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صفة الصلاة (3) سنن فعلية (باللغة الهندية)

صفة الصلاة (3) سنن فعلية (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

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تاريخ الإضافة: 28/12/2022 ميلادي - 4/6/1444 هجري

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शीर्षक:

नमाज़ का तरीक़ा(3)

फेली (व्‍यावहारिक) सुन्‍नतें


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक़्वा (धर्मनिष्‍ठा) अपनाने की वसीयत करता हूं,तक़्वा के अपार परिणाम दुनिया में भी प्राप्‍त होते हैं,क़ब्र और आखिरत में भी प्राप्‍त होंगे,अल्‍लाह तआ़ला का कथन है:

﴿ لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ وَلَدَارُ الْآخِرَةِ خَيْرٌ وَلَنِعْمَ دَارُ الْمُتَّقِينَ ﴾ [النحل: 30]

अर्थात:उन के लिये जिन्‍होंने इस लोक में सदाचार किये बड़ी भलाई है,और वास्‍तव में परलोक का घर (स्‍वर्ग) अति उत्‍तम है,और आज्ञा‍कारियों का आवास कितना अच्‍छा है।


ईमानी भाइयो तक़्वा एक महानतम गुण एवं इस्‍लाम का एक सर्वोत्‍तम प्रार्थना है,अल्‍लाह तआ़ला ने तक़्वा के साथ विशेष रूप से इसका उल्‍लेख किया है,अल्‍लाह फरमाता है:

﴿ وَأَنْ أَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَاتَّقُوهُ وَهُوَ الَّذِي إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ ﴾ [الأنعام: 72]

अर्था‍त:और नमाज़ की स्‍थापना करें,और उस से डरते रहें,तथा व‍ही है जिस के पास तुम एकत्रित किये जाओगे।


तथा दूसरे स्‍थान पर फरमाया:

﴿ مُنِيبِينَ إِلَيْهِ وَاتَّقُوهُ وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَلَا تَكُونُوا مِنَ الْمُشْرِكِينَ ﴾ [الروم: 31]

अर्था‍त:ध्‍यान कर के अल्‍लाह की ओर और डरो उस से तथा स्‍थापना करो नमाज़ की,और न हो जाओ

मुशरिकों में से।

नमाज़ बेहयाइ एवं कदाचार से रोकती है,नमाज़ इस्‍लाम का स्‍तंभ है,नमाज़ में स्‍मरण के विभिन्‍न प्रकार पाए जाते हैं,इस में क़ुर्आन का सस्‍वर पाठ,तस्‍बीह़ (سبحان الله) व तह़मीद (الحمدلله),तौह़ीद (एकेश्‍वरवाद) व तकबीर (الله أكبر), इस्तिगफार,रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम पर दरूद व सलाम और दुआ़ सम्मिलित हैं।


रह़मान के बंदो नमाज़ एक महान प्रार्थना है जो डर व भय से भरे बंदे की आत्‍मा के साथ उड़ान भरती है और उसे उसके सम्‍मनित पालनहार से मिलाती है,जब हम आलसा एवं पाप के कारण अल्‍लाह से दूर हो जाते हैं,तो नमाज़ ही वह महानतम प्रार्थना है जो हमें अल्‍लाह से निकट कर सकती है,क्यों कि बंदा अल्‍लाह से सजदा के अवस्‍था में सबसे निकट होता है।


ईमानी भाइयो हम स्‍वयं को सबसे बड़ा मरामर्श यह कर सकते हैं कि हम नमाज़ स्‍थापित करने की लालसा रखें,न कि केवल उसे पूरा करें पवित्र क़ुर्आन में अनेक स्‍थानों पर नमाज़ स्‍थापित करने का उल्‍लेख आया है(उदाहरण स्‍वरूप इन आयतों पर विचार करें):

﴿ ..وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ.. ﴾ [البقرة: 3]

﴿ وَأَقَامُواْ الصَّلاَةَ ﴾ [الأعراف: 170]

﴿ رَبَّنَا لِيُقِيمُواْ الصَّلاَةَ ﴾ [إبراهيم: 37]

﴿ وَالْمُقِيمِي الصَّلَاةِ ﴾ [الحج: 35]

﴿ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ ﴾ [العنكبوت: 45]

﴿ وَأَنْ أَقِيمُوا الصَّلَاةَ ﴾ [الأنعام: 72]

 

शैख सादी फरमाते हैं:अर्थात: हमें यह आदेश दिया गया है कि हम नमाज़ स्‍थापित करें,उसके स्‍तंभों,शर्तों,सुन्‍नतों एवं उसे पूर्ण करने वाली (मुस्‍तह़बों) के साथ ।


आज हमारे चर्चा का विषय इस महान प्रार्थना की व्‍यावहारिक सुन्‍नतें हैं,चाहे वह फर्ज़ नमाज़ हो अथवा नफल नमाज़,सुन्‍नत का अनुगमन इस बात का प्रमाण है कि बंदा अपने पवित्र पालनहार से प्रेम करता है:

﴿ قُلْ إِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ﴾ [آل عمران: 31]

अर्थात:हे नबी कह दो: यदि तुम अल्‍लाह से डरते हो तो मेरा अनुकमन करो,अल्‍लाह तुम से प्रेम करेगा तथा तुम्‍हारे पाप क्षमा कर देगा।


माननीय सज्‍जनो नमाज़ की व्‍यावहारिक सुन्‍नतों में से यह भी है कि:

नमाज़ के लिए सुंदरता अपनी जाए,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ يَا بَنِي آدَمَ خُذُوا زِينَتَكُمْ عِندَ كُلِّ مَسْجِدٍ ﴾

अर्थात:हे आदम के पुत्रो प्रत्‍येक मस्जिद के पास (नमाज़ के समय) अपनी शोभा धारण करो।


इब्‍ने कसीर फरमाते हैं: इस आयत और इस अर्थ की अन्‍य आयत के आलेक में नमाज़ के लिए सुंदरता अपनाना मुस्‍तह़ब है,विशेष रूप से शुक्रवार और ई़द के दिन,इसी प्रकार से सौगंध लगाना और मिस्‍वाक करना भी मुस्‍तह़ब है क्योंकि य सुंदरता को चार चाँद लगाने वाली चीज़ें हैं,उत्‍तम यह है कि सफेद वस्‍त्रों से सुंदरता अपनाई जाए ...


एक व्‍यावहारिक सुन्‍नत यह है:कंधों तक अथवा कान की लो तक हाथ उठाए,इस प्रकार से कि उंगलियां कि़बला (काबा) की ओर हों,ऐसा चार स्‍थानों पर करे:तकबीरे तह़रीमा (प्रथम तकबीर) के समय,रुकू के समय,रुकू से उठते हुए और प्रथम तशह्हुद से उठते हुए।सह़ीहैन (बोखारी व मुस्लिम) में इब्‍ने उ़मर रज़ीअल्‍लाहु अंहुमा से वर्णित है कि: रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम जब नमाज़ आरंभ करते तो अपने हाथ कंधों के बराबर उठाते।जब रुकू के लिए अल्‍लाहु अकबर कहते,जब अपना सर रुकू से उठाते तब भी अपने दोनों हाथ उसी प्रकार से उठाते और سمع اللہ لمن حمدہ ربنا ولک الحمد (दोनों) कहते,किन्‍तु सजदों में ऐसा न करते थे ।


नमाज़ की एक व्‍यावहारिक सुन्‍नत यह है कि:क़्याम (नमाज़ में खड़े होना) की स्थिति में दाएं हाथ को बाएं हाथ पर रखा जाए,यह अल्‍लाह तआ़ला के लिए अत्‍यंतसम्‍मानका प्रतीक है,हाथ पर हाथ बांधने के दो तरीके प्रमाणित हैं:प्रथम तरीका:दाएं हाथ को बाएं हाथ पर रखना।द्वतीय तरीका:दाएं हाथ को बाए हाथ के बाज़ू (कलाई) पर रखना।वाइल बिन ह़जर रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है कि: मैं ने रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम को देखा जब आप नमाज़ में खड़े होते तो अपने दाएं हाथ को बाएं हाथ पर रख कर उसे पकड़ते ।इसे अ‍बूदाउूद और निसाई ने रिवायत किया है।


सह़ी बोखारी में सहल बिन अलसादी रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है कि: लोगों को यह आदेश दिया जाता था कि व्‍यक्ति नमाज़ में अपना दायां हाथ बाएं हाथ की कलाई पर रखे ।


रुकू के अवस्‍था में सुन्‍नत यह है कि:नमाज़ी की पीठ बिल्‍कुल सीधी हो,अबू ह़ोमैद नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से रिवायत करते हैं जैसा कि सह़ी बोखारी में है: और जब आप ने रुकू किया तो दोनों हाथ अपने घुटनों पर जमा लिए और अपनी कमर झुका लिया ।अर्थात उसे इस प्रकार से बराबर किया कि उस में झुकाव न था।सर को बिल्‍कुल संयम रखते,न उसे उठाते और झुकाते,आयशा रज़ीअल्‍लाहु अंहा का बयान है: और जब रुकू करते तो अपना सर न उूंचा रखते और न झुकाते बल्कि उनके बीच-बीच होता इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।


यह भी सुन्‍नत है कि रुकू में अपने हाथ को घुटनों पर जमाए रखे और उुंगलियों को फैला कर रखे,अ‍बू ह़ोमैद नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के विषय में बताते हैं: आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम जब रुकू करते तो अपनी हथेलियों से अपने घुटनों को पकड़ लेते और अपनी उंगलियों को खोल लेते ।


इसे अबू दाउूद ने रिवायत किया है और अल्‍बानी ने स‍ह़ी है।


तथा अपनी कोहनियों को अपने पहलुओं से हटा कर रखे,इस शर्त के साथ बगल वालों को कष्‍ट न हो।


अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुर्आन व सुन्‍नत की बरकत से लाभान्वित फरमाए।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:नमाज़ स्‍थापित करने का तक़ाज़ा है कि नमाज़ की सुन्‍नतों का पालन किया जाए,और इस से नमाज़ के पुण्‍य में वृद्धि होती है और इसका सदगुण बढ़ जाता है।


रह़मान के बंदो सजदा में सुन्‍नत यह है कि अपनी हथेलियों को कंधों के बराबर कान की लो के बराबर रखे और दोनों हथेलियों के बीच प्रयाप्‍त स्‍थानरखे इस शर्त के साथ कि बगल वालों को कष्‍ट न हो,सजदा के अवस्‍था में अपने घुटनों के बीच प्रयाप्‍तस्‍थानरखे और पैर की उंगलियों को भूमि पर लगा कर किबला (काबा) की ओर करले,यह भी सुन्‍नत है कि अपने पेट को जांघों से और जांघों को पिंडलियों से हटा कर रखे।क्योंकि नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से यह सिद्ध है।


दो सजदों के बीच और दूसरी रकअ़त में तशह्हुद करते समय यह सुन्‍नत है कि:दाएं पैर को खड़ा रखे और उसकी उंगलियों को किबला (काबा) की ओर करले,और बाएं पैर बैठे,निसाई ने वाएल बिन ह़जर से वर्णित किया है वह नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से रिवायत करते हैं: और जब दो रकअ़तों के पश्‍चात बैठते तो बाएं पैर को बिछाते और दाएं को खड़ा करते ।इसे अल्‍बानी ने सह़ी कहा है।


सुन्‍नत है कि प्रथम एवं द्वतीय तशह्हुद में उंगली से इशारा करे,इब्‍ने उ़मर रज़ीअल्‍लाहु अंहु नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से वर्णित करते हैं: जब आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम नमाज़ में बैठते तो अपनी दाएं हथेली अपनी दाएं जांघ पर रखते और सब उंगलियों को बंद कर लेते और अंगूठे के साथ वाली उंग‍ली से इशारा करते और अपनी हथेली को अपनी बाएं जांघ पर रखते ।मस्लिम ने इसे रिवायत किया है।


फेली सुन्‍नतों में यह भी है कि:तीन और चार रकअंत वाली नमाज़ में अंतिम तशह्हुद के बीच तवोरिक (नमाज़ में अंतिम तशह्हुद में बायां पैर दाएं पैर के नीचे से आगे निकाल कर बैठना) करे,इस शर्त के साथ कि पड़ोसी को कष्‍ट न हो,सह़ी बोखारी में अबू ह़ोमैद अलसादी रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है कि वह नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के कुछ साथियों के साथ बैठे हुए थे।इसी बीच आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की नमाज़ का चर्चा होने लगा तो ह़ज़रत अबू ह़ोमैद सादी ने फरमाया: मुझे रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की नमाज़ तुम सबसे अधिक याद है।मैं ने रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम को देखा कि आप ने तकबीरे तह़रीमा (आरंभिक तकबीर) कही तो अपने दोनों हाथ कंधों के बराबर ले गए।और जब आप ने रुकू किया तो दोनों हाथ अपने घुटनों पर जमा लिए।फिर अपनी कमर झुका लिया।और जब आप ने सर उठाया तो ऐसे सीधे खड़े हुए कि हर हड्डी अपने स्‍थान पर आगई।और जब आप ने सजदा किया तो न आप दोनों हाथों को बिछाए हुए थे और न ही सिमटे हुए थे और पैर की उंगलियां किबले की ओर थीं।और जब दो रकअ़तों में बैठते तो बायां पैर बिझा कर बैठते और दायां पैर खड़ा रखते।और जब अंतिम र‍कअ़त में बैठते तो बायां पैर आगे करते और दायां पैर खड़ा रखते,फिर अपने बैठने के स्‍थान पर बैठ जाते ।


अंतिम बात:ये सुन्‍नतें हैं जिन्‍हें करते हुए बंदा को यह महसूस करना चाहिए कि वह नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के अनुगमन के द्वारा अल्‍लाह तआ़ला की बंदगी कर रहा है,जिन का कथन है: तुम ने जैसे मुझे नमाज़ पढ़ते देखा है उसी प्रकार से नमाज़ पढ़ो (बोखारी)


अल्‍लाह तआ़ला आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के स‍ह़ाबा से प्रसन्‍न हो जिन्‍हों ने नबी की नमाज़ के विषय में बारीक से बारीक विवरणों से हम अवगत किया।

 





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