• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مواقع المشرفين   مواقع المشايخ والعلماء  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    وصية النبي - صلى الله عليه وسلم- بطلاب العلم
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    الأمن.. والنعم.. والذكاء الاصطناعي
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    يا معاشر المسلمين، زوجوا أولادكم عند البلوغ: ...
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
  •  
    شرح كتاب السنة لأبي بكر الخلال (رحمه الله) المجلس ...
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    حديث: يا رسول الله، أرأيت أن لو وجد أحدنا امرأته ...
    الشيخ عبدالقادر شيبة الحمد
  •  
    الأحاديث الطوال (23) وصول النبي صلى الله عليه ...
    الشيخ د. إبراهيم بن محمد الحقيل
  •  
    ففروا إلى الله (خطبة)
    د. محمود بن أحمد الدوسري
  •  
    الذكاء الاصطناعي بين نعمة الشكر وخطر التزوير: ...
    د. صغير بن محمد الصغير
  •  
    زمان الدجال.. ومقدمات
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    خطبة الملائكة
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    الخشية من الله تعالى (خطبة)
    الشيخ عبدالرحمن بن سعد الشثري
  •  
    استراتيجيات تحقيق الهدف الأول لتدريس المفاهيم ...
    أ. د. فؤاد محمد موسى
  •  
    ما حدود العلاقة بين الخاطب ومخطوبته؟
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    شرح كتاب السنة لأبي بكر الخلال (رحمه الله) المجلس ...
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    حرص النبي صلى الله عليه وسلم على تلاوة آيات ...
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    العناية بالشَّعر في السنة النبوية
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / الأسرة والمجتمع / قضايا المجتمع / في الأمر بالمعروف والنهي عن المنكر
علامة باركود

وأنيبوا إلى ربكم (خطبة) (باللغة الهندية)

وأنيبوا إلى ربكم (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 12/12/2022 ميلادي - 19/5/1444 هجري

الزيارات: 6028

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

(तुम सब अपने पालनहार की ओर झुक पड़ो)

 

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वा (धर्मनिष्‍ठा) अपनाने,पूर्ण रूप से तौबा करने और क्षमा के कारणों को अधिकतम अपनाने की वसीयत करता हूं,आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम का फरमान है: ऐ लोगो अल्‍लाह से तौबा करो,क्‍योंकि मैं दिन भर में सौ बार तौबा करता हूं (इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है)।


ईमानी भाइयो एक उत्‍तम प्रार्थना जिस पर अल्‍लाह ने पैगंबरों की प्रशंसा की है,इस प्रार्थना को करने वाले लोग मनुष्‍य की संगत में रहने वाले सर्वेात्‍तम लोग हैं,यह प्रार्थना,प्रत्‍येक प्रकार की सौभाग्‍यएवं हिदायत की कुंजी है,इस प्रार्थना को करने वाले को अल्‍लाह ने शुभसंदेश दी है,चिन्‍हों एवं उदाहरणोंसे वही व्‍यक्ति परमर्शप्राप्‍त करता है जिस का दिल इस प्रार्थना से आबाद हो,वह प्रार्थना अल्‍लाह की यातना से मनुष्‍य की रक्षा करती है,बल्कि अल्‍लाह ने यह सूचना दी है कि स्‍वर्ग उन आज्ञाकारियोंके लिये ही तैयार किया गया है जो यह प्रार्थना करते हैं,वह ऐसी प्रार्थना है जो दिल को ईमान से भर देती है,इसकी वास्‍तविकता यह है कि अल्‍लाह की ओर फिरा जाए,उसकी ओर ध्‍यानमग्‍न हो,वह तौबा से बड़ा स्‍थान है,तौबा पाप से दूर रहने,पूर्व के पापों पर अफसोस करने और दोबारा इस पाप को न करने को ठान लेना है,जबकि वह प्रार्थना तौबा के इस अर्थ के साथ ही इस पर भी प्रमाणित है कि विभिन्‍न प्रार्थनाओं के द्वारा अल्‍लाह की ओर ध्‍यान लगाया जाए,नि:संदेह वह अल्‍लाह की ओर लौटने और अल्‍लाह से आशालगाने की प्रार्थना है।


ऐ मोमिनों की समूह मैं आप के समक्ष कुछ आयतें प्रस्‍तुत कर रहा हूं जिन से ज्ञात होता है कि अल्‍लाह की ओर लौटना प्रत्‍येक प्रकार की सौभाग्‍यएवं हिदायत की चाबीहै,अल्‍लाह का फरमान है:

الرعد: 27] ﴿ قُلْ إِنَّ اللَّهَ يُضِلُّ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَنْ أَنَابَ ﴾

अर्थात:आप कह दें कि वास्‍तव में अल्‍लाह जिसे चाहे कुपथ करता है,और अपनी ओर उसी को राह दिखाता है जो उसकी ओर ध्‍यानमग्‍न हों।


अल्‍लाह तआ़ला ने अपनी ओर लौटने वालों को शुभसंदेश दिया है:

﴿ وَالَّذِينَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوتَ أَنْ يَعْبُدُوهَا وَأَنَابُوا إِلَى اللَّهِ لَهُمُ الْبُشْرَى فَبَشِّرْ عِبَادِ * الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ أُولَئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ وَأُولَئِكَ هُمْ أُولُو الْأَلْبَابِ ﴾ [الزمر: 17، 18]

अर्थात:जो बचे रहे तागूत (असुर) की पूजा से त‍था ध्‍यान मग्‍न हो गये अल्‍लाह की ओर तो उन्‍हीं के लिये शुभसूचना है।अत: आप शुभ सूचना सुना दें मेरे भक्‍तों को। जो ध्‍यान के सुनते हैं इस बात को फिर अनुसरण करते हैं इस सर्वोत्‍तम बात का तो वही हैं जिन्‍हें सुपथ दर्शन दिया है अल्‍लाह ने,तथा वही मतिमान हैं।


आयतों एवं इबरतों से वही व्‍यक्ति परामर्श प्राप्‍त करता है जो अपने पालनहार की ओर लौटता और फिरता है:

﴿ أَفَلَمْ يَنْظُرُوا إِلَى السَّمَاءِ فَوْقَهُمْ كَيْفَ بَنَيْنَاهَا وَزَيَّنَّاهَا وَمَا لَهَا مِنْ فُرُوجٍ * وَالْأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنْبَتْنَا فِيهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ بَهِيجٍ * تَبْصِرَةً وَذِكْرَى لِكُلِّ عَبْدٍ مُنِيبٍ ﴾ [ق: 6 - 8].


अर्थात:क्‍या उन्‍होंने नहीं देखा आकाश की ओर अपने उूपर कि कैसा बनाया है हम ने उसे और सजाया है उस की और नहीं है उस में कोई दराड़ तथा हन ने धरती को फैलाया,और डाल दिये उस में पर्वत,तथा उपजायीं उस में प्रत्‍येक प्रकार की सुन्‍दर बनस्‍पतियाँ।आँख खोलने तथा शिक्षा देने के लिये प्रत्‍येक अल्‍लाह की ओर ध्‍यानमग्‍न भक्‍त के लिये।


एवं दूसरी आयत में फरमाया:

﴿ هُوَ الَّذِي يُرِيكُمْ آيَاتِهِ وَيُنَزِّلُ لَكُمْ مِنَ السَّمَاءِ رِزْقًا وَمَا يَتَذَكَّرُ إِلَّا مَنْ يُنِيبُ ﴾ [غافر: 13]

अर्थात:वही दिखाता है तुम्‍हें अपनी निशानियाँ तथा उतारता है तुम्‍हारे लिये आकाश से जीविका,और शिक्षा ग्रहण नहीं करता परन्‍तु वही जो (उस की ओर) ध्‍यान करता है।


अल्‍लाह की ओर लौटना एवं फिरना एक ऐसी प्रार्थना है जो अल्‍लाह की यातना से सुरक्षित रखता है:

﴿ وَأَنِيبُوا إِلَى رَبِّكُمْ وَأَسْلِمُوا لَهُ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنْصَرُونَ ﴾ [الزمر: 54]

अर्थात:तथा झुक पड़ो अपने पालनहार की ओर,और आज्ञाकारी हो जाओ उस के इस से पूर्व कि तुम पर यातना आ जाये,फिर तुम्‍हारी सहायता न की जाये।


अल्‍लाह का र्स्‍वश्रेष्‍ठ उपहार स्‍वर्ग उन आज्ञाकारियोंके लिए है जो अपने हृदय से तौबा करता है:

﴿وَأُزْلِفَتِ الْجَنَّةُ لِلْمُتَّقِينَ غَيْرَ بَعِيدٍ * هَذَا مَا تُوعَدُونَ لِكُلِّ أَوَّابٍ حَفِيظٍ * مَنْ خَشِيَ الرَّحْمَنَ بِالْغَيْبِ وَجَاءَ بِقَلْبٍ مُنِيبٍ ﴾ [ق: 31 – 33]

अर्थात:तथा समीप कर दी जायेगी स्‍वर्ग,वह सदाचारियों से कुछ दूर न होगी।यह है जिस का तुम को वचन दिया जाता था,प्र‍त्‍येक ध्‍यानमग्‍न रक्षक के लिये।जो डरा अत्‍यंत कृपाशील से बिन देखे तथा ले कर आया ध्‍यान मग्‍न दिल।


ईमानी भा‍इयो अल्‍लाह तआ़ला ने दाउूद अलैहिस्‍सलाम के विषय में फरमाया:

﴿ وَظَنَّ دَاوُودُ أَنَّمَا فَتَنَّاهُ فَاسْتَغْفَرَ رَبَّهُ وَخَرَّ رَاكِعًا وَأَنَابَ ﴾ [ص: 24]

अर्थात:और दाउूद ने भाँप लिया की हम ने उस की परीक्षा ली है तो सहसा उस ने क्षमायाचना कर ली,और गिर गया सजदे में तथा ध्‍यान मग्‍न हो गया।


तथा सुलैमान अलैहिस्‍सलाम के विषय में फरमाया:

﴿ وَلَقَدْ فَتَنَّا سُلَيْمَانَ وَأَلْقَيْنَا عَلَى كُرْسِيِّهِ جَسَدًا ثُمَّ أَنَابَ ﴾ [ص: 34]

अर्थात:और हम ने परीक्षा ली सुलैमान की तथा डाल दिया उस के सिहासन पर एक धड़,फिर वह ध्‍यान मग्‍न हो गया।


शोए़ैब अलैहिस्‍सलाम के विषय में फरमाया:

﴿ وَمَا تَوْفِيقِي إِلَّا بِاللَّهِ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ ﴾ [هود: 88]

अर्थात:और यह जो कुछ करना चाहता हूँ,अल्‍लाह के योगदान पर भरोसा किया है,और उसी की ओर ध्‍यानमग्‍न रहता हूँ।


और हमारे नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के प्रति फरमाया:

﴿ ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبِّي عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ﴾ [الشورى: 10]

अर्थात:वह अल्‍लाह मेरा पालनहार है,उसी पर मैं ने भरोसा किया है तथा उसी की ओर ध्‍यान मग्‍न होता हूँ।


और अल्‍लाह ने इब्राहीम ख़लील की इस बात पर प्रशंसा की है कि वह अपने समस्‍त मामलों में अल्‍लाह की ओर लैटते एवं फिरते थे,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ إِنَّ إِبْرَاهِيمَ لَحَلِيمٌ أَوَّاهٌ مُنِيبٌ ﴾ [هود: 75]

अर्थात:वास्‍तव में इब्रहीम बड़ा सहनशील,कोमल हृदय तथा अल्‍लाह की ओर ध्‍यानमग्‍न रहने वाला था।


ख़लील अलैहिस्‍सलाम की दुआ़ है:

﴿ رَبَّنَا عَلَيْكَ تَوَكَّلْنَا وَإِلَيْكَ أَنَبْنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ ﴾[الممتحنة: 4]

अर्थात:हे हमारे पालनहार हम ने तेरे ही उूपर भरोसा किया और तेरी ही ओर ध्‍यान किया है और तेरी ही ओर फिर आना है।


अल्‍लाह तआ़ला ने अपनी ओर झुकने वाले और फिरने वाले बंदों के मार्ग पर चलने का आदेश देते हुए फरमाया:

﴿ وَاتَّبِعْ سَبِيلَ مَنْ أَنَابَ إِلَيَّ ﴾ [لقمان: 15]

अर्थात:तथा राह चलो उसकी जो ध्‍यान मग्‍न हो मेरी ओर।


ईमानी भाइयो वास्‍तविक एनाबत (अल्‍लाह की ओर लौटने) के दो अर्थ हैं:अल्‍लाह की ओर लौटना और उसकी ओर ध्‍यान लगाना।एनाबत (अल्‍लाह की ओर लौटने),दिल को अल्‍लाह के प्रेम,उसके डर,आशा और सम्‍मान से आलोकित कर देती है और उसका प्रभाव मुसलमान के अ़मलों एवं व्‍यवहार में दिखने लगता है,अत: दिल में अपार ईमान होता है,और शरीर के अंगों पर अ़मल एवं समर्पण का प्रभाव स्‍पष्‍ट होता है,इब्‍नुल क़य्यिम फरमाते हैं:अल्‍लाह की ओर लौटने वाला उसकी प्रसन्‍नता की ओर जलदी करने वाला होता है,हमेशा उसकी ओर लौटता और उसके प्रेम की ओर भागता है।


आप रहि़महुल्‍लाह अधिक फरमाते हैं: एनाबत (अल्‍लाह की ओर लौटना) दो प्रकार के हैं:अल्‍लाह की रुबूबियत (रब होन) की ओर लौटना,जिसका अर्थ है:समस्‍त जीवों को अल्‍लाह की ओर फेरना,इस अर्थ में मोमिन व काफिर और सदाचारी एवं दुराचारी सब शामिल हैं:

﴿ وَإِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُمْ مُنِيبِينَ إِلَيْهِ ﴾[الروم: 33]

अर्थात:और जब पहँचता है मनुष्‍यों को कोई दुख तो वह पुकारते हैं अपने पालनहार को ध्‍यान लगा कर उस की ओर।


यइ इनाबत हर उस व्‍यक्ति के लिए है जिसे कोई कठिनाई हो और वह अल्‍लाह को पुकारे...आप रहि़महुल्‍लाह अधिक फरमाते हैं:दूसरी इनाबत का अर्थ:अल्‍लाह के मित्रों की अनाबत है,जो कि प्रार्थना और प्रेम के साथ अल्‍लाह के एकेश्‍वरवाद की ओर लौटना है,इसके अंदर चार चीज़ें शामिल होती हैं:प्रेम,विनम्रता ,अल्‍लाह की ओर ध्‍यान लगाना और उसके सिवा प्रत्‍येक से दूर रहना।समाप्‍त


अल्‍लाह के बंदो समृद्धि के सयम बंदा रब की ओर लौटता है,तौबा वैकल्पिकहोता है,किंतु मजबूरी एवं कठिनाई में तो काफिर व दुराचारी भी अपने पालनहार की ओर लौट आता है,कुछ लोगों के लिए यह कठिनाई और इनाबत खैर व भलाई का संकेतहोता है,जबकि कुछ पापी लोग तौबा के पश्‍चात फिर अपने पाप एवं दुराचार की ओर लौट आते हैं:

﴿ وَإِذَا مَسَّ النَّاسَ ضُرٌّ دَعَوْا رَبَّهُمْ مُنِيبِينَ إِلَيْهِ ثُمَّ إِذَا أَذَاقَهُمْ مِنْهُ رَحْمَةً إِذَا فَرِيقٌ مِنْهُمْ بِرَبِّهِمْ يُشْرِكُونَ * لِيَكْفُرُوا بِمَا آتَيْنَاهُمْ ﴾ [الروم: 33، 34]

अर्थात:और जब पहँचता है मनुष्‍यों को कोई दुख तो वह पुकारते हैं अपने पालनहार को ध्‍यान लगा कर उस की ओर।फिर जब वह चखाता है उन को अपनी ओर से कोई दया,तो सहसा एक गिरोह उन में से अपने पालनहार के साथ शिर्क करने लगता है।ताकि वह उस के कृतघ्‍न हो जायें जो हम ने प्रदान किया है उन को।


अल्‍लाह तआ़ला कु़र्रान व सुन्‍नत को हमारे और आप के लिए बाबरकत बनाए....


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:अल्‍लाह की ओर लौटना एवं फिरना एक उच्‍च स्‍थान का नाम है,जैसा कि इसकी कुछ सद्ग्‍ुणेंहमारे सामने गुजर चुकी हैं।


ऐ सज्‍जनो अल्‍लाह की ओर लौटने एवं फिरने का एक चिन्‍ह यह है कि जब बंदा से पाप होजाए तो उसको कष्‍ट महसूस हो और दिल दुखी हो जाए।


इसका चिन्‍ह यह है कि:छूट गए आज्ञाकारिताओं पर उसे पछतावाहो,उन्‍हें पूरा करने की चाहता हो,अथवा उसके जैसा प्रार्थना अथवा अन्‍य पुण्‍य को करने की चिंता हो।


इस‍का एक चिन्‍ह यह भी है कि:पापों के करने से सुरक्षित रहने की चिंता हो,वह इस प्रकार कि उन पापों से तौबा करे जो अल्‍लाह और बंदा की बीच होते हैं,और उन अधिकारों को उन लोगों तक पहुंचाए जिन का संबंध मखलूक से है।


इसका एक चिंह यह है कि:उनके मोमिन भाई से जब कोई गलती हो जाए तो उसे कष्‍ट हो,और उसका मजाक न उड़ाए,अलिक अल्‍लाह की प्रशंसा करे कि वह उससे सुरक्षित है और साथ ही अपने भाई के लिए दुआ़ भी करे।


अल्‍लाह तआ़ला की ओर लौटने एवं फिरने का एक चिन्‍ह यह भी है कि:आलसा में पड़े लोगों को बुरा जानने एवं उनके प्रति डरने से बचे,जबकि अपने लिए आशा का दरवाजा खुले रखे,बल्कि आज्ञा के बावजूद अपने प्रति डरते रहे,और उनके लिए तौबा की आशा रखे यद्यपि वह दुराचार कर रहा हो।


अल्‍लाह की ओर लौटने एवं फिरने का एक चिन्‍ह यह भी है कि:आत्‍मा के रोगों का अच्‍छे से निरीक्षणकरे और उन रोगों का खोज तलाश करे,जैसे दिखावा,अथवा प्रसिद्धि की चाहत अथवा स्‍वयं प्रशंसा की चाहत।हे अल्‍लाह हमें अपना दया,कृपा,उपकार एवं क्षमा प्रदान कर और हमारे साथ अपने शत्रुओं जैसा व्‍यव‍हार न कर।


दरूद व सलाम पढें....


صلى الله عليه وسلم.

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • وأنيبوا إلى ربكم (خطبة)
  • وأنيبوا إلى ربكم (خطبة) (باللغة الأردية)
  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)

مختارات من الشبكة

  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • فقه يوم عاشوراء (باللغة الفرنسية)(كتاب - موقع د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر)
  • كيفية الصلاة على الميت: فضلها والأدعية المشروعة فيها (مطوية باللغة الأردية)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة الإندونيسية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • دليل الإنابة (وأنيبوا إلى ربكم وأسلموا له)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • لنصلح أنفسنا ولندع التلاوم (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: {أفمن زين له سوء عمله...}(مقالة - آفاق الشريعة)
  • عالم الفساد والعفن: السحر والكهانة والشعوذة (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • لا تغرنكم الحياة الدنيا (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: أهمية ممارسة الهوايات عند الشباب(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • تيوتشاك تحتضن ندوة شاملة عن الدين والدنيا والبيت
  • مسلمون يقيمون ندوة مجتمعية عن الصحة النفسية في كانبرا
  • أول مؤتمر دعوي من نوعه في ليستر بمشاركة أكثر من 100 مؤسسة إسلامية
  • بدأ تطوير مسجد الكاف كامبونج ملايو في سنغافورة
  • أهالي قرية شمبولات يحتفلون بافتتاح أول مسجد بعد أعوام من الانتظار
  • دورات إسلامية وصحية متكاملة للأطفال بمدينة دروججانوفسكي
  • برينجافور تحتفل بالذكرى الـ 19 لافتتاح مسجدها التاريخي
  • أكثر من 70 متسابقا يشاركون في المسابقة القرآنية الثامنة في أزناكاييفو

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 8/2/1447هـ - الساعة: 16:5
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب