• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
 
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / عقيدة وتوحيد / التوحيد / في أسماء الله
علامة باركود

عظمة الله جل وعلا (خطبة) (باللغة الهندية)

عظمة الله جل وعلا (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 2/11/2022 ميلادي - 8/4/1444 هجري

الزيارات: 6452

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

عظمة الله جل وعلا

अल्‍लाह तआ़ला की महानता

 

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात


अल्‍लाह के बंदो सह़ीह़ैन (बोख़ारी व मुस्लिम) में इब्‍ने मस्‍उ़ूद रज़ीअल्‍लाहु अंहु की ह़दीस है,वह फरमाते हैं: यहूद के विद्धानों में से एक विद्धान अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की सेवा में उस्थित हुआ और कहने लगा: ए मोह़म्‍मद हम (तौरात में) पाते हैं कि अल्‍लाह तआ़ला आकाशों को एक उंगली पर रखलेगा,इसी प्रकार से समस्‍त धरती को एक उंगली पर,पेड़ों को एक उंगली पर,नदियों एवं समुद्रों को एक उंगली पर,गीली मिट्टी को एक उंगली पर और अन्‍य समस्‍त जीवों एवं प्रणीयों को एक उंगली पर,फिर फरमाएगा:मैं ही शासक हूँ।आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम यह सुन कर हंस दिये यहाँ तक कि आप के सामने के दांत दिखाई देने लगे।आप का यह हंसना उस यहूदी विद्धान की पुष्टि के लिए था।फिर आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने यह आयत पढ़ी:

﴿ وَمَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ وَالْأَرْضُ جَمِيعًا قَبْضَتُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَالسَّمَوَاتُ مَطْوِيَّاتٌ بِيَمِينِهِ سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ ﴾ [الزمر: 67].

अर्थात:तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान नहीं किया जैसे उस का सम्मान करना चाहिये था। और धरती पूरी उस की एक मुट्ठी में होगी प्रलय के दिन | तथा आकाश लपेटे हुये होंगे उस के हाथ में,वह पवित्र तथा उच्‍च है उस शिर्क से जो वे कर रहे हैं।


इस युग में जब कि भौतिकवादका प्रचलन है,लापरवाह करने वाली गतिविधियों की भरमार है,टेकनालोजी ने मानवीय बुद्धि को आश्‍चर्यचकित कर दिया है,हमारे लिए उचित है कि‍ हम अपने आप को सम्‍मानित एवं अदरणीय रचनाकार की अद्वितीयकारीगरी और उस सर्वश्रेष्‍ठ हस्‍ती की महानता एवं महिमा की याद दिलाएं।


अल्‍लाह तआ़ला का आदर व सम्‍मान दिस से की जाने वाली महानतम प्रार्थनाओं में से है,मुसलमान के जीवन पर इसके बहुमूल्‍य प्रभाव पड़ते हैं,अल्‍लाह के आदर व सम्‍मान से अल्‍लाह पर विश्‍वास पैदा होता है,अल्‍लाह के सम्‍मान से दिल में शांति पैदा होती है,चाहे कठिनाइयों के बादल ही सर पर क्‍यों न मंडला रहा हो।अल्‍लाह के सम्‍मान से अल्‍लाह के साथ होने का भाव पैदा होता है,अल्‍लाह के आदर व सम्‍मान से स्थिरता एवं चिंताव स्‍वा‍र्थपरतापैदा होती है, अल्‍लाह का सम्‍मान मनुष्‍य को इस बात पर तैयार करता है कि समस्‍त कार्य केवल अल्‍लाह के लिए करे, अल्‍लाह के सम्‍मान से सत्‍य बोलने और सत्‍य पर जमे रहने का भाव पैदा होता है, अल्‍लाह का सम्‍मान आज्ञाकारिता के कार्यों पर प्रोत्‍साहित करता और निषेधों से दूर रहने की अनुदेशकरता है, अल्‍लाह के सम्‍मान के द्वारा दिल प्रसन्‍नता एवं धैर्य से भर जाता है,ये और इन जैसे अनेक बहुमूल्‍य लाभ हैं जो अल्‍लाह के सम्‍मान से प्राप्‍त होते हैं।अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ مَا لَكُمْ لَا تَرْجُونَ لِلَّهِ وَقَارًا ﴾ [نوح: 13]

अर्थात:क्‍या हो गया है तुम्‍हें कि नहीं डरते हो अल्‍लाह की महिमा से


इसकी व्‍याख्‍या में इब्‍ने अ़ब्‍बास फरमाते हैं: तुम अल्‍लाह के आदर व सम्‍मान का इरादा नहीं रखते ।सई़द बिन जोबैर ने कहा: तुम्‍हे क्‍या हो गया है कि तुम अल्‍लाह का उनके अधिकार के अनुसार आदर व सम्‍मान नहीं करते ।


हमारा सम्‍मानित व आरदणीय पालनहार अपनी हस्‍ती में महान है,जैसा कि‍ अल्‍लाह ने अपने विषय में फरमाया:

﴿ لَهُ مَا فِي السَّمَوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ * تَكَادُ السَّمَوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِنْ فَوْقِهِنَّ ﴾ [الشورى: 4 - 5]

अर्थात:उसी का है जो आकाशों तथा धरती में है और वह बड़ा उच्‍च-महान है।समीप है कि फट पड़े अपने उूपर से।


व्‍याख्‍याताओं काफरमान है: अल्‍लाह तआ़ला के आदर व सम्‍मान से (लरज़ कर) फट पड़ें ।


सह़ीह़ अबूदाउूद में जाबिर बिन अ़ब्‍दुल्‍लाह रज़ीअल्‍लाहु अंहुमा से वर्णित है कि‍ अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया: मुझे कहा गया है मैं तुम्‍हें अ़र्श को उठाए हुए फरिश्‍तों में से एक फरिश्‍ते के विषय में बताउूं।नि:संदेह उसके कानों की लौ से उस के कंधे तक की दूरी सात सौ वर्ष की यात्रा के बराबर है ।इब्‍ने अबी ह़ातिम ने यह ह़दीस वर्णन किया है और फरमाया: पक्षी की उड़ान (से यह दूरी सात सौ वर्ष के बराबर है)।इस ह़दीस की सनर सह़ीह़ है।


अ़र्श को उठाए हुए एक फरिश्‍ते की यह विशेषता है:

﴿ وَيَحْمِلُ عَرْشَ رَبِّكَ فَوْقَهُمْ يَوْمَئِذٍ ثَمَانِيَةٌ ﴾ [الحاقة: 17]

अर्थात:तथा उठाए होंगे आप के पालनहार के अ़र्श (सिंहासन) को अपने उूपर उस दिन आठ फरिश्‍ते।


यह उन सूचनाओं की केवल एक झलक है जो अल्‍लाह ने अपने विषय में और अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने (अल्‍लाह के विषय में) हमें दी हैं।


﴿ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ ﴾ [البقرة: 255]

अर्थात:वह उस के ज्ञान में से वही जान सकते हैं जिसे वह चाहे।


इब्‍ने कसीर रहि़महुल्‍लाह फरमाते हैं: कोई भी व्‍यक्‍ति अल्‍लाह के ज्ञान से अवगत नहीं हो सकता सिवाए जो ज्ञान से अल्‍लाह तआ़ला उसे प्रदान करदे,इससे यह अर्थ भी लिया जा सक‍ता है:अल्‍लाह की हस्‍ती व गुण के विषय में उन्‍हें उतना ही पता हो सकता है जितना अल्‍लाह तआ़ला उन्‍हें बता दे,जैसा कि अल्‍लाह तआ़ला का फरमान है:

﴿ وَلَا يُحِيطُونَ بِهِ عِلْمًا ﴾ [طه: 110]

अर्थात:और वे उस का पूरा ज्ञान नहीं रखते।


जब मूसा कलीमुल्‍लाह ने अपने रब से यह महान मांग किया तो उन के साथ क्‍या हुआ


﴿ وَلَمَّا جَاءَ مُوسَى لِمِيقَاتِنَا وَكَلَّمَهُ رَبُّهُ قَالَ رَبِّ أَرِنِي أَنْظُرْ إِلَيْكَ قَالَ لَنْ تَرَانِي وَلَكِنِ انْظُرْ إِلَى الْجَبَلِ فَإِنِ اسْتَقَرَّ مَكَانَهُ فَسَوْفَ تَرَانِي فَلَمَّا تَجَلَّى رَبُّهُ لِلْجَبَلِ جَعَلَهُ دَكًّا وَخَرَّ مُوسَى صَعِقًا فَلَمَّا أَفَاقَ قَالَ سُبْحَانَكَ تُبْتُ إِلَيْكَ وَأَنَا أَوَّلُ الْمُؤْمِنِينَ ﴾ [الأعراف: 143].

अर्थात: और जब मूसा हमारे निर्धारित समय पर आ गया, और उस के पालनहार ने उस से बात की, तो उस ने कहाः हे मेरे पालनहार! मेरे लिये अपने आप को दिखा दे ताकि मैं तेरा दर्शन कर लूँ। अल्लाह ने कहाः तू मेरा दर्शन नहीं कर सकेगा। परन्तु इस पर्वत की ओर देख| यदि वह अपने स्थान पर स्थिर रह गया तो तू मेरा दर्शन कर सकेगा। फिर जब उस का पालनहार पर्वत की ओर प्रकाशित हुआ तो उसे चूर-चूर कर दिया| और मूसा निश्चेत हो कर गिर गया। और जब चेतना में आया, तो उस ने कहाः तू पवित्र है! मैं तुझ से क्षमा माँगता हूँ। तथा मैं सर्व प्रथम ईमान लाने वालों में से हूँ।


सह़ी सुनन इब्‍ने माजा की मरफू रिवायत है: उसका पर्दा प्रकाशहै यदि वह इस (पर्दे) को खोल दे,तो उसके चेहरे के प्रकाशजहाँ तक उस के नज़र पहुँचे उस के जीव को जला डालें ।


शुद्धता के साथ प्रशंसा है उस हस्‍ती की:

﴿ إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَنْ يَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ ﴾ [يس: 82]

अर्थात:उस का आदेश जब वह किसी चीज़ को अस्तित्‍व प्रदान करना चाहे तो बस यह कह देना है:हो जा,तत्‍क्षण वह हो जाती है।


पवित्र है वह हस्‍ती:

﴿ لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ ﴾ [الشورى: 11].

अर्थात:उस की कोई प्रतिमा नहीं और वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।


अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप सब को महान क़ुर्आन की बरकतों से लाभान्वित फरमाए और हमें इस की आयतों और नीतियों पर आधारित परामर्श से लाभ पहुँचाए।


मैं अपनी यह बात कहते हुए अल्‍लाह से क्षमा की दुआ़ करता हूँ,आप भी उससे क्षमा मांगें,नि:संदेह वह बड़ा क्षमाशील है।


द्वतीय उपदेश:

﴿ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَلَهُ الْحَمْدُ فِي الْآخِرَةِ وَهُوَ الْحَكِيمُ الْخَبِيرُ ﴾ [سبأ: 1].

وصلَّى الله وسلَّمَ على البشير النذير، والسِّراج المنير.


प्रशंसाओं के पश्‍चात:

अल्‍लाह के बंदो हमें चाहिए कि हम उन अ़मलो की खोज करें जो हमारे दिलों में अल्‍लाह के आदर व सम्‍मान की गिजा फराहम करे,इस प्रकार के कुछ अ़मल निम्‍नलिखित हैं:

1- अल्‍लाह के शुभ नामों और उच्‍च गुणों एवं विशेषताओं का ज्ञान और उनके अर्थ से अवगत होना,उदाहरण स्‍वरूप विद्या के गुण को दुख लिजिए और इस विषय में जो नुसूस (विवरण) आये हैं,उन पर विचार किजिए:

﴿ وَأَحَاطَ بِمَا لَدَيْهِمْ وَأَحْصَى كُلَّ شَيْءٍ عَدَدًا ﴾ [الجن: 28].

अर्थात:और उस ने घेर रखा है जो कुछ उन के पास है और प्रत्‍येक वस्‍तु को गिन रखा है।


अपने आस पास जो पेड़ पौधे,मरुस्‍थल और पत्‍थर हैं,उन पर विचार करें,अल्‍लाह तआ़ला के ज्ञान की विस्‍तृता को मह़सूस करें और अल्‍लाह के इस कथन पर विचार करें:

﴿ وَعِنْدَهُ مَفَاتِحُ الْغَيْبِ لَا يَعْلَمُهَا إِلَّا هُوَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَا تَسْقُطُ مِنْ وَرَقَةٍ إِلَّا يَعْلَمُهَا وَلَا حَبَّةٍ فِي ظُلُمَاتِ الْأَرْضِ وَلَا رَطْبٍ وَلَا يَابِسٍ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُبِينٍ ﴾ [الأنعام: 59].

अर्थात:और उसी (आवाह) के पास गैव (परोक्ष) की कुंजियाँ है। उन्हें केवल वही जानता है। तथा जो कुछ थल और जल में है, वह सब का ज्ञान रखता है। और कोई पत्ता नहीं गिरता परन्तु उसे वह जानता है। और न कोई अन्न जो धरती के अंधेरों में हो, और न कोई आर्द्र (भीगा) और शुष्क (सूखा) है परन्तु वह एक खुली पुस्तक में है।


तथा अल्‍लाह के इस कथन पर भी विचार करें:

﴿ وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنْثَى وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ وَمَا يُعَمَّرُ مِنْ مُعَمَّرٍ وَلَا يُنْقَصُ مِنْ عُمُرِهِ إِلَّا فِي كِتَابٍ إِنَّ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ ﴾ [فاطر: 11].

अर्थात: और नहीं गर्भ धारण करती कोई नारी और न जन्म देती परन्तु उस के ज्ञान से। और नहीं आयु दिया जाता कोई अधिक और न कम की जाती है उस की आयु परन्तु वह एक लेख में है। वास्तव में यह अल्लाह पर अति सरल है।


2- जिन अ़मलों से दिल में अल्‍लाह के सम्‍मान व आदर को आहार मुहैया होती है,उन में यह भी है:अल्‍लाह के जीवों पर विचार किया जाए,इस संसार में चिंतन मंथन करें,और इस में जो आश्‍चर्यजनक पूर्णता और कारिगरी है,उस पर भी विचार करें।

 

تَأَمَّلْ فِي نَبَاتِ الْأَرْضِ وَانْظُرْ
إِلَى آثَارِ مَا صَنَعَ الْمَلِيكُ
عُيونٌ مِنْ لُجَيْنٍ سَابِغَاتٌ
عَلَى وَرقٍ هُوَ الذَّهَبُ السَّبِيكُ
عَلَى كُثُبِ الزَّبَرْجَدِ شَاهِدَاتٌ
بِأَنَّ اللَّهَ لَيْسَ لَهُ شَرِيكُ


अर्था‍त: धरती में उगने वाले पौधों पर विचार करो और राजा की कारिगरी के प्रभावों में विचार करो।


चांदी (जैसी सफेद) आँखें अपनी अपनी काली पुतलियों के साथ ऐसे टकटकी लगा कर देखती हैं जैसे वे बहुमूल्‍य पत्‍थर के तराशे पर सोने की डाली हों।


ये सब इस बात पर साक्ष हैं कि अल्‍लाह का कोई साझी नहीं।


हमारा पालनहार बुद्धिमानों के विषय में फरमाता है:

﴿ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلْقِ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضِ رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هَذَا بَاطِلًا سُبْحَانَكَ ﴾ [آل عمران: 191].

अर्थात: तथा आकाशों और धरती की रचना में विचार करते रहते हैं। (कहते हैं:) हे हमारे पालनहार! तू ने इसे व्यर्थ नहीं रचा है।


अल्‍लाह तआ़ला ने फरमाया:

﴿ وَهُوَ الَّذِي مَدَّ الْأَرْضَ وَجَعَلَ فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنْهَارًا وَمِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ جَعَلَ فِيهَا زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ يُغْشِي اللَّيْلَ النَّهَارَ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ * وَفِي الْأَرْضِ قِطَعٌ مُتَجَاوِرَاتٌ وَجَنَّاتٌ مِنْ أَعْنَابٍ وَزَرْعٌ وَنَخِيلٌ صِنْوَانٌ وَغَيْرُ صِنْوَانٍ يُسْقَى بِمَاءٍ وَاحِدٍ وَنُفَضِّلُ بَعْضَهَا عَلَى بَعْضٍ فِي الْأُكُلِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ ﴾ [الرعد: 3 - 4].

अर्थात: तथा वही है जिस ने धरती को फैलाया। और उस में पर्वत तथा नहरे बनायीं, और प्रत्येक फलों के दो प्रकार बनाये। वह रात्रि से दिन को छुपा देता है। वास्तव में इस में बहुत •सी निशानियाँ हैं उन लोगों के लिये जो सोच विचार करते हैं। और धरती में आपस में मिले हुये कई खण्ड हैं, और उद्यान (बाग़) हैं अंगूरों के तथा खेती और खजूर के वृक्ष हैं। कुछ एकहरे और कुछ दोहरे, सब एक ही जल से सींचे जाते हैं, और हम कुछ को स्वाद में कुछ से अधिक कर देते हैं, वास्तव में इस में बहुत सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिये जो सूझ-बूझ रखते हैं।


अल्‍लाह ने अधिक फरमाया:

﴿ وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ خِلْفَةً لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًا ﴾ [الفرقان: 62].

अर्थात: वही है जिस ने रात्रि तथा दिन को एक दूसरे के पीछे आते-जाते बनाया उस के लिये जो शिक्षा ग्रहण करना चाहे या कृतज्ञ होना चाहे।


3- दिल में रचनाकार का सम्‍मान जिन चीज़ों से पैदा होता है,उन में यह भी है: अल्‍लाह तआ़ला का कलाम (क़ुर्आन) चिंतन मंथन एवं बुद्धि तत्‍परता से पढ़ना,अत: मुसलमान जब अपने पालनहार का कलाम पढ़ता है तो वह अपने रब की उच्‍च एवं श्रेष्‍ठ गुणों के विषय में और संसार में बिखरी पड़ी उस की निशानियों के विषय में भी पढ़ता है,वह विभिन्‍न प्रकार की कहानियों और इबरतनाक घटनाओं से भी गुजरता है,डर दिलाने और डराने वाली आयतों को भी पढ़ता है:

﴿ فَذَكِّرْ بِالْقُرْآنِ مَنْ يَخَافُ وَعِيدِ ﴾ [ق: 45].

अर्थात: तो आप शिक्षा दें कुआन द्वारा उसे जो डरता हो मेरी यातना से|


﴿ لَوْ أَنْزَلْنَا هَذَا الْقُرْآنَ عَلَى جَبَلٍ لَرَأَيْتَهُ خَاشِعًا مُتَصَدِّعًا مِنْ خَشْيَةِ اللَّهِ وَتِلْكَ الْأَمْثَالُ نَضْرِبُهَا لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَفَكَّرُونَ ﴾ [الحشر: 21].

अर्थात: यदि हम अवतरित करते इस कुआन को किसी पर्वत पर तो आप उसे देखते कि झुका जा रहा है तथा कण-कण होता जा रहा है अल्लाह के भय " से। और इन उदाहरणों का वर्णन हम लोगों के लिये कर रहे हैं ताकि वह सोच-विचार करें। वह खुले तथा छुपे का जानने वाला है। वही अत्यंत कृपाशील दयावान् है।


﴿ وَلَوْ أَنَّ قُرْآنًا سُيِّرَتْ بِهِ الْجِبَالُ أَوْ قُطِّعَتْ بِهِ الْأَرْضُ أَوْ كُلِّمَ بِهِ الْمَوْتَى بَلْ لِلَّهِ الْأَمْرُ جَمِيعًا أَفَلَمْ يَيْئَسِ الَّذِينَ آمَنُوا أَنْ لَوْ يَشَاءُ اللَّهُ لَهَدَى النَّاسَ جَمِيعًا وَلَا يَزَالُ الَّذِينَ كَفَرُوا تُصِيبُهُمْ بِمَا صَنَعُوا قَارِعَةٌ أَوْ تَحُلُّ قَرِيبًا مِنْ دَارِهِمْ حَتَّى يَأْتِيَ وَعْدُ اللَّهِ إِنَّ اللَّهَ لَا يُخْلِفُ الْمِيعَادَ ﴾ [الرعد: 31].

अर्थात:यदि कोई ऐसा कुआन होता जिस से पर्वत खिसका [2] दिये जाते, या धरती खण्ड-खण्ड कर दी जाती. या इस के द्वारा मुर्दों से बात की जाती (तो भी वह ईमान नहीं लाते) | बात यह है कि सब अधिकार अल्लाह ही को हैं, तो क्या जो ईमान लाये हैं. वह निराश नहीं हुये कि यदि अल्लाह चाहता तो सब लोगों को सीधी राह पर कर देता! और काफिरों को उन के कर्तत के कारण बराबर आपदा पहुँचती रहेगी अथवा उन के घर के समीप उतरती रहेगी यहाँ तक कि अल्लाह का वचन आ जाये, और अल्लाह, वचन का विरुद्ध नहीं करता।

नए युग के वैज्ञानिक खोजें जिसे शिक्षात्‍मक चमत्‍कार कहा जाता है,उन में भी बुद्धिमानों के लिए अनेक इबरत व परामर्श है।


इसके पश्‍चात आप दरूद व सलाम भेजें उस नबी पर जिन पर अल्‍लाह तआ़ला ने दरूद व सलाम भेजने का आदेश दिया है:

﴿ إِنَّ اللَّهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا ﴾ [الأحزاب: 56].

अर्थात:अल्‍लाह तथा उस के फरिश्‍ते दरूद भेजते हैं नबी पर,हे ईमान वालो उन पर दरूद तथा बहुत सलाम भेजो।


हे अल्‍लाह मेरे दिल को तक्‍़वा दे,इस को पवित्र कर दे,तू ही इस (दिल) को सबसे अच्‍छा पवित्र करने वाला है,तू ही इस का रखवाला और इस का सहायक है।


हे अल्‍लाह हमें अपना प्रेम,आदर और प्रसन्‍नता प्रदान कर:

﴿ رَبَّنَا ظَلَمْنَا أَنْفُسَنَا وَإِنْ لَمْ تَغْفِرْ لَنَا وَتَرْحَمْنَا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ ﴾ [الأعراف: 23].

अर्थात: हे हमारे पालनहार हम ने अपने उूपर अत्‍याचार कर लिया और यदि तू हमें क्षमा तथा हम पर दया नहीं करेगा तो हम अवश्‍व ही नाश हो जायेंगे।


﴿ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ﴾ [البقرة: 201].

अर्थात:हे हमारे पालनहार हमें संसार की भलाई दे,तथा परलोक में भी भलाई दे,और हमें नरक की यातना से सुरक्षित रख।


हे अल्‍लाह इस्‍लाम एवं मुसलमानों को सम्‍मान प्रदान कर,हे अल्‍लाह तू इस्‍लाम धर्म की सहायता करने वालों की सहायता फरमा,हे अल्‍लाह तू हर स्‍थान पे हमारे मुसलमान भाइयों का सहायक बन जा, अल्‍लाह जो भूके मुसलमानों को खिलाए उन्‍हें तू खिला,उन में से जो डरे हुए हैं उन को शांति प्रदान फरमा,उन में जो भयभीत हो चुके हैं तू उन को साहस प्रदान कर,उन में जो रोगी हैं,उन को स्‍वास्‍थ प्रदान कर,और उन के कैदियों को मुक्‍त कर दे।


अल्‍लाह मुस्लिम शासकों को अपने प्रिय अ़मलों को करने की तौफीक़ प्रदान कर,उन्‍हें पुण्‍य एवं तक्‍़वा के मार्ग पर लगादे, अल्‍लाह समस्‍त मुस्लिम पुरूषों और महिलाओं को क्षमा करदे,जो उन में जीवित हैं और जिनकी मृत्‍यु हो चुकी है (सब को क्षमा करदे)।


﴿ سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ * وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ * وَالْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ﴾ [الصافات: 180 - 182].

 

صلى الله عليه وسلم

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • عظمة الله (جل وعلا)
  • عظمة الله (جل وعلا) (باللغة الأردية)
  • إدمان الذنوب (خطبة) (باللغة الهندية)
  • دلائل عظمة الله تعالى (خطبة)
  • عظمة الله جل جلاله (خطبة)

مختارات من الشبكة

  • شرح كتاب الأصول الثلاثة: (وأعظم ما أمر الله به التوحيد وهو إفراد الله بالعبادة)(محاضرة - مكتبة الألوكة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • اذكروا الله كثيرا (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • القيم النبوية في إدارة المال والأعمال (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من دروس خطبة الوداع: أخوة الإسلام بين توجيه النبوة وتفريط الأمة (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • سلسلة شرح الأربعين النووية: الحديث (26) «كل سلامى من الناس عليه صدقة» (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • المسلم بين حر الدنيا وحر الآخرة (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • في نهاية عامكم حاسبوا أنفسكم (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: بداية العام الهجري وصيام يوم عاشوراء(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: أهمية المسؤولية في العمل التطوعي(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • دورات إسلامية وصحية متكاملة للأطفال بمدينة دروججانوفسكي
  • برينجافور تحتفل بالذكرى الـ 19 لافتتاح مسجدها التاريخي
  • أكثر من 70 متسابقا يشاركون في المسابقة القرآنية الثامنة في أزناكاييفو
  • إعادة افتتاح مسجد تاريخي في أغدام بأذربيجان
  • ستولاك تستعد لانطلاق النسخة الثالثة والعشرين من فعاليات أيام المساجد
  • موافقة رسمية على مشروع تطويري لمسجد بمدينة سلاو يخدم التعليم والمجتمع
  • بعد انتظار طويل.. وضع حجر الأساس لأول مسجد في قرية لوغ
  • فعاليات متنوعة بولاية ويسكونسن ضمن شهر التراث الإسلامي

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 29/1/1447هـ - الساعة: 9:9
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب