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خطبة: لفت الأنظار للتفكر والاعتبار (1) (باللغة الهندية)

خطبة: لفت الأنظار للتفكر والاعتبار (1) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

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تاريخ الإضافة: 19/10/2022 ميلادي - 24/3/1444 هجري

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सोच-विचार व चेतावनी एवं परामर्शकी ओर ध्‍यान आ‍कर्षितकरना


التقرُّب لله بالعمل ﴿ وَاتَّقُوا يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ﴾ [البقرة: 281]

प्रशंसाओं के पश्‍चात:मैं स्‍वयं को और आप को अल्‍लाह का तक्‍़वा(धर्मनिष्‍ठा) अपनाने की वसीयत करता हूं वह इस प्रकार से कि हमेशा रहने वाले पुण्‍यों से अपने दामन को भरें,तौबा व इस्तिगफार करें और ह़राम चीज़ों से दूर रहें।


क्‍योंकि इस संसार की समाप्ति के पश्‍चात एक लंबा युग (बरज़ख/आड़/रोक) आने वाला है जिस में हम अ़मल के द्वारा अल्‍लाह की निकटता प्राप्‍त नहीं कर सकेंगे:

﴿ وَاتَّقُوا يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ ﴾ [البقرة: 281]

अर्थात:तथा उस दिन से डरो जिस में तुम अल्‍लाह की ओर फेरे जाओगे,फिर प्रत्‍येक प्राणी को उस की कमाई का भरपूर प्रतिकार दिया जायेगा,तथा किसी पर अत्‍याचार न होगा।


ऐ रह़मान के बंदो एक ऐसा मामला है जो ज्ञान एवं विश्‍वासमें वृद्धि करता है,ईमान को खोराक प्रदान करता है,महानता में बढ़ोतरी करता और समझ को बढ़ाता है,वह ऐसा अ़मल है जिस के लिए ह़ज के जैसा यात्रा,रोज़े के जैसा भूक,दान के जैसा धन एवं नमाज़ के जैसा गतिविधि एवं स‍क्रियता की आवश्‍यकता नहीं होती,इसके मैदान विभिन्‍न प्रकार के एवं क्षेत्र विस्‍तृत हैं,इसके महत्‍व एवं इसके प्रति अधिक प्रमाण होने के बावजूद,इस विषय में बड़ी आलसा अपनाई जाती है,इसका आश्‍य विचार-विमर्श एवं चिंता करना है।आइए हम लोग अल्‍लाह के कुछ ऐसे जीवों पर विचार करते हैं,जिन की ओर अल्‍लाह ने अपने बंदों का ध्‍यान आ‍कर्षित किया है।


ऐ मित्रो अल्‍लाह का एक महान चिन्‍ह आकाश है:

﴿ اللَّهُ الَّذِي رَفَعَ السَّمَاوَاتِ بِغَيْرِ عَمَدٍ تَرَوْنَهَا ﴾[الرعد:2]

अर्थात:अल्‍लाह वही है जिस ने आकाशों को ऐसे सहारों के बिना उूँचा किया है‍ जिन्‍हें तुम देख सको।


तथा र्स्‍वश्रेष्‍ठ अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ أَفَلَمْ يَنظُرُوٓاْ إِلَى ٱلسَّمَآءِ فَوْقَهُمْ كَيْفَ بَنَيْنَٰهَا وَزَيَّنَّٰهَا وَمَا لَهَا مِن فُرُوجٍۢ ﴾ [ق:6].

अर्थात:क्‍या उन्‍होंने नहीं देखा आकाश की ओर अपने उूपर कि कैसा बनाया है हम ने उसे और सजाया है उस को और नहीं है उस में कोई दराड़


यह आकाश गुंबद (के जैसा) है जिस के किनारे बराबर हैं और (इसका) निर्माण पक्‍का है,इसमें नुक्‍सकमी,छेद एवं कमी नहीं दिखेगी,रात में सितारे इसे सुंदरता प्रदान करते हैं,जो अपने अपार सुंदरता से एक किनारे से दूसरे किनारे तक आकाश को जगमगाए रहते हैं।


यह उच्‍च आकाश अल्‍लाह की शक्ति,उसकी महानता,कोमलता और कृपा के प्रमाणों से भरी हैं,आकाश में बड़ा सूर्य है जिस के अनेक लाभ हैं,अत: सूर्य उगते ही रात (का अंधेरा) समाप्‍त हो जाता है,फजर का प्रकाश निकल आता है,सूर्य उगने में एक सुंदरता एवं आनंद है,आप को यह आनंद ऐसी पंक्षी में भी दिखेगी,जो सूर्य उगने के बाद ही मंडलाते हैं,सूर्य की गर्मी मनुष्‍य एवं जानवरों के शरीर के लिए लाभदायक है,इस तापमान से फल पकते हैं और पैदे मजबूत होते हैं,सूर्य के प्रकाश से इन विस्‍तृत एवं विशाल और अंधकार क्षेत्रों का आलोकित एवं प्रकाशित होना हमारे लिए चेतावनीएवं परामर्शका कारण है,सरदी में इसका तापमान कोमल एवं कृपा का कारण है और गर्मी में इसके तापमान में विरलता एवं नीति है।अत: कितने ही किटाणुओं को सूर्य समाप्‍त करदेता और कितने ही रोग इसके कारण खतम हो जाते हैं,और सूर्य अस्‍त होने में भी सुंदरता एवं भयावह है:

﴿ وَءَايَةٌ لَّهُمُ ٱلَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ ٱلنَّهَارَ فَإِذَا هُم مُّظْلِمُونَ،وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَّهَا ۚ ذَٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ ﴾ [یس:37،38]

अर्थात:तथा एक निशानी (चिन्‍ह) है उन के लिये रात्रि,,खींच लेते हैं हम जिस से दिन को तो सहसा वह अँधेरों में हो जाते हैं।तथा सूर्य चला जा रहा है अपने निर्धारित स्‍थान कि ओर,यह प्रभुत्‍वशाली सर्वज्ञ का निर्धारित किया हुआ है।


सूर्य के द्वारा नमाज़ों के समय का पता चलता है,अत: सूर्य के उगने से पहले फजर का प्रकाश निकलता है,उसके ज़वाल (ढ़लने) के समय ज़ोहर का समय होता है,जब हर वस्‍तु का छाया उसके बराबर हो जाए तो अ़सर का समय होता है,सूर्य के अस्‍त होते समय मग्रि़ब का समय होता और जब सूर्य का प्रकाश समाप्‍त होता है तो इ़शा का समय होता है।


ऐ अल्‍लाह के बंदो अल्‍लाह का एक चिन्‍ह चाँद है,चाँद में सुंदरता एवं अनुराग है,और जब वह बदरे कामिल (पूर्णचंद्र) बन जाता है तो उसका उदाहरण दिया जाता है,चाँद के उगने और उसके विभिन्‍न चरणों से दिन,महीना और वर्ष का ज्ञान होता है,इसके द्वारा अवधि एवं वर्षों की गिनती का ज्ञान होता है,चाँद रात को प्रकाश प्रदान करता है और कष्‍ट नहीं देता,वार्तालाप के सबसे आकर्शक सभा चाँद के प्रकाश में ही होते हैं:

﴿ هُوَ الَّذِي جَعَلَ الشَّمْسَ ضِيَاءً وَالْقَمَرَ نُورًا وَقَدَّرَهُ مَنَازِلَ لِتَعْلَمُوا عَدَدَ السِّنِينَ وَالْحِسَابَ ۚ مَا خَلَقَ اللَّهُ ذَٰلِكَ إِلَّا بِالْحَقِّ ۚ يُفَصِّلُ الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ،إِنَّ فِى ٱخْتِلَٰفِ ٱلَّيْلِ وَٱلنَّهَارِ وَمَا خَلَقَ ٱللَّهُ فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ لَءَايَٰتٍۢ لِّقَوْمٍۢ يَتَّقُونَ ﴾ [يونس:5،6].


अर्थात:उसी ने सूर्य को ज्‍योति तथा चाँद को प्रकाश बनाया है,और उस (चाँद) के गंतव्‍य स्‍थान निर्धारित कर दिये,ताकि तुम वर्षों की गिनती तथा हिसाब का ज्ञान कर लो,इन की उत्‍पत्ति अल्‍लाह ने नहीं की है परन्‍तु सत्‍य के साथ,वह उन लोगों के लिये निशानियों (लक्षणों) का वर्णन कर रहा है,जो ज्ञान रखते हों।नि:संदेह रात्रि तथा दिवस के एक दूसरे के पीछे आने में,और जो कुछ अल्‍लाह ने आकाशों तथा धरती में उत्‍पन्‍न किया है उन लोगों के लिये निशानियाँ हैं जो अल्‍लाह से डरते हों।


तथा अल्‍लाह फरमाता है:

﴿ لَا ٱلشَّمْسُ يَنۢبَغِى لَهَآ أَن تُدْرِكَ ٱلْقَمَرَ وَلَا ٱلَّيْلُ سَابِقُ ٱلنَّهَارِ ۚ وَكُلٌّ فِى فَلَكٍۢ يَسْبَحُونَ ﴾ [يس:40].

अर्थात:न तो सूर्य के लिये ही उचित है कि चन्‍द्रमा को पा जाये,और न रात अग्रगामी हो सकती है दिन से,सब एक मण्‍डल में तैर रहे हैं।

आप कल्‍पना करें कि यदि पूरा जीवन रात होता तो आप दिन के उपकार को कैसे महसूस करते।


﴿ قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ اللَّيْلَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُمْ بِضِيَاءٍ أَفَلَا تَسْمَعُون ﴾ [القصص:71].

अर्थात: (हे नबी) आप कहिये:तुम बताओ कि यदि बना दे तुम पर रात्रि को निरन्‍तर क्‍़यातम के दिन तक,तो कौन पूज्‍य है अल्‍लाह के सिवा जो ला दे तुम्‍हारे पास प्रकाश तो क्‍या तुम सुनते नहीं हो


आप कल्‍पना करें कि यदि पूरा जीवन बिना रात के दिन ही होता तो क्‍या आप रात के उपकार को महसूस करपते


﴿ قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ النَّهَارَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُمْ بِلَيْلٍ تَسْكُنُونَ فِيهِ أَفَلَا تُبْصِرُون ﴾ [القصص:72].

अर्थात:आप कहिये:तुम बताओ,यदि अल्‍लाह कर दे तुम पर दिन को निरन्‍तर क्‍़यामत के दिन तक,तो कौन पूज्‍य है अल्‍लाह के सिवा जो ला दे तुम्‍हारे पास रात्रि जिस में तुम शान्ति प्राप्‍त करो,तो क्‍या तुम देखते नहीं हो


ऐ मोमिनो अल्‍लाह का एक चिन्‍ह पं‍क्षी हैं,जिन्‍हें अल्‍लाह ने इस प्रकार रचना की कि वह उड़ने के योग्‍य हुए,फिर उन पंक्षियों के लिए उपयुक्‍त हवा को सेवा में लगा रखा है:

﴿ أَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ مُسَخَّرَاتٍ فِي جَوِّ السَّمَاءِ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا اللَّهُ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ ﴾  [سورة النحل :79]

अर्थात:क्‍या वे पक्षियों को नहीं देखते कि वह अन्‍तरिक्ष में कैसे वशीभूत है उन्‍हें अल्‍लाह ही थामता है,वास्‍तव में इस में बहुत सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिये जो ईमान लाते हैं।


यह उसकी क्षमता,उसके असीम ज्ञान एवं समस्‍त जीवों के प्रति उसके कृपा एवं आशीर्वाद पर साक्ष्‍य है,अल्‍लाह बरकत वाला एवं दोनों संसार का पालनहार है:

﴿ أَوَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ فَوْقَهُمْ صَافَّاتٍ وَيَقْبِضْنَ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا الرَّحْمَنُ إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ بَصِيرٌ ﴾ [سورة الملك :19].

अर्थात:क्‍या उन्‍होंने नहीं देखा पक्षियों की ओर अपने उूपर पँख फैलाते तथा सिकोड़ते,उन को अत्‍यंत कृपाशील ही थामता है,नि:संदेह वह प्रत्‍येक वस्‍तु को देख रहा है।


अल्‍लाह के वे चिन्‍ह जिन की ओर अल्‍लाह ने बंदो का ध्‍यान आकर्शित किया है उनमें से एक चौपाए का दूध भी है,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَإِنَّ لَكُمْ فِي الْأَنْعَامِ لَعِبْرَةً نُسْقِيكُمْ مِمَّا فِي بُطُونِهِ مِنْ بَيْنِ فَرْثٍ وَدَمٍ لَبَنًا خَالِصًا سَائِغًا لِلشَّارِبِينَ ﴾ النحل: 66]

अर्थात:तथा वास्‍तव में तुम्‍हारे लिये पशुओं में एक शिक्षा है,हम तुम्‍हें उस से जो उस के भीतर है गोबर तथा रक्‍त के बीच से शुद्ध दूध पिलाते हैं,जो पीने वालों के लिये रूचिकर होता है।


प्रकृति की वे कौन सी चीज़ें हैं जो चौपाए के खाए जाने वाले चारह और उसके पीए जाने वाले मीठा व नमकीन पानी को शुद्ध दूध में परिवर्तित कर देती है जो पीने वाले के गलेसे आसानी से उतर जाता है


जब खोराक चौपाए के आंत में चली जाती है तो उस खोराक से बनने वाला रक्‍त रगों में जाता,दूध थन में चला जाता और अवशेष अपने रास्‍ते से बाहर आजाते हैं,उनमें से एक चीज़ दूसरी चीज़ से नहीं मिलती,और न ही आंत से अलग होने के पश्‍चात एक एक दूसरे से मिलती है,और न ही किसी कारण से किसी के अंदर कोई परिवर्तन आती है,पवित्र है वह हस्‍ती जो सक्षम,रचनाकार एवं जीविकादेने वाला है।


हे अल्‍लाह हमें बुद्धिमान,विचार विमर्श करने वाला,परामर्श प्राप्‍त करने वाला और तक्‍़वा अपनाने वाले लोगों में से बना,अल्‍लाह से तौबा व इस्तिगफार कीजिए नि:संदेह वह अति अधिक क्षमाशील है।


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله القائل: ﴿ وَفِي الْأَرْضِ آيَاتٌ لِلْمُوقِنِينَ * وَفِي أَنْفُسِكُمْ أَفَلَا تُبْصِرُونَ ﴾ [الذاريات: 20، 21]، وصلى الله وسلم على نبيِّه، وعلى آله وصحبه.


प्रशंसाओं के पश्‍चात:

ऐ ईमानी भाइयो विचार विमर्श करना हृदय के उत्‍तम अ़मलों में से एक अ़मल है,यद्यपि बहुत से लोग शारीरिक प्रार्थनाओं का प्रश्‍न करते एवं उनको करते हैं,किन्‍तु हृदय से किये जाने वाले अ़मलों से बहुत आलसा करते हैं,अल्‍लाह ही से हम सहायता मांगते हैं


ऐ सज्‍जनों के समूह (मानव) प्राण,जीवित जीव,और दुनिया के जीवों आदि में विचार विमर्श के अनेक भाग हैं,बल्कि हम इस विकसित युग में (जहां अविष्‍कारें की रेल-पेल है) रचनाकार की महानता एवं अल्‍लाह तआ़ला के अद्भुत रचना में विचार विमर्श एवं मंथन के लिए ऐसे भागों को पाते हैं जो पूर्व के लोगों से कहीं अधिक हैं।


ऐ रह़मान के बंदो अल्‍लाह के वे चिन्‍ह जिन के प्रति अनेक आयतें आई हैं उन (‍चिन्‍हों) में से वर्षा एवं पौधा भी हैं,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ هُوَ ٱلَّذِىٓ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءً ۖ لَّكُم مِّنْهُ شَرَابٌ وَمِنْهُ شَجَرٌ فِيهِ تُسِيمُونَ * يُنۢبِتُ لَكُم بِهِ ٱلزَّرْعَ وَٱلزَّيْتُونَ وَٱلنَّخِيلَ وَٱلْأَعْنَٰبَ وَمِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ ۗ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لآيَةً لِّقَوْمٍۢ يَتَفَكَّرُونَ ﴾ [النحل: 10، 11].

अर्थात:वही है,जिस ने आकाश से जल बरसाया,जिस में से कुछ तुम पीते हो,तथा कुछ से वृक्ष उपजते हैं,जिस में तुम (पशुओं को) चराते हो।और तुम्‍हारे लिये उस से खेती उपजाता है,और ज़ैतून तथा खजूर और अँगूर और प्रत्‍येक प्रकार के फल,वास्‍तव में इस में एक बड़ी निशानी है,उन लोगों के लिये जो सोच-विचार करते हैं।


अल्‍लाह एक पानी से ऐसे पौधा निकालता है जो विभिन्‍न प्रकार के होते हैं,जिन का स्‍वाद,रंग व रूप एवं सुगंध विभिन्‍न होता है,इसी लिए अल्‍लाह ने यह फरमाया:"إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لآيَةً لِّقَوْمٍۢ يَتَفَكَّرُونَ" अर्थात यह इस बात का प्रमाण है कि अल्‍लाह ही सत्‍य पूज्‍य है,जैसा कि अल्‍लाह का कथन है:

﴿ أَمَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنبَتْنَا بِهِ حَدَائِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍ مَّا كَانَ لَكُمْ أَن تُنبِتُوا شَجَرَهَا ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ يَعْدِلُونَ ﴾ [النمل:60].

अर्थात:या वह है जिस ने उत्‍पत्ति की है आकाशों तथा धरती की और उतारा है तुम्‍हारे लिये आकाश से जल,फिर हम ने उगा दिया उस के द्वारा भव्‍य बाग़,तुम्‍हारे बस में न था कि उगा देते उस के वृक्ष,तो क्‍या कोई पूज्‍य (सत्‍य से) कतरा रहे हैं।


अल्‍लाह एक बालिस्‍त भूमि से (एक ऐसा पौधा) निकालता है जो अति मीठा होता है और एक एक ऐसा पौधा निकालता है जिस में बहुत कड़वाहट होती है,मीठे खजूर पर विचार करें कैसे वह लकड़ी से निकलता है


﴿ يُسْقَىٰ بِمَاءٍ وَاحِدٍ وَنُفَضِّلُ بَعْضَهَا عَلَىٰ بَعْضٍ فِي الْأُكُلِ ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ ﴾ [الرعد: 4].

अर्थात:सब एक ही जल से सींचे जाते हैं,और हम कुछ को स्‍वाद में कुछ से अधिक कर देते हैं,वास्‍तव में इस में बहुत सी निशानियाँ हैं,उन लोगों के लिए जो सूझ-बूझ रखते हैं।


एक में मिठास,दूसरे में कड़वाहट होती है,ज‍बकि तीसरा खट्टा होता है,चौथा एक साथ खट्टा और मीठा भी होता है,पवित्र है पैदा करने वाला पालनहार


एक पीला,दूसरा लाल,तीसरा सफेद,चौथा हरा और पांचवा काला होता है:

﴿ وَمَا ذَرَأَ لَكُمْ فِي الْأَرْضِ مُخْتَلِفًا أَلْوَانُهُ ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَذَّكَّرُونَ ﴾ [النحل:13]

अर्थात:तथा जो तुम्‍हारे लिये धरती में विभिन्‍न रंगों की चीज़ें उत्‍पन्‍न की है वास्‍तव में इस में एक बड़ी निशानी (लक्षण) है उन लोगों के लिये जो शिक्षा ग्रहण करते हैं।


अंत में हम अल्‍लाह का शरण मांगते हैं आलसा एवं अवगा करने वाले काफिरों सादृश्‍य से,अल्‍लाह फरमाता है:

﴿ وَإِنَّ كَثِيرًا مِنَ النَّاسِ عَنْ آيَاتِنَا لَغَافِلُونَ ﴾ [يونس:92].

अर्थात:और वास्‍तव से लोग हमारी निशानियों से अचेत रहते हैं।


तथा अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ وَكَأَيِّن مِّن آيَةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَالأَرْضِ يَمُرُّونَ عَلَيْهَا وَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُونَ ﴾ [يوسف:105].

अर्थात:तथा आकाशों और धरती में बहुत सी निशानियाँ (लक्षण) हैं जिन पर से लोग गुजरते रहते हैं,और उन पर ध्‍यान नहीं देते।


दरूद व सलाम पढ़ें....

صلى الله عليه وسلم

 

 





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