• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    {وجادلهم بالتي هي أحسن}
    د. حسام العيسوي سنيد
  •  
    القمار والميسر... متعة زائفة، وعاقبة مؤلمة
    بدر شاشا
  •  
    ومضات نبوية: "يا حنظلة ساعة وساعة"
    علي بن حسين بن أحمد فقيهي
  •  
    من تجالس؟ (خطبة)
    الشيخ محمد بن إبراهيم السبر
  •  
    من درر العلامة ابن القيم عن الزهد
    فهد بن عبدالعزيز عبدالله الشويرخ
  •  
    الله البصير (خطبة) - باللغة النيبالية
    حسام بن عبدالعزيز الجبرين
  •  
    ذكر الموت زاد الحياة (خطبة)
    عبدالله بن إبراهيم الحضريتي
  •  
    تفسير: (قل إن ربي يقذف بالحق علام الغيوب)
    تفسير القرآن الكريم
  •  
    تخريج حديث: أن رجلا مر على النبي صلى الله عليه ...
    الشيخ محمد طه شعبان
  •  
    الحديث الرابع عشر: المحافظة على أمور الدين وسد ...
    الدكتور أبو الحسن علي بن محمد المطري
  •  
    منزلة أولياء الله (خطبة)
    الشيخ إسماعيل بن عبدالرحمن الرسيني
  •  
    صفة العلم الإلهي
    الشيخ عبدالعزيز السلمان
  •  
    ماذا قدموا لخدمة الدين؟ وماذا قدمنا نحن؟ (خطبة)
    أبو سلمان راجح الحنق
  •  
    فقه مرويات ضرب الزوجة في السنة النبوية
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
  •  
    الشرط السابع من شروط الصلاة: ستر العورة
    يوسف بن عبدالعزيز بن عبدالرحمن السيف
  •  
    من أدلة صدقه عليه الصلاة والسلام: عظمة أخلاقه
    الشيخ عبدالله محمد الطوالة
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

الله الرزاق (خطبة) (باللغة الهندية)

الله الرزاق (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 4/1/2023 ميلادي - 12/6/1444 هجري

الزيارات: 4289

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

अल्लाह (जीविका देने वाला पालनहार)


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी

प्रशंसाओं के पश्चात


मैं आप को और स्वयं को अल्लाह और उस के रसूल के आदेशों पर अ़मल करने और अल्लाह और रसूल के निषेधों से बचने की वसीयत करता हूँ,यही तक़्वा (धर्मनिष्ठा) की वास्तविकता है जिस का उल्लेख अल्लाह की पुस्तक (क़ुर्आन) में बार-बार आया है।


मेरे ईमानी भाइयो

विद्या का एक अति मवत्वपूर्ण अध्याय जिस के प्रमाण क़ुर्आन में प्रचुरतासे आए हैं,बल्कि शायद ही कोई आयत हो जिस में अल्लाह तआ़ला ने इस विद्या एवं ज्ञान का किसी न किसी गोशे का उल्लेख किया हो,यह उस व्यक्ति के लिए इस विद्या एवं ज्ञान के महत्व को स्पष्ट करता है जो अपने रब की वंदना करता है। पवित्र क़ुर्आन की अनेक आयतों में इस महत्वपूर्ण विद्या एवं ज्ञान को सीखने का आदेश दिया गया है,इस का आशय अल्लाह तआ़ला के नाम एवं विशेषताओं का ज्ञान है:

﴿ وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ يَعْلَمُ مَا فِي أَنفُسِكُمْ فَاحْذَرُوهُ وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ ﴾

अर्थात:तथा जान लो कि जो कुछ तुम्हारे मन में है उसे अल्लाह जानता है,अत: उस से डरते रहो और जान लो कि अल्लाह क्षमाशील,सहनशील है।


﴿ وَاعْلَمُواْ أَنَّ اللّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ ﴾

अर्थात:तथा जान लो कि अल्लाह नि:स्पृह प्रशंसिह है।


शैख़ुलइस्लाम इब्ने तैमिया रह़िमहुल्लाह फरमाते हैं: पवित्र क़ुर्आन में स्वर्ग के अंदर होने वाले निकाह़ और उस में पाए जाने वाले खाने-पीने की चीज़ों से कहीं अधिक अल्लाह के नामों एवं विशेषताओं और उस के कार्यों का उल्लेख आया है,जिन आयतों में अल्लाह के नामों एवं विशेषताओं का उल्लेख आया है,उन की महत्ता व प्रतिष्ठाउन आयतों से कहीं बढ़ कर है जिन में ओख़रवी जीवन का उल्लेख आया है,अत: क़ुर्आन की सबसे बड़ी आयत آية الکرسی है जो नामों एवं विशेषताओं पर आधारित है...आप रह़िमहुल्लाह ने फरमाया: सबसे अफजल सूरह سورۃ الفاتحة है...और इस में आख़िरत से कहीं अधिक अल्लाह के नामों एवं विशेषताओं का उल्लेख आया है ।


आदरणीय सज्जनो आइये हम अल्लाह के शुभ नामों में से एक नाम पर विचार करते हैं,अर्थात अल्लाह के शुभ नाम الرزاق जीविका प्रदान करने वाला) पर विचार करते हैं,अल्लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ ﴾

अर्थात:अवश्य अल्लाह ही जीविका दाता शक्तिशाली बलवान है।


अल्लाह ने अधिक फरमाया:

﴿ اللّهُ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقَدِرُ ﴾

अर्थात:नि:संदेह फैलाता है जीविका जिस के लिये चाहता है,तथा नाप कर देता है।


अधिक फरमाया:

﴿ وَاللَّهُ خَيْرُ الرَّازِقِينَ ﴾

अर्थात:और अल्लाह सर्वोत्तम जीविका प्रदान करने वाला है।


अल्लाह की जीविका के दो प्रकार हैं:

प्रथम प्रकार: सामान्यजीविका,जो सदाचारी एवं कदाचारी,मुस्लिम व काफिर और प्रत्येक जीव को प्राप्त होता है,यह शारीरिक जीविका है:

﴿ وَمَا مِن دَآبَّةٍ فِي الأَرْضِ إِلاَّ عَلَى اللّهِ رِزْقُهَا ﴾

अर्थात:और धरती में कोई चलने वाला नहीं है परन्तु उस की जीविका अल्लाह के उूपर है।


अल्लाह तआ़ला ने समस्त जीवों की जीविका और अर्थव्यवस्था की उत्तरदायित्व अपने उूपर ली है और समस्त जीव के लिए जीविका के स्त्रोतों को मुहैया करना अल्लाह का काम है:

﴿ وَكَأَيِّن مِن دَابَّةٍ لَا تَحْمِلُ رِزْقَهَا اللَّهُ يَرْزُقُهَا وَإِيَّاكُمْ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ ﴾

अर्थात:कितने ही जीव हैं जो नहीं लादे फिरते अपनी जीविका,अल्लाह ही उन्हें जीविका प्रदान करता है तथा तुम को,और वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।


अल्लाह तआ़ला ने इस बात की नकीर की है कि काफिर ऐसे पूज्यों की पूजा करते हैं जो उन्हें जीविका नहीं देते,अल्लाह का फरमान है:

﴿ وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ اللّهِ مَا لاَ يَمْلِكُ لَهُمْ رِزْقاً مِّنَ السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ شَيْئاً وَلاَ يَسْتَطِيعُونَ ﴾

अर्थात:और अल्लाह के सिवा उन की वंदना करते हैं,जो उन के लिये आकशों तथा धरती से कुछ भी जीविका देने का अधिकार नहीं रखते,और न इस का सामर्थ्य रखते हैं।


अल्लाह के बंदे आप विचार करें कि अल्लाह तआ़ला किस प्रकार से गर्भस्थ शिशुको माँ के कोख़ में नाभी की नाली के द्वारा गिजा पहुँचाता है और उस की जीविका एवं जीवन दोनों की रक्षा करता है सोचें कि किस प्रकार से सांप को उस के बिल में जीविका पहुँचाता है मछली को समुद्र में और चींटी को बिल के अंदर जीविका पहुँचाता है ...विचार करें कि किस प्रकार से मगरमछ को जीविका पहुँचाता है जो कि बहुत बड़ा जीव है जो लालच और भय के साथ बड़े-बड़े जानवरों को निगल लेता है,इस के बावजूद छोटे से पक्षी को अल्लाह तआ़ला यह शक्ति एवं साहस प्रदान करता है कि वह मगरमछ के मुँह में प्रवेश करता है और उस के दांतों के बीच जो बचा हुआ खाना फंसा होता है उस से अपनी जीविका प्राप्त करता है,और मगरमछ भी उसे आसानी से प्रवेश होने देता,आसानी से निकलने देता और उसे कोई हानि नहीं पहुँचाताहै,आप विचार करें कि किस प्रकार से अल्लाह तआ़ला ने अपने दया व कृपा एवं नीति के कारण इस छोटे से पक्षी की जीविका उस मगरमछ के दांतों के बीच रख दी नि:संदहे यह इबरत की बात है,मगरमछ अपना मुँह खोलता है ताकि पक्षी आ कर उस के दांत साफ करें,और अपनी वे जीविका खाएं जिन की उत्तरदायित्वअल्लाह ने अपने उूपर ली है,अल्लाह के सिवा कोई पूज्य सत्य नहीं,वह बेहतरीन जीविका प्रदान करने वाला है।


हम प्रत्येक नमाज़ के पश्चात यह दुआ़ पढ़ते हैं:

اللهم لا مانع لما أعطيت ولا معطي لما منعت

अर्थात:हे अल्लाह तेरी अनुदान को कोई रोकने वाला नहीं और तेरी रोकी हुई चीज़ को कोई प्रदान करने वाला नहीं।


किन्तु क्या हम इस के अर्थ को मह़सूस करते हैं इमाम अह़मद,तिरमिज़ी और इब्ने माजा ने वर्णन किया है और अल्बानी ने इस ह़दीस को सह़ीह़ कहा है कि: यदि तुम लोग अल्लाह पर तवक्कुल (विश्वास) करो जैसा कि उस पर तवक्कुल (विश्वास) करने का अधिकार है तो तुम्हें उसी प्रकार से जीविका मिलेगा जैसा कि पक्षियों को मिलता है कि सुबह़ को वे भूके निकलते हैं और शाम को भरा पेट वापस आते हैं ।हे अल्लाह हमें तेरी हस्ती पर तवक्कुल (विश्वास) की तौफीक़ प्रदान फरमा।


सह़ी बोख़ारी की रिवायत है कि अल्लाह तआ़ला ह़दीसे क़ुदसी में फरमाता है: मेरे बंदो तुम सब के सब भूके हो,सिवाए उस के जिसे मैं खिलाउूं,इस लिए मुझ से खाना मांगो,मैं तुम्हें खिलाउूंगा ।


अल्लाह फरमाता है:

﴿ فَابْتَغُوا عِندَ اللَّهِ الرِّزْقَ وَاعْبُدُوهُ وَاشْكُرُوا لَهُ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴾

अर्थात:अत: खोज करो अल्लाह के पास जीविका की तथा इबातद (वंदना) करो उस की और कृतज्ञ बनो उस के,उसी की ओर तुम फेरे जाओगे।


सह़ी मुस्लिम में है कि एक व्यक्ति ने नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा:अल्लाह के रसूल जब मैं अपने रब से मांगूं तो क्या कहा करूं आप ने फरमाया: तुम कहो:" اللهم! اغفر لي وارحمني وعافني وارزقني" अर्थात:(हे अल्लाह मुझे अपने क्षमा,रह़मत,आ़फियत और जीविका प्रदान फरमा)।


कारणों को अपनाना तवक्कुल (विश्वास) के विरुद्ध नहीं है,बल्कि मुसलमान को कारणों को अपनाने का आदेश दिया गया है,पक्षी भी सुबह़ के समय जीविका की खोज में निकल जाते हैं और घोंसलों में बैठे नहीं रहते,बंदों के प्रति अल्लाह की रह़मत है कि वह कुछ जीविकाएं अपने बंदों से रोके रखता है,अल्लाह तआ़ला प्रदन करने में भी दयालु एवं कृपालु है और अपने अनुदान रोकने में भी दयालु व कृपालु है:

﴿ اللَّهُ لَطِيفٌ بِعِبَادِهِ يَرْزُقُ مَن يَشَاءُ ﴾

अर्थात:अल्लाह बड़ा दयालु है अपने भक्तों पर,वह जीविका प्रदान करता है जिसे चाहे।


अल्लाह तआ़ला का अधिक फरमान है:

﴿ وَلَوْ بَسَطَ اللَّهُ الرِّزْقَ لِعِبَادِهِ لَبَغَوْا فِي الْأَرْضِ وَلَكِن يُنَزِّلُ بِقَدَرٍ مَّا يَشَاءُ إِنَّهُ بِعِبَادِهِ خَبِيرٌ بَصِيرٌ ﴾

अर्थात:और यदि फैला देता अल्लाह जीविका अपने भक्तों के लिये तो वह विद्रोह कर देते धरती में,परन्तु वह उतारता है एक अनुमान से जैसे वह चाहता है,वास्तव में वह अपने भक्तों से भली-भाँति सूचित है,(तथा) उन्हें देख रहा है।


यह हमारे ह़कीम (तत्वज्ञ) व अवगतपालनहार की रह़मत व दया है।


अल्लाह का सामान्यजीविका काफिरों को भी मिलता है,अल्लाह तआ़ला काफिरों को भी जीविका की आधिक्यऔर धन संतान की प्रचुरताप्रदान करता है,किन्तु यह इस बात का प्रमाण नहीं कि अल्लाह उन से प्रसन्न है,क्योंकि अल्लाह तआ़ला दुनिया उसे भी देता है जिस से प्रेम रखता है और उसे भी जिस से प्रेम नहीं रखता:

﴿ فَذَرْهُمْ فِي غَمْرَتِهِمْ حَتَّى حِينٍ. أَيَحْسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُم بِهِ مِن مَّالٍ وَبَنِينَ. نُسَارِعُ لَهُمْ فِي الْخَيْرَاتِ بَل لَّا يَشْعُرُونَ ﴾

अर्थात:अत: (हे नबी ) आप उन्हें छोड़ दें उन की अचेतना में कुछ समय तक।क्या वे समझते हैं कि हम जो सहायता कर रहे हैं उन की धन तथा संतान से।शीघ्रता कर रहे हैं उन के लिये भलाईयों में बल्कि वह समझते नहीं हैं।


तथा अल्लाह तआ़ला का कथन है:

﴿ وَقَالُوا نَحْنُ أَكْثَرُ أَمْوَالاً وَأَوْلَاداً وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ. قُلْ إِنَّ رَبِّي يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَن يَشَاءُ وَيَقْدِرُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ. وَمَا أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُم بِالَّتِي تُقَرِّبُكُمْ عِندَنَا زُلْفَى إِلَّا مَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحاً فَأُوْلَئِكَ لَهُمْ جَزَاء الضِّعْفِ بِمَا عَمِلُوا وَهُمْ فِي الْغُرُفَاتِ آمِنُونَ. وَالَّذِينَ يَسْعَوْنَ فِي آيَاتِنَا مُعَاجِزِينَ أُوْلَئِكَ فِي الْعَذَابِ مُحْضَرُونَ ﴾

अर्थात:तथा कहा कि हम अधिक हैं तुम से धन और संतान में,तथा हम यातना ग्रस्त होने वाले नहीं हैं।आप कह दें कि वास्तव में मेरा पालनहार फैला देता है जीविका को जिस के लिये चाहता है,और नाप कर देता है,किन्तु अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते।और तुम्हारे धन और तुम्हारी संतान ऐसी नहीं हैं कि तुम्हें हमारे कुछ समीप कर दे,परन्तु जो ईमान लाये तथा सदाचार करे तो यही हैं जिन के लिए दोहरा प्रतिफल है,और यही उूँचे भवनों में शान्त रहने वाले हैं।तथा जो प्रयास करते हैं हमारी आयतों में विवश करने के लिये तो वही यातना में ग्रस्त होंगे।


हे अल्लाह हमें उन लोगों में शामिल फरमा जो तुझ पर तेरे अधिकार के अनुसार तवक्कुल (विश्वास) करते हैं,हमें उन बंदों में शामिल फरमा जो तेरे प्रदना की हुई जीविका पर संतुष्टि करते हैं,हमें उन बंदो में शामिल फरमा जिन के दिल संतुष्ट होते हैं,आप सब अल्लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमा करने वाला अति कृपालु एवं दयालु है।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

इस्लामी भाइयो


अब तक जिस जीवका का उल्लेख हुआ है वह सामान्यजीविका है जिस का संबंध शारीरिक जीविका से है,अल्लाह के जीविका का दूसरा प्रकार है:विशेष जीविका,अर्थात दिलों को जीविका पहुँचाना और उन्हें ईमान और विद्या की अन्नमुहैयाकरना,यह जीविका अल्लाह तआ़ला अपने विशेष चिन्हित बंदों को प्रदान करता है,जो अल्लाह तआ़ला की वंदना करते,उस की मारफत व आगही को पहचानते,उस के आदेशों का पालन करते और उस की सीमाओं का ध्यान रखते हैं,ताकि अपने रब की प्रसन्नता प्राप्त कर सकें,यह ईमानी जीविका है।


बोख़ारी व मुस्लिम ने इब्ने मसउू़द रज़ीअल्लाहु अंहु से मरफूअ़न रिवायत किया है: तुम में से हर व्यक्ति के रचना का सामग्री चालीस दिन तक उस की माँ के पेट में इकट्ठा किया जाता है,फिर वह उतनी अवधि (चालीस दिन) के लिएعلقہ (जोंक के जैसा कोख की दीवार के साथ चिपका हुआ) रहता है,फिर उतनी ही अवधि के लिए مُضغہ के रूप में रहता है (जिस में रीढ़ की हठ्ठी के चिन्हें दांत से चबाए जाने के चिन्हों के जैसे होते हैं।) फिर अल्लाह तआ़ला फरिश्ते को भेजता है जो (पांचों महीने में नैरोसेल,अर्थात बुद्धि की रचना के पश्चात) उस में आत्मा डालता है।और उसे चार बातों का आदेश दिया जाता है कि उस की जीवका,उस की आयुऔर उस का अ़मल और यह कि वह भाग्यशाली होगा अथवाअभागा,लिख लिया जाए ।


मुसलमान को आदेश दिया गया है कि वह कारणों को अपनाए और जीविका के लिए परिश्रण करे,साथ ही अल्लाह पर तवक्कुल (विश्वास) रखे और अल्लाह की दी हुई जीविका पर संतोषकरे,इस विषय में नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें जो मार्गदर्शन दिया है,वह यह कि:मनुष्य संसार में अपने से नीचे वाले मनुष्य को देखे (और उपकारों पर रब का शुक्रिया अदा करे)। अत: बोख़ारी व मुस्लिम की मरफूअ़न ह़दीस है: जब तुम में कोई व्यक्ति किसी ऐेसे व्यक्ति को देखे जो धन एवं रूप में उस से बढ़ कर है तो उस समय उसे ऐसे व्यक्ति को भी देखना चाहिए जो उस से कम श्रेणी का है ।


मेरे इस्लामी भाइयो हमारे रब की दी हुई जीविका अति बहुमूल्य है,अल्लाह की उन जीवाकाओं एवं उपकारों पर विचार करें जिन से हम गाफिल हैं,स्वस्थ,बुद्धि,पत्नी एवं बच्चे,सुंदरता,शक्ति,रहन-सहन,वस्त्र,गाड़ी व सवारी और व्यक्तिगत व परिवारिक शांति,हमारे नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी प्रिय पत्नी ख़दीजा रज़ीअल्लाहु अंहा के विषय में फरमाया: मुझे उन के प्रेम (जीविका के जैसे) प्रदान की गई है ।


एक व्यक्ति ने किसी ह़कीम (विद्धान) से निर्धनता एवं दरिद्रताकी शिकायत की,ह़़कीम (विद्धान) ने उस से कहा:क्या तुम अपनी आंख एक हज़ार दीनार में बेच सकते हो उस ने कहा:नहीं।ह़कीम (विद्धान) ने कहा:क्या तुम अपने कान एक हज़ार दीनार में बेच सकते हो उस ने कहा:नहीं।ह़कीम (विद्धान) ने कहा:अपना हाथ,अपना पैर,अपनी बुद्धि,अपना दिल,अपने शारीरिक अंगों को...इसी प्रकार से गिनाता रहा यहाँ तक कि उस व्यक्ति की कीमत हजा़रों दीनार तक पहुँच गई,अंत में ह़कीम (विद्धान) ने उस से कहा:ए मनुष्य तुम्हारे उूपर बहुत सारा क़र्ज़ है,तुम इस का शुक्र कब अदा करोगे तुम फिर भी अधिक की मांग करते हो


ए मेरे प्यारे भाई


जब आप रब की जीविका पर उस का आभार व्यक्त करते हैं तो आप अपने रब के इस आदेश की पुर्ती करते हैं:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُلُواْ مِن طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَاشْكُرُواْ لِلّهِ إِن كُنتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ ﴾

अर्थात:हे ईमान वालो उन स्वच्छ चीज़ों में से खाओ जो हम ने तुम्हें दी है।तथा अल्लाह की कृतज्ञता का वर्णन करो,यदि तुम केवल उसी की इबातद (वंदना) करते हो।


और यदि आप अल्लाह की दी हुई जीविकाओं एवं उपकारों पर उस का आभार व्यक्त करने करेंगे तो अल्लाह तआ़ला आप को अधिक उपकार एवं जीविकाएं प्रदान करेगा:

﴿ وَإِذْ تَأَذَّنَ رَبُّكُمْ لَئِن شَكَرْتُمْ لأَزِيدَنَّكُمْ وَلَئِن كَفَرْتُمْ إِنَّ عَذَابِي لَشَدِيدٌ ﴾

अर्थात:तथा (याद करो) जब तुम्हारे पालनहार ने घोषणा कर दी कि यदि तुम कृतज्ञ बनोगे तो तुम्हें और अधिक दूँगा,तथा यदि अकृतज्ञ रहोगे तो वास्तव में मेरी यातना बहुत कड़ी है।


संसारिक जीविका से कहीं बढ़ कर प्रलय की जीविका और वह उपकार है जिस का अल्लाह ने स्वर्गवासीयों को वचन दिया है:

﴿ وَإِنَّ لِلْمُتَّقِينَ لَحُسْنَ مَآبٍ. جَنَّاتِ عَدْنٍ مُّفَتَّحَةً لَّهُمُ الْأَبْوَابُ * مُتَّكِئِينَ فِيهَا يَدْعُونَ فِيهَا بِفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ وَشَرَابٍ * وَعِندَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ أَتْرَابٌ * هَذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوْمِ الْحِسَابِ * إِنَّ هَذَا لَرِزْقُنَا مَا لَهُ مِن نَّفَادٍ ﴾

अर्थात:तथा निश्चय आज्ञाकारियों के लिये उत्तम स्थान है।स्थायी स्वर्ग खुले हुये हैं उन के लिये (उन के) द्वारा।वे तकिये लगाये होंगे उन में,मागेंगे उन में बहुत से फल तथा पेय पदार्थ।तथा उन के पास आँखें सीमित रखने वाली समायु पत्नियाँ होंगी।यह है जिस का वचन दिया जा रहा था तुम्हें हिसाब के दिन।यह है हमारी जीविका जिस का कोई अन्त नहीं है।


अल्लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَمَن يُؤْمِن بِاللَّهِ وَيَعْمَلْ صَالِحاً يُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَداً قَدْ أَحْسَنَ اللَّهُ لَهُ رِزْقاً ﴾

अर्थात:और जो ईमान लाये तथा सदाचार करेगा वह उसे प्रवेश देगा ऐसे स्वर्गों में प्रवाहित हैं जिन में नहरें,वह सदावासी होंगे उन में।अल्लाह ने उस के लिये उत्तम जीविका तैयार कर रखी है।


हे अल्लाह हमें दुनिया में पुण्य दे और प्रलय में भलाई प्रदान फरमा और हमें नरक की यातना से मुक्ति से।


हे अल्लाह हमें क्षमा प्रदान फरमा,हमें अपनी रह़मत व शांति एवं जीविका प्रदान करे। [1]

 

صلى الله عليه وسلم

 



[1] यह उपदेश लिया गया है: डाक्टर सलमान अलऔ़दा की पुस्तक:مع الله और डाक्टर अ़ब्दुर राज़िक़ अलबदर की पुस्तक فقه الأسماء الحسنى से,किन्तु अन्य वृद्धियाँ भी इस में शामिल हैं।





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • الله الرزاق
  • الله الرزاق (باللغة الأردية)

مختارات من الشبكة

  • وقفات مع اسم الله الرازق الرزاق (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الله البصير (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: استشعار التعبد وحضور القلب (باللغة النيبالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: استشعار التعبد وحضور القلب (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: استشعار التعبد وحضور القلب (باللغة الإندونيسية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: احتساب الثواب والتقرب لله عز وجل (باللغة النيبالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: احتساب الثواب والتقرب لله عز وجل (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: احتساب الثواب والتقرب لله عز وجل (باللغة الإندونيسية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • برنامج علمي مكثف يناقش تطوير المدارس الإسلامية في بلغاريا
  • للسنة الخامسة على التوالي برنامج تعليمي نسائي يعزز الإيمان والتعلم في سراييفو
  • ندوة إسلامية للشباب تبرز القيم النبوية التربوية في مدينة زغرب
  • برنامج شبابي في توزلا يجمع بين الإيمان والمعرفة والتطوير الذاتي
  • ندوة نسائية وأخرى طلابية في القرم تناقشان التربية والقيم الإسلامية
  • مركز إسلامي وتعليمي جديد في مدينة فولجسكي الروسية
  • ختام دورة قرآنية ناجحة في توزلا بمشاركة واسعة من الطلاب المسلمين
  • يوم مفتوح للمسجد للتعرف على الإسلام غرب ماريلاند

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 11/5/1447هـ - الساعة: 17:35
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب