• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
 
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    عمى البصيرة يورد المهالك
    د. عبدالرحمن بن سعيد الحازمي
  •  
    شرح أحاديث الطهارة
    لطيفة بنت عبداللطيف
  •  
    خطبة: موسى عليه السلام وحياته لله عز وجل
    د. أيمن منصور أيوب علي بيفاري
  •  
    حقوق اليتيم (1)
    د. أمير بن محمد المدري
  •  
    الإسلام كفل لأهل الكتاب حرية الاعتقاد
    الشيخ ندا أبو أحمد
  •  
    أثر الأدلة الشرعية في تحقيق مقصد حفظ الدين (دليل ...
    عمرو عبدالله ناصر
  •  
    خطبة: العدل ضمان والخير أمان
    يحيى سليمان العقيلي
  •  
    الورد والآس من مناقب ابن عباس (خطبة)
    السيد مراد سلامة
  •  
    الصلاة دواء الروح
    الشيخ إسماعيل بن عبدالرحمن الرسيني
  •  
    أنين مسجد (4) وجوب صلاة الجماعة وأهميتها (خطبة)
    د. صغير بن محمد الصغير
  •  
    عاشوراء بين ظهور الحق وزوال الباطل (خطبة)
    د. عبدالرزاق السيد
  •  
    فضل ذكر الله تعالى
    أحمد عز الدين سلقيني
  •  
    قواعد قرآنية في تربية الأبناء
    د. حسام العيسوي سنيد
  •  
    مائدة التفسير: سورة الماعون
    عبدالرحمن عبدالله الشريف
  •  
    وقفات ودروس من سورة آل عمران (3)
    ميسون عبدالرحمن النحلاوي
  •  
    ما انتقد على «الصحيحين» ورجالهما، لا يقدح فيهما، ...
    د. هيثم بن عبدالمنعم بن الغريب صقر
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / مقالات شرعية / النصائح والمواعظ
علامة باركود

شؤم الذنوب (خطبة) (باللغة الهندية)

شؤم الذنوب (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 7/9/2022 ميلادي - 11/2/1444 هجري

الزيارات: 3831

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

पापों के अपशगुन

अनुवादक:

फैजुर रह़मान हि़फजुर रह़मान तैमी

 

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात

रह़मान के बंदोमैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वाधर्मनिष्‍ठाअपनाने की वसीयत करता हूँ:

﴿ وَاتَّقُوا يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ ﴾ [البقرة: 281]


अर्थात:तथा उस दिन से डरो जिस में तुम अल्‍लाह की ओर फेरे जाओगे,फिर प्रत्‍येक प्राणी को उस की कमाई का भरपूर प्रतिकार दिया जायेगा,तथा किसी पर अत्‍याचार न होगा


ईमानी भाइयोइमाम मुस्लिम ने अपनी सह़ी में ह़ज़रत अअ़ज़ अलमोज़नी रज़ीअल्‍लाहु अंहु से रिवायत किया है कि अल्‍लाह के रसूल ने फरमाया:लोगोअल्‍लाह की ओर तौबा किया करो,क्‍योंकि मैं अल्‍लाह से एक दिन में सौ बार तौबा करता हूँह़ज़रत अअ़ज़ अलमोज़नी इसी प्रकार की एक अन्‍य ह़दीस की भी हमें सूचना देते हैं कि अल्‍लाह के रसूल ने फरमाया:मेरे दिल पर गर्द छा जाता है तो मैंइस को दूर करने के लिएएक दिन में सौ बार अल्‍लाह से इस्तिग़फार करता हूँ


नौवी ने क़ाज़ी अ़याज़ से इस ह़दीस में आया शब्‍द (الغبن) के अर्थ की अनुकृति की है:एक अर्थ यह है:अल्‍लाह के इस स्‍मरण से आलस जिसे आप नियमित रूप से अपनाते थे,जब आप को उससे आलस होती अथवा आप आलस महसूस करते तो आप उसे पाप मानते अत: इससे क्षमा प्राप्‍त करतेसमाप्‍त


जब रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की यह स्थिति थी तो हमें तौबा व इस्तिग़फार करने की तो अधिक आवश्‍यकता है,क्‍यों न हो जब कि हम पापी और अ़मल में आलसी हैं


इसलामी भाइयोतौबा व इस्तिग़फार उन चाज़ों में से है जिन पर समस्‍त पैगंबरों की शरीअ़तें र्स्‍व सहमत हैं,शोऐ़ब अलैहिस्‍सलाम ने अपने समुदाय से कहा:

 

﴿ وَاسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ إِنَّ رَبِّي رَحِيمٌ وَدُودٌ ﴾ [هود: 90]


अर्थात:और अपने पालनहार से क्षमा माँगो,फिर उसी की ओर ध्‍यानमग्‍न हो जाओ,वास्‍तव में मेरा पालनहार अति क्षमाशील तथा प्रेम करने वाला है


और हूद अलैहिस्‍सलाम ने अपने समुदाय से कहा:

﴿ وَيَا قَوْمِ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ يُرْسِلِ السَّمَاءَ عَلَيْكُمْ مِدْرَارًا وَيَزِدْكُمْ قُوَّةً إِلَى قُوَّتِكُمْ ﴾ [هود: 52]


अर्थात:हे मेरी ताति के लोगोअपने पालनहार से क्षमा माँगो,फिर उस की ओर ध्‍यानमग्‍न हो जाओ,वह आकाश से तुम पर धारा प्रवाह वर्षा करेगा और तुम्‍हारी शक्ति में अधिक शक्ति प्रदान करेगा


सालेह़ अलैहिस्‍सलाम ने अपने समुदाय से कहा:

﴿ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُمْ مِنْ إِلَهٍ غَيْرُهُ هُوَ أَنْشَأَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ وَاسْتَعْمَرَكُمْ فِيهَا فَاسْتَغْفِرُوهُ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ إِنَّ رَبِّي قَرِيبٌ مُجِيبٌ ﴾ [هود: 61]


अर्थात:हे मेरी जाति के लोगोअल्‍लाह की इबादतावंदनाकरो उस के सिवा तुम्‍हारा कोई पूज्‍य नहीं है,उसी ने तुम को धरती से उत्‍पन्‍न किया,और तुम को उस में बसा दिया,अत: उस से क्षमा माँगो और उसी की ओर ध्‍यानमग्‍न हो जाओ,वास्‍तव में मेरा पालनहार समीप हैऔर दुआ़येंस्‍वीकार करने वाला है


नूह़ अ‍लैहिस्‍सलाम ने अपने समुदाय से कहा:

﴿ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ إِنَّهُ كَانَ غَفَّارًا , يُرْسِلِ السَّمَاءَ عَلَيْكُمْ مِدْرَارًا, وَيُمْدِدْكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَيَجْعَلْ لَكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَلْ لَكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَلْ لَكُمْ أَنْهَارً ﴾ [نوح: 10، 12]


अर्थात:क्षमा माँगो अपने पालनहार से वास्‍तव में वह बड़ा क्षमाशील हैवह वर्षा करेगा आकाश से तुम पर धाराप्रवाह वर्षातथा अधिक देगा तुम्‍हें पुत्र तथा धन और बना देगा तुम्‍हारे लिये बाग़ तथा नहरें


और अल्‍लाह ने अपने पैगंबर मोह़म्‍मद सलल्‍लाहु अलैहि सवल्‍लम को आदेश दिया कि आप अपने समुदाय से कह दें:

﴿ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ إِنَّنِي لَكُمْ مِنْهُ نَذِيرٌ وَبَشِيرٌ, وَأَنِ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُوا إِلَيْهِ يُمَتِّعْكُمْ مَتَاعًا حَسَنًا إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى وَيُؤْتِ كُلَّ ذِي فَضْلٍ فَضْلَهُ ﴾ [هود: 2، 3]


अर्थात:कि अल्‍लाह के सिवा किसी की इबादतवंदनान करो,वास्‍तव में मैं उस की ओर से तुम को सचेत करने वाला तथा शुभसूचना देने वाला हूँऔर यह कि अपने पालनहार से क्षमा याचना करो,फिर उसी की ओर ध्‍यान मग्‍न हो जाओ,वह तुम्‍हें एक निर्धारित अवधि तक अच्‍छा लाभ पहुँचायेगा और प्रत्‍येक श्रेष्‍ठ को उस की श्रेष्‍ठता प्रदान करेगा


रह़मान के बंदोतौबा व इस्तिग़फार के द्वारा हम अपने पापों को मिटाते हैं,तौबा व इस्तिग़फार के द्वारा हम अल्‍लाह के क्रोध और यातना से अपनी सुरक्षा करते हैं,क्‍या अल्‍लाह तआ़ला ने नहीं फरमाया:

﴿ وَمَا أَصَابَكُمْ مِنْ مُصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَنْ كَثِيرٍ ﴾ [الشورى: 30]


अर्थात:और जो भी दुख: तुम को पहुँचता है वह मुम्‍हारे अपने कर्तूत से पहूँचता है तथा वह क्षमा कर देता है तुम्‍हारे बहुत से पापों को


क्‍या अल्‍लाह तआ़ला ने नहीं फरमाया:

﴿ ظَهَرَ الْفَسَادُ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ بِمَا كَسَبَتْ أَيْدِي النَّاسِ ﴾ [الروم: 41]


अर्थात:फैल गया उपद्रव जल तथा थल में लोगों के करतूतों के कारण


क्‍या अल्‍लाह तआ़ला ने नहीं फरमाया:

﴿ وَمَا أَصَابَكَ مِنْ سَيِّئَةٍ فَمِنْ نَفْسِكَ ﴾ [النساء: 79]


अर्थात:तथा जो हानि पहूँचती है वह स्‍वयंतुम्‍हारे कुकर्मों केका‍रण होती है


अल्‍लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ نَبِّئْ عِبَادِي أَنِّي أَنَا الْغَفُورُ الرَّحِيمُ, وَأَنَّ عَذَابِي هُوَ الْعَذَابُ الْأَلِيمُ ﴾ [الحجر: 49، 50]


अर्थात:हे नबीआप मेरे भक्‍तों को सूचित कर दें कि वास्‍तव में मैं बड़ा क्षमाशील दयावान् हूँऔर मेरी यातना ही दुखदायी है


रह़मान के बंदोपाप के अंदर दुनिया एवं आखिरत का अपशगुन होता है,दुनिया के अंदर पापों के अपशगुन यह होता है कि:

पाप हृदय की कठोरता एवं उसमें जंग लग जाने का कारण होता है,अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ كَلَّا بَلْ رَانَ عَلَى قُلُوبِهِمْ مَا كَانُوا يَكْسِبُونَ ﴾ [المطففين: 14]


अर्थात:सुनोउन के दिलों पर कुकर्मों के कारण लोहमल लग गया है


और कभी कभी इन पापों के कारण से हृदय पर मोहर लग जाती है,अल्‍लाह की शरण,अल्‍लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ أَنْ لَوْ نَشَاءُ أَصَبْنَاهُمْ بِذُنُوبِهِمْ وَنَطْبَعُ عَلَى قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ ﴾ [الأعراف: 100]


अर्थात:कि यदि हम चाहें तो उन के पापों के बदले उन्‍हें आपदा में ग्रस्‍त कर दें,और उन के दिलों पर मुहर लगा दें,फिर वह कोई बात ही न सुन सकें

पापों का अपशगुन यह है कि:मनुष्‍य अपमानित एवं सत्‍य से दूर हो जाता है,अल्‍लाह का कथन है:

﴿ فَإِنْ تَوَلَّوْا فَاعْلَمْ أَنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ أَنْ يُصِيبَهُمْ بِبَعْضِ ذُنُوبِهِمْ ﴾ [المائدة: 49]


अर्थात:फिर यदि वे मुँह फेरे तो जान लें कि अल्‍लाह चाहता है कि उन के कुछ पापों के कारण उन्‍हें दण्‍ड दे

पापों का एक अपशगुन:भूक और नेमतों का पतन है:

﴿ وَضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا قَرْيَةً كَانَتْ آمِنَةً مُطْمَئِنَّةً يَأْتِيهَا رِزْقُهَا رَغَدًا مِنْ كُلِّ مَكَانٍ فَكَفَرَتْ بِأَنْعُمِ اللَّهِ فَأَذَاقَهَا اللَّهُ لِبَاسَ الْجُوعِ وَالْخَوْفِ بِمَا كَانُوا يَصْنَعُونَ ﴾ [النحل: 112]


अर्थात:अल्‍लाह ने एक बस्‍ती का उदाहरण दिया है जो शान्‍त संतुष्‍ट थी उस की जीविका प्रत्‍येक स्‍थान से प्राचुर्य के साथ पहुँच रही थी,तो उस ने अल्‍लाह के उपकारों के साथ कुफ़्र किया,तब अल्‍लाह ने उसे भूख और भय का वस्‍त्र चखा दिया उस के बदल जो वह कर रहे थे

पापों का एक अपशगुन:घातक यातनाओं के रूप में प्रकट होता है:

﴿ فَكُلًّا أَخَذْنَا بِذَنْبِهِ فَمِنْهُمْ مَنْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِ حَاصِبًا وَمِنْهُمْ مَنْ أَخَذَتْهُ الصَّيْحَةُ وَمِنْهُمْ مَنْ خَسَفْنَا بِهِ الْأَرْضَ وَمِنْهُمْ مَنْ أَغْرَقْنَا وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ ﴾ [العنكبوت: 40]


अर्थात:तो प्रत्‍येक को हम ने पकड़ लिया उस के पाप के कारण तो इन में से कुछ पर पत्‍थर दरसाये और उन में से कुछ को पकड़ा कड़ी ध्‍वनि ने त‍था कुछ को धंसा दिया धरती में,और कुछ को डुबो दिया तथा नहीं था अल्‍लाह कि उन पर अत्‍याचार करता परन्‍तु व‍ह स्‍वयं अपने उूपर अत्‍याचार कर रहे थे

तथा अल्‍लाह तआ़ला ने फरमाया:

﴿ أَفَأَمِنَ الَّذِينَ مَكَرُوا السَّيِّئَاتِ أَنْ يَخْسِفَ اللَّهُ بِهِمُ الْأَرْضَ أَوْ يَأْتِيَهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ ﴾ [النحل: 45]


अर्थात:तो क्‍या वे निर्भय हो गये हैं,जिन्‍होंने बुरे षडयंत्र रचे हैं,कि अल्‍लाह उन्‍हें धरती में धंसा देअथवा उन पर यातना ऐसी दिशा से आ जाये जिसे वह सोचते भी न हों

और कभी अचानकलापरवाही की स्थिति मेंअल्‍लाह की यातना उन्‍हें दबोच लेती है:

﴿ وَاتَّبِعُوا أَحْسَنَ مَا أُنْزِلَ إِلَيْكُمْ مِنْ رَبِّكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ بَغْتَةً وَأَنْتُمْ لَا تَشْعُرُونَ ﴾ [الزمر: 55]


अर्थात:तथा पालन करो उस सर्वोत्‍तमकुर्आनका जो अव‍तरित किया गया है तुम्‍हारी ओर तुम्‍हारे पालनहार की ओर से इस से पूर्व कि आ पड़े तुम पर यातना और तुम्‍हें ज्ञान न हो

पापों का अपशगुन एवं दुर्भाग्‍य यह भी है कि उनके कारण अल्‍लाह अत्‍याचारों को एक दूसरे पर थोप देता है:

﴿ وَكَذَلِكَ نُوَلِّي بَعْضَ الظَّالِمِينَ بَعْضًا بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ ﴾ [الأنعام: 129]


अर्थात:और इसी प्रकार हम अत्‍याचारियों को उन के कुकर्मों के कारण एक दूसरे का सहायक बना देते हैं

पाप का एक अपशगुन यह भी है कि वातावरण में बिगाड़ पैदा होता है,अल्‍लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ ظَهَرَ الْفَسَادُ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ بِمَا كَسَبَتْ أَيْدِي النَّاسِ لِيُذِيقَهُمْ بَعْضَ الَّذِي عَمِلُوا لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ ﴾ [الروم: 41]


अर्थात: फैल गया उपद्रव जल तथा थल में लोगों के करतूतों के कारणताकि वह चखाये उन को उन का कुछ कर्म,संभवत: वह रूक जायें

यह भी पाप का अपशगुन है कि बरकत कम होती है और रिज्‍क़ में कमी होती है,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَأَلَّوِ اسْتَقَامُوا عَلَى الطَّرِيقَةِ لَأَسْقَيْنَاهُمْ مَاءً غَدَقًا ﴾ [الجن: 16]


अर्थात:और यह कि यदि वह स्थित रहते सीधी राह अर्थात इस्‍लामपर तो हम सींचते उन्‍हें भरपूर जल से

तथा अल्‍लाह तआ़ला ने फरमाया:

﴿ وَلَوْ أَنَّ أَهْلَ الْقُرَى آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَفَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَرَكَاتٍ مِنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ﴾ [الأعراف: 96]


अर्थात:और यदि इन नगरों के वासी ईमान लाते,और कुकर्मों से बचे रहते तो हम उन पर आकाशों तथा धरती की सम्‍पन्‍नता के द्वार खोख देते

जहां तक पाप के उखरवी अपशगुन की बात है तो एतना की प्रयाप्‍त है कि वह क़ब्र और नरक की यातना का कारण है,अल्‍लाह तआ़ला हमें इन दोनों यातनाओं से सुरक्षित रखे:

﴿ فَأَمَّا مَنْ ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ * فَهُوَ فِي عِيشَةٍ رَاضِيَةٍ * وَأَمَّا مَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ * فَأُمُّهُ هَاوِيَةٌ * وَمَا أَدْرَاكَ مَا هِيَهْ * نَارٌ حَامِيَةٌ ﴾ [القارعة: 6 - 11]


अर्थात:तो जिस के पलड़े भारी हुये,तो वह मन चाहे सुख में होगा,तथा जिस के पलड़े हल्‍के हुये तो उस का स्‍थानहावियाहै,और तुम क्‍या जानो कि वहहावियाक्‍या हैवह दहकती आग है

इसके पश्‍चात मैं यहां कविकी एक कविता प्रस्‍तुत करता हूँ:

إذا لم يعظ في الناس مَن هو مذنبٌ *** فمن يعظ العاصين بعد مُحمدِ


अर्थात:‍यदि पापी व्‍यक्ति लोगों के लिए चेतावनी एवं परामर्श का कारण है तो मोह़म्‍मद के बाद पापियों को कौन परामर्श करेगा

अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप को क्षमा प्रदान करे,मेरी और आपकी तौबा स्‍वीकार करे,मेरे और आप की क्षति को छिपाए,नि:संदेह वह अति क्षमी,तौबा स्‍वीकार करने वाला,क्षति छिपाने वाला और बड़ा दयालु है

द्वतीय उपदेश:

الحمد لله القائل: ﴿ وَإِنِّي لَغَفَّارٌ لِمَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ثُمَّ اهْتَدَى ﴾[طه: 82]،وصلى الله وسلم على رسولنا المستغفر التواب وعلى الآل والأصحاب.

 

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

यह शैतान की चालाकीहै कि वह हमारे अंदर पापों की हिम्‍मत पैदा करता है और प्रमाण यह देता है कि अल्‍लाह तआ़ला क्षमा करने वाला दयालु है,जबकि अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ لِلنَّاسِ عَلَى ظُلْمِهِمْ وَإِنَّ رَبَّكَ لَشَدِيدُ الْعِقَابِ ﴾ [الرعد: 6]


अर्थात:और वास्‍तव में आपका पालनहार लोगों को उन के अत्‍याचार पर क्षमा करने वाला है,तथा निश्‍चय आप का पालनहार कड़ी यातना देने वालाभीहै

अल्‍लाह के बंदेजब आप की आत्‍मा आप से कहे कि:नि:संदेह अल्‍लाह तआ़ला क्षमा करने वाला दयालु है,यदि तुम से पाप हो भी जाए तो वह तुझे यातना नहीं देगा,तो आप उससे कहें:क्‍या आदम व ह़व्‍वा को केवल इस लिए सुविधाओं एवं आशीर्वादों वाले स्‍वर्ग से नहीं निकाला गया कि उन्‍हों ने केवल एक पेड़ का फल खा लिया था

और कहें कि:ऐ मेरी आत्‍माक्‍या तुझे नहीं पता कि यूनुस अलैहिस्‍सलाम जब अपने समुदाय को छोड़ कर निकल गए तो उन का जीवन तंग कर दिया गया यहां तक कि मछ्ली ने उनको निगल लिया,फिर उन्‍हों ने तौबा किया और अल्‍लाह ने उनकी तौबा स्‍वीकार फरमाली

यदि तेरी आत्‍मा तुझ से कहे:मेरे उूपर तंगी मत कर,क्‍या तू नहीं देखता कि कबीराबड़ेपापों को करने वाले और काफिर लोग रिज्‍क़ की वृद्धि एवं स्‍वास्‍थ्‍य के सा‍थ जीवन गुजार रहे हैंतो आप कहें:क्‍या तू ने अल्‍लाह का यह कथन नहीं सुना:

﴿ وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللَّهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوا مَا تَرَكَ عَلَى ظَهْرِهَا مِنْ دَابَّةٍ وَلَكِنْ يُؤَخِّرُهُمْ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِ بَصِيرًا ﴾ [فاطر: 45]


अर्थात:और यदि पकड़ने लगता अल्‍लाह लोगों को उन के कर्मों के कारण,तो नहीं छोड़ता धरती के उूपर कोई जीव,किन्‍तु अवसर दे रहा है उन्‍हें एक निश्यित अवधि तक,फिर जब आजायेगा उन का निश्चित समय तो निश्‍चय अल्‍लाह अपने भक्‍तों को देख नहा है

क्‍या तू अल्‍लाह के इस कथन से अवगत है:

﴿ لَا يَغُرَّنَّكَ تَقَلُّبُ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي الْبِلَادِ * مَتَاعٌ قَلِيلٌ ثُمَّ مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ وَبِئْسَ الْمِهَادُ ﴾ [آل عمران: 196، 197]


अर्थात:हे नबीनगरों में काफिरों कासुख सुविधा के साथफिरना आप को धोखे में न डाल देयह तनिक लाभ है,फिर उन का स्‍थान नरक है और वह क्‍या ही बरा आवास है

वर्णित किया जाता है कि उ़मर रज़ीअल्‍लाहु अंहु से साद बिन अबी सक्‍़कास और उनके फौज को यह संदेश लिख भेजा कि:तुम यह मत कहो कि:हमारा शत्रु हम से बुरा है,इस लिए यदि हम कुकर्म भी करें तो उसको हम पर मोसल्‍लत नहीं जा सकता,क्‍योंकि अनेक समुदायों पर उनसे अधिक बुरे लोगों को थोप दिया जा‍ता है,जैसा कि बनी इसराइल ने जब अल्‍लाह को नाराज करने वाले कार्य किए तो उन पर मजूसीअग्नि पूजककाफिरों को थोप दिया गया,वे उनके घरों तक फैल गए और अल्‍लाह का यह वादा पूरा होना ही था

अबू दरदा रज़ीअल्‍लाहु अंहु का कथन है:जब मखलूक़ अल्‍लाह के आदेश से मुंह

फेरने लगती है तो वह अल्‍लाह के समक्ष अति अपमानितएवं तुछ होजाती है

أعوذ بالله من الشيطان الرجيم: ﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا تُوبُوا إِلَى اللَّهِ تَوْبَةً نَصُوحًا عَسَى رَبُّكُمْ أَنْ يُكَفِّرَ عَنْكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَيُدْخِلَكُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ يَوْمَ لَا يُخْزِي اللَّهُ النَّبِيَّ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ نُورُهُمْ يَسْعَى بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَانِهِمْ يَقُولُونَ رَبَّنَا أَتْمِمْ لَنَا نُورَنَا وَاغْفِرْ لَنَا إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ﴾ [التحريم: 8]


अर्थात:हे ईमान वालोअल्‍लाह के आगे सच्‍ची तौबा करो संभव है कि तुम्‍हारा पालनहार दूर कर दे तुम्‍हारी बुराईयाँ तुम से,तथा प्रवेश करा दे तुम्‍हें ऐसे स्‍वर्गों में बहती हैं जिन में नहरें,जिस दिन वह अपमानित नहीं करेगा नबी को और न उन को जो ईमान लाये हैं उन के साथ,उन के आगे तथा उन के दायें,वह प्रार्थना कर रहे होंगे:हे हमारे पालनहारपूर्ण कर दे हमारे लिये हमारे प्रकाश को,तथा क्षमा कर दे हम को,वास्‍तव में तू जो चाहे कर सकता है

आप पर दरूद व सलाम भेजते रहें

صلى الله عليه وسلم





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • شؤم الذنوب (خطبة)
  • قصة نبوية (2) معجزات وفوائد: تكثير الطعام (باللغة الهندية)
  • شؤم الذنوب (خطبة) باللغة الإندونيسية
  • شؤم الذنوب (خطبة) - باللغة النيبالية

مختارات من الشبكة

  • شؤم الذنوب (خطبة) - باللغة البنغالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة شؤم الذنوب (باللغة الأردية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شؤم اللعن (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • صفر والشؤم(محاضرة - موقع د. علي بن عبدالعزيز الشبل)
  • خطبة: الأسرة وشؤم المعصية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شؤم رفيق السوء(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شؤم السرقة وشر إكرام الفاسقين (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • وسوسة الشؤم .. الداء الدفين (PDF)(كتاب - آفاق الشريعة)
  • هل أختي المصابة بالهلاوس شؤم على بيتنا؟(استشارة - الاستشارات)
  • شؤم المعاصي والذنوب وآثارها السلبية على الفرد والمجتمع(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • بعد انتظار طويل.. وضع حجر الأساس لأول مسجد في قرية لوغ
  • فعاليات متنوعة بولاية ويسكونسن ضمن شهر التراث الإسلامي
  • بعد 14 عاما من البناء.. افتتاح مسجد منطقة تشيرنومورسكوي
  • مبادرة أكاديمية وإسلامية لدعم الاستخدام الأخلاقي للذكاء الاصطناعي في التعليم بنيجيريا
  • جلسات تثقيفية وتوعوية للفتيات المسلمات بعاصمة غانا
  • بعد خمس سنوات من الترميم.. مسجد كوتيزي يعود للحياة بعد 80 عاما من التوقف
  • أزناكايفو تستضيف المسابقة السنوية لحفظ وتلاوة القرآن الكريم في تتارستان
  • بمشاركة مئات الأسر... فعالية خيرية لدعم تجديد وتوسعة مسجد في بلاكبيرن

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 20/1/1447هـ - الساعة: 9:57
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب