• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    تخلق بأخلاق نبيك (صلى الله عليه وسلم)... تكن ...
    د. محمد جمعة الحلبوسي
  •  
    ادعوا الله بصالح أعمالكم وأخلصها (خطبة)
    عبدالعزيز أبو يوسف
  •  
    مواطن القرب من الله (خطبة)
    حسان أحمد العماري
  •  
    بيان مقام الخلة التي أعطيها إبراهيم عليه السلام
    د. أحمد خضر حسنين الحسن
  •  
    اغتنموا أوقاتكم.. (خطبة)
    د. عبد الرقيب الراشدي
  •  
    وقف أحاديث الآحاد
    عبدالعظيم المطعني
  •  
    الرد على صاحب المقال السخيف: يوميات عصيد البخاري!
    د. محمد بن علي بن جميل المطري
  •  
    الوصف الشجي لصبر الحبيب النبي صلى الله عليه وسلم ...
    السيد مراد سلامة
  •  
    الحياة الطيبة (خطبة)
    د. أيمن منصور أيوب علي بيفاري
  •  
    خطبة بعدما حجوا وضحوا
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    فضائل الورع (خطبة)
    حامد عبدالخالق أبو الدهب
  •  
    خطبة: العبرة من الحوادث وسرعة الفناء
    د. علي برك باجيدة
  •  
    خطبة: الجريمة وطرق علاجها
    أ. د. حسن بن محمد بن علي شبالة
  •  
    في الاستدلال لحجية السنة بقوله تعالى: {إن هو إلا ...
    الشيخ عايد بن محمد التميمي
  •  
    خطبة: تأملات في بشرى ثلاث تمرات - (باللغة ...
    حسام بن عبدالعزيز الجبرين
  •  
    فاحشة قوم لوط عليه السلام (6) التحول الجنسي
    الشيخ د. إبراهيم بن محمد الحقيل
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

غزوة تبوك (خطبة) (باللغة الهندية)

غزوة تبوك (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 19/12/2022 ميلادي - 26/5/1444 هجري

الزيارات: 4047

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

ग़ज़वा-ऐ-तबूक


अनुवादक:

फैजुर रह़मान हि़फजुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात


मैं स्‍वयं को और आप को अल्‍लाह तआ़ला का तक़्वा (धर्मनिष्‍ठा) अपनाने की वसीयत करता हूँ,क्योंकि तक़्वा क़ब्र में,मृतोत्‍थान के दिन,मरणोपरांतपुन:उठाए जाने के पश्‍चात,और पुलसरात से गजरते समय डर एवं भय को दूर करने वाली सर्वोत्‍तम चीज़ है:

﴿ يَاأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اصْبِرُوا وَصَابِرُوا وَرَابِطُوا وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ ﴾ [آل عمران: 200]

अर्था‍त:हे ईमान वालो तुम धेर्य रखो,और एक दूसरे को थामे रखो,और जिहाद के लिये तैयार रहो,और अल्‍लाह से डरते रहो,ताकि तुम अपने उद्दश्‍य को पहुँचो।


ए ईमानी भाइयो लोग गर्मी के मौसम में परेशान रहते हैं जब कि घर,मस्जिदों,बाज़ारों और गाडि़यों हर स्‍थान पेएसी का व्‍यवस्‍था होता है,ए सज्‍जनों के समूह हम और आप एक ऐसे पैगंबरी घटने पर विचार करते हैं जो अत्‍यधिकगर्मी में घटा।


(हिजरत के) नौवीं वर्ष रजब के महीने में रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने अपने सह़ाबा को रोम से युद्ध करने की तैयारी का आदेश दिया,ज‍ब आप को यह सूचना मिली कि रोमनलोग सीरियाइयोंके साथ मुसलमानों के विरुद्ध युद्ध के लिए इकट्ठा हो चुके हैं,तैयारी का आदेश ऐसे अत्‍यधिकगर्मी के दिनों में हुआ,जब फल पक चुका था और लोग अपने फलों के बीच और उनके छांव में रहना पसंद करते थे।


आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने अल्‍लाह की मार्ग में (धन) खर्च करने पर उभारा,अत: दान करने वाले लोगों ने इस मैदान में स्‍पर्धाकिया।अत: उ़समान रज़ीअल्‍लाहु अंहु एक हजार दीनार ले कर आए और नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की गोद में डाल दिया,उस पर आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:यदि आज के बाद उ़समान कोई भी कार्य करे,उसे कोई हानि नहीं पहुंचेगा।


ह़ज़रत उुमर ने अपना आधा धन और ह़ज़रत अबू बकर रज़ीअल्‍लाहु अंहुमा ने अपना सारा धन दान कर दिया,ह़ज़रत अ़ब्‍दुर रह़मान बिन औ़फ रज़ीअल्‍लाहु अंहु बहुत सारा धन ले कर आए,और ह़ज़रत उ़समान ने तीन सौ उूंट और अन्‍य सामान दान किया,और इन लोगों के अलावा अन्‍य लोगों ने भी बहुत सारा धन प्रस्‍तुत किया,और महिलाओं ने अपनी शक्ति अनुसार अपने आभूषणभेज दिये।


अबू मसउ़ूद रज़ीअल्‍लाहु अंहु ने फरमाया: हमें दान करने का आदेश दिया गया ।उन्‍हों ने फरमाया: हम अपने पीठ पर (दान के धन) उठाया करते थे ।उन्‍होंने कहा:अ‍बूअ़क़ील ने आधा साअ (दो कीलो के कुछ अधिक) दान दिया।वह अधिक कहते हैं:एक व्‍यक्ति उन से अधिक चीज़ें ले कर आया।अत: मोनाफिकों (द्विधावादियों) ने कहा: अल्‍लाह इस प्रकार के दान से बेनयाज है,दूसरे व्‍यक्ति ने ऐसा केवल देखावा के लिये किया है,अत: यह आयत अवतरित हुई:

﴿ الَّذِينَ يَلْمِزُونَ الْمُطَّوِّعِينَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ فِي الصَّدَقَاتِ وَالَّذِينَ لَا يَجِدُونَ إِلَّا جُهْدَهُمْ ﴾[التوبة: 79]

अर्थात:जिन की दशा यह है कि वह ईमान वालों में से स्‍वेच्‍छा दान करने वालों पर दानों के विषय में आक्षेप करते हैं,तथा उन को जो अपने परिश्रम ही से कुछ पाते हैं।


इस प्रकार मोनाफिकों (द्विधावादियों) की दुष्‍टता से न कोई धनी सुरक्षित रहा और न कोई गरीब।


मोनाफिकों (द्विधावादियों) ने एक मस्जिद बनाई ताकि वहां इकट्ठा हो कर षड्यंत्रकर सके,नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से उन्‍होंने इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की मांग की,वे लोग यह समझ लिए कि उन्‍होंने यह मस्जिद दुर्बलों का ख्‍याल करते हुए बनाया है ताकि वह मस्जिद-ए-नबवी के तुलना में (बस्‍ती से) अधिक निकट हो,अत: क़ुर्रान अवतरित हुआ और उन मोनाफिकों (द्विधावादियों) का पोल खुल गया:

﴿ وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مَسْجِدًا ضِرَارًا وَكُفْرًا وَتَفْرِيقًا بَيْنَ الْمُؤْمِنِينَ وَإِرْصَادًا لِمَنْ حَارَبَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ مِنْ قَبْلُ وَلَيَحْلِفُنَّ إِنْ أَرَدْنَا إِلَّا الْحُسْنَى وَاللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ ﴾ [التوبة: 107]

अर्थात:तथा (द्विधावादियों में) वह भी है जिन्‍हों ने एक मस्जिद बनाई इस लिए कि (इस्‍लाम को) हानि पहुँचायें,तथा कुफ्र करें,और ईमान वालों में विभेद उत्‍पन्‍न करें,तथा उस का घात-स्‍थल बनाने के लिये जो इस से पूर्व अल्‍लाह और उस के रसूल से युद्ध कर चुका है,और वह अवश्‍य शपथ लेंगे कि हमारा संकल्‍प भलाई के सिवा और कुछ न था,तथा अल्‍लाह साक्ष्‍य देता है कि वह निश्‍चय मिथ्‍यावादी हैं।


जब मुसलमान निकलने के लिए तैयार हो गए तो मोनाफिकों (द्विधावादियों) के एक समूह ने कहा:गर्मी में मत निकलो,उस पर अल्‍लाह का यह फरमान अवतरित हुआ:

﴿ فَرِحَ الْمُخَلَّفُونَ بِمَقْعَدِهِمْ خِلَافَ رَسُولِ اللَّهِ وَكَرِهُوا أَنْ يُجَاهِدُوا بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَقَالُوا لَا تَنْفِرُوا فِي الْحَرِّ قُلْ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرًّا لَوْ كَانُوا يَفْقَهُونَ ﴾[التوبة: 81]

अ‍र्थात:वे प्रसन्‍न हुए जो पीछे कर दिये गये,अपने बैठे रहने के कारण अल्‍लाह के रसूल के पीछे,और उन्‍हें बुरा लगा कि जिहाद करें अपने धनों तथा प्राणों से अल्‍लाह की राह में,और उन्‍हों ने कहा की गर्मी में न निकलो,आप कह दें कि नरक की अग्नि गर्मी में इस से भीषण है,यदि वह समझते (तो ऐसी बात न करते)।


इकी बीच कुछ गरीब एवं दरिद्र मोमिन आ कर अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से सवारी की मांग करने लगे ताकि उस पर सवार हो सकें,जब आप ने उनसे क्षमायाचनाकरदी तो उदासी से उनकी आंखें भीग गईं,इसके बावजूद उन्‍होंने कोई कदाचार नहीं किया बल्कि वे विवशव दरिद्र थे:

﴿ وَلَا عَلَى الَّذِينَ إِذَا مَا أَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لَا أَجِدُ مَا أَحْمِلُكُمْ عَلَيْهِ تَوَلَّوْا وَأَعْيُنُهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ حَزَنًا أَلَّا يَجِدُوا مَا يُنْفِقُونَ ﴾[التوبة: 92]

अर्थात:और उन पर जो आप के पास जब आयें कि आप उन के लिये सवारी की व्‍यवस्‍था कर दें,और आप कहें कि मेरे पास इतना नहीं कि तुम्‍हारे लिये सवारी की व्‍यवस्‍था करूँ,तो वह इस दशा में वापिस हुये कि शोक के कारण उन की आँखें आँसू बहा रही थीं।


जब अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने ह़ज़रत अ़ली रज़ीअल्‍लहु अंहु को अपना उत्‍तराधिकारीबनाया तो उन्‍होंने कहा:आप मुझे बच्‍चों और महिलाओं में छोड़ कर जाते हैं आप ने फरमाया: क्‍या तुम इस बात से प्रसन्‍न नहीं हो कि मेरे पास तुम्‍हारा वही स्‍थान हो जो मूसा के पास हारून का था।केवल एतना अंतर है कि मेरे पश्‍चात कोई दूसरा नबी नहीं होगा ।(इस ह़दीस को इमाम बोखारी ने रिवायत किया है)


फिर अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम चले,आप के साथ सह़ाबा भी थे,जिन की संख्‍या तीस हज़ार अथवा उससे अधिक थी,और उनके साथ दस हज़ार घोड़े थे,उनके पास सवारी की कमी थी,यहां तक कि दो-दो तीन-तीन व्‍यक्ति एक घोड़े पर सवार थे,नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम जब ह़जर स्‍थान,समूद की बस्‍ती (जो आज ग़ला से निकट है) से गुजरे तो फरमाया: जिन लोगों ने अपने पशुओंपर अत्‍याचार किया है उनके आवासों मे मत जाओ,मगर रोते हुए वहां से गुजर जाओ,कहीं ऐसा न हो कि तुम उसी यातना का शिकार हो जाओ जो उन पर आया था ।फिर आप ने सवारी पर बैठे बैठे अपनी चादर से चेहरे को ढ़ांप लिया।(बोखारी,मुस्लिम) सह़ाबा को आदेश दिया गया कि यातना ग्रस्‍त लोगों की बस्‍ती के पानी से उन्‍होंने उूंट के लिए जो चारे तैयार किये थे उन्‍हें फेंक दें और पानी बहा दें,और उस कुआं से पानी प्राप्‍त करें,जहां उूंटनी आती थी,एक मोनाफिक(द्विधावादियों) ने सह़ाबा के विषय में कहा कि हम ने उपने साथियों जैसे लोगों को नहीं देखा जो पेट के अधिक चिंति‍त हैं,और जबान के बहुत झूटे हैं और शत्रु से मुठभेर के समय कायरताका प्रदर्शन करते हैं,और मिखशनबिनहि़मयर ने कहा:बनू असफर के जल्‍लाद को तुम अ़रबों के जैसा समझते हो जो अपने ही लोगो से युद्ध करते हैं अल्‍लाह की क़सम मोमिनों में डर व भय पैदा करने के लिए कल ही तुम्‍हें रस्सियों में जकड़ कर पिटाई करेंगे,तो यह आयत अवतरित हुई:

﴿ وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلْعَبُ قُلْ أَبِاللَّهِ وَآيَاتِهِ وَرَسُولِهِ كُنْتُمْ تَسْتَهْزِئُونَ* لَا تَعْتَذِرُوا قَدْ كَفَرْتُمْ بَعْدَ إِيمَانِكُمْ إِنْ نَعْفُ عَنْ طَائِفَةٍ مِنْكُمْ نُعَذِّبْ طَائِفَةً بِأَنَّهُمْ كَانُوا مُجْرِمِينَ ﴾ [التوبة: 65، 66]

अर्थात:और यदि आप उन से प्रश्‍न करें तो वे अवश्‍य कह देंगे कि हम तो यूँ ही बातें तथा उपहास कर रहे थे,आप कहिये कि क्‍या अल्‍लाह तथा उस की आयतों और उस के रसूल के ही साथ उपहास कर रहे थे तुम बहाने न बनाओ,तुम ने अपने ईमान के पश्‍चात कुफ्र किया है,यदि हम तुम्‍हारे एक गिरोह को क्षमा कर दें तो भी एक गिरोह को अवश्‍य यातना देंगे,क्‍यों कि वही अपराधी हैं।


बयान किया जाता है कि मिखशन ने तौबा कर लिया और यमामा के दिन शहीद किया गया।


जब सह़ाबा तबूक पहुंचे तो वहां किसी को नहीं पाया,इस लिए कि जब रोमनोंको इस फौज के आने की सूचना मिली तो उन्‍होंने अपने नगरों की ओर शरण लेने मे ही अपनी भलाई समझी ताकि सुरक्षित रह सकें,तो अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम को यह आवश्‍यकता महसूस न हुई कि उनके नगरों में उन्‍हें खोजें,और उस इलाके में आप ने लगभग बीस रात निवासकिया।


ईला वाले आप के पास आए और आप से सुलह की और आप को जिज़या (कर)दिया,इसी प्रकार से जरबा एवं अज़रह़ वाले भी आप के पास आए और आप को कर दिया,आप ने उनके लिए चिट्ठी लिखी और मदीना लौट गए,और सह़ाबा को मस्जिदे ज़ेरार को तोड़ देने और जलाने का आदेश दिया,जिसे मोनाफिको (द्विधावादियों) ने बनाया था,जब अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम मदीना के निकट पहुंचे तो आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया कि मदीना में बहुत से ऐसे लोग हैं कि जहां भी तुम चले जाओ और जिस घाटीको भी तुम पे पार किया वह (अपने हृदय से) तुम्‍हारे साथ साथ थे।सह़ाबा रज़ीअल्‍लाहु अंहुम ने कहा:हे अल्‍लाह के रसूल यदपी उस समय वे मदीना में ही रह रहे हों आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया:हां,वे मदीना में रहते हुए भी (अपने हृदय से तुम्‍हारे साथ थे) वह किसी कारणवश रुक गए थे।(बोखारी) मुस्लिम की रिवायत में है:वे पुण्‍य एवं सवाब में तुम्‍हारे साथ रहे हैं।


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله...

प्रशंसाओं के पश्‍चात


ए इस्‍लामी भाइयो आप के समक्ष प्रस्‍तुत किए गए वार्तालाप में से कुछ लाभों को निम्‍न में प्रस्‍तुत किया जाता है,जिन में से प्रथम लाभ यह है कि:

इस में सह़ाबा की सदगुणऔर पुण्‍य के कार्यों में उनकी सबकत एवं उनके धन एवं प्राण की आहुतियों का उल्‍लेख है।


एक दूसरा लाभ यह है कि निफाक (पाखंड) बड़ा खतरनाक अपराध है,सूरह बराअत में अनेक आयतें उनके नेफाक (पाखंड) का दोषबयान करती हैं।


एक लाभ यह है कि पुण्‍य के कार्यों में एक दूसरे से बढ़ने का प्रयास करना मशरू है,जब ह़ज़रत उ़मर अपने धन का आधा भाग ले कर आए तो उन्‍होंने कहा:आज मैं अबू बकर से जीत जाउुंगा।


एक लाभ यह है कि बहुत से सह़ाबा की बाह्य सदगूणेंज्ञात होती हैं,उन में खोलफाएराशेदीन भी हैं।


एक लाभ यह है‍ कि मोमिनों का मजाक उड़ाने से बचना चाहिए और इसके बुरे परिणाम से सचेत रहना चाहिए क्‍योंकि अल्‍लाह ने उसे अल्‍लाह,उसकी आयतों और उसके रसूलों का मजाक उड़ाना बताया है।


और अन्‍य लाभ यह है कि मोनाफिकों (द्विधावादियों) कीद्वषिता,उनकी बड़ी दुष्‍टता और छल कपटका ज्ञात होता है,और यह कि वे लोग यह दर्शाते हैं कि वे खैर चाहते हैं और झूटी क़सम भी खाते हैं,अल्‍लाह तआ़ला ने उन के गुणोंका क़ुर्रान में उल्‍लेख किया है,और उनके नामों को स्‍पष्‍ट नहीं किया,ताकि मुसलमान उनसे दूर रह सकें,नाम हर युग एवं लोगों के साथ बदलते रहते हैं,किन्‍तु जहां तक उन के गुणों की बात है तो गुणें हमेशा एक ही रही हैं।


एक लाभ यह है कि जो यातना ग्रस्‍त लोगों की बस्‍ती से गुजरे उसे चाहिए कि वह शिक्षाप्राप्‍त करते हुए और रोते हुए वहां से गुजरे।


एक लाभ यह है कि दिलों को जोड़नेऔर एकता बनाना एक महान उद्देश्‍य है,क्‍योंकि मस्जिदे जि़रार जिसे तोड़ दिया गया,का एक उद्देश्‍य यह भी था कि मोंमिनों के बीच मतभदे पैदा किया जाए:

[التوبة: 107] ﴿وَتَفْرِيقًا بَيْنَ الْمُؤْمِنِينَ﴾

अर्थात:और ईमान वालों में विभेद उत्‍पन्‍न करें।


इससे यह भी ज्ञात होता है कि अ़मल के अंदर नीयत के अच्‍छे होने का महत्‍व है क्‍योंकि जो उज़र के कारण मुसलमानों के साथ न जा सके,अल्‍लाह ने उन्‍हें भी पुण्‍य प्रदान किया।


एक अंतिम लाभ यह है‍ कि मोमिनों का मजाक उड़ाना मोनाफिकों (द्विधावादियों) की पहचान है और अफवाह फैलाना और डर पैदा करना उन का एक दूसरा तरीका है।

 






 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • غزوة تبوك (خطبة)
  • غزوة تبوك (خطبة) (باللغة الأردية)
  • غزوة تبوك: دروس وعبر (خطبة)
  • غزوة تبوك
  • مراحل الاستعداد لغزوة تبوك
  • ما نزل من القرآن في غزوة تبوك

مختارات من الشبكة

  • غزوة الأحزاب وتحزب الأعداء على الإسلام في حربهم على غزة (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • تخلف كعب بن مالك عن غزوة تبوك(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: الغزو الفكري... كيف نواجهه؟ (1)(مقالة - ثقافة ومعرفة)
  • الجامع لغزوات نبينا صلى الله عليه وسلم(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: تأملات في بشرى ثلاث تمرات - (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الله الخالق الخلاق (خطبة) – باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: تأملات في بشرى ثلاث تمرات - (باللغة الإندونيسية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الله البصير (خطبة) - باللغة البنغالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الله الخالق الخلاق (خطبة) – باللغة الإندونيسية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الله الخالق الخلاق (خطبة) – باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • دورة علمية في مودريتشا تعزز الوعي الإسلامي والنفسي لدى الشباب
  • مبادرة إسلامية خيرية في مدينة برمنغهام الأمريكية تجهز 42 ألف وجبة للمحتاجين
  • أكثر من 40 مسجدا يشاركون في حملة التبرع بالدم في أستراليا
  • 150 مشاركا ينالون شهادات دورة مكثفة في أصول الإسلام بقازان
  • فاريش تستضيف ندوة نسائية بعنوان: "طريق الفتنة - الإيمان سندا وأملا وقوة"
  • بحث مخاطر المهدئات وسوء استخدامها في ضوء الطب النفسي والشريعة الإسلامية
  • مسلمات سراييفو يشاركن في ندوة علمية عن أحكام زكاة الذهب والفضة
  • مؤتمر علمي يناقش تحديات الجيل المسلم لشباب أستراليا ونيوزيلندا

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 22/6/1447هـ - الساعة: 2:9
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب