• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
 
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات شرعية   دراسات شرعية   نوازل وشبهات   منبر الجمعة   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    خطبة: وسائل السلامة في الحج وسبل الوقاية من ...
    الشيخ الدكتور صالح بن مقبل العصيمي ...
  •  
    العشر من ذي الحجة وآفاق الروح (خطبة)
    حسان أحمد العماري
  •  
    فضائل الأيام العشر (خطبة)
    رمضان صالح العجرمي
  •  
    أفضل أيام الدنيا (خطبة)
    د. محمد بن مجدوع الشهري
  •  
    أحكام عشر ذي الحجة (خطبة)
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    أحكام عشر ذي الحجة
    د. فهد بن ابراهيم الجمعة
  •  
    أدلة الأحكام المتفق عليها
    عبدالعظيم المطعني
  •  
    الأنثى كالذكر في الأحكام الشرعية
    الشيخ أحمد الزومان
  •  
    الإنفاق في سبيل الله من صفات المتقين
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
  •  
    النهي عن أكل ما نسي المسلم تذكيته
    فواز بن علي بن عباس السليماني
  •  
    الحج: آداب وأخلاق (خطبة)
    الشيخ محمد بن إبراهيم السبر
  •  
    يصلح القصد في أصل الحكم وليس في وصفه أو نتيجته
    ياسر جابر الجمال
  •  
    المرأة في القرآن (1)
    قاسم عاشور
  •  
    ملخص من شرح كتاب الحج (11)
    يحيى بن إبراهيم الشيخي
  •  
    الإنصاف من صفات الكرام ذوي الذمم والهمم
    د. ضياء الدين عبدالله الصالح
  •  
    الأسوة الحسنة
    نورة سليمان عبدالله
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

الفاتحة (السبع المثاني والقرآن العظيم) (خطبة) (باللغة الهندية)

الفاتحة (السبع المثاني والقرآن العظيم) (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 7/12/2022 ميلادي - 13/5/1444 هجري

الزيارات: 6068

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

सूरह

(सात दोहराई जाने वाली आयतें और महान क़ुर्आन)


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात


मैं स्‍वयं को और आप सब को अल्‍लाह का तक्‍़वा (धर्मनष्‍ठा) अपनाने की वसीयत करता हूँ,अल्‍लाह तआ़ला ने जहाँ आप को रहने का आदेश दिया है वहाँ आप को अनुस्थित न पाए और जहाँ जाने से रोका है वहाँ आप को उपस्थित न देखे।


मेरे ईमानी भाइयो आज हम पवित्र क़ुर्आन की महानतम सूरह के विषय में चर्चा करेंगे,अल्‍लाह के फज़ल से यह सूरह बहुत आसान है,समस्‍त मुसलमानों को याद है,क्‍योंकि इस के बिना उन की नमाज़ ही सह़ीह नहीं होती,वे सात दोहराई जाने वाली आयतें हैं, ام القرآن, سورۃ الفاتحةऔर अन्‍य नामों से जानी जाती है,उन नामों में:الشفاء، الكافية، ام الکتاب، الرُّقْية، الصلاۃ ، الواقية और الحمد उल्‍लेखनीय हैं।


इतने अधिक नाम इस बात का प्रमाण हैं कि इस का बड़ा महत्‍व है।


मैं आप के समक्ष इसकी फज़ीलत एवं महानता पर आधारित दो ह़दीसें प्रस्‍तुत करने जा रहा हूँ:

बोख़ारी ने अबूसई़द बिन अलमुअ़ल्‍ला रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णन किया है,वह फरमाते हैं: मैं मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहा था कि रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने मुझे आवाज दी किन्‍तु मैं उस समय उपस्थित न हो सका। (नमाज़ पढ़ कर आप के पास आया) तो मैं ने कहा: अल्‍लाह के रसूल मैं नमाज़ पढ़ने में व्‍यस्‍थ था।आप ने फरमाया: क्‍या अल्‍लाह तआ़ला का यक फरमान नहीं: अल्‍लाह और उस के रसूल का आदेश मानो जब वह तुम्‍हें बोलाएं फिर फरमाया: मैं तेरे मस्जिद से बाहर जाने से पहले तुझे एक ऐसी सूरह बताउंगा जो क़ुर्आन की समस्‍त सूहतों से बढ़ कर है ।फिर आप ने मेरा हाथ थाम लिया।जब आप ने मस्जिद से बाहर आने का इरादा किया तो मैं ने कहा:अल्‍लाह के रसूल आप ने फरमाया था: मैं तुझे एक ऐसी सूरह बताउंगा जो क़ुर्आन की समस्‍त सूरतों से बढ़ कर है ।आप ने फरमाया: वह सूहर﴾ الْحَمْدُ لِلَّـهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴿ अर्थातفاتحہ है।यही سبع مثانی और महान क़ुर्आन है जो मुझे दिया गया है ।


द्वतीय ह़दीस: इमाम बोख़ारी ने अबूसई़द ख़ुदरी रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णन किया है वह फरमाते हैं:नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के कुछ सह़ाबा किसी यात्रा पर गए।जाते जाते उन्‍होंने अ़रब के एक जनजाति के पास पड़ाव डाला और चाहा कि‍ जनजाति वाले उनकी सत्‍कारकरें मगर उन्‍हों ने इससे साफ इंकार कर दिया।उसी समय जनजाति के सरदार को किसी विषण्‍ण चीज ने डस लिया।उन लोगों ने प्रत्‍येक प्रकार का ईलाज किया मगर कोई उपायकाम नहीं आया।किसी ने कहा:तुम उन लोगों के पास जाओ जो यहाँ पड़ाव किए हुए हैं।शायद उन में से किसी के पास कोई ईलाज हो,अत: वे लोग सह़ाबा रज़ीअल्‍लाहु अंहुम के पास आए और कहने लगे:ए लोगो हमारे सरदार को किसी विषण्‍ण चीज़ ने डस लिया है और हम ने प्रत्‍येक प्रकार की उपायकी है मगर कुछ लाभ नहीं हुआ,क्‍या तुम में से किसी के पास कोई चीज़ (ईलाज) है उन में से एक ने कहा: अल्‍लाह की क़सम मैं झाड़ भूंक करता हूँ,किन्‍तु वल्‍लाह तुम लोगों से हम ने अपनी मेहमानी की इच्‍छा की थी तो तुम ने उसे ठोकरा दिया था,अब मैं भी तुम्‍हारे लिए झाड़ भूंक नहीं करुंगा जब तक कि तुम हमारे लिए कोई मजदूरीनिश्‍चय नहीं करोगे।अंतत: उन्‍होनं कुछ बकरियों की मजदूरीपर उन को मना लिया।अत: (सह़ाबा रज़ीअल्‍लाहु अंहुम में से) एक व्‍यक्‍ति गया और सूरह फातिह़ा पढ़ कर दम करने लगा तो व्‍यक्‍ति स्‍वस्‍थ हो गया) मानो उस के बंद खोले दिये गये हों,फिर वह उठ कर चलने फिरने लगा।ऐसा लगता था कि उसे कुछ हुआ ही नहीं था।वर्णनकर्ता कहते हैं:उन लोगों ने उनकी निश्‍चय मजदूरीउनको देदी तो सह़ाबा रज़ीअल्‍लाहु अंहुम आपस में कहने लगे:इसे बांट लो।किन्‍तु झाड़ने वाले ने कहा:अभी न बांटो यहाँ तक कि हम नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम आप की सेवा में पहुँच कर इस घटने को बयान करें और मालूम करें कि आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम इस वि‍षय में क्‍या आदेश देते हैं।अत: वे आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की सेवा में उपस्थित हुए और आप से यह घटना बयान किया तो आप ने फरमाया: तुम्‍हें कैसे मालूम हुआ कि (सूरह फातिह़ा) से झाड़ भूंक की जाती है फिर फरमाया: तुम ने ठीक किया।इन्‍हें बांट लो,बल्‍क‍ि अपने साथ मेरा भाग भी रखो ।यह कह कर आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम मुस्‍कुरा दिये।


ए नमाजि़यो इस सूरह की व्‍याख्‍या में विद्धानों ने जो बहुमूल्‍य बातें,लाभ एवं बारीकियांबयान की हैं,मैं उन्‍हें आप के समक्ष प्रस्‍तुत करने जा रहा हूँ।


इसके आरंभ में अल्‍लाह तआ़ला ने अपनी प्रशंसा की है,और अपनी प्रशंसा के लिए किसी समय एवं स्‍थान की सीमा नहीं रखी है,ताकि उस में समस्‍त प्रकार की प्रशंसा सम्मिलित हो सके,हंम्‍द ऐसी प्रशंसा को कहते हैं जिस में शुक्र का अर्थ पाया जाता है,इस में अल्‍लाह तआ़ला की प्रशंसा शामिल है,सह़ीह़ ह़दीस में आया है: (الحمد لله तराज़ू को भर देता है)।


﴾الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ﴿ में ﴾العالَمين﴿ का आशय एक कथन के अनुसार:मनुष्‍य एवं जिन्‍न हैं।एक कथन है कि:इसका आशय अल्‍लाह तआ़ला के सिवा समस्‍त जीव हैं।ये सब सामान्‍य कथन है,जिस में मनुष्‍य एवं जिन्‍न,फरिश्‍ते और हैवान आदि सब शामिल हैं,संसार एक चिन्‍ह है जो अपने अस्तित्‍व पर साक्ष है।

﴿ قَالَ فِرْعَوْنُ وَمَا رَبُّ الْعَالَمِينَ * قَالَ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا إِنْ كُنْتُمْ مُوقِنِينَ ﴾ [الشعراء: 23 - 24].


अर्थात:फि़रऔ़न ने कहा: विश्‍व का पालनहार क्‍या है (मूसा ने) कहा: आकाशों तथा धरती और उसका पालनहार जो कुछ दोनों के बीच है,यदि तुम विश्‍वास रखने वाले हो।


सअ़दी फरमाते हैं: रब वह है जो समस्‍त जीवों का पालनहार है।इस में अल्‍लाह के सिवा समस्‍त जीव शामिल हैं।वह इस प्रकार से कि अल्‍लाह ने उन्‍हे पैदा किया,उन के लिये जीवन यापन की चीज़ें तैयार कीं,उन पर अपने असीम उपकार किये,जो यदि न होते तो उन के लिए जीवित रहना असंभव होता,उन के पास जो भी उपकार है वह अल्‍लाह तआ़ला की ओर से है ।


अल्‍लाह तआ़ला का फरमान:[الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ ﴾ [الفاتحة: 3 ﴿ के विषय में विद्धानों का कहना है:﴾ الرَّحْمَنِ ﴿ का आशय वह (पालनहार है) जिस की रह़मत समस्‍त जीवों को शामिल है,और ﴾ الرَّحِيمِ ﴿ की रह़तम रह़मान से अधिक विशेष है।वह मोमिनों पर रह़ीम (दयालु) है।الرحمنऔर الرحیم अल्‍लाह तआ़ला के दो शुभ नाम हैं,जिन से अल्‍लाह तआ़ला के लिए उसकी हस्‍ती के अनुसार रह़मत सिद्ध होती है।


क़ुरत़ुबी फरमाते हैं: अल्‍लाह तआ़ला ने ﴾ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴿ के पश्‍चात अपनी हस्‍ती की विशेषता ﴾ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ ﴿ बताई है,क्‍योंकि अल्‍लाह तआ़ला की विशेषता ﴾ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴿ में तरहीब (संत्रास) पाई जाती है,इसी लिए उसके साथ ﴾ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ ﴿ का उल्‍लेख किया जिस में तरगीब पाई जाती है।ताकि उसकी विशेषताओं में उसका भय और उसकी रूचि दोनों शामिल हों,जिस से उसकी आज्ञाकारिता में अधिक सहायता मिले और (पापो से दूर रहने में) अधिक सहायक सिद्ध हो ।समाप्‍त


हमारा पालनहार दुनिया एवं आखि़रत का मालिक और इन में नियंत्रणकरने वाला है:

﴿ يَوْمَ يَقُومُ النَّاسُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ [المطففين: 6]

अर्थात:जिस दिन सभी विश्‍व के पालनहार के सामने खड़े होंगे।


किन्‍तु प्रश्‍न यह पैदा होता है कि अल्‍लाह ने अपने मालिक होने को प्रलय के दिन के साथ विशेष क्‍यों किया है इसका उत्‍तर यह है कि: उस दिन अल्‍लाह का मालिक होना,न्‍याय एवं नीति की पूर्णता और समस्‍त जीवों की मुहताजगी पूरी तरह जीवों पर स्‍पष्‍ट हो जाएगी,बोख़ारी व मुस्लिम की मरफूअ़न ह़दीस है: अल्‍लाह तआ़ला भूमि को अपनी मुठ्ठी में लेलेगा और आकाशों को अपने दाएं हाथ में लपेट लेगा,फिर फरमाएगा:अब मैं हूँ राजा,आज धरती के राजा कहाँ गए ।


उस दिन शासक एवं प्रजा सब एक समान हो जाएंगे,उस दिन कोई व्‍यक्ति किसी चीज़ का दावा नहीं करेगा,और न अल्‍लाह की अनुमति के बिना कोई ज़बान खोल सकेगा:

﴿ يَوْمَ يَأْتِ لَا تَكَلَّمُ نَفْسٌ إِلَّا بِإِذْنِهِ فَمِنْهُمْ شَقِيٌّ وَسَعِيدٌ ﴾ [هود: 105].

अर्थात:जब वह दिन आ जायेगा तो अल्‍लाह की अनुमति बिना कोई प्राणी बात नहीं करेगा,फिर उन में से कुछ आभागे होंगे और कुछ भाग्‍यवान होंगे।


अल्‍लाह तआ़ला के फरमान: إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ﴾ [الفاتحة: 5] ﴿ की व्‍याख्‍या में इब्‍ने तैमिया रहि़महुल्‍लाह फरमाते हैं: मैं ने विचार किया कि सब से लाभदायक दुआ़ कौन सा है तो मालूम हुआ कि वह यह है कि बंदा अल्‍लाह की प्रसन्‍नता प्राप्‍त करने की दुआ़ करे,फिर मैं ने सूरह फातिह़ा में यह दुआ़ पाई:﴾ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ﴿ समाप्‍त


जि़हाक कहते हैं,इब्‍न अ़ब्‍बास से वर्णित है:﴾ إِيَّاكَ نَعْبُدُ ﴿का मतलब है: हम तेरी तौह़ीद पर स्थिर हैं,तुझ से डरते और तुझ से ही आशा रखते हैं,तेरे सिवा से नहीं।﴾ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ﴿ और (तुझ से ही सहायता मांगते हैं) तेरे अनुसरण के पालन और अपने समस्‍त मामले को करने में।


इब्‍ने कसीर फरमाते हैं: मफउूल जो कि‍ (إیاک) है,को पहले लाया गया है और बार बार बयान किया गया है,ताकि इससे व्‍यवस्‍थाएवं परिसीमनका लाभ प्राप्‍त हो,अर्थात:हम केवल तेरी ही प्रार्थना करते हैं,और तुझ पर ही विश्‍वास रखते हैं ।


आप ने अधिक फरमाया: वार्तालाप का शैलीअनुपस्थितसे संबोधितकी ओर फेर दिया गया है जिस का एक संबंध एवं अर्थ है,वह यह कि जब उस ने अल्‍लाह की प्रशंसा की तो मानो वह अल्‍लाह तआ़ला के समक्ष प्रस्‍तुत हो गया,इसी लिए उसके पश्‍चात कहा: (हम तेरी ही प्रार्थना करते हैं और तुझ से सहायता मांगते हैं) ।


अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुर्आन व सुन्‍नत की बरकत से लाभान्वित फरमाए।


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله حمدًا كثيرًا طيِّبًا مبارَكًا فيه، وصلَّى الله وسلَّم على نبيِّنا محمَّد، وعلى آله وصحبه، وسلَّم تسليمًا كثيرًا.


प्रशंसाओं के पश्‍चात:

आइये हम सूरह फातिह़ा पर विचार करते हैं,किसी पूर्वज का कथन है:फातिह़ा क़ुर्आन का भेद है और उसका भेद यह आयत है:

﴿ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ﴾ [الفاتحة: 5].


शैख़ सअ़दी फरमाते हैं: प्रार्थना के पश्‍चात सहायता मांगने का उल्‍लेख है जबकि प्रार्थना में सहायता भी है,इसका कारण यह है कि बंदा अपनी समस्‍त प्रार्थनाओं में अल्‍लाह तआ़ला की सहायता का मुहताज होता है,क्‍योंकि य‍दि अल्‍लाह तआ़ला की सहायता शामिल न हो तो वह केवल अपने इरादे से न आदेशों पर अ़मल कर सकता है और न निषेधों से बच सकता है ।समाप्‍त


इसके पश्‍चात महान दुआ़ का उल्‍लेख है,अर्थात सुपथ(सीधी मार्ग)की हिदायत की मांग है,उस इस्‍लाम की हिदायत जो आलोकित राजमार्गहै,जो अल्‍लाह की प्रसन्‍नता और उसके स्‍वर्ग की ओर ले जाती है,जिस का मार्गदर्शन पैगंबरों के अंतिम श्रृंख्‍ला मोह़म्‍मद सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाई।


सअ़दी फरमाते हैं: हमें सीधे मार्ग का मार्गदर्शन फरमाया और सीधे मार्ग पर हमें हिदायत दी। सुपथ(सीधी मार्ग)की हिदायत का मतलब है: इस्‍लाम धर्म को बलपूर्वक अपनाना और इसके सिवा समस्‍त धर्मों से दूर रहना, सुपथ(सीधी मार्ग)पर हिदायत का मतलब है इस्‍लाम धर्म के समस्‍त विवरणों का मार्गदर्शन फरमाया,विद्या एवं व्‍यवहारिक दोनों रूप से ।समाप्‍त


उन पैगंबरों,सिद्दीक़ीन,शहीदों एवं सदाचारियों के मार्ग पर चला जिन पर अल्‍लाह तू ने उपकार फरमाया,वही हिदायत और स्थिरता पर थे,हमें उन लोगों में सम्मिलित न फरमा जिन पर तेरा क्रोध उतरा है,जिन्‍होंने सत्‍य को जान कर उस पर अ़मल नहीं किया,इनका आशय यहूदी और उनके अनुयायी हैं।और हमें गुमराह लोगों में भी सम्मिलित न कर,अर्थात वे लोग जो हिदायत से वंचित रहे और मार्ग भटक गए,और वे हैं ईसाई और उन के मार्ग का अनुगमन करने वाले लोग।


ओ़सैमीन रहि़महुल्‍लाह फरमाते हैं: (ईसाइयों की) यह स्थिति बेसत (आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की अवतरित होने) से पूर्व की है । किन्‍तु बेसत के पश्‍चात उन्‍होंने सत्‍य को जान लिया,फिर भी उसका विरोध किया,अत: वे और य‍हूदी एक समान हो गए,उन सब पर अल्‍लाह की यातना अवतरित हुई ।समाप्‍त


इमाम त़ह़ावी फरमाते हैं: सबसे लाभदायक,महानतम और सर्वोत्‍तम दुआ़ सूरह फातिह़ा की यह है: ﴿ اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ ﴾ [الفاتحة: 6 ] क्‍योंकि‍ जब अल्‍लाह तआ़ला इस सुपथ(सीधी मार्ग)की हिदायत प्रदान करता है तो अपने अनुसरण के पालन और अपने अवज्ञा से बचने पर उसकी सहायता करता है,अत: उसे दुनिया एवं आखि़रत में कोई कठिनाई नहीं होती ।


ए नमाजि़यो यह महान सूरह संक्षिप्‍त होने के बावजूद बड़े अर्थ रखते हैं,अत: यह सूरह जिन मामलों को सम्मिलित है,वह ये हैं: अल्‍लाह की प्रशंसा वस्‍तुति,उस की प्रशंसा,आखि़रत का बयान,अल्‍लाह का अपने बंदों को दुआ़ और विनम्रता एवं विनयशीलता,उस के लिये समस्‍त प्रार्थनाओं को विशेष करने,उसकी तौह़ीद (एकेश्‍वरवाद) पर स्थिर रहने,अपनी समस्‍त शक्ति से मुक्ति जताते हुए अल्‍लाह से सुपथ(सीधी मार्ग)की हिदायत मांगने का निर्देश करना,वह सुपथ(सीधी मार्ग)जो सीधा धर्म है,तथा यह दुआ़ करने का निर्देश कि अल्‍लाह उन्‍हें सुपथ(सीधी मार्ग)पर स्थिर रखे ताकि वह प्रलय के दिन व्‍यवहारिक रूपसेपुलसरात पार करने में सफल हो सकें,और उपकारों वाले स्‍वर्ग के अंदर उन्‍हें पैगंबरों,सिद्दीक़ीन,शहीदों और सदाचारियों के साथ का सौभग्‍य प्राप्‍त हो,इसी प्रकार से इस सूरह के अंदर असत्‍य वादियों के मार्गों से सचेत रहने की चैतावनी दी गई है,अर्थात उन लोगों के मार्ग से जिन पर अल्‍लाह का क्रोध हुआ जिन्‍होंने सत्‍य को जान कर उसे छोड़ दिया,और गुमराह लोगों के मार्ग से जिन्‍होंने अज्ञानता के साथ प्रार्थना की तो स्‍वयं भी गुमराह हुए और अन्‍य लोगों को भी गुमराह किया।


पाठक के लिए यह सुन्‍नत है कि जब सूरह फातिह़ा का सस्‍वर पाठ कर ले तो आमीन कहे,इस की फज़ीलत में बोख़ारी व मुस्लिम की एक मरफूअ़न ह़दीस है: जब इमाम आमीन कहे तो तुम आमीन कहो क्‍योंकि जिस की आमीन फरिश्‍तों की आमीन से मिल जाएगी,उसके पूर्व के समस्‍त पाप क्षमा कर दिये जाएंगे ।


हे अल्‍लाह हमें तू ने जो भी विद्या दिया है,उसे हमारे लिए लाभदायक बना दे।

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • الفاتحة (السبع المثاني والقرآن العظيم)
  • الفاتحة (السبع المثاني والقرآن العظيم) (باللغة الأردية)

مختارات من الشبكة

  • مخطوطة تفسير الفاتحة المسمى (تفسير العلوم والمعاني المستودعة في السبع المثاني)(مخطوط - مكتبة الألوكة)
  • بيان وتعريف بسورة الفاتحة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أسرار الفاتحة (1) اعرف ربك من خلال سورة الفاتحة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أسماء سورة الفاتحة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • تيسير الإعراب لآي الكتاب(مقالة - آفاق الشريعة)
  • مقاصد الفاتحة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أسماء سورة الفاتحة(مقالة - موقع الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي)
  • الفاتحة وتقرير الإيمان بالقدر (2)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • مع سورة الفاتحة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • إطلالة على شرفات السبع المثاني (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • الذكاء الاصطناعي تحت مجهر الدين والأخلاق في كلية العلوم الإسلامية بالبوسنة
  • مسابقة للأذان في منطقة أوليانوفسك بمشاركة شباب المسلمين
  • مركز إسلامي شامل على مشارف التنفيذ في بيتسفيلد بعد سنوات من التخطيط
  • مئات الزوار يشاركون في يوم المسجد المفتوح في نابرفيل
  • مشروع إسلامي ضخم بمقاطعة دوفين يقترب من الموافقة الرسمية
  • ختام ناجح للمسابقة الإسلامية السنوية للطلاب في ألبانيا
  • ندوة تثقيفية في مدينة تيرانا تجهز الحجاج لأداء مناسك الحج
  • مسجد كندي يقترب من نيل الاعتراف به موقعا تراثيا في أوتاوا

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1446هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 1/12/1446هـ - الساعة: 22:18
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب