• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | المكتبة المرئية   المكتبة المقروءة   المكتبة السمعية   مكتبة التصميمات   كتب د. خالد الجريسي   كتب د. سعد الحميد  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    إعلام الأنام بشرح نواقض الإسلام - باللغة ...
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
  •  
    ما لا يسع المسلم جهله في الفقه والأخلاق (PDF)
    أ. د. عبدالله بن محمد الطيار
  •  
    طيب المعشر (PDF)
    أ. أحمد بن عبيد الحربي
  •  
    صيحة ونداء وتحذير إلى كل عاقل لبيب (PDF)
    منصور بن محمد بن حسن الزبيري
  •  
    القانون في رواية قالون (PDF)
    بلحسن بن محمد لطفي الشاذلي
  •  
    ترجمة مختصرة لسماحة الشيخ العلامة محمد بن عبدالله ...
    أ. د. عبدالمجيد بن محمد بن عبدالله ...
  •  
    شرح كتاب الأصول الثلاثة: من قول المؤلف (المرتبة ...
    الداعية عبدالعزيز بن صالح الكنهل
  •  
    أربعون حديثا في الأخلاق من صحيحي البخاري ومسلم ...
    جمعية مشكاة النبوة
  •  
    أذكار المساء والصباح (تلخيص كتاب "الأذكار" للإمام ...
    د. محمد عبدالله عباس الشال
  •  
    الإحسان والرحمة.. وحذر الطمع والجشع
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    توثيق النسبة بين المخطوط ومؤلفه
    أبو عاصم البركاتي المصري
  •  
    القواعد الأصولية وتطبيقاتها من كتاب "شرح الحاوي ...
    عبدالرحمن علي محمد المطري
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما (خطبة) (باللغة الهندية)

من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 11/1/2023 ميلادي - 19/6/1444 هجري

الزيارات: 3954

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

पैगंबरी क़ंदील (9)

अल्लाह तआ़ला ने तुम्हारे अ़मल पर आश्चर्य किया


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात


मैं आप को और स्वयं को अल्लाह का तक़्वा (धर्मनिष्ठा) अपनाने की वसीयत करता हूँ,क्योंकि इस के अच्छे एवं उत्तम परिणाम सवैद के उपकार और सवैद के प्रेम के रूप में प्रलय के जीवन तक शेष रहते हैं:

﴿ وَبَشِّرِ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ كُلَّمَا رُزِقُوا مِنْهَا مِنْ ثَمَرَةٍ رِزْقًا قَالُوا هَذَا الَّذِي رُزِقْنَا مِنْ قَبْلُ وَأُتُوا بِهِ مُتَشَابِهًا وَلَهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُطَهَّرَةٌ وَهُمْ فِيهَا خَالِدُونَ ﴾ [البقرة: 25].


अर्थात:हे नबी उन लोगों को शुभ सूचना दो,जो ईमान लाये,तथा सदाचार किये कि उन के लिए ऐसे स्वर्ग हैं,जिन में नहरें बह रही होंगी,जब उन का कोई भी फल उन्हें दिया जाएगा तो कहेंगे:यह तो वही है जो इस से पहले हमें दिया गया।और उन्हें समरूप फल दिये जायेंगे तथा उन के लिये उन में निर्मल पत्नयाँ होंगी,और वह उन में सदावासी होंगे।


रह़मान के बंदो पैगंबर की जीवनी और उस की घटनाएं कितनी सुन्दर हैं इस से हमें कितने बड़े बड़े पाठ एवं बहुमूल्य परिणाम प्राप्त होते हैं आप के समक्ष पैगंबर की जीवना का यह घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ:

अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है,वह फरमते हैं:एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि मुझे (खाने पीने का) बड़ा कष्ट है।आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने अपनी किसी पत्नी के पास कहला भेजा,वह बोलीं कि क़सम उस की जिस ने आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम को सत्यता के साथ भेजा है कि मेरे पास तो जल के सिवा कुछ नहीं है।फिर आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने दूसरी पत्नी के पास भेजा तो उन्होंने भी ऐसा ही कहा,यहाँ तककि बस पत्नियों से यही उत्तर आया कि हमारे पास जल के सिवा कुछ नहीं है।आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने फरमाया कि आज की रात कौन इस की आतिथ्यकरता है अल्लाह तआ़ला उस पर कृपा करे,तब एक अंसारी उठा और कहने लगा कि ए अल्लाह के रसूल मैं करता हूँ।फिर वह उस को अपने घर ले गया और अपनी पत्नी से कहा कि तेरे पास कुछ है वह बोली कि कुछ नहीं किन्तु मेरे बच्चों का खाना है।अंसारी ने कहा कि बच्चों से कुछ बहाना करदे और जब हमारा अतिथिअंदर आए और देखना कि जब हम खाने लगें तो चिराग बुझा देना और ऐसा प्रकट करना कि हम खा रहे है।(वर्णनकर्ता) का बयान है:उन से ऐसा ही किया और पति पत्नी भूके बैठे रहे और अतिथि ने खाना खाया।जब सुबह़ हुई तो वह अंसारी रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आए तो आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआ़ला ने उससे आश्चर्य किया जो तुम ने रात को अपने अतिथि के साथ किया (अर्थात प्रसन्न हुआ)।(बोख़ारी व मुस्लिम ने इस ह़दीस को वर्णन किया है और उपरोक्त शब्द मुस्लिम के हैं)


मेरे ईमानी भाइयो आइये हम इस घटने पर ठहर कर विचार करते हैं:

1- मोमिन आवश्यकता एवं कठिनाई के समय रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम से आके मिलते थे।अत: यह भूक का मारा व्यक्ति रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आया,बात लंबी न करते हुए बेझिझक आप के समक्ष अपनी आवश्यकता रखी,वर्णनकर्ता का बयान है: (एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि मुझे (खाने पीने का) बड़ा कष्ट है)।ताकि उसे तत्काल उत्तर मिले और पूरा ध्यान प्राप्त हो और उसकी आवश्यकता पूरी की जा सके।


2- आप ने देखा कि नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने उस भूके व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति के लिए स्वयं से उसक आरंभ किया,अत: सर्वप्रथम अपनी एक पत्नी के पास अतिथि के खाने पीने के विषय में पूछने के लिए भेजा,जब एक के पास नहीं पाया तो दूसरे के पास भेजा,यहाँ तक कि अपने सारे घरों में व्यक्ति भेज कर पुछवाया,और अपने सह़ाबा से उस समय कहा जब अपने घरों से पूरी सूचना प्राप्त करली।


आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम अपने कथन से पूर्व अपने कार्य में आदर्श थे,दिलों में इसका इतना गहरा प्रभाव होता है,इस के पश्चात अंसारी सह़ाबी ने उस अतिथि के साथ जो व्यवहार किया वह इसका बेहतरी उदाहरण है।


3- अतिथि के साथ अंसारी का व्यवहार मामूली चीज़ के द्वारा भी स्वयं पर दूसरे को प्राथमिकता देने का आलोकित उदाहरण है।उन्होंने यह कुब्रानी दी कि स्वयं,उनकी पत्नी और बच्चे भूके रात गुजारें ताकि एक भूका अतिथि का पेट भर सके,हो सकता है कि उस ने कई रात भूके गुज़ाराह हो,तथा आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने अतिथि के भावनाओं का कितना ध्यान रखा कि यदि उन को मालूम होता कि वह तो अपना पेट भर रहे हैं किन्तु उनका आतिथेय भूका है,तो वह खाना नहीं खा पाते,आतिथेय ने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि वह चिराग ठीक करने के बहाने से उठे और उसे बेझादे,ताकि इस मामूली खाने से अतिथि का पेट भर सके और मन से खाना खाए,नि:संदेह यह एक आश्चर्यजनक दृश्य है,क्या इससे भी बड़ी कोई बात हो सकती है कि अल्लाह तआ़ला ने इस अ़मल पर आश्चर्य जताया और इस विषय में अल्लाह ने क़ुर्आन की आयत अवतरित फरमाई जो सवैद सस्वर पाठ किया जाता रहेगा,अत: बोख़ारी की रिवायत में है: (फिर जब सुबह़ हुई तो वह अंसारी रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास गया।आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने फरमाया: आज रात तुम दोनों के काम पर अल्लाह तआ़ला हंसा (अथवा फरमाया कि) अल्लाह ने आश्चर्य जताया ।फिर अल्लाह तआ़ला ने यह आयत अवतरित फरमाई:

﴿ وَيُؤْثِرُونَ عَلَى أَنْفُسِهِمْ وَلَوْ كَانَ بِهِمْ خَصَاصَةٌ وَمَنْ يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِ فَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ ﴾ [الحشر: 9]

अर्थात:और प्राथमिक्ता देते हैं (देसरों को) अपने उूपर चाहे स्वयं भूखे हों और जो बचा लिये गये अपने मन की तंगी से तो वही सफल होने वाले हैं।


चौथा दृश्य उस परिवारका है जो इस घटने में सक्रिय था,अपनी भूमिका आपस में बांट रहा था,और पूरे रूप में और शक्ति अनुसार बेहतरीन ढ़ंग से अतिथि की मेज़बानी के लिए एक दूसरे की सहायता कर रहा था,अत: पत्नी अपनी मम्ता के भावना को पराजित कर रही थी ताकि अपने बच्चों का खाना अतिथि को प्रस्तुत कर सके और अपनी आवश्यकता पर दूसरे की आवश्यकता को प्राथमिकता दे रहे थी,अतिथि की मेज़बानी करने और खाने की कमी के कारण उन के झिझक को दूर करने में पति के साथ अपनी भूमिका निभा रही थी,वह अपनी समस्त भूमिका में अल्लाह की आज्ञाकारिता के लिए और रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के अतिथि की मेज़बानी के लिए अपने पति की सहायक बन कर खड़ी रही।


अल्लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुर्आन व सुन्नत से लाभ पहुँचाए और इन में जो ज्ञान एवं नीति की बातें हैं,उन्हें हमारे लिए लाभदायक बनाए,आप अल्लाह तआ़ला से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमा करने वाला है।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

इस घटने में विचार के कुछ पहलू ये भी हैं:

1- नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के मोजज़े (चमत्कार) का जोहूर,वह इस प्रकार से कि नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने अंसारी सह़ाबी-जिन का नाम अबूत़लह़ा बताया जाता है-को सबसे पहले यह बताया कि अल्लाह तआ़ला को उन के उस कार्य पर आश्चर्य हुआ और प्रसन्नता हुई जो उन्होंने रात के अंधेरे में अपने अतिथि के साथ किया,और उस अतिथि को इसकी भनक न लग सकी,यह उन चिन्हों में एक चिन्ह थ जिन का सह़ाबा थोड़े-थोड़े समय पर अवलोकन किया करते थे:

﴿ وَيَزْدَادَ الَّذِينَ آمَنُوا إِيمَانًا وَلَا يَرْتَابَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَالْمُؤْمِنُونَ ﴾ [المدثر: 31].

अर्थात:और बढ़ जायें जो ईमान लाये हैं ईमान में,और संदेह न करें जो पस्तक दिये गयें हैं और ईमान वाले।


2- नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के घरों में जीवन यापन के सामान और खाने पीने के सामान की कितनी कमी थी कि मांगने वाला सारे घरों में जा कर चक्कर लगा कर पूछता है कि रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम अतिथि के अतिथि के लिए कोई खाना है तो उसे जल के सिवा कुछ नहीं मिलता,आप ने अपने प्राण एवं धन से लोगों की सहायता की,अपने घरों को आराम की चीज़ों से नहीं सजाया,न धन इकट्ठा किया और न दुनिया की पूंजी जमा की,आप के सह़ाबा ने आप को देखा कि आप सब से अधिक उदार और ख़ैर व भालाई के मामले में चलती हुई हवा से भी अधिक दानशील थे,सैंकड़ों उूंटों को बांट दिया करते,सह़ाबा ने कभी भी आप को अपने लिए धन इकट्ठा करते हुए अथवा सामान इकट्ठा करते हुए,अथवा अपनी व्यक्तित्व एवं अपने परिजनों को प्राथमिकता देते हुए नहीं देखा।


रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम का अपने घरों में मांगने वाले को भेज कर अतिथि के लिए खाना मंगवाना,और उन का आप के घरों में कोई ऐसी चीज़ न पाना जिससे एक व्यक्ति अपनी भूक मिटा सके-यह उस भूक के मारे व्यक्ति के लिए संतुष्टि का कारण था,अत: जब उसने देखा कि रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम की यह स्थिति है तो वह अपनी स्थिति पर भी राज़ी हो गया और अपनी दरिद्रता की शिकायत करना बंद कर दिया,क्योंकि आप उन के इमाम एवं आदर्श थे,और आप की दरिद्रता की यह स्थिति थी।


صلى الله عليه وسلم.

 

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما
  • من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما (باللغة الأردية)
  • من مشكاة النبوة (3) ذو العقيصتين (خطبة) (باللغة الإندونيسية)
  • خطبة: من مشكاة النبوة (1) - باللغة البنغالية

مختارات من الشبكة

  • تعظيم قدر الصلاة في مشكاة النبوة - بلغة الإشارة (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: استشعار التعبد وحضور القلب (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: استشعار التعبد وحضور القلب (باللغة الإندونيسية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: احتساب الثواب والتقرب لله عز وجل (باللغة النيبالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: احتساب الثواب والتقرب لله عز وجل (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: احتساب الثواب والتقرب لله عز وجل (باللغة الإندونيسية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • المراهقون بين هدي النبوة وتحديات العصر (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من دروس خطبة الوداع: أخوة الإسلام بين توجيه النبوة وتفريط الأمة (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • ندوة نسائية وأخرى طلابية في القرم تناقشان التربية والقيم الإسلامية
  • مركز إسلامي وتعليمي جديد في مدينة فولجسكي الروسية
  • ختام دورة قرآنية ناجحة في توزلا بمشاركة واسعة من الطلاب المسلمين
  • يوم مفتوح للمسجد للتعرف على الإسلام غرب ماريلاند
  • ندوة مهنية تبحث دمج الأطفال ذوي الاحتياجات الخاصة في التعليم الإسلامي
  • مسلمو ألميتيفسك يحتفون بافتتاح مسجد "تاسكيريا" بعد أعوام من البناء
  • يوم مفتوح بمسجد بلدة بالوس الأمريكية
  • مدينة كلاغنفورت النمساوية تحتضن المركز الثقافي الإسلامي الجديد

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 5/5/1447هـ - الساعة: 16:7
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب