• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    تحريم النفاق الأكبر وهو إظهار الإسلام وإبطان ...
    فواز بن علي بن عباس السليماني
  •  
    أوقات النهي عن الصلاة (درس 2)
    د. أمين بن عبدالله الشقاوي
  •  
    المسلم بين النضوج والإهمال (خطبة)
    د. عبدالرزاق السيد
  •  
    ما ورد في معنى استغفار النبي صلى الله عليه وسلم
    د. أحمد خضر حسنين الحسن
  •  
    متى تزداد الطيبة في القلوب؟
    شعيب ناصري
  •  
    الثبات على الدين: أهميته، وأسبابه، وموانعه في ...
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    سلسلة شرح الأربعين النووية: الحديث (34) «من رأى ...
    عبدالعزيز محمد مبارك أوتكوميت
  •  
    استشعار عظمة النعم وشكرها (خطبة)
    الشيخ عبدالله محمد الطوالة
  •  
    فضل حلق الذكر والاجتماع عليه
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
  •  
    الحياة مع القرآن
    د. مرضي بن مشوح العنزي
  •  
    فوائــد وأحكــام من قوله تعالى: {قل يا أهل الكتاب ...
    الشيخ أ. د. سليمان بن إبراهيم اللاحم
  •  
    مرتكزات منهج التيسير في الشريعة الإسلامية
    أ. د. فالح بن محمد الصغير
  •  
    الجامع لغزوات نبينا صلى الله عليه وسلم
    الشيخ صلاح نجيب الدق
  •  
    ومضة: ولا تعجز... فالله يرى عزمك
    نوال محمد سعيد حدور
  •  
    سلسلة آفات على الطريق (2): الإسراف في حياتنا ...
    حسان أحمد العماري
  •  
    نفحات تربوية من الخطب المنبرية (PDF)
    عدنان بن سلمان الدريويش
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

من دروس رمضان (خطبة) (باللغة الهندية)

من دروس رمضان (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 21/1/2023 ميلادي - 29/6/1444 هجري

الزيارات: 3738

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

रमज़ान के कुछ पाठ


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात


नमाज़ियो रमज़ान के विद्यालयसे मुसलामन विभिन्न परिणामों के साथ निकलते हैं,दिन व रात की चक्रमें हमारे लिए पाठ है,शाम गुजरती और सुबह़ उदय होती है,तेज़ी के साथ दिन व रात का गुजरना समय की तंगी और कमी पर बल डालता है जो कि क़्यामत (प्रलय) के उन निशानियों में से है जिन की हमें मुस्त़फा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सूचना दी,जैसा कि सह़ीह़ैन (बोख़ारी व मुस्लिम) में आया है,पवित्र क़ुर्आन की आयत है:

﴿ وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًا ﴾ [الفرقان: 62].

अर्थात:वही है जिस ने रात्रि तथा दिन को एक दूसरे के पीछे आते-जाते बनाया उस के लिये जो शिक्षा ग्रहण करना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे।


ईमानी भाइयो मुसलमान पूरा महीना अपने रब की बरकतों से लाभान्वित होते रहे,दुआ़ व स्मरण,नमाज़,दान एवं क़ुर्आन के सस्वर पाठ में लगे रहे।


अल्लाह तआ़ला ने सत्य फरमाया:

﴿ أَيَّامًا مَعْدُودَاتٍ ﴾ [البقرة: 184]

अर्थात:वह गिनती के कुछ दिन हैं।

देखते देखते यह समय गुज़र जाता है।


वास्तव में रमज़ान एक ऐसा विद्यालय है जिस से हम अनेक पाठ सीखते हैं,उन में से कुछ मुख्यपाठों का यहाँ उल्लेख किया जा रहा है:

प्रथम पाठ: अल्लाह के आदेशों पर अ़मल कर के अल्लाह तआ़ला की बंदगी को व्यवहार में लाना,अत: मुसलमान एक निर्धारित समय तक रोज़ा रखता है और निर्धारित समय में खाता-पीता है,ताकि अल्लाह के आदेश का पालन हो सके और अपने रब की याद और भय उस के हृदय में सवैद जीवित रहे।


द्वतीय पाठ:

क़ुर्आन से लगाव एवं संबंध में वृद्धि,सुनके हो अथवा सस्वर पाठ के द्वारा,सस्वर पाठ पर कितना अधिक पुण्य मिलता है क़ुर्आन पर विचार करने से कितने परिणाम सामने आते हैं अत: मुसलमान को चाहिए कि रमज़ान के पश्चात भी रौज़ाना क़ुर्आन की कुछ आयतों का सस्वर पाठ करे,सह़ीह़ बोख़ारी में आया है,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र से फरमाया: प्रत्येक महीने में एक बार पवित्र क़ुर्आन समाप्त किया करो ।उन्होंने कहा:मुझे तो इससे अधिक पढ़ने की शक्ति है।आप ने फरमाया: अच्छा तुम सात रातों में पवित्र क़ुर्आन समाप्त किया करो,इससे अधिक न पढ़ो ।आप-अल्लाह आप की रक्षा फरमाए-यदि प्रत्येक फर्ज़ नमाज़ में केवल दो पृष्ठ क़ुर्आन पढ़ेंगे तो भी प्रत्येक महीने में आसानी से क़ुर्आन समाप्त कर सकते हैं।


रमज़ान से प्राप्त होने वाले प्रशिक्षणपाठों में से यह भी है कि आत्मा को धैर्य की प्रशिक्षण मिलती है,रमज़ान में सब्र के तीन प्रकार इकट्ठा हो जाते हैं:आज्ञाकारिता के पालन पर सब्र,अवगा से बचने पर सब्र,और अल्लाह की तक़दीरों पर सब्र।


रमज़ान ने हमारे अंदर जो अच्छे प्रभाव छोड़े हैं,उन में से यह भी है कि:हम मस्जिद में बैठने और समय गुज़ारने की आदी हो गए,मस्जिदें अल्लाह के घर हैं,वह व्यक्ति कितने पुण्य से अपने दामन को भरता है जो देर तक मस्जिद में बैठा रहता है।


रमज़ान के महत्वपूर्ण पाठों में से यह भी है कि:मुसलमान रात में जागने का आदी होता है,मुसलमान को चाहिए कि अपनी आत्मा को उत्तरोत्तरके साथ (वंदना का) आदी बनाए,जो व्यक्ति वित्र नहीं पढ़ा करता था,उसे चाहिए कि एक रकअ़त वित्र की आदत डाले,और जो व्यक्ति रमज़ान के पूर्व एक रकअ़त वित्र पढ़ने का आदी था वह तीन रकअ़त पढ़ने की आदत डाले,और जो व्यक्ति तीन रकअ़त पढ़ा करता था वह अब पांच रकअ़त पढ़ा करे,इसी प्रकार से हर व्यक्ति अपनी आत्मा को अधिक से अधिक वंदना का आदी बनाए और (याद रखे) कि हमारे आदर्श मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ग्यारह रकआ़त पढ़ा करते थे।


सह़ीह़ैन (बोख़ारी व मुस्लिम) में अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र रज़ीअल्लाहु अंहुमा से वर्णित है,फरमाते हैं:रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के जीवन में जो व्यक्ति कोई सपना देखता तो वह उस को सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के समक्ष बयान करता,मेरी भी इच्छा थी कि मैं भी कोई सपना देखूँ और उस को सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के समक्ष बयान करूं।मैं एक अविवाहित युवा था और सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के युग में मस्जिद में सोया करता था,मैं ने सपने में देखा कि जैसे दो फरिश्तो ने मुझे पकड़ा और नरक की ओर ले गया।मैं ने देखा कि नरक के किनारे पर कुंए की मुंडेर के जैसा परत दर परत मुंडेर बनी हुई है और उस के दो खंभे हैं जिस प्रकार से कुंए के खंभे होते हैं और उस के अंदर लोग हैं जिन को मैं पहचानता हूँ तो मैं ने कहना आरंभ किया,मैं आग से अल्लाह की शरण चाहता हूँ, मैं आग से अल्लाह की शरण चाहता हूँ, मैं आग से अल्लाह की शरण चाहता हूँ।कहा:तो उन दोनों फरिश्तों से एक और फरिश्ता आ कर मिला,उस ने मुझ से कहा: तुम मत डरो।मैं ने यह सपना ह़ज़रत ह़फसा रज़ीअल्लाहु अंहा से बयान किया,ह़ज़रत ह़फसा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान किया तो सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: अ़ब्दुल्लाह अच्छा व्यक्ति है यदि यह रात को उठ कर नमाऩ पढ़ा करे ।सालिम ने कहा:उस के पश्चात ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र रज़ीअल्लाहु अंहु रात को बहुत कम सोते थे।(अधिक समय नमाज़ पढ़ते थे।)


मेरे इस्लामी भाइयो वास्तव में रमज़ान एक ईमानी और प्रशिक्षणविद्यालयहै,आप विचार करें कि इस महीने में मुसलमान किस प्रकार अपनी ज़बान को अपशब्द,गाली गलोज और चुगली जैसे निषेद्धों से सुरक्षित रखता है।


बल्कि रमज़ान मुसलमानों को कितना मज़बूत कर देता है,धरती के विभिन्न गोशों में मुसलमानों की एकता का प्रदर्शन होता है क्योंकि समस्त लोग एक ही समय में रोज़ा रखते हुए और एक ही समय में इफ्त़ार करते हुए नज़र आते हैं।


इस महीने में मुसलामन दान एवं उदारता व दानशीलता का अति अधिक आदी हो जाता है क्या ही अच्छा होगा कि मुसलमान हर महीने अपने धन का एक विशेष भाग दान कर दिया करे:

﴿ وَمَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ شَيْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهُ وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ ﴾ [سبأ: 39].

अर्थात:और जो भी तुम दान करोगे तो हव उस का पूरा बदला देगा और वही उत्तम जीविका देने वाला है।


मुसलमान कितनी बार अपने हाथ आकाश की ओर उठाता है,अपने पालनहार के समक्ष आग्रह करता है,उससे क्षमा की दुआ़ करता है,और प्रलय की भलाई मांगता है


हाँ ए फज़ीलत वालो इस शुभ महीने के बहुमूल्य परिणामों में से यह केवल कुछ पाठ हैं,अल्लाह तआ़ला हमें और आप को क़ुर्आन व सुन्नत की बरकतों से लाभान्वित फरमाए और उन में जो आयत व नीति है,उन्हें हमारे लिए लाभदायक बनाए,आप सब अल्लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील एवं दयालु है।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

अल्लाह के बंदो यह एक स्पष्ट एवं मुख्यचीज़ है कि रमज़ान में आज्ञाकारिता एवं वंदना और दान व ख़ैरात बढ़ जाते हैं और पाप कम हो जाते हैं,इन सब का उद्दश्य यह होता है:

﴿ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ﴾ [البقرة: 183].

अर्थात:ताकि तुम अल्लाह से डरो।


ए फाज़िल लोगो जब रोज़ा के इतने बहुमूल्य एवं विभिन्न लाभ व परिणाम हैं,तो मुसलमान को चाहिए कि प्रत्येक महीने में तीन दिन रोज़े रखा करे,जैसा कि प्रिय मुस्त़फा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सह़ाबा को वसीयत फरमाई,क्योंकि रोज़ा ईमानी शक्ति और शारीरिक शाति का कारण है,आप अल्लाह से सहायता मांगें और दृढ़-संकल्पकर लें।


मेरे इस्लामी भाइयो अल्लाह तआ़ला ने शौवाल के छे रोज़े भी बताए हैं,उन रोज़ों को पुण्य के पश्चात क्रमश:पुण्य में गिना है,अत: नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ह़दीस है: (जिस व्यक्ति ने रमज़ान के रोज़े रखे,फिर उस के पश्चात शौवाल में छ रोज़े भी रखे तो उस ने मानो साल भर रोज़े रखे)।


कुछ विद्धानों का कहना है:रमज़ान के पश्चात छ रोज़े जीवन भर के रोज़े के जैसा इस लिए हैं कि अल्लाह तआ़ला प्रत्येक सदाचार पर दस सदाचार का पुण्य देता है,जैसा कि अल्लाह का फरमान है:

﴿ مَنْ جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ عَشْرُ أَمْثَالِهَا ﴾ [الأنعام: 160]

अर्थात: जो (प्रलय के दिन) एक सत्कर्म ले कर (अल्लाह से) मिलेगा,उसे उस के दस गुना प्रतिफल मिलेगा।


इस प्रकार से रमज़ान के रोज़े दस महीने के रोज़ों के जैसे हैं,और शौवाल के छ रोज़े दो महीने के रोज़े के जैसे हैं,इस प्रकार से पूरे साल के रोज़े का पुण्य प्राप्त हो जाता है,अल्लाह सबसे अच्छा जानने वाला है।

 

صلى الله عليه وسلم.

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • من دروس رمضان
  • من دروس رمضان (باللغة الأردية)

مختارات من الشبكة

  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الهجرة النبوية: دروس وعبر (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من دروس البر من قصة جريج (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الهجرة النبوية: دروس وعبر (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من دروس خطبة الوداع: أخوة الإسلام بين توجيه النبوة وتفريط الأمة (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • عبر ودروس من قصة آل عمران عليهم السلام (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • عاشوراء: فضل ودروس (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • المسلم بين النضوج والإهمال (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الثبات على الدين: أهميته، وأسبابه، وموانعه في الكتاب والسنة (خطبة)(مقالة - موقع الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • مدرسة إسلامية جديدة في مدينة صوفيا مع بداية العام الدراسي
  • ندوة علمية حول دور الذكاء الاصطناعي في تحسين الإنتاجية بمدينة سراييفو
  • مركز تعليمي إسلامي جديد بمنطقة بيستريتشينسكي شمال غرب تتارستان
  • 100 متطوع مسلم يجهزون 20 ألف وجبة غذائية للمحتاجين في مينيسوتا
  • مسابقة الأحاديث النبوية تجمع أطفال دورات القرآن في بازارجيك
  • أعمال شاملة لإعادة ترميم مسجد الدفتردار ونافورته التاريخية بجزيرة كوس اليونانية
  • مدينة نابريجناي تشلني تحتفل بافتتاح مسجد "إزجي آي" بعد تسع سنوات من البناء
  • انتهاء فعاليات المسابقة الوطنية للقرآن الكريم في دورتها الـ17 بالبوسنة

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 30/3/1447هـ - الساعة: 16:48
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب