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علامة باركود

الاعتراف يهدم الاقتراف (باللغة الهندية)

الاعتراف يهدم الاقتراف (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

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تاريخ الإضافة: 31/8/2022 ميلادي - 4/2/1444 هجري

الزيارات: 5300

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शीर्षक:

पाप की स्‍वीकृति से पाप मिट जाते हैं

अनुवादक:

फैजुर रह़मान हि़फजुर रह़मान तैमी

 

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह की तक्‍़वा धर्मनिष्‍ठा का परामर्श करता हूँ,मुझ पर और आप पर अल्‍लाह कृपा करे,आप बिलाल बिन साद रहि़महुल्‍लाहु का य‍ह कथन सुनें: जान लो कि तुम छोटे दिनों में लंबे दिनों के लिए अ़मल कर रहे हो,समाप्‍त हो जाने वाली दुनिया में हमेशा रहने वाली दुनिया के लिए अ़मल कर रहे हो,मलाल व शोक एवं कठिनाई व थकान की दुनिया में नेमत और स्‍वेद की दुनिया के लिए अ़मल कर रहे हो


ईमानी भाइयो यह एक बड़ा प्रश्‍न है जिसे उम्‍मत के र्स्‍वश्रेष्‍ठ व्‍यक्ति ने र्स्‍वश्रेष्‍ठ संदेशवाहक के समक्ष प्रस्‍तुत किया ऐसा प्रश्‍न जिस का संबंध प्रार्थना की जड़ से है,वह चाहते थे कि र्स्‍वश्रेष्‍ठ अ़मली प्रार्थना में यह द़आ़ पढ़ा करें आइए हम यह ह़दीस सुनते हैं...बोखारी व मुस्लिम ने अ़ब्‍दुल्‍लाह बिन अ़म्र रज़ीअल्‍लाहु अंहुमा से वर्णित किया है:अबूबकर सिद्दीक़ रज़ीअल्‍लाहु अंहु कहते हैं कि उन्‍हों ने रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से पूछा:मुझे कोई ऐसी दुआ़ सिखा दीजिए जिसे मैं नमाज़ में पढ़ा करूं,आपने फरमाया: तुम यह दुआ़ पढ़ा करो:

« اللَّهُمَّ إنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كَثِيرًا، ولَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إلَّا أنْتَ، فَاغْفِرْ لي مَغْفِرَةً مِن عِندِكَ، وارْحَمْنِي، إنَّكَ أنْتَ الغَفُورُ الرَّحِيمُ »


हे अल्‍लाह मैं ने अपने आप पे बहुत न्‍याय किया है और पापों को क्षमा करने वाला केवल तू ही है,तू अपनी कृपा से मेरे पाप क्षमा करदे,और मुझ पर दया फरमा,तू غفور و رحیم क्षमा करने वाला और दयालु है मुस्लिम की एक रिवायत में यह शब्‍द आए हैं:मुझे कोई ऐसी दुआ़ सिखा दीजिए जिसे मैं नमाज़ में और अपने घर में पढ़ा करूं..


الله اکبر...

उम्‍मत की सिद्दीक़ और स्‍वर्ग की खुशखबरी पाने वाले व्‍यक्ति को रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने इस महान दुआ़ का निर्देश फरमाया,तो आइए हम इस दुआ़ में आए वाक्‍यों पर विचार करते हैं..


मुझे कोई ऐसी दुआ़ सिखा दीजिए जिसे मैं नमाज़ में पढ़ा करूं क्‍योंकि नमाज़ समस्‍त अ़मली प्रार्थनाओं में महानतम प्रार्थना है,और बंदा अपने रब से सबसे अधिक सज्‍दे की स्थिति में निकट होता है


तुम यह दुआ़ पढ़ा करो:

اللَّهُمَّ إنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كَثِيرًا"

:क्‍योंकि सिद्दीक़ अपने अपने उच्‍च स्‍थान पर होने के बावजूद पापों से मुक्‍त नहीं थे,मखलूक और खालिक के बीच कोई संबंध नहीं है,बल्कि बंदा केवल अपनी आवश्‍यकता और बंदगी को दर्शाता है और र्स्‍वश्रेष्‍ठ हस्‍ती अल्‍लाह अपनी दानशीलता व उदारता और कृपा व दया का प्रदर्शन करता है


इस स्‍वीकृति से अल्‍लाह के सामने अपनी मोहताजगी और विनम्रता को प्रकट करता है जो कि बंदगी का आत्‍मा है तथा इससे शक्तिशाली परवरदिगार के प्रति नफ्स का झुकाव भी प्रकट होता है जिस की नेमतों के बीच वह करवटें लेता है,यदि बंदा अपना पूरा जीवन आज्ञाकारिता में बसर करदे तब भी अपने इस सांस की नेमत का बदला नहीं चुका सकता जो वह सोते जागते हमेशा लेते रहता है और न ही उस हृदय की नेमत का बदला चुका सकता है जो उसके जन्‍म से पहले ही से धड़कता रहा है,कभी रुका नहीं अन्‍य अनमोल नेमतों आशीर्वादों का क्‍या कहना


अल्‍लाह पाक का अधिकार बहुत बड़ा है,बंदा अल्‍लाह को उसके आशीर्वादों का मामूली बदला भी नहीं पहुंचा सकता,उसके बावजूद हमारी आज्ञाकारिताएं बहुत कम और पाप बहुत अधिक हैं


कमी की यह स्‍वीकृति बंदा को लाभ पहुंचाता और र्स्‍वश्रेष्‍ठ परवरदिगार के सामने उसके कद को बढ़ाने का कारण होता है


इस महान दुआ़ में यह भी आया है:

ولَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إلَّا أنْت:

यह वह़दानियत एकेश्‍वरवाद की स्‍वीकृति और क्षमा की दुआ़ है,इस्‍लाम में बंदा और उसके रब के बीच जो संबंध है,वह माध्‍यम एवं मध्‍यस्‍थ का महताज नहीं,बल्कि वह बिना किसी माध्‍यम के पाक परवरदिगार से दुआ़ करने,उसके सामने विनम्रता अपनाने से होता है,अन्‍य धर्मों के विपरीत,जिन के अनुयाई अपने पापो की क्षमा के लिए मखलूकों के सामने झुकते और विनम्रता अपनाते हैं,समस्‍त प्रशंसाएं अल्‍लाह के लिए हैं जिस ने हमें इस्‍लाम की हिदायत प्रदान की


«ولَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إلَّا أنْتَ، فَاغْفِرْ لي مَغْفِرَةً مِن عِندِكَ »:

यह ऐसा वाक्‍य है जिस में तौह़ीद एकेश्‍वरवाद और इस्‍तिग़फार दोनों शामिल हैं,और धर्म की स्‍थापना भी इन दो स्‍तंभों पर ही है,अत: अल्‍लाह तआ़ला ने एकेश्‍वरवाद और इस्तिग़फार का अनेक स्‍थानों पर एक साथ उल्‍लेख किया है,अल्‍लाह पाक का फरमान है:

﴿فَاعْلَمْ أَنَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَاسْتَغْفِرْ لِذَنبِكَ وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ ﴾ [سورۃ محمد:19]

अर्थात:तो हे नबी आप विश्‍वास रखिये कि नहीं है कोई वंदनीय अल्‍लाह के सिवा तथा क्षमा मांगिये अपने पाप के लिये,तथा ईमान वाले पुरूषों और स्त्रियों के लिये


एक दूसरे स्‍थान पर फरमाया:

﴿ أَلاَّ تَعْبُدُواْ إِلاَّ اللّهَ إِنَّنِي لَكُم مِّنْهُ نَذِيرٌ وَبَشِيرٌ وَأَنِ اسْتَغْفِرُواْ رَبَّكُمْ ثُمَّ تُوبُواْ إِلَيْهِ ﴾ [سورۃ هود:2،3]

अर्थात:कि अल्‍लाह के सिवा किसी कि इबादत वंदना ने करें,वास्‍तव में,मैं उस की ओर से तुम को सचेत करने वाला तथा शुभसूचना देने वाला हूँ,और यह कि अपने पालनहार से क्षमा याचना करो फिर उसी की ओर ध्‍यान मग्‍न हो जाओ


आपके फरमान:

" فَاغْفِرْ لي مَغْفِرَةً مِن عِندِكَ"

में मग़फिरत को साधारण प्रयोग किया गया है जो इस बात को प्रमाणित करता है कि इसका आशय महानतम मग़फिरत है,जिस के द्वारा अल्‍लाह पाक,आलसी और अपने उूपर अन्‍याय करने वाले बंदे पर कृपा करता है


बंदा के अंदर जितना अल्‍लाह के प्रति विनम्रता और बंदगी होगी उतना ही वह अल्‍लाह से निकट होता जाएगा और उसका स्‍थान उच्‍च होते जाएंगे,इसका एक तरीका यह है कि वह अधिक से अधिक तौबा व इस्तिग़फार करे


فَاغْفِرْ لي مَغْفِرَةً مِن عِندِكَ، وارْحَمْنِي، إنَّكَ أنْتَ الغَفُورُ الرَّحِيمُ:

इसके अंदर अल्‍लाह तआ़ला के सुंदर नाम का वसीला माध्‍यम अपनाया गया है,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَلِلّهِ الأَسْمَاء الْحُسْنَى فَادْعُوهُ بِهَا ﴾ [الأعراف:180]

अर्थात:और अल्‍लाह ही के शुभ नाम है,अत: उसे उन्‍हीं के द्वारा पुकारो


पवित्र क़ुरान में सत्‍तर से अधिक स्‍थानों पर (الغفور) का उल्‍लेख (الرحیم) के साथ हुआ है शायद इसका कारण यह है कि अल्‍लाह तआ़ला अपने बंदों के लिए (غفور) क्षमाशील इस लिए है कि वह (الرحیم) उन पर कृपालु है


इब्‍ने ह़जर फरमाते हैं: यह व्‍यापक दुआ़ओं में से है,क्‍योंकि इसमें अति आलसा की स्‍वीकृति कि गई है और सबसे विशालपुरस्‍कार की दुआ़ की गई है,अत: मग़फिरत का अर्थ है पापों को छिपाना और उन्‍हें मिटाना,और रह़तक का अर्थ है खैर व भलाई से लाभान्वित करना


ईमानी भाइयो हम देखते हैं कि यह दुआ़ سید الاستغفار एक दुआ़ है से तीन मामलों में अनुकूल है:एकेश्‍वरवाद में,अल्‍लाह के समक्ष पाप की स्‍वीकृति में और मग़फिरत की दुआ़ में


اللَّهُمَّ إنِّا ظَلَمْنا أنفسنا ظُلْمًا كَثِيرًا، ولَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إلَّا أنْتَ، فَاغْفِرْ لنا مَغْفِرَةً مِن عِندِكَ، وارْحَمْنِا، إنَّكَ أنْتَ الغَفُورُ الرَّحِيمُ

द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

ईमानी भाइयो तौबा करना कोई कमी नहीं है,बल्कि वह श्रेष्‍ठतर विशेषताओं में से है,वह समस्‍त मखलूक पर अनिवार्य है,यही उद्देश्‍य एवं लक्ष्‍य है,इसी के द्वारा अल्‍लाह तआ़ला की संपूर्ण निकटता प्राप्‍त होती है,अल्‍लाह पाक का कथन है:

﴿ لَقَد تَّابَ الله عَلَى النَّبِيِّ وَالْمُهَاجِرِينَ وَالأَنصَارِ الَّذِينَ اتَّبَعُوهُ فِي سَاعَةِ الْعُسْرَةِ مِن بَعْدِ مَا كَادَ يَزِيغُ قُلُوبُ فَرِيقٍ مِّنْهُمْ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ إِنَّهُ بِهِمْ رَؤُوفٌ رَّحِيمٌ ﴾ [التوبة:117]

अर्थात:अल्‍लाह ने नबी तथा मुहाजिरीन और अन्‍सार पर दया की,जिन्‍हों ने तंगी के समय आप का साथ दिया,इस के पश्‍चात कि उन में से कुछ लोगों के दिल कुटिल होने लगे थे फिर उन पर दया की निश्‍चय वह उन के लिये अति करूणामय दयावान् है


तथा अल्‍लाह ने अधिक फरमाया:

﴿ لِيُعَذِّبَ اللَّهُ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْمُشْرِكِينَ وَالْمُشْرِكَاتِ وَيَتُوبَ اللَّهُ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَّحِيمًا ﴾ [الأحزاب: 73]

अर्थात:ताकि अल्‍लाह दण्‍ड दे मुनाफिक़ पुरूष तथा मुनाफिक़ स्त्रियों को,और मुश‍रिक पुरूष तथा स्त्रियों को,तथा क्षमा कर दे अल्‍लाह ईमान वालों तथा ईमान वालियों को और अल्‍लाह अति क्षमाशील दयावान् है


मग़फिरत के कारण ही नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्लम को क्‍़यामत के दिन सिफारिश का अधिकार प्राप्‍त होगा,बोखारी व मुस्लिम में शिफाअ़त अनुशंसा वाली ह़दीस के अंदर आया है कि: तुम सब मोह़म्‍मद के पास जाओ,वह अल्‍लाह के ऐसे बंदे हैं जिन की अगले व पिछले सारे पाप अल्‍लाह ने क्षमा कर दिए हैं


रह़मान के बंदो अल्‍लाह तआ़ला ने हमें ऐसी दुआ़ओं की सूचना दी है कि जिनके मांगने वालों को अल्‍लाह ने माफ कर दिया,उनके अंदर पापों की स्‍वीकृति की गई है,ये मनुष्‍यों के सरदारों की दुआ़एं हैं


हमारे पिता आदम अलैहिस्‍सलाम और हमारी माता ह़व्वा ने यह दुआ़ की:

﴿ قَالاَ رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنفُسَنَا وَإِن لَّمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ ﴾ [الأعراف: 23]

अर्थात:दोनों ने कहा:हे हमारे पालनहार हम ने अपने उूपर अत्‍याचार कर लिया और यदि तू नहीं क्षमा तथा हम पर दया नहीं करेगा तो हम अवश्‍य ही नाश हो जायेंगे


तथा यूनुस बिन मत्‍ता ने भी दुआ़ की:

﴿ فَنَادَى فِي الظُّلُمَاتِ أَن لَّا إِلَهَ إِلَّا أَنتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ الظَّالِمِينَ * فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْغَمِّ وَكَذَلِكَ نُنجِي الْمُؤْمِنِينَ ﴾ [الأنبياء: 87، 88]

अर्थात:अन्‍तत: उसने पुकारा अंधेरों में कि नहीं है कोई पूज्‍य तेरे सिवा,तू पवित्र है,वास्‍तव में मैं ही दोषी हूँ तब हम ने उस की पूकार सुन ली,तथा उसे मुक्‍त कर दिया शोक से,और इसी प्रकार हम बचा लिया करते हैं ईमान वालों को


यह सूचना मूसा अलैहिस्‍सलाम के विषय में है जब नबी बनने से पूर्व उन्‍हों ने गलती से किसी की हत्‍या करदी:

﴿ قَالَ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي فَغَفَرَ لَهُ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ ﴾ [القصص: 16]

अर्थात:उस ने कहा:हे मेरे पालनहार मैं ने अपने उूपर अत्‍याचार कर लिया,तू मुझे क्षमा कर दे,फिर अल्‍लाह ने उसे क्षमा कर दिया,वास्‍तव में वह क्षमाशील अति दयावान् है


आप यदि افضل الانبیاء अलैहिस्‍सलात व अलसलाम की दुआ़ओं पर विचार करेंगे तो पता चलेगा कि आप अधिक से अधिक इस्तिग़फार किया करते,सामान्‍य एवं विशेष क्षमा की अनेक भिन्‍न भिन्‍न दुआ़एं किया करते,जिनमें कहीं संक्षेप होता तो कहीं विस्‍तार इस्‍ह़ाक़ अलमौसूली फरमाते हैं: स्‍वीकृति-पापों को-मिटा देता है ,यह पवित्र क़ुरान की इस आयत का स्‍वरूप है:

﴿ وَآخَرُونَ اعْتَرَفُواْ بِذُنُوبِهِمْ خَلَطُواْ عَمَلًا صَالِحًا وَآخَرَ سَيِّئًا عَسَى اللّهُ أَن يَتُوبَ عَلَيْهِمْ إِنَّ اللّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ ﴾ [التوبة: 102]

अर्थात:और कुछ दूसरे भी हैं जिन्‍होंने अपने पापों को स्‍वीकार कर लिया है,उन्‍हों ने कुछ सुकर्म और कुछ दूसरे कुकर्म को मिश्रित कर लिया है,आशा है कि:अल्‍लाह उन्‍हें क्षमा कर देगा,वास्‍तव में अल्‍लाह अति क्षमी दयावान् है


अंतिम बात:आप अपनी नमाज़ों और दुआ़ओं में इस दुआ़ का विशेष प्रयोग करें जो नबी सलल्‍लाहु अ‍लैहि सवल्‍लम ने अबूबकर को सिखाया..

 

 

 





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