• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | أسرة   تربية   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    الاتجاه الضمني في تنمية التفكير بين الواقع ...
    د. خليل أسعد عوض
  •  
    الرياضة
    نورة سليمان عبدالله
  •  
    سلسلة دروب النجاح (9) الإبداع.. مهارة لا غنى عنها ...
    محمود مصطفى الحاج
  •  
    وقفات تربوية مع سيد الأخلاق
    د. أحمد عبدالمجيد مكي
  •  
    سلسلة دروب النجاح (8) التوازن بين الدراسة والحياة
    محمود مصطفى الحاج
  •  
    قتل الرغبات
    ياسر جابر الجمال
  •  
    ماذا بعد الستين؟!
    أشرف شعبان أبو أحمد
  •  
    أبوك ليس باردا بل هو بحر عميق
    د. محمد موسى الأمين
  •  
    سلسلة دروب النجاح (7) بناء شبكة العلاقات الداعمة
    محمود مصطفى الحاج
  •  
    التوفيق من الله
    أسامة طبش
  •  
    ظاهرة التظاهر بعدم السعادة خوفا من الحسد: قراءة ...
    د. محمد موسى الأمين
  •  
    منهج القرآن الكريم في تنمية التفكير التأملي
    دعاء أنور أبو مور
  •  
    "اجلس فقد آذيت": خاطرة تربوية تأصيلية في ضوابط ...
    د. عوض بن حمد الحسني
  •  
    لماذا يدمن الشباب؟
    عدنان بن سلمان الدريويش
  •  
    كيف تستجلب الفكرة الإيجابية؟
    أسامة طبش
  •  
    الانهيار الناعم... كيف تفككت الأسرة من الداخل
    د. محمد موسى الأمين
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / تفسير القرآن
علامة باركود

عبودية استماع القرآن العظيم (خطبة) (باللغة الهندية)

عبودية استماع القرآن العظيم (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 20/7/2022 ميلادي - 21/12/1443 هجري

الزيارات: 6561

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनने की प्रार्थना

 

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वा धर्मनिष्‍ठा अपनाने,उसे जीवित रखने वाले कार्य को करने और उसे बिगाड़ देने वाले कार्य से दूर रहने की वसीयत करता हूँ,क्‍योंकि तक्‍़वा का परिणाम एवं पुरस्‍कार उच्‍च स्‍वर्ग के रूप में मिलने वाला है जो स्‍वेद हरा भरा एवं ताजा रहेगा:

﴿ وَسَارِعُواْ إِلَى مَغْفِرَةٍ مِّن رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ ﴾ [آل عمران: 133]

 

अर्थात:और अपने पालनहार की क्षमा और उस स्‍वर्ग की ओर अग्रसर हो जाओ,जिस की चौड़ाई आकाशों तथा धरती के बराबर है,आज्ञाकारियों के लिये तैयार की गयी है।

 

रह़मान के बंदो नबी के इस घटने पर विचार किजीए

 

अ़ब्‍दुल्‍लाह बिन मस्‍उ़ूद रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूलुल्‍लाह ने मुझसे फरमाया: मेरे सामने पवित्र क़ुरान का सस्‍वर पाठ करो ।उन्‍हों ने कहा:मैं ने कहा:हे अल्‍लाह के रसूल क्‍या मैं आप को सुनाउूं,जबकि आप पर ही तो क़ुरान नाजि़ल हुआ है आप ने फरमाया:मेरी इच्‍छा है कि मैं इसे किसी दूसरे से सुनूं।तो मैं ने सूरह निसा का सस्‍वर पाठ शुरू किया,जब मैं इस आयत पर पहुंचा:

﴿ فَكيفَ إذا جِئْنا مِن كُلِّ أُمَّةٍ بشَهِيدٍ، وجِئْنا بكَ علَى هَؤُلاءِ شَهِيدًا ﴾ [النساء: 41]

 

अर्थात:तो क्‍या दशा होगी जब हम प्रत्‍येक उम्‍मत समुदाय से एक साक्षी लायेंगे,और हे नबी आप को उन पर साक्षी लायेंगे।

 

तो आप ने फरमाया: बस करो अथवा फरमाया: रुक जाओ ,मैं ने अपना सर उठाया तो देखा कि आप के आंसू बह रहे हैं । बोखारी एवं मुस्लिम

 

ईमानी भा‍इयो क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनना एक उत्‍तम प्राथना है,क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनने के विषय में हमारे नबी का वाकया आप ने देखा,पवित्र क़ुरान में भी अनेक आयतें आई हैं जो इस प्रार्थना के महत्‍व पर आलोक डालती हैं उन्‍हीं में से एक आयत के अंदर यह बताया गया है कि क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनने से ईमान को खुराक मिलता है अल्‍लाह का कथन है:

﴿ وَإِذَا تُلِيَتْ عَلَيْهِمْ آيَاتُهُ زَادَتْهُمْ إِيمَانًا ﴾ [الأنفال: 2]

 

अर्थात:और जब उनके समक्ष उस की आयतें पढ़ी जायें तो उन का ईमान अधिक हो जाता है।

 

क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनना अल्‍लाह की रह़मत कृपा का एक दरवाज़ा है,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَإِذَا قُرِئَ الْقُرْآنُ فَاسْتَمِعُواْ لَهُ وَأَنصِتُواْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ ﴾ [الأعراف: 204]

 

अर्थात:और जब क़ुर्आन पढ़ा जाये तो उसे ध्‍यानपूर्वक सुनो,तथा मौन साध लो,शायद कि तुम पर दया की जाए।

 

जब बंदा अपने पालनहार का कलाम क़ुरान सुनता है तो उसके ईमान में वृद्धि होती और उसका प्रभाव उसके शरीर के अंगों तक पहुंचता है,अत: उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं:

﴿ اللَّهُ نَزَّلَ أَحْسَنَ الْحَدِيثِ كِتَابًا مُّتَشَابِهًا مَّثَانِيَ تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُودُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمْ وَقُلُوبُهُمْ إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ ذَلِكَ هُدَى اللَّهِ يَهْدِي بِهِ مَنْ يَشَاءُ وَمَن يُضْلِلْ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ ﴾ [الزمر: 23]

 

अर्थात:अल्‍लाह ही है जिस ने सर्वेात्‍तम हदीस क़ुर्आन को अवतरित किया है,ऐसी पुस्‍तक जिस की आयतें मिलती जुलती बार-बार दुहराई जाने वाली है,जिसे सुन कर खड़े हो जोते हैं उन के रूँगटे जो डरते हैं अपने पालनहार से,फिर कोमल हो जाते हैं उन के अंग तथा दिल अल्‍लाह का मार्गदर्शन जिस के द्वारा वह संमार्ग पर लगा देता जिसे चाजता है,और जिसे अल्‍लाह कुपथ कर दे तो उस का कोई पथ दर्शक नहीं है।

 

रह़मान के बंदो ईमान से जब दिल आबाद हो जाए तो उसका प्रभाव आंख तक पहुंचता है और वह नम हो जाती है,यह क़ुरान के सस्‍वर पाठ का परिणाम है

 

﴿ وَإِذَا سَمِعُواْ مَا أُنزِلَ إِلَى الرَّسُولِ تَرَى أَعْيُنَهُمْ تَفِيضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُواْ مِنَ الْحَقِّ يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاكْتُبْنَا مَعَ الشَّاهِدِينَ ﴾ [المائدة: 83]

 

अर्थात:तथा जब वह ईसाई उस क़ुर्रान को सुनते हैं,जो रसूल पर उतरा है,तो आप देखते हैं कि उन की आंखें आँसू से उबल रहीं हैं,उस सत्‍य के कारण जिसे उन्‍हों ने पहचान लिया है,वे कहते हैं:हे हमारे पालनहार हम ईमान ले आये,अत: हमें (सत्‍य) के साक्षियों में लिखले।

 

जब बंदा पूरे ध्‍यान के साथ अपने रब का कलाम क़ुरान सुनता है तो उसके ईमान में वृद्धि होती है और कभी कभी उसके प्रभाव से उसकी आंखें बह पड़ती हैं और वह बेकाबू हो कर रोने लगता है

 

जैसा कि अल्‍लाह तआ़ला ने फरमाया:

﴿ إِنَّ الَّذِينَ أُوتُواْ الْعِلْمَ مِن قَبْلِهِ إِذَا يُتْلَى عَلَيْهِمْ يَخِرُّونَ لِلأَذْقَانِ سُجَّدًا * وَيَقُولُونَ سُبْحَانَ رَبِّنَا إِن كَانَ وَعْدُ رَبِّنَا لَمَفْعُولًا * وَيَخِرُّونَ لِلأَذْقَانِ يَبْكُونَ وَيَزِيدُهُمْ خُشُوعًا ﴾ [الإسراء: 107 – 109]

 

अर्थात:वास्‍तव में जिन को इस से पहले ज्ञान दिया गया है,जब उन्‍हें यह सुनाया जाजा है,तो वह मुँह के बल सजदे में गिर जाते हैं।और कहते हैं: पवित्र है हमारा पालनहार निश्‍चय हमारे पालनहार का वचन पूरा हो के रहा।

 

एक अन्‍य स्‍थान पर अल्‍लाह तआ़ला ने अपने चिन्हित बंदों की विशेषता बयान करते हुए फरमाया:

﴿ أُوْلَئِكَ الَّذِينَ أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِم مِّنَ النَّبِيِّينَ مِن ذُرِّيَّةِ آدَمَ وَمِمَّنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوحٍ وَمِن ذُرِّيَّةِ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْرَائِيلَ وَمِمَّنْ هَدَيْنَا وَاجْتَبَيْنَا إِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آيَاتُ الرَّحْمَن خَرُّوا سُجَّدًا وَبُكِيًّا ﴾ [مريم: 58]

 

अर्थात:यही वह लोग हैं जिन पर अल्‍लाह ने पुरस्‍कार किया नबियों में से आदम की संतान में से तथा उन में से जिन्‍हें हम ने (नाव पर) सवार किया नूह के साथ इबराहीम और इसराईल के सं‍तति में से,तथा उन में से जिन्‍हें हम ने मार्ग दर्शन दिया और चुन लिया,जब इन के समक्ष पढ़ी जाती थीं उत्‍यंत कृपाशील की आयतें तो वे गिर जाया करते थे सजदा करते हुये तथा रोते हुये।

 

हम अपने हृदय की कठोरता की शिकायत अपने रब से ही करते हैं

 

रह़मान के बंदो बहुत से लोग क़ुरान के सस्‍वर पाठ का अधिक ध्‍यान रखते हैं जो कि एक महान एवं गौरवशालीअ़मल है,किन्‍तु वह क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनने में रूची नहीं लेते हमारे सामने अभी अभी ऐसी आयतें गुजरी हैं जिन से क़ुरान के सस्‍वर पाठ को सुनने के महत्‍व स्‍पष्‍ट होता है,आप के सामने मैं यह फत्‍वा प्रस्‍तुत कर रहा हूं

 

एक महिला ने शैख इब्‍ने बाज़ रहि़महुल्‍लाह से यह प्रश्‍न किया कि:

कैसेट के द्वारा जो व्‍यक्ति क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनता है,क्‍या उसका पुण्‍य उसी व्‍यक्ति के जैसा है जो स्‍वयं क़ुरान पढ़ता है,क्‍योंकि कैसेट के द्वारा मैं अधिक क़ुरान सुनता हूं,क्‍या इससे मेरे पुण्‍य में कमी हो जाएगी

 

आप ने उत्‍तर दिया:हम आशा करते हैं कि आप को सुनने का पुण्‍यपढ़ने वाले ही के जैसा मिलेगा,क्‍योंकि सुनने वाला पढ़ने वाले के जैसा ही होता है,क्‍योंकि जो सुनता है वह क़ारी पढ़ने वाले के साथ होता है,अत: यदि नेक नीयती एवं सत्‍य निष्‍ठा के साथ कोई क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुने और वह लाभ का इच्‍छा रखता हो तो हम आशा करते हैं कि उसे पढ़ने वाले ही के जैसा पुण्‍य मिलेगा,इस लिए कि पढ़ना वाला और सुनने वाला पुण्‍य में बराबर हैं।

 

हम अपने समस्‍त दीनी भाइयों एवं बहनों को वसीयत करते हैं कि क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनने और उस पर विचार करने का यथासंभव प्रयास करें...समाप्‍त।

 

मुझे और आप को अल्‍लाह तआ़ला क़ुरान व ह़दीस से और उनमें हिदायत एंव नीति की जो बाते हैं,उनसे लाभ पहुंचाए,आप सब अल्‍लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।

 

द्वतीय उपदेश:

...الحمد لله

 

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

ईमानी भीइयो क़ुरान का प्रभाव केवल मोमिनों के लिए विशिष्‍ट नहीं है,बल्कि काफिरों पर भी इसका प्रभाव होता है,जोबैर बिन मुत़इ़म जब क़ोरैश के काफिरों में से थे,तो वह नबी से बदर के क़ैदियों के विषय में बात चीत करने के लिए आए,जब वह मुसलमानों के पास पहुंचे तो देखा कि वह मग़रिब की नमाज़ में हैं और नबी उनकी इमामत करा रहे हैं,आप उस समय सूरह الطور का सस्‍वर पाठ कर रहे थे,जोबैर बिन मुत़इ़म आप के सस्‍वर पाठ से बहुत प्रभावित हुए जब कि वह क़ोरैश के सरदारों में गिने जाते थे,जोबैर का कहना है: मैं ने नबी को मग़रिब की नमाज़ में सूरह الطور पढ़ते सुना।जब आप इस आयत पर पहुंचे:


﴿ أَمْ خُلِقُوا مِن غيرِ شيءٍ أمْ هُمُ الخَالِقُونَ * أمْ خَلَقُوا السَّمَوَاتِ والأرْضَ بَلْ لا يُوقِنُونَ * أمْ عِنْدَهُمْ خَزَائِنُ رَبِّكَ أمْ هُمُ المُسَيْطِرُونَ ﴾ [الطور: 35 – 37]

 

अर्थात:क्‍या वह पैदा हो गये हैं बिना किसी के पैदा किये,अथवा वह स्‍वयं पैदा करने वाले हैं या उन्‍हों ने ही उत्‍पति की है आकाशों तथा धरती की वास्‍तव में वह विश्‍वास ही नहीं रखते।अथवा उन के पास आप के पालनहार के कोषागार हैं या वहीं (उस के) अधिकारी हैं

 

तो किनट था कि मेरा दिल उड़ जाए। इस ह़दीस को बोखारी ने रिवायत किया है

 

एक अन्‍य रिवायत में यह शब्‍द आए हैं:मैं ने नबी को मग़रिब की नमाज़ में सुरह الطور पढ़ते सुना,यह प्रथम अवसर था जब मेरे दिल में ईमान ने स्‍थान बनाया । बोखारी

 

ईमानी भाइयो

 

क़ुरान के सस्‍वर पाठ को सुनने से प्रभावित होना केवल मनुष्‍यों के साथ विशिष्‍ट नहीं है,बल्कि अल्‍लाह तआ़ला ने यह सूचना दी है कि छुपे हुए जीव भी इससे प्रभावित होते हैं:

﴿ قُلْ أُوحِيَ إِلَيَّ أَنَّهُ اسْتَمَعَ نَفَرٌ مِّنَ الْجِنِّ فَقَالُوا إِنَّا سَمِعْنَا قُرْآنًا عَجَبًا ﴾ [الجن: 1]

 

अर्थात:(हे नबी) कहो: मेरी ओर वह़्यी (प्रकाशना) की गई है कि ध्‍यान से सुना जिन्‍नों के एक समूह ने,फिर कहा कि हम ने सुना है एक विचित्र क़ुर्रान।

 

एक दूसरे स्‍थान पर अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ وَإِذْ صَرَفْنَا إِلَيْكَ نَفَرًا مِّنَ الْجِنِّ يَسْتَمِعُونَ الْقُرْآنَ فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوا أَنصِتُوا فَلَمَّا قُضِيَ وَلَّوْا إِلَى قَوْمِهِم مُّنذِرِينَ ﴾ [الأحقاف: 29]

 

अर्थात:तथा याद करें जब हम ने फेर दिया आप की ओर जिन्‍नों के एक गिरोह को ताकि वह क़ुर्रान सुनें,तो जब वह उपस्थित हुये आप के पास तो उन्‍हों ने कहा कि चुप रहो,और जब पढ़ लिया गया तो वे फिर गये अपनी जाति की ओर सावधान करने वाले हो कर।

 

बल्कि देवदूत भी क़ुरान सुनना पसंद करते हैं अत: ओसैद बिन ह़ोज़ैर रज़ीअल्‍लाहु अंहु बयान करते हैं कि वह एक बार रात के समय सूरह بقرۃ का सस्‍वर पाठ कर रहे थे और उनके निकट उनका घोड़ा बंधा हुआ था उस समय घोड़ा बिदकने लगा तो उन्‍हों ने तिलावत सस्‍वर पाठ रोक दी और घोड़ा ठहर गया,वह फिर पढ़ने लगे तो घोड़े ने उछल कूद शुरू कर दी,उन्‍हों ने सस्‍वर पाठ बंद किया तो वह भी ठहर गया,वह फिर पढ़ने लगे तो घोड़े ने भी उछल कूल शुरू कर दी...वत कहते हैं कि:मैं ने उूपर नज़र उठाइ तो क्‍या देखाता हूं कि छतरी जैसी कोई चीज़ है जिस में अनेक चिराग जल रहे हैं,मैं बाहर आया तो मैं उसे न देख सका,रसूलुल्‍लाह ने फरमाया: क्‍या तुम जानते हो वह क्‍या था उन्‍हों ने कहा:नहीं,आप ने फरमाया:वह देवदूत थे जो तुम्‍हारी आवाज़ सुनने के लिए निकट आ रहे थे,यदि तुम रात भर पढ़ते रहते तो सुबह तक अन्‍य लोग भी उन्‍हें देखते,वे उन से न छुप सकते । बोखारी

 

अल्‍लाह के बंदो अंतिम बात यह है कि क़ुरान का सस्‍वर पाठ सुनने से ईमान में वृद्धि होता है,प्रसन्‍नता प्राप्‍त होती है,शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं,आंख से आंसू बहने लगते हैं और मनुष्‍य बेकाबू हो कर रोने लगता है,इस लिए आप अधिक से अधिक क़ुरान का सस्‍वर पाठ किया करें,हृदयकोकोमलताप्रदानकरनेवाले सस्‍वर पाठ करने वाले को तलाशें,और ऐसे क़ारी क़ुरान पढ़ने वाले को सुनें जिनके सस्‍वर पाठ से आपके दिल में करूणा पैदा होती हो,आप को सरच इंजन में अनेक रिककत आमेज तिलावतें मिल जाएंगी.....

 

दरूद व सलाम भेजें...

صلی الله عليه وسلم

 

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • عبودية استماع القرآن العظيم (خطبة)
  • لا تكونوا عون الشيطان على أخيكم.. فوائد وتأملات (باللغة الهندية)
  • ضرورة طلب الهداية من الله (باللغة الهندية)
  • الله الكريم الأكرم (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الله السميع (خطبة) (باللغة الهندية)
  • بين النفس والعقل (3) تزكية النفس (باللغة الهندية)
  • خطبة: (تجري بهم أعمالهم) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (باللغة الهندية)
  • عبودية استماع القرآن العظيم (خطبة) - باللغة الإندونيسية
  • عبودية استماع القرآن العظيم (خطبة) - باللغة البنغالية

مختارات من الشبكة

  • السهر وإضعاف العبودية لله (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • آداب تلاوة القرآن الكريم (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الإحصاء في القرآن الكريم والسنة النبوية: أبعاد ودلالات (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • عظمة القرآن تدل على عظمة الرحمن (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • بشارة القرآن لأهل التوحيد (خطبة)(مقالة - موقع د. محمود بن أحمد الدوسري)
  • أعلى النعيم رؤية العلي العظيم (خطبة)(مقالة - موقع د. محمود بن أحمد الدوسري)
  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • وقفات مع اسم الله الستير (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • شكر النعم سبيل الأمن والاجتماع (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • ختام الندوة التربوية لمعلمي رياض الأطفال المسلمين في البوسنة
  • انطلاق سلسلة محاضرات "ثمار الإيمان" لتعزيز القيم الدينية في ألبانيا
  • أكثر من 150 مشاركا يتعلمون مبادئ الإسلام في دورة مكثفة بمدينة قازان
  • انطلاق فعاليات شهر التاريخ الإسلامي 2025 في كندا بمشاركة واسعة
  • أطباء مسلمون يقودون تدريبا جماعيا على الإنعاش القلبي الرئوي في سيدني
  • منح دراسية للطلاب المسلمين في بلغاريا تشمل البكالوريوس والماجستير والدكتوراه
  • مبادرة "زوروا مسجدي 2025" تجمع أكثر من 150 مسجدا بمختلف أنحاء بريطانيا
  • متطوعو كواد سيتيز المسلمون يدعمون آلاف المحتاجين

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 15/4/1447هـ - الساعة: 17:55
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب