहुत सी बातों को उजागर कर रहे हैं,जिन्‍हें तुम छुपा रहे थे,और बहुत सी बातों को छोड़ भी रहे हैं,अब तुम्‍हारे पास अल्‍लाह की ओर से प्रकाश तथा खुली पुस्‍तक कुर्आनआ गई है।जिस के द्वारा अल्‍लाह उन्‍हें शान्ति का मार्ग दिखा रहा है,जो उस की प्रसन्‍नता पर चलते हों,उन्‍हें अपनी अनुमति से अंधेरों से निकाल कर प्रकाश की ओर ले जाता है,और उन्‍हें सुपथ दिखाता है।


हिदायत तक पहुंचाने वाला एक मार्ग अल्‍लाह से डरना,उसके घर में मुसलमानों के समूह के साथ नमाज़े स्‍थापित करना और ज़कातदानदेना:

﴿ إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ مَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلَّا ٱللَّهَ ۖ فَعَسَىٰٓ أُوْلَٰٓئِكَ أَن يَكُونُواْ مِنَ ٱلْمُهْتَدِينَ ﴾ [التوبة: 18].


अर्थात:वास्‍तव में अल्‍लाह की मस्जिदों को वही आबाद करता है जो अल्‍लाह पर और अन्तिम दिन प्रलय सिवा किसी से नहीं डरा।तो आशा है कि वही सीधी राह चलेंगे।


इब्‍ने मस्‍उू़द रज़ीअल्‍लाहु अंहु फरमाते हैं:जिस को इस बात से प्रसन्‍नता मिले कि क्‍़यामत के दिन अल्‍लाह से मुसलमान बन कर मिले तो उसके लिए अनिवार्य है कि उन नमाज़ों को स्‍थापित करे,जहां अज़ान होती हो इस लिए कि अल्‍लाह तआ़ला ने तुम्‍हारे नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के लिए तरीके निश्चित कर दिए और ये नमाज़ें भी उन्‍हीं में से हैं।इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है


हिदायत तक पहुंचाने वाला एक मार्ग यह भी है कि अल्‍लाह तआ़ला को प्रसन्‍न करने वाले कार्यों को करने में आत्‍मा के साथ जिहाद प्रयास किया जाए:

﴿ وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا ۚ وَإِنَّ اللَّهَ لَمَعَ الْمُحْسِنِينَ ﴾ [العنكبوت:69].

अर्थात:तथा जिन्‍हों ने हमारी राह में प्रयास किया तो हम अवश्‍य दिखा देंगे उन को अपनी राह,और निश्‍चय अल्‍लाह सदाचारियों के साथ है।


मोजाहिदासंघर्षके लिए धैर्य,प्रयास एवं कभी कुर्बानी की आवश्‍यकता होती है।


इसका एक दूसरा रास्‍ता यह है कि अल्‍लाह के एकेश्‍वरवाद को पूरा किया जाए:

﴿ الَّذِينَ آمَنُوا وَلَمْ يَلْبِسُوا إِيمَانَهُم بِظُلْمٍ أُولَٰئِكَ لَهُمُ الْأَمْنُ وَهُم مُّهْتَدُونَ ﴾[الانعام:82].

अर्थात:जो लोग ईमान लाये,और अपने ईमान को अत्‍याचार शिर्क से लिप्‍त नहीं किया,उन्‍हीं के लिये शान्ति है,तथा व‍ही मार्ग दर्शन पर है।


हिदायत का एक मार्ग यह है कि अल्‍लाह और उसके रसूल का आज्ञा मानना है,इस लिए कि नेकी दूसरी नेकी का कारण बनती है:

﴿ فآمنوا بالله ورسوله النبي الأمي الذي يؤمن بالله وكلماته واتبعوه لعلكم تهتدون ﴾  [الأعراف : 158]

अर्थात:अत: अल्‍लाह पर ईमान लाओ,और उस के उस उम्‍मी नबी पर जो अल्‍लाह पर और उस की सभी पुस्‍तकों आदि पर ईमान रखते हैं,और उस का अनुसरण करो,ता‍कि तुम मार्ग दर्शन पा जाओ।


और अल्‍लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ وَالَّذِينَ اهْتَدَوْا زَادَهُمْ هُدًى وَآتَاهُمْ تَقْوَاهُمْ ﴾ [محمد:17].

अर्थात:और जो सीधी राह पर है अल्‍लाह ने अधिक कर दिया है उन को मार्ग दर्शन में,और प्रदान किया है उन को उन का सदाचार।


हिदायत तक जाने वाला एक मार्ग अल्‍लाह की निकटता और उसके समक्ष विनम्रता पूर्वक खड़ा होना है:

﴿ اللَّهُ يَجْتَبِي إِلَيْهِ مَن يَشَاء وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَن يُنِيبُ ﴾ [الشورى:13].

अर्थात:अल्‍लाह ही चुनता है इस के लिए जिसे चाहे,और सीधी राह उसी को दिखाता है जो उसी की ओर ध्‍यान मग्‍न हो।


﴿ وَالَّذِينَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوتَ أَن يَعْبُدُوهَا وَأَنَابُوا إِلَى اللَّهِ لَهُمُ الْبُشْرَىٰ ۚ فَبَشِّرْ عِبَاد،الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ ۚ أُولَٰئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ ۖ وَأُولَٰئِكَ هُمْ أُولُو الْأَلْبَابِ ﴾ [الزمر:17،18].

अर्थात:जो बचे रहे तागूत असूर की पूजा से तथा ध्‍यान मग्‍न हो गये अल्‍लाह की ओर तो उन्‍हीं के लिए शुभसूचना है,अत: शुभ सूचना सुना दें मेरे भक्‍तों को।जो ध्‍यान से सुनते हैं इस बात को फिर अनुसरण करते हैं इस सर्वोत्‍तम बात का तो वही हैं जिन्‍हें सुपथ दर्शन दिया है अल्‍लाह ने,तथा व‍ही मतिमान हैं।


अंत में ऐ रह़मान के बंदोहमारे युग मेंजहां अनेक संदेह एवं आशंकाओं का चलन रहा हैअल्‍लाह की हिदायत और उसके कारणों की खोज के प्रति हमारी आवश्‍यकता अधिक बढ़ जाती है,ह़दीस में आया हैजलदी जलदी पुण्‍य के कार्य करलो उन फितनों से पहले जो अंधेरी रात के समान होंगे,सुबह को व्‍यक्ति ईमान लाएगा और शाम को काफिर अथवा शाम को ईमान लाएगा और सुबह को काफिर होगा और दुनिया के धम के बदले अपने धर्मइस्‍लामको बेच डालेगाइस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने वर्णित किया है


नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम पर दरूद व सलाम भेजें






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