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إدمان الذنوب (خطبة) (باللغة الهندية)

إدمان الذنوب (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 14/11/2022 ميلادي - 20/4/1444 هجري

الزيارات: 6802

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शीर्षक:

पापों की आदत

 

अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात

मैं स्‍वयं को और आप को अल्‍लाह का तक्‍़वा (धर्मनिष्‍ठा) अपनाने की वसीयत करता हूँ,संभव है कि हम सफल हो जाएं:

﴿ يَوْمَ لَا يَنْفَعُ مَالٌ وَلَا بَنُونَ * إِلَّا مَنْ أَتَى اللَّهَ بِقَلْبٍ سَلِيمٍ ﴾ [الشعراء: 88، 89].

अर्थात: जिस दिन लाभ नहीं देगा कोई धन और न संतान।परन्‍तु जो अल्‍लाह के पास स्‍वच्‍छ दिल ले कर आयेगा।


इस्‍लामी भाइयो सह़ीह़ैन (बोख़ारी व मुस्लिम) में अबूबकर सिद्दीक़ रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है कि उन्‍होंने नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम से कहा: आप मुझे कोई ऐसी दुआ़ सिखा दें जो मैं नमाज़ में पढ़ा करूँ।आप ने फरमाया:यह पढ़ा करो:(اللهم إني ظلَمتُ نفسي ظُلمًا كثيرًا، ولا يغفرُ الذنوبَ إلا أنت، فاغفِرْ لي من عِندِك مغفرًة، إنك أنت الغفورُ الرحيمُ يمُ) हे अल्‍लाह मैं ने स्‍वयं पर बहुत अत्‍याचार किया।और पापों को तेरे सिवा कोई क्षमा करने वाला नहीं,इस लिए तू मुझे अपनी ओर से क्षमा कर दे और मुझ पर दया करदे।नि:संदेह तू ही बहुत क्षमा करने वाला अति दयालु है ।


जब सिद्दीक़ को यह दुआ़ करने का निर्देश किया जा रहा है तो हम जैसे काहिल और अनगिनत पापों में लत-पत लोग क्‍या कह सकते हैं


यह सत्‍य है कि समस्‍त मनुष्‍य पापी हैं किन्‍तु यह भी सत्‍य है कि: कदाचारों में सबसे अच्‍छे वे हैं जो तौबा करने वाले हैं तो प्रश्‍न यह है कि क्‍या हम ऐसे हैं अथवा हम पापों में लत-पत हैं और दिन रात पाप पर पार किये जा रहे हैं,किन्‍तु न पछतावाका भाव होता है और न हम तौबा करते हैं,अ़ब्‍दुल्‍लाह बिन मस्‍उ़ूद रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है कि रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया: छोटे पापों से बचो।क्‍योंकि वे मनुष्‍य के नामा-ए-आमाल (कर्मों की पुस्‍तक) में इकट्ठा होते रहते हैं यहाँ तक कि उसे नष्‍ट कर देते हैं आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने उन पापों का उदाहरण उन लोगों से दिया जो एक घाटी में पड़ाव डालते हैं,उन के काम (खाना बनाने) का समय आता हौ तो एक व्‍यक्ति एक लकड़ी लाता है और दूसरा एक लाता है।एक एक करके इतनी लकडि़यां इकट्ठा हो जाती हैं कि वे आग जला कर रोटी पका लेते हैं।(इसी प्रकार से यदि छोटे पापों के आधार पर पकड़ हुई तो वह भी नष्‍ट कर सकते हैं)।इस ह़दीस को अल्‍बानी ने सह़ी कहा है।

 

अनस बिन मालिक रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णन है,वह फरमाते हैं: तुम ऐसे ऐसे कार्य करते हो जो तुम्‍हारी नज़र में बाल से भी अधिक बारीक हैं जबकि हम लोग नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के पवित्र युग में उन्‍हें हलाक कर देने वाले पाप मानते थे ।


ईमानी भाइयो पाप की आदत पड़ जाती है तो उस के परिणाम में विभिन्‍न बुरे प्रभाव पड़ते हैं,इसके हानियों में से यह भी है कि‍:पापी का दिल सियाह और कठोर हो जाता है,सह़ीह़ मुस्लिम में आया है: फितने दिलों पर डाले जाएंगे,चट्टान (की बनती) के जैसा तिनका तिनका (एक एक) करके,और जो दिल उन से भर दिया गया (उस ने उन को स्‍वीकार कर लिया और अपने अंदर बसा लिया),उस में एक काला बिंदु पड़ जाएगा,और जिस दिल ने उन को ठोकरा दिया,उस में सफेद बिंदु पड़ जाएगा यहाँ तक कि दिल दो प्रकार के हो जाएंगे: (एक दिल) सफेद,चिकने पत्‍थर के जैसा हो जाएगा।जब तक आकाश एवं धरती रहेंगे,कोई फितना उस को हानि नहीं पहुँचाएगा।दूसरा: काला मटयाले रंग का ओंधे लोटे के जैसा (जिस पर पानी की बोंद भी नहीं टिकती) जो न किसी पुण्‍य को पहचानेगा और न किसी पाप को इंकार करेगा,सिवाए इस बात के जिस की ईच्‍छा से वह (दिल) भरा होगा ।


पापों की लत पड़ने से जो नकारात्‍मक प्रभाव सामने आते हैं उन में यह भी है: पाप से मनुष्‍य इतना परिचित हो जाता है कि वह उसकी आदत बन जाती है,इब्‍नुल क़य्यिम फरमाते हैं: यहाँ तक कि अनेक पापीलोग बिना किसी स्‍वाद और कारण के भी पाप के कार्य कर बैठते हैं,केवल इस लिए कि पाप से दूरी उन के लिए कष्‍ट का कारण होती है ।


पापों की आदत का एक हानी यह है कि:बंदा अपने रब के अवज्ञा को मामूली और तुच्‍छ समझने लगता है जो कि एक ख़तरनाक चीज़ है,इब्‍ने मस्‍उ़ूद रज़ीअल्‍लाहु अंहु फरमाते हैं: मोमिन अपने पापों को इस प्रकार से महसूस करता है मानो वह किसी पहाड़ के नीचे बैठा है और वह डरता है कि कहीं वह उस पर गिर जाए और पापी अपने पापों को उस मक्खी के जैसा मानता है जो उस की नाक के पास से गुजरी और उस ने अपने हाथ से यूँ उस की ओर इशारा किया।अबू शिहाब ने अपनी नाक पर अपने हाथ से यूँ उस की ओर इशारा किया।


इब्‍नुल क़य्यिम फरमाते हैं:उन पापों की यातना यह मिलती है कि: वह दिल को उस के स्‍वास्‍थ एवं स्थिरता से रोग एवं गुमराही की ओर फेर देते हैं,अत: वह रोग से ग्रस्‍त हो जाता है और जिन आहारोंसे उसे जीवन मिलता और उसकी शक्ति बनी रहती है,उन से उस के दिल को कोई लाभ नहीं पहुँचता,क्‍योंकि दिलों पर पापों का वही प्रभाव होता है जो प्रभाव रोग शरीर पर दिखाते हैं ।


प्रचुर्ता के सा‍थ पाप करने का एक प्रभाव यह भी होता है कि: जब प्रचुर्ता से पाप होने लगे तो पापी के दिल पर मोहर लगा दिया जाता है अत: वह लापरवाहों में से हो जाता है,एक ह़दीस में आया है जिसे अह़मद,तिरमिज़ी ने वर्णन किया है और अल्‍बानी ने उसे ह़सन कहा है: जब मोमिन कोई पाप करता है तो उस के दिल पर एक काला बिन्‍दु लग जाता है,।यदि वह तौबा करले,रुक जाए और (अल्‍लाह से) क्षमा मांगे तो उस का दिल साफ हो जाता है।यदि अधिक पाप करे तो कालिक का बिन्‍दु अधिक हो जाता है।(यहाँ तक‍ कि होते होते दिल बिल्‍कुल काला हो जाता है) यही वह लोहमल है जिस का उल्‍लेख अल्‍लाह तआ़ला ने अपनी पुस्‍तक में (इस फरमान में) किया है:

﴿ كَلَّا بَلْ رَانَ عَلَىٰ قُلُوبِهِم مَّا كَانُواْ يَكْسِبُونَ ﴾ [المطففين: 14]

अर्थात: सुनो उन के दिलों पर कुकर्मों के कारण लोहमल लग गया है।


यूँ नहीं बल्कि उन के दिलों पर उन के अ़मलों के कारण ज़ंग चढ़ गया है ।


ह़सन फरमाते हैं: पाप पर पाप करता जाता है यहाँ तक कि दिल अंधा हो जाता है ।समाप्‍त


केवल इतना ही प्रयाप्‍त है कि पापों की आदत अल्‍लाह की अप्रसन्‍नता और दुनिया में,क़बर के अंदर और प्रलय के दिन अल्‍लाह की यातना का कारण है,जो व्‍यक्ति इस विषय में अधिक जानकारी प्राप्‍त करना चाहे वह इब्‍नुल क़य्यिम रहि़महुल्‍लाह की पुस्‍तक الداء والدواء का अध्‍ययनकरे।

رأيت الذنوب تميت القلوب = وقد يورثُ الذلَ إدمانُها

وترك الذنوبِ حياةُ القلوب = وخيرٌ لنفسك عصيانها


अर्थात: मैं ने देखा कि पाप दिलों को मुर्दा कर देता है और इसकी आदत मनुष्‍य को अपमानित करती है।


पापों को छोड़ने से दिलों को जीवन मिलता है और तुम्‍हारी आत्‍मा के लिए अच्‍छा यह है कि तुम उसका उल्‍लंघन करो।


इस्‍लामी भाइयो किसी को शराब की आदत होती है तो किसी को सिगरेट की,कोई चुगली में लगा रहता है तो कोई झूट में,कोई ईर्ष्‍यामें लत-पत है तो कोई दाढ़ीमुरने की जि़द में है,कोई नमाज़ छोड़ कर सोने को अपनी आदत बना चुका है तो कोई दुष्‍ट दृश्‍य में लत-पत है,कोई ह़राम गाने सुनने का इच्‍छुकहै तो कोई किसी और पाप का...अल्‍लाह के बंदो पापों के प्रति हम एक दूसरे से विभिन्‍न हैं,कोई अधिक पाप कर रहा है तो कोई कम।कोई जल्‍दीलज्जितहो कर तौबा कर लेता है तो कोई देर से।जब कि कुछ लोग अपने पापों पर डटे रहते हैं और लज्‍जाऔर तौबा नहीं करते।पापों की आदत हम से यह तक़ाज़ा करती है कि हम अपने परिस्थियों का अवलोकनलें और अपनी आत्‍मा का समीक्षाकरें,क्‍या आप नहीं देखते कि अल्‍लाह तआ़ला हम से बेन्‍याज़ होने के बावजूद किस प्रकार से अपना प्रेम दिखलाते हुए हमारे उूपर अपने उपकार प्रदान करता है,और हम उस के मोहताज होने के बावजूद पापों के द्वारा उससे नफरत का प्रदर्शन करते हैं हमारे उूपर उसके ख़ैरात अवतरित होते हैं और उस की ओर हमारे पाप चढ़ते हैं न उस का कृपा दया और उपकार हमें उसकी अवज्ञा से रोकता है और न हमारे पाप और हमारी दुष्‍टताउस के दया एवं कृपा को हम से रोकती है।


ربنا ظلمنا أنفسنا وإن لم تغفر لنا وترحمنا لنكونن من الخاسرين، ربنا إننا آمنا فاغفر لنا ذنوبنا وقنا عذاب النار، رب اغفر وارحم وأنت خير الراحمين.


द्वतीय उपदेश

الحمد لله القائل ﴿ أَمْ حَسِبَ الَّذِينَ اجْتَرَحُوا السَّيِّئَاتِ أَنْ نَجْعَلَهُمْ كَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَوَاءً مَحْيَاهُمْ وَمَمَاتُهُمْ سَاءَ مَا يَحْكُمُونَ ﴾ [الجاثية: 21] وصلى الله وسلم على رسوله الذي كان يستغفر الله ويتوب إليه في اليوم أكثر من مائة مرة وعلى آله وصحبه.

प्रशंसाओं के पश्‍चात: मैं आप को और स्‍वयं को तौबा की नवीकरण करने और अपनी आत्‍माओं से युद्ध करने की वसीयत करता हूँ,ताकि हमारा भविष्‍य हमारे अतीत से अच्‍छा हो,इस में कोई संदेह नहीं कि जिस पाप का मनुष्‍य आदी हो जात है,उसे छोड़ना कठिन होता है,किन्‍तु हमें याद रखना चाहिए कि स्‍वर्ग अप्रिय चीज़ों से घिरी हुई है और नरक अभिलाषाओं से घिरा हुआ है,मैं पाप की आदत से बचने के कुछ नुस्‍खे का उल्‍लेख कर रहा हूँ,इन के द्वारा अपने काहिल आत्‍मा को और अपने भाइयों के परामर्श करना चाहता हूँ।


1- हमें अल्‍लाह के समक्ष सरेंडर कर देना चाहिए,उससे हिदायत एवं सत्‍य तौबा की तौफीक़ मांगनी चाहिए,क्‍योंकि पाप गुमराही है,हमें स्‍वीकृति के समयों में दुआ़ करनी चाहिए,अल्‍लाह तआ़ला ह़दीस-ए-क़ुदसी में फरमाता है: ए मेरे बंदो तुम सब के सब गुमराह हो सिवाए उस के जिसे मैं हिदायत देदूँ,तुम मुझ से हिदायत मांगो मैं तुझे हिदायत दूँगा (‍मुस्लिम)।


2- ऐसे अ़मलों के इच्‍छुकरहें जिन से आप के ईमान का गिजा मिले और आप को आखि़रत की याद आए,क्‍योंकि जब ईमान मज़बूत होगा तो आप पाप से घृणा करेंगे और उस का तत्‍व दिल में कमज़ोर हो जाएगा:

﴿ إِنَّهُ لَيْسَ لَهُ سُلْطَانٌ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ ﴾ [النحل: 99].

अर्थात: वस्तुतः उस का वश उन पर नहीं है जो ईमान लाये हैं, और अपने पालनहार ही पर भरोसा करते है।.


विनम्रता एवं विनयशीलता वाले सस्‍वर पाठ सुनें,कब्रस्‍तान का दर्शन करें,उपदेश व परामर्श सुनें और नफल नमाज़ पढ़ा करें।


3- अपनी आत्‍मा से युद्ध करें:

﴿ الَّذِي خَلَقَ الْمَوْتَ وَالْحَيَاةَ لِيَبْلُوَكُمْ أَيُّكُمْ أَحْسَنُ عَمَلًا ﴾ [الملك: 2]

अर्थात: जिस ने उत्‍पन्‍न किया है मृत्‍यु तथा जीवन को,‍ताकि तुम्‍हारी परीक्षा ले कि तुम में किस का कर्म अधिक अच्‍छा है।


अल्‍लाह तआ़ला ने यह वचन दिया है:

﴿ وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا ﴾ [العنكبوت: 69]

अर्थात: तथा जिन्‍होंने हमारी राह में प्रयास किया तो हम अवश्‍य दिखा देंगे उन को अपनी राह।

अल्‍लाह तआ़ला का वचन सत्‍य है,आत्‍मा से युद्ध करने का तक़ाज़ा यह भी है कि इस उन स्‍थानों एवं कारणों से दूर रखा जाए जो पाप में पड़ने के कारण होते हैं चाहे वह कोई साथी हो अथवा स्‍थान हो अथवा कोई और चीज़।बंदा को अपने दिल की सुधार का इच्‍छुकहोना चाहिए,ह़दीस में आया है: सुन लो शरीर में एक टुकड़ा (मांस का) है,जब वह सह़ी रहता है तो सारा शरीर सह़ी रहता है और जब वह बिगड़ जाता है तो सारा शरीर बिगड़ जाता है।सावधान रहो वह टुकड़ा दिल है ।(बोख़ारी व मुस्लिम)


4- जब हम मानवीय कमज़ोरी के कारण पाप करलें तो हमें नादिम होना चाहिए और तौबा व इस्तिग़फार रकना चाहिए और पूरा प्रयास करना चाहिए कि कोई सदाचार अथवा अनेक सदाचार करें,अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ طَرَفَيِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِنَ اللَّيْلِ إِنَّ الْحَسَنَاتِ يُذْهِبْنَ السَّيِّئَاتِ ذَلِكَ ذِكْرَى لِلذَّاكِرِينَ ﴾ [هود: 114].

अर्थात: तथा आप नमाज़ की स्थापना करें, दिन के सीरों पर और कुछ रात बीतने परवास्तव में सदाचार दुराचारों को दूर कर देते हैं| यह एक शिक्षा है, शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिये।


ईमानी भाइयो यहाँ एक चेतावनीअनिवार्य है कि: कुछ लोग जब तौबा करते हैं तो फिर उस पाप की ओर लौट आते हैं,बार बार तौबा करते हैं,फिर उस पाप में पड़ जाते हैं,उस के पश्‍चात निराश हो कर तौबा करना छोड़ देते हैं और हथ्‍यार डाल देते हैं।यह गलत है,क्‍योंकि जब तक आप अपने पापों पर शरमिन्‍दाहोते रहें और बचते रहें और दोबारा न करने का दृढ़ संकल्‍पकरते रहें,लोगों के अधिकार की पूर्ति करते रहें,तो आप की तौबा सह़ी है,कोई भी आप के और आप के रब के बीच नहीं आ सकता,यद्यपि हज़ारों बार आप से पाप क्‍यों न हो जाए,शर्त यह है कि आप सत्‍य दिल से तौबा करते रहें:

﴿ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ ﴾ [البقرة: 222]

अर्थात: निश्‍चय अल्‍लाह तौबा करने वालों से प्रेम करता है।


सह़ी मुस्लिम की ह़दीस है: एक बंदे ने पाप किया,उस ने कहा:हे अल्‍लाह मेरे पाप को क्षमा कर दे,तो (अल्‍लाह) तआ़ला ने फरमाया:मेरे बंदे ने पाप किया है,उसको पता है कि उसका रब है जो पाप को क्षमा भी करता है और पाप पर पकड़ भी करता है,उस बंदे ने फिर पाप किया तो कहा: मेरे रब मेरा पाप को क्षमा करदे, तो (अल्‍लाह) तआ़ला ने फरमाया:मेरा बंदा है,उस ने पाप किया है तो उसे मालूम है कि उस का रब है जो पाप को क्षमा कर देता है और (चाहे तो) पाप पर पकड़ता भी है।उस बंदे ने फिर से वही पाप किया,और कहा:मेरे रब मेरे पाप को क्षमा कर दे,तो (अल्‍लाह) तआ़ला ने फरमाया:मेरे बंदे ने पाप किया तो उसे मालूम है कि उस का रब है जो पाप को क्षमा करता है और (चाहे तो) पाप पर पकड़ लेता है,(मेरे बंदे अब तू) जो चाहे कर,मैं ने तुझे क्षमा कर दिया है ।


अ़ब्‍दुल आ़ला ने कहा:मुझे (पूरी तरह) मालूम नहीं कि आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने तीसरी बार फरमाया अथवा चौथी बार: जो चाहे कर ।


कुछ लोग यह गलती करते हैं कि जब उन से बार बार पाप हो जाता है तो अपने रब से वचन लेते हैं कि वह कदापि अब इय पाप को नहीं दोहराएगा अथवा क़सम उठा लेते हैं कि ऐसा कदापि नहीं करेंगे,हमें इस्‍लाम ने इस का आदेश नहीं दिया,बल्कि बिना वचन और क़सम के तौबा करने का आदेश दिया है,कुछ लोग जब क़सम खा लेते और अपने रब से वचन लेलेते हैं तो आत्‍मा की कमज़ोरी के कारण पाप कर बैठते हैं,जिस के परिणाम में उनकी आत्‍मा तंगी महसूस करने लगती है,जबकि इस्‍लाम पर अ़मल करना हमारे लिए प्रयाप्‍त है और अल्‍लाह तआ़ला अति क्षमाशील है अति दयालु है।एक दूसरी बात यह कि कुछ लोग एकांत में पाप कर बैठते हैं और उस पाप को लोगों के सामने बयान करने लगते हैं ताकि वह दिखावा करने वाला न हो जाए,यह गलत है,बल्कि ऐसा करने वाला अवज्ञा के पाप के साथ अवज्ञा के प्रदर्शन के पाप भी कर बैठता है,सह़ीह़ ह़दीस में आया है: मेरी उम्‍मत के सारे लोग आफियत में हैं सिवाए उस के जो सरेआम पाप करते हैं ।यदि पापी तौबा न कर सके तो कम से कम इस्तिग़फार और प्रचुर्ता से सदाचार अवश्‍य करे ताकि अपने पापों का सामना कर सके,संभव है कि अल्‍लाह तआ़ला उस क्षमा प्रदान करदे ओर उस पर दया कर दे।


अंतिम बात यह कि आप इस ह़दीस को ध्‍यान पूर्वक सुनिये जिसे बोख़ारी व मुस्लिम ने वर्णन किया है,नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम फरमाते हैं: तुम में से हर व्‍यक्ति के साथ उसका रब इस प्रकार से बात करेगा कि उस (बंदे) और उस (रब) के बीच कोई दुभाषियानहीं होगा,वह व्‍यक्ति अपनी दाएं ओर देखेगा तो उसे अपने अ़मलों के सिवा कुछ नहीं दिखाई देगा और अपनी बाएं ओर देखेगा तो भी उसे अपने अ़मलों सिवा कुछ नहीं दिखाई देगा,फिर जब अपने सामने देखेगा तो अपने सामन नरक के सिवा कोई चीज़ न देखेगा इस लिए तुम नरक से बचने की चिंता करो,चाहे खजूर का एक टुकड़ा ही दान करने से क्‍यों न हो ।

 





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