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تاريخ الإضافة: 7/11/2022 ميلادي - 13/4/1444 هجري

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शीर्षक:

इस्तेख़ारह की नमाज़


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़र रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात


यह बात मालूम है कि जीवन परिवर्तनों एवं आश्चर्यजनक घटनाओं से बना है,कभी विभिन्न स्थितियों के पेच व खम में मनुष्य उलझ कर आश्चर्यचकित ख़ड़ा रहता है,कभी कभार तो कई कई दिन और रात यूँही सोच व विचार एवं बेकरारी में गुज़र जाती है और वह निर्णय नहीं ले पाता कि:कहाँ जाए और कौनसा मार्ग अपनाए


जाहिलियत के युग के लोग (ऐसी स्थितियों में) अपने (नाकिस) ज्ञान के अनुसार कुछ चीज़ों का सहारा लिया करते थे जिन से उनका आश्चर्य और गुमराही अधिक बढ़ जाए जाता था,कुछ लोग कुरआ के तीरों के द्वारा फालगिरी करते थे,और कुछ लोग पंक्षि उड़ा कर फाल निकाते थे।


किन्तु जब इस्लाम का आगमन हुआ-जिस ने लोगों के समस्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया और समस्त कठिनाई को दूर किया-तो इस में इस प्रकार के समस्त समस्याओं का समाधान उपलब्ध था,क्योंकि अल्लाह तआ़ला ने मोमिन को यह शिक्षा दी है कि जब उसे कोई कठिनाई हो और वह तरददुद का शिकार हो जाए तो इस्तेख़ारह का सहारा ले।


रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सह़ाबा को समस्त मामले में इस्तेख़रह की उसी प्रकार से शिक्षा देते थे,जिस प्रकार से क़ुरान की सूरतें सिखलाते थे,अत: सह़ीह़ बोख़ारी में जाबिर रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है,उन्होंने फरमाया: रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम हमें समस्त मामलों के लिए इस्तेख़ारह की नमाज़ उस प्रकार से सिखाते थे जिस प्रकार से क़ुरान पाक की सूरत सिखाया करते थे।आप फरमाते थे:तुम में से कोई जब किसी काम का इरादा करे तो फर्ज़ नमाज़ के अतिरिक्त दो रकअ़त नफिल पढ़े फिर कहे:

अर्थात: हे अल्लाह मैं तेरे ज्ञान के द्वारा ख़ैर मांगता हूं,तेरी कुदरत से साहस मांगता हूं,तेरा महान फजल मांगता हूं,नि:संदेह तू कादिर है मैं कुदरत वाला नहीं,तू जानता है मैं नहीं जानता,तू छूपे और लुप्त मामलों को जानता है।हे अल्लाह यदि तू जानता है कि मेरा यह काम मेरे धर्म,मेरी मइशत और मेरे मामले के परिणाम के अनुसार बेहतर है तो इसे मेरे लिए मोक़ददर और आसान करदे,फिर इस में मेरे लिए बरकत फरमा।और यदि तू जानता है कि यह काम मेरे धर्म,मेरी मइशत और मेरे मामले के परिणाम के अनुसार अच्छा नहीं है तो इसे मुझ से और मुझे इससे फेर दे और मेरे लिए ख़ैर को मोकददर कर दे वह जहाँ भी हो,फिर मुझे इससे प्रसन्न कर दे ।


इब्नुल क़य्यिम फरमाते हैं: यह दुआ़ जिन मामलों को सम्मिलित है वह यह हैं:अल्लाह तआ़ला के अस्तत्वि का इकरार,उसके कामिल विशेषताओं का इकरार,जैसे कमाले इलम,कमाले कुदरत और कमाले इरादा,उसकी रुबूबियत का इकरार,समस्त मामलों को उसके सुपुद्र करना,उसी से सहायता मांगना,अपने प्राण की जिममादारी से मुक्ति का प्रदर्शन करना और समस्त प्रकार की शक्ति से मुक्ति का प्रदर्शन करना सिवाए उसके जो अल्लाह की सहयता से प्राप्त हुई हो।बंदा का इस बात से अपनी आजजी का एतेराफ करना कि वह अपनी हस्ती के हित एवं लाभ का ज्ञान,कुदरत और इरादा रखता है,और यह एतेराफ करना कि यह समस्त मामले उसके कारसाज,रचनाकार और समस्त जीव के पूज्य (अल्लाह) के हाथ में हैं ।समाप्त


आदरणीय सज्जनो सलाह मांगने से इस्तेख़ारह की तकमील होती है,बल्कि इस्लाम ने एक मुसलमन का दूसरे मुसलमान पर यह अधिकार बताया है कि जब उससे सलाह व शुभचिंतन मांगी जाए तो वह अवश्य परामर्श करे,जैसा कि ह़दीस में आया है:(एक मुसलमान के दूसरे मुसलमान पर छ अधिकार हैं)।उन में से यह भी फरमाया:(जब तुम से परामर्श मांगे तो तुम उसे परामर्श करो)।(मुस्लिम)।


किसी पूर्वज का कथन है: बुद्धिमान का यह अधिकार है कि वह अपनी राय में विद्धानों की राय को सम्मिलित करता है,अपनी बुद्धि में हकीमों की बुद्धि जमा करता है,क्योंकि व्यक्तिगत राय एवं व्यक्तिगत बुद्धि कभी कभी धोका खा जाती और गुमराह हो जाती है ।


इस्लामी भाइयो हमारे नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने सह़ाबा को उसी प्रकार से इस्तेख़ारह की शिक्षा देते थे जिस प्रकार से क़ुरान की सूरह सिखाते थे,अर्थात अपनी सामान्य आवश्यकताओं में भी वे इसका पालन किया करते थे।


इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि:नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें एक एक शब्द और एक एक अक्षर सिखाया,इस अर्थ के अनुसार हमें बिल्कुल उसी प्रकार इसका पालन करना चाहिए और इसके शब्दों को याद रखना चाहिए जिस प्रकार से वे हैं।


इस नमाज़ के कुछ अह़काम:

मनुष्य अपने जीवन के मबाह़ एवं मुस्तह़ब मामलों का आरंभ करने अथवा उसे करने के प्रति मोतरिदद हो तो इस्तेख़ारह की नमाज़ पढ़े,इब्ने अबी जमरह रहि़महुल्लाह फरमाते हैं: इस्तेखारह उन मबाह़ एवं मुस्तह़ब मामलों में पढ़नी चाहिए जिन में तसादुम व टकराव दिख रहा हो और किस चीज़ से आऱभ करे,इस में मनुष्य मोतरददु हो,किन्तु वाजिबों,अथवा वास्तविक मुस्तह़बों,निषिधों और मकरूहों में इस्तेख़ारह नहीं है ।समाप्त


बयान किया जाता है कि इमाम बोख़ारी ने अपनी पुस्तक الجامع الصحیح जो सह़ीह़ बोख़ारी के नाम से जाना जाता है,में प्रत्येक ह़दीस लिखने से पूर्व इस्तेख़रह किया,यह वह पुस्तक है जिसे पूरी दुनिया में लोकप्रियता प्राप्त है,और वह अल्लाह की पुस्तक (क़ुरान) के पश्चात सबसे सह़ीह़ पुस्तक है,संभव है कि यह इस्तेखारह ही की बरकत हो।


हमें चाहिए कि हम इस्तेख़ारह की दुआ़ याद करें,अपने पुत्रों एवं पुत्रियों को इसके लिए प्रोत्साहित करें और अपने पालनहार से पुण्य की आशा रखें।


इस्तेख़ारह की दुआ़ का अफजल विधी यह है कि इस्तेख़ारह की दो विशेष रकअ़तें पढ़ी जाएं,उसके पश्चात दुआ़ की जाए,रही बात सुनने रवातिब की तो इब्ने ह़जर ने यह राजेह़ माना है कि इस (नफिल) नमाज़ के साथ इस्तेख़ारह की भी नीयत करले तो प्रयाप्त होगा,उदाहरण स्वरूप नमाज़ पढ़ते समय तहि़यतुल मस्जिद और इस्तेख़ारह की नमाज़ दोनों की नीयत एक साथ करे।


फतावा हेतु दाएमी कमीटी (सउ़ूदी अ़रब) से यह प्रश्न किया गया:जिस को इस्तेख़ारह की दुआ़ याद न हो,वह यदि देख कर पढ़े तो उसका क्या आदेश है तो उसने इसके जाएज़ होने का फतवा दिया,महत्वपूर्ण चीज़ यह है कि व्यक्ति हाजिद दिमागी और दिलजमई,खुशू व खुजू और स्चचे दिल से दुआ़ करे।


अल्लाह तआ़ला मुझे और आपको क़ुरान व सुन्नत से लाभ पहुंचाए,उनमें जो आयतें और नितियों की बातें हैं,उन्हें हमारे लिए लाभदायक बनाए,आप अल्लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

मेरे ईमानी भाइयो इस्तेख़ारह से संबंधित कुछ मसले आपके समक्ष प्रस्तुत किये जा रहे हैं:

प्रथम मसला:इस्तेख़ारे की दुआ़ कब पढ़ी जाए कुछ विद्धानों का कहना है:तशह्हुद के पश्चात और सलाम से पहले इस्तेख़ारे की नमाज़ पढ़ी जाए,जबकि कुछ विद्धानों का कहना है:सलाम के पश्चात पढ़ी जाए,क्योंकि ह़दीस में ( ثم ) का शब्द आया है जिसका अर्थ पश्चात के हैं,और यही लजना दाएमा का फतवा भी है।


एक मसला यह है:जो व्यक्ति परामर्श करे और इस्तेख़ारह की नमाज़ भी पढ़े,किन्तु उसे शरहे सदर प्राप्त न हो तो ऐसी स्थिति में क्या करे कुछ विद्धानों का कहना है:दोबारह इस्तेख़रह की नमाज़ पढ़े,यहाँ तक कि शरहे सदर प्राप्त हो जाए,बार बार इस्तेख़ारह करने से संबंधित एक ह़दीस भी आई है किन्तु वह सह़ीह़ नहीं है,कुछ विद्धानों का कहना है:जो बन पड़े वक कर बैठे,जो भी वह करेगा वह ख़ैर ही होगा,क्योंकि इस्तेख़ारह को दोहराने का कोई प्रमाण नहीं है।


एक मसला यह भी है कि:यह ही नमाज़ में कई आवश्कता के लिए इस्तेख़ारह की जा सकती है,अत: दुआ़ में प्राक्कथन के पश्चात यह कहे:हे अल्लाह यदि अमुक अमुक आवश्यकता मेरे लिए ख़ैर है तो उसे मेरे लिए आसान करदे....अंत तक,यह इब्ने जबरीन रह़िमहुल्लाह का फतवा है।


एक मसला यह भी है कि:इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि इस्तेख़ारह की पश्चात व्यक्ति को सप्ना आता है।


एक मसला यह भी है कि:इस्तेख़ारह उस मामले में पढ़ी जाए जिस में व्यक्ति को तरदुद हो।


मेरे इस्लामी भाइयो अति नादिर स्थितियों एवं बहुत कम मामलों में इस्तेख़ारह करन ग़लत है,बल्कि मुसलमान की यह पहचान होनी चाहिए कि वह उन समस्त मामलों में अल्लाह से लौ लगाए और इस्तेख़ारह की नमाज़ पढ़े जिन में उसको तरदुद हो आप सलल्लाहु अलैलि वसल्लम हमें समस्त मामलों में इस्तेख़ारह की शिक्षा देते थे ।यहाँ तक कि जब ज़ैनब पुत्री जह़श रज़ीअल्लाहु अंहा की सामने नबी सलल्लाहु अलैलि वसल्लम से विवाह की बात रखी गई तो उन्होंने इस पर भी इस्तेख़ारह किया,नौवी फरमाते हैं:शायद उन्होंने इस लिए इस्तेख़ारह किया कि उनको डर था कि कहीं आप सलल्लाहु अलैलि वसल्लम के हित में उनसके कोताही न हो।समाप्त


आदरणीय सज्जनो

इस्तेख़ारह के पश्चात मनुष्य के हित में जो लिखा होता है वह ख़ैर पर आधारित होता है,यह अवश्य नहीं कि इस्तेख़ारह के पश्चात हर स्थिति में आसानी व फराखी ही प्राप्त हो,कभी कभी मनुष्य को हानि का भी सामना करना पड़ सकता है,किन्तु मुसलमान को यह विश्वास रखना चाहिए कि यही उसके लिए ख़ैर है:

﴿ وَعَسَى أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ ﴾ البقرة: 216

अर्थात:

कवी कहता है:

 

رُبَّ أَمْرٍ تَتَّقِيهِ
جَرَّ أَمْرًا تَرْتَضِيهِ
خَفِيَ الْمَحْبُوبُ مِنْهُ
وَبَدَا الْمَكْرُوهُ فِيهِ

 

अर्थात: संभव है कि तुम किसी व्सतु से बचो जबकि उसी में तुम्हारी प्रसन्नता एवं ख़ुशी हो।


उसका पसंदीदह पहलू छुपा हो और नापसंदीदा पहलू स्पष्ट हो।


इस्तेख़ारह उ़बूदियत एवं बंदगी और आजजी व इंकेसारी का नाम है,वह इस बात का प्रमाण है कि मोमिन का दिल समस्त स्थिति में अपने पालनहार से जुड़ा होता है।


इस्तेख़ारह से मनुष्य की आत्मा में आंतरिक उच्चता एवं बोलंदी आती है,और उस में यह विश्वास पैदा होता है कि अल्लाह तआ़ला उसे अपनी तौफीक़ अवश्य प्रदान करेगा।


इस्तेख़ारह अल्लाह के सम्मान एवं प्रशंसा का नाम है,इस्तेख़ारह के द्वारा मनुष्य हैरानगी एवं आशंका व संदेह से बाहर निकलता है,इससे संतुष्टि एवं मान्सिक शांति प्राप्त होती है,इस्तेख़ारह तवक्कुल (विश्वास) का मार्ग है और अपने मामले को अल्लाह के सुपुद्र करने का नाम है।


मेरे ईमानी भाइयो आज के दिन एक सर्वोत्तम कार्य यह है कि नबी पाक सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दरूद भेजा जाए,आप सब दरूद व सलाम पढ़ें।


صلى الله عليه وسلم.

 

 





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