• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مقالات   بحوث ودراسات   إبهاج المسلم بشرح صحيح مسلم   الدر الثمين   سلسلة 10 أحكام مختصرة   فوائد شرح الأربعين   كتب   صوتيات   مواد مترجمة  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    شرح (صفوة أصول الفقه) لابن سعدي - رحمه الله - ...
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    التعليق على رسالة (ذم قسوة القلب) لابن رجب (PDF)
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    10 مسائل مهمة ومختصرة في: شهر الله المحرم
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    10 مسائل مهمة ومختصرة في الأضحية (PDF)
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    10 مسائل مهمة ومختصرة في 10 ذي الحجة (PDF)
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    الدعاء لمن أتى بصدقة
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    حديث: صدقة لم يأكل منها
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    حديث: هو لها صدقة، ولنا هدية
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    باب: (ترك استعمال آل النبي على الصدقة)
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    حديث: «كخ كخ، ارم بها، أما علمت أنا لا نأكل ...
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    شرح حديث: سيخرج في آخر الزمان قوم أحداث الأسنان ...
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    التعريف بالخوارج وصفاتهم
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    حديث: ألا تأمنوني؟ وأنا أمين من في السماء
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    إعطاء المؤلفة قلوبهم على الإسلام وتصبر من قوي ...
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    إعطاء المؤلفة قلوبهم على الإسلام وتصبر من قوي ...
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
  •  
    إعطاء المؤلفة قلوبهم من الزكاة
    الشيخ د. عبدالله بن حمود الفريح
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما (خطبة) (باللغة الهندية)

من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 11/1/2023 ميلادي - 19/6/1444 هجري

الزيارات: 3853

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

पैगंबरी क़ंदील (9)

अल्लाह तआ़ला ने तुम्हारे अ़मल पर आश्चर्य किया


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात


मैं आप को और स्वयं को अल्लाह का तक़्वा (धर्मनिष्ठा) अपनाने की वसीयत करता हूँ,क्योंकि इस के अच्छे एवं उत्तम परिणाम सवैद के उपकार और सवैद के प्रेम के रूप में प्रलय के जीवन तक शेष रहते हैं:

﴿ وَبَشِّرِ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ كُلَّمَا رُزِقُوا مِنْهَا مِنْ ثَمَرَةٍ رِزْقًا قَالُوا هَذَا الَّذِي رُزِقْنَا مِنْ قَبْلُ وَأُتُوا بِهِ مُتَشَابِهًا وَلَهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُطَهَّرَةٌ وَهُمْ فِيهَا خَالِدُونَ ﴾ [البقرة: 25].


अर्थात:हे नबी उन लोगों को शुभ सूचना दो,जो ईमान लाये,तथा सदाचार किये कि उन के लिए ऐसे स्वर्ग हैं,जिन में नहरें बह रही होंगी,जब उन का कोई भी फल उन्हें दिया जाएगा तो कहेंगे:यह तो वही है जो इस से पहले हमें दिया गया।और उन्हें समरूप फल दिये जायेंगे तथा उन के लिये उन में निर्मल पत्नयाँ होंगी,और वह उन में सदावासी होंगे।


रह़मान के बंदो पैगंबर की जीवनी और उस की घटनाएं कितनी सुन्दर हैं इस से हमें कितने बड़े बड़े पाठ एवं बहुमूल्य परिणाम प्राप्त होते हैं आप के समक्ष पैगंबर की जीवना का यह घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ:

अबूहोरैरह रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है,वह फरमते हैं:एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि मुझे (खाने पीने का) बड़ा कष्ट है।आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने अपनी किसी पत्नी के पास कहला भेजा,वह बोलीं कि क़सम उस की जिस ने आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम को सत्यता के साथ भेजा है कि मेरे पास तो जल के सिवा कुछ नहीं है।फिर आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने दूसरी पत्नी के पास भेजा तो उन्होंने भी ऐसा ही कहा,यहाँ तककि बस पत्नियों से यही उत्तर आया कि हमारे पास जल के सिवा कुछ नहीं है।आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने फरमाया कि आज की रात कौन इस की आतिथ्यकरता है अल्लाह तआ़ला उस पर कृपा करे,तब एक अंसारी उठा और कहने लगा कि ए अल्लाह के रसूल मैं करता हूँ।फिर वह उस को अपने घर ले गया और अपनी पत्नी से कहा कि तेरे पास कुछ है वह बोली कि कुछ नहीं किन्तु मेरे बच्चों का खाना है।अंसारी ने कहा कि बच्चों से कुछ बहाना करदे और जब हमारा अतिथिअंदर आए और देखना कि जब हम खाने लगें तो चिराग बुझा देना और ऐसा प्रकट करना कि हम खा रहे है।(वर्णनकर्ता) का बयान है:उन से ऐसा ही किया और पति पत्नी भूके बैठे रहे और अतिथि ने खाना खाया।जब सुबह़ हुई तो वह अंसारी रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आए तो आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआ़ला ने उससे आश्चर्य किया जो तुम ने रात को अपने अतिथि के साथ किया (अर्थात प्रसन्न हुआ)।(बोख़ारी व मुस्लिम ने इस ह़दीस को वर्णन किया है और उपरोक्त शब्द मुस्लिम के हैं)


मेरे ईमानी भाइयो आइये हम इस घटने पर ठहर कर विचार करते हैं:

1- मोमिन आवश्यकता एवं कठिनाई के समय रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम से आके मिलते थे।अत: यह भूक का मारा व्यक्ति रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आया,बात लंबी न करते हुए बेझिझक आप के समक्ष अपनी आवश्यकता रखी,वर्णनकर्ता का बयान है: (एक व्यक्ति अल्लाह के रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास आया और कहा कि मुझे (खाने पीने का) बड़ा कष्ट है)।ताकि उसे तत्काल उत्तर मिले और पूरा ध्यान प्राप्त हो और उसकी आवश्यकता पूरी की जा सके।


2- आप ने देखा कि नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने उस भूके व्यक्ति की आवश्यकता की पूर्ति के लिए स्वयं से उसक आरंभ किया,अत: सर्वप्रथम अपनी एक पत्नी के पास अतिथि के खाने पीने के विषय में पूछने के लिए भेजा,जब एक के पास नहीं पाया तो दूसरे के पास भेजा,यहाँ तक कि अपने सारे घरों में व्यक्ति भेज कर पुछवाया,और अपने सह़ाबा से उस समय कहा जब अपने घरों से पूरी सूचना प्राप्त करली।


आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम अपने कथन से पूर्व अपने कार्य में आदर्श थे,दिलों में इसका इतना गहरा प्रभाव होता है,इस के पश्चात अंसारी सह़ाबी ने उस अतिथि के साथ जो व्यवहार किया वह इसका बेहतरी उदाहरण है।


3- अतिथि के साथ अंसारी का व्यवहार मामूली चीज़ के द्वारा भी स्वयं पर दूसरे को प्राथमिकता देने का आलोकित उदाहरण है।उन्होंने यह कुब्रानी दी कि स्वयं,उनकी पत्नी और बच्चे भूके रात गुजारें ताकि एक भूका अतिथि का पेट भर सके,हो सकता है कि उस ने कई रात भूके गुज़ाराह हो,तथा आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने अतिथि के भावनाओं का कितना ध्यान रखा कि यदि उन को मालूम होता कि वह तो अपना पेट भर रहे हैं किन्तु उनका आतिथेय भूका है,तो वह खाना नहीं खा पाते,आतिथेय ने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि वह चिराग ठीक करने के बहाने से उठे और उसे बेझादे,ताकि इस मामूली खाने से अतिथि का पेट भर सके और मन से खाना खाए,नि:संदेह यह एक आश्चर्यजनक दृश्य है,क्या इससे भी बड़ी कोई बात हो सकती है कि अल्लाह तआ़ला ने इस अ़मल पर आश्चर्य जताया और इस विषय में अल्लाह ने क़ुर्आन की आयत अवतरित फरमाई जो सवैद सस्वर पाठ किया जाता रहेगा,अत: बोख़ारी की रिवायत में है: (फिर जब सुबह़ हुई तो वह अंसारी रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के पास गया।आप सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने फरमाया: आज रात तुम दोनों के काम पर अल्लाह तआ़ला हंसा (अथवा फरमाया कि) अल्लाह ने आश्चर्य जताया ।फिर अल्लाह तआ़ला ने यह आयत अवतरित फरमाई:

﴿ وَيُؤْثِرُونَ عَلَى أَنْفُسِهِمْ وَلَوْ كَانَ بِهِمْ خَصَاصَةٌ وَمَنْ يُوقَ شُحَّ نَفْسِهِ فَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ ﴾ [الحشر: 9]

अर्थात:और प्राथमिक्ता देते हैं (देसरों को) अपने उूपर चाहे स्वयं भूखे हों और जो बचा लिये गये अपने मन की तंगी से तो वही सफल होने वाले हैं।


चौथा दृश्य उस परिवारका है जो इस घटने में सक्रिय था,अपनी भूमिका आपस में बांट रहा था,और पूरे रूप में और शक्ति अनुसार बेहतरीन ढ़ंग से अतिथि की मेज़बानी के लिए एक दूसरे की सहायता कर रहा था,अत: पत्नी अपनी मम्ता के भावना को पराजित कर रही थी ताकि अपने बच्चों का खाना अतिथि को प्रस्तुत कर सके और अपनी आवश्यकता पर दूसरे की आवश्यकता को प्राथमिकता दे रहे थी,अतिथि की मेज़बानी करने और खाने की कमी के कारण उन के झिझक को दूर करने में पति के साथ अपनी भूमिका निभा रही थी,वह अपनी समस्त भूमिका में अल्लाह की आज्ञाकारिता के लिए और रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के अतिथि की मेज़बानी के लिए अपने पति की सहायक बन कर खड़ी रही।


अल्लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुर्आन व सुन्नत से लाभ पहुँचाए और इन में जो ज्ञान एवं नीति की बातें हैं,उन्हें हमारे लिए लाभदायक बनाए,आप अल्लाह तआ़ला से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमा करने वाला है।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

इस घटने में विचार के कुछ पहलू ये भी हैं:

1- नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के मोजज़े (चमत्कार) का जोहूर,वह इस प्रकार से कि नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम ने अंसारी सह़ाबी-जिन का नाम अबूत़लह़ा बताया जाता है-को सबसे पहले यह बताया कि अल्लाह तआ़ला को उन के उस कार्य पर आश्चर्य हुआ और प्रसन्नता हुई जो उन्होंने रात के अंधेरे में अपने अतिथि के साथ किया,और उस अतिथि को इसकी भनक न लग सकी,यह उन चिन्हों में एक चिन्ह थ जिन का सह़ाबा थोड़े-थोड़े समय पर अवलोकन किया करते थे:

﴿ وَيَزْدَادَ الَّذِينَ آمَنُوا إِيمَانًا وَلَا يَرْتَابَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ وَالْمُؤْمِنُونَ ﴾ [المدثر: 31].

अर्थात:और बढ़ जायें जो ईमान लाये हैं ईमान में,और संदेह न करें जो पस्तक दिये गयें हैं और ईमान वाले।


2- नबी सलल्लाहु हलैहि वसल्लम के घरों में जीवन यापन के सामान और खाने पीने के सामान की कितनी कमी थी कि मांगने वाला सारे घरों में जा कर चक्कर लगा कर पूछता है कि रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम अतिथि के अतिथि के लिए कोई खाना है तो उसे जल के सिवा कुछ नहीं मिलता,आप ने अपने प्राण एवं धन से लोगों की सहायता की,अपने घरों को आराम की चीज़ों से नहीं सजाया,न धन इकट्ठा किया और न दुनिया की पूंजी जमा की,आप के सह़ाबा ने आप को देखा कि आप सब से अधिक उदार और ख़ैर व भालाई के मामले में चलती हुई हवा से भी अधिक दानशील थे,सैंकड़ों उूंटों को बांट दिया करते,सह़ाबा ने कभी भी आप को अपने लिए धन इकट्ठा करते हुए अथवा सामान इकट्ठा करते हुए,अथवा अपनी व्यक्तित्व एवं अपने परिजनों को प्राथमिकता देते हुए नहीं देखा।


रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम का अपने घरों में मांगने वाले को भेज कर अतिथि के लिए खाना मंगवाना,और उन का आप के घरों में कोई ऐसी चीज़ न पाना जिससे एक व्यक्ति अपनी भूक मिटा सके-यह उस भूक के मारे व्यक्ति के लिए संतुष्टि का कारण था,अत: जब उसने देखा कि रसूल सलल्लाहु हलैहि वसल्लम की यह स्थिति है तो वह अपनी स्थिति पर भी राज़ी हो गया और अपनी दरिद्रता की शिकायत करना बंद कर दिया,क्योंकि आप उन के इमाम एवं आदर्श थे,और आप की दरिद्रता की यह स्थिति थी।


صلى الله عليه وسلم.

 

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما
  • من مشكاة النبوة (9) عجب الله من صنيعكما (باللغة الأردية)
  • من مشكاة النبوة (3) ذو العقيصتين (خطبة) (باللغة الإندونيسية)
  • خطبة: من مشكاة النبوة (1) - باللغة البنغالية

مختارات من الشبكة

  • تعظيم قدر الصلاة في مشكاة النبوة - بلغة الإشارة (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • فليسقط عجبك بالكلية: عشرون علاجا للعجب(مقالة - آفاق الشريعة)
  • العجب كل العجب ممن يلتمس عند أذل الناس عزا(مقالة - آفاق الشريعة)
  • عجب ممن عجب ( قصيدة )(مقالة - حضارة الكلمة)
  • من مداخل الشيطان: العجب(مقالة - آفاق الشريعة)
  • العجب في شهر رجب (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • يا عجبا من حالنا!(مقالة - حضارة الكلمة)
  • برج من عجب (قصيدة)(مقالة - حضارة الكلمة)
  • من أقوال السلف في العجب والكبر(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • مسلمون يخططون لتشييد مسجد حديث الطراز شمال سان أنطونيو
  • شبكة الألوكة تعزي المملكة العربية السعودية حكومة وشعبا في وفاة سماحة مفتي عام المملكة
  • برنامج تعليمي إسلامي شامل لمدة ثلاث سنوات في مساجد تتارستان
  • اختتام الدورة العلمية الشرعية الثالثة للأئمة والخطباء بعاصمة ألبانيا
  • مدرسة إسلامية جديدة في مدينة صوفيا مع بداية العام الدراسي
  • ندوة علمية حول دور الذكاء الاصطناعي في تحسين الإنتاجية بمدينة سراييفو
  • مركز تعليمي إسلامي جديد بمنطقة بيستريتشينسكي شمال غرب تتارستان
  • 100 متطوع مسلم يجهزون 20 ألف وجبة غذائية للمحتاجين في مينيسوتا

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 5/4/1447هـ - الساعة: 14:19
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب