• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | أسرة   تربية   روافد   من ثمرات المواقع  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    خماسية إدارة الوقت بفعالية
    د. عبدالسلام حمود غالب
  •  
    100 قاعدة في المودة والرحمة الزوجية
    د. خالد بن حسن المالكي
  •  
    "إني لأكره أن أرى أحدكم فارغا سبهللا لا في عمل ...
    د. خالد بن حسن المالكي
  •  
    ملخص كتاب: كيف تقود نفسك للنجاح في الدنيا والآخرة
    د. شيرين لبيب خورشيد
  •  
    القدوة وأثرها في حياتنا
    أ. محاسن إدريس الهادي
  •  
    "إن كره منها خلقا رضي منها آخر"
    نورة سليمان عبدالله
  •  
    الذكاء العاطفي والذكاء الاجتماعي في المجتمع ...
    بدر شاشا
  •  
    إدمان المواقع الإباحية
    عدنان بن سلمان الدريويش
  •  
    حقوق ذوي الاحتياجات الخاصة (2)
    د. أمير بن محمد المدري
  •  
    حقوق ذوي الاحتياجات الخاصة (1)
    د. أمير بن محمد المدري
  •  
    بين الحب والهيبة..
    عبدالله بن إبراهيم الحضريتي
  •  
    سلسلة دروب النجاح (10) الحافز الداخلي: سر ...
    محمود مصطفى الحاج
  •  
    أثر التفكير الغربي في مراحل التعليم في العالم ...
    بشير شعيب
  •  
    التعليم المختلط ومآلات التعلق العاطفي: قراءة في ...
    د. هيثم بن عبدالمنعم بن الغريب صقر
  •  
    ملامح تربية الأجداد للأحفاد
    محمد عباس محمد عرابي
  •  
    الاتجاه الضمني في تنمية التفكير بين الواقع ...
    د. خليل أسعد عوض
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / الرقائق والأخلاق والآداب / في النصيحة والأمانة
علامة باركود

الوصية الإلهية (خطبة) (باللغة الهندية)

الوصية الإلهية (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 5/11/2022 ميلادي - 11/4/1444 هجري

الزيارات: 5638

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

अल्लाह की वसीयत


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़र रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात


सर्वोत्तम बात अल्लाह की बात है,सबसे अच्छा मार्ग मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का मार्ग है,दुष्टतम चीज़ धर्म अविष्कार की गईं बिदअ़तें (नवाचार) हैं और प्रत्येक बिदअ़त गुमराही है।


यदि मान लें कि हम में से किसी एक की मोलाक़ात ऐसे बुद्धिमानव बुद्धिजीवीव्यक्ति से हो जिस के पास वर्षों के अनुभव हों और अनुभव ने उसे कुंदनकर दिया हो,तो नीति का तक़ाज़ा होगा कि वह अनुभव से भरे उस व्यक्ति से लाभान्वित हो और उसके परामर्शों को अति महत्व दे,हमारा और आप का व्यवहार उस महानतम वसीयत के साथ कैसा होगा जो ज्ञान एवं नीति वाले पालनहार ने हमें की है,जो धनीव बेन्याज है जो अल्लाह ने हमें भी की है हम से पूर्व की समस्त क़ौमों को भी की है:

﴿ وَلَقَدْ وَصَّيْنَا الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَإِيَّاكُمْ أَنِ اتَّقُوا اللَّهَ ﴾ [النساء: 131].

अर्थात:औरहमनेतुमसेपूर्वअहलेकिताबकोतथातुमकोआदेाशदियाहैकिअल्लाह से डरते रहो।


मेरे ईमानी भाइयोअल्लाह तआ़ला का तक़्वा (धर्मनिष्ठा) दो आधारों पर स्थिर है:आदेशों का पालन करना और निषेधों को छोड़ देना,अल्लाह और उसके रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अनेक प्रकार की प्रार्थनाओं का आदेश दिया है,जैसे अल्लाह के साथ इखलास,प्रेम,भय,आशा और हुसने जन जैसी अन्य ऐसी प्रार्थनाएं जिनका संबंध हिृदय से है,और शरीर के अंगों से उनको किये जाने वाली प्रार्थनाओं का भी आदेश दिया जैसे नमाज़,ज़काद,रोज़ा,स्मरण,माता-पिता की आज्ञाकारिता,परिजनों के साथ संबंध बनाना,दाढ़ी छोड़ना,स्तय बोलना,अमानत दारी,मुस्कुरा कर और हंसते चेहरे के साथ मिलना,जरूरतमंदों की सहायता करना,अच्छा विचाररखना,दरिद्रों को मोहलत देना और आज्ञाकारिता एवं वंदना की लंबी सूची है जिस का हमें आदेश दिया गया है:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَجِيبُوا لِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُمْ لِمَا يُحْيِيكُمْ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَحُولُ بَيْنَ الْمَرْءِ وَقَلْبِهِ وَأَنَّهُ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ ﴾ [الأنفال: 24].

अर्थात:हे ईमान वालोअल्लाह और उस के रसूल की पुकार को सुना,जब तुम्हें उस की ओर बुलाये जो तुम्हारी (आत्मा) को जीवन प्रदान करे,और जान लो कि अल्लाह मानव और उस के दिल के बीच आड़े आ जाता है,और नि:संदेह तुम उसी के पास (अपने कर्मफल के लिये) एकत्र किये जाओगे।


वह प्रश्न जो हम में से प्रत्येक को स्वयं से करना चाहिए:हम अल्लाह और रसूल के आदेशों पर कितना अ़मल करते हैं


हम शरीअ़त के कुछ आदेशों पर अ़मल करते हैं और कुछ को क्यों छोड़ देते हैं,क्या हमें अल्लाह ने अपनी पुस्तक में शरीअ़त पर पूर्ण रूप से अ़मल करने का आदेश नहीं दिया है:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ادْخُلُوا فِي السِّلْمِ كَافَّةً وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ ﴾ [البقرة: 208]

अर्थात:हे ईमान वालोतुम सर्वथा इस्लाम में प्रवेश कर जाओ,और शैतान की राहों पर मत चलो,निश्चय वह तुम्हारा खुला शत्रु है।


मोजाहिद फरमाते हैं:अर्थात समस्त अ़मलों को करो और प्रत्येक प्रकार के सदाचारों को करो।


नमाज़ियोआइए हम तक़्वा (धर्मनिष्ठा) के दूसरे भाग पर विचार करते हैं:निषेधों को छोड़ देना,इसके अनेक एवं विभिन्न प्रकार हैं जैसे शिक्र,दिखावा,स्वयं पसंदी,बुरा सोचना,अहंकार,चुगली,माता-पिता का अवज्ञा,संबंध तोड़ना,बलात्कार,समलैंगिकता,झूट बोलना,सूद,गाना-बजाना और इन जैसे अन्य ऐसे निषेघ जिन का संबंध हृदय से अथवा अ़मल (शरीर के अंगों) से है।


वह प्रश्न जो हम में से प्रत्येक को स्वयं से करना चाहिए:हम इन निषेधों एवं पाप के कार्यों से कितना बच सकते हैंअल्लाह तआ़ला ने ऐसे व्यक्ति को यातनासुनाई है जो रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदेश का उल्लंघन करता है:

﴿ لَا تَجْعَلُوا دُعَاءَ الرَّسُولِ بَيْنَكُمْ كَدُعَاءِ بَعْضِكُمْ بَعْضًا قَدْ يَعْلَمُ اللَّهُ الَّذِينَ يَتَسَلَّلُونَ مِنْكُمْ لِوَاذًا فَلْيَحْذَرِ الَّذِينَ يُخَالِفُونَ عَنْ أَمْرِهِ أَنْ تُصِيبَهُمْ فِتْنَةٌ أَوْ يُصِيبَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ [النور: 63]

अर्थात:और तुम मत बनाओ रसूल के पुकारने को परस्पर एक-दूरसे को पुकारने जैसा,अल्लाह तुम में से उन को जानता है जो सरक जाते हैं एक-दूसरे की आड़ ले कर,तो उन्हें सावधान रहना चाहिये जो आप के आदेश का विरोध करते हैं कि उन पर कोई आपदा आ पड़े उन पर कोई दु:खदायी यातना आ जाये।


एक दूसरी आयत में अल्लाह का कथन है:

﴿ وَذَرُوا ظَاهِرَ الْإِثْمِ وَبَاطِنَهُ إِنَّ الَّذِينَ يَكْسِبُونَ الْإِثْمَ سَيُجْزَوْنَ بِمَا كَانُوا يَقْتَرِفُونَ ﴾ [الأنعام: 120].

अर्थात:(हे लोगोखुले तथा छुपे पाप छेड़ दो,जो लोग पाप कमाते हैं वे अपने कुकर्मां का प्रतिकार (बदला) दिये जायेंगे।


हमारी स्थिति यह हो चुकी है कि हम सर्वशक्तमान पालनहार की आज्ञा का उल्लंघनभी करते हैं और उस पर बज़िद भी रहते हैंहाँ हम मनुष्य हैं और हमारी स्वभाव में काहिली और गलती करना है,किन्तु क्या हम उल्लंघन के समय शर्मिंदाहोते हैंक्या हम तौबा करने में जल्दी करते हैंक्या हम पाप के पश्चात पुण्य करते हैं


नि:संदेह अल्लाह तआ़ला का तक़्वा (धर्मनिष्ठा) जिसके विषय में हम बार बार सुनते हैं,उसमें आदेशों का पालन करना और निषेधों को छोड़ देना समान्य रूप से सम्मिलित है,अल्लाह के बंदेक्या इन गगनचुंबी पहाड़ों के श्रृंख्ला से तुम्हारी आँखें चौंधिया गईंक्या तुम ने कभी इस विस्तृत एवं विशाल भूमि पर विचार कियाक्या आकाश की महानता एवं विस्तृता पर विचार करते हुए और इस बात पर विचार करते हुए कि अल्लाह ने इसे बिना खंभा के ख़ड़ा कर दिया,कभी तुम्हारे ईमान में वृद्धि हुआपहाड़ों,धरती एवं आकाश पर जब अमानत प्रस्तुत की गई तो उन सब ने इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया:

﴿ إِنَّا عَرَضْنَا الْأَمَانَةَ عَلَى السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَن يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْإِنسَانُ إِنَّهُ كَانَ ظَلُوماً جَهُولاً ﴾

अर्थात:हम ने प्रस्तुत किया अमानत को आकाशों तथा धरती एवं पर्वतों पर तो उन सब ने इन्कार कर दिया उन का भार उठाने से,तथा डर गये उस से,किन्तु उस का भार लिया मनुष्य ने,वास्तव में वह बड़ा अत्याचारी अज्ञान है।


औ़फा बिन अ़ब्बास से वर्णित है कि:अमानत का मतलब है:आज्ञाकारित,जबकि अ़ली बिन अबी त़ल्ह़ा इब्ने अ़ब्बास से वर्णित करते हैं:अमानत का आशय:फराएज़ हैं।


اللهم إنا نسألك الهدى والتقى والعفاف والغنى، الهم حبب إلينا الإيمان وزينه في قلوبنا وكره إلينا الكفر والفسوق العصيان واجعلنا من الراشدين، ربنا ظلمنا أنفسنا وإن لم تغفر لنا وترحمنا لنكونن من الخاسرين.


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

अबूअ़म्र सुफयान बिन अ़ब्दुल्लाह अलसक़फी रज़ीअल्लाहु अंहु से वर्णित है कि:मैं ने कहा:हे अल्लाह के रसूलमुझे इस्लाम के बारे में ऐसी पक्की बात बताइये कि आप के पश्चात किसी से उस विषय में प्रश्न करने की आवश्यकता न रहे।आप (सलल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:कहो: آمنت بالله (मैं अल्लाह पर ईमान लाया),फिर उस पर पक्के हो जाओ।इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।


इब्ने रजब रहि़महुल्लाह फरमाते हैं:सुपथ (सीधे मार्ग) पर स्थिर रहना ही वास्तव में सीधा धर्म है जिस में दाएं बाएं कोई कमी नहीं होती है,इसमें समस्त आंतरिक एवं बाह्य प्रार्थनाओं को करना और प्रत्येक प्रकार की निषेधों से दूर रहना शामिल है।


अल्लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ فَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ وَمَنْ تَابَ مَعَكَ وَلَا تَطْغَوْا إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ ﴾ [هود: 112]

अर्थात:अत: (हे नबी) जैसे आप को आदेश दिया गया है,उस पर सुदृढ़ रहिये,और वह भी जो आप के साथ तौबा (क्षमा याचना) कर के हो लिये हैं,और सीमा का उल्लंघन न करोक्योंकि वह (अल्लाह) तुम्हारे कर्मो को देख रहा है।


कठिनाई उस समय होती है जब हम अल्लाह व रसूल के आदेशों एवं निषेधों के साथ अपनी इच्छाओं के अनुसार व्यवहार करते हैं,आप विचार करें:(आप स्थिर रहिए जैसा कि आप को आदेश दिया गया है) यह नहीं कहा कि स्थिर रहिए जैसा आप चाहें और जिस प्रकार आप की इच्छा हो,क्योंकि बंदा चाहे जितना भी पुण्य का इच्छुक हो,उससे पाप हो ही जाता है,अल्लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ فَاسْتَقِيمُوا إِلَيْهِ وَاسْتَغْفِرُوهُ ﴾ [فصلت: 6]

अर्थात:सीधे हो जाओ उसी की ओर तथा क्षमा माँगो उस से।


सादी फरमते हैं:चूँकि बंदा-चाहे वह स्थिरता का इच्छुक ही क्यों न हो-उससे आदेशों के प्रति काहिली हो ही जाती है अथवा निषेधों को वह कर ही बैठता है,इस लिए उसका इलाज करने के लिए इस्तिग़फार का आदेश दिया गया जिस में तौबा भी सम्मिलित है,अत: फरमाया: (उससे पापों का क्षमा मांगो)।समाप्त


ह़दीस में आया है:तुम सब उस की ओर ध्यानमग्न हो जाओ और (अपने पुण्यों को) न गिनो।इसे अल्बानी ने सह़ीह़ कहा है।


अल्लाह के बंदेक्या पैदा करने वाला और उपकारों को प्रदान करने वाला अल्लाह नहीं हैक्या हिसाब व किताब लेने वाला और यातना एवं बदला देने वाला अल्लाह नहीं हैक्या आज्ञाकारिता एवं वंदना अल्लाह की रह़मत और स्वर्ग का मार्ग नहीं हैक्या पाप अल्लाह की अप्रसन्नता और उसकी यातना का कारण नहीं हैक्या दुनिया पारणएवं आखि़रत निवास नहीं हैहम अल्लाह तआ़ला के उुद्देश्य एवं मुराद को कब पूरा करेंगेक्या हम फक़ीर एवं दरिर्दएवं दुर्बलनहीं हैंऔर अल्लाह बेन्याज़,शक्ति एवं रह़मत वाला और प्रत्येक व्स्तु का मालिक है।


क्या अल्लाह ने हमें तौबा व इस्तिग़फार का और पाप के पश्चात पुण्य करने का आदेश नहीं दिया,बल्कि अल्लाह ने अपनी रह़मत व दया और कृपा से यह वचन दिया है कि वह हमारे पापों को पुण्यों में परिवर्तित करदेगा,क्या हम ने हिदायद व स्थिरता के कारणों को अपनायाक्या जब हम अल्लाह से हिदायत की दुआ़ करते हैं तो क्या विनम्रता एवं विनयशीलता के साथ दुआ़ करते हैंअल्लाह के बंदोतक़्वा के श्रेणियों को तय करने के लिए आपके सामने उन्नति का पवित्र महीना आ रहा है:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ﴾ [البقرة: 183].

अर्थात:हे ईमान वालोतुम पर रोज़े उसी प्रकार अनिवार्य कर दिये गये हैं जैसे तुम से पूर्व लोगों पर अनिवार्य किये गये,ताकि तुम अल्लाह से डरो।


अल्लाह के बंदोख़ैर एवं पुण्य के कार्यों की ओर बढ़ो और शुभसूचना स्वीकार करो और पापों से दूर हो जाओ और सब्र से काम लो:

﴿ وَجَزَاهُم بِمَا صَبَرُوا جَنَّةً وَحَرِيراً ﴾

अर्थात:और उन्हें प्रतिफल दिया उन के धैर्य के बदले स्वर्ग तथा रेशमी वस्त्र।


यह रह़मत,इह़सान,क्षमाऔर प्रसन्नता का महीना है जिस में स्वर्ग के दरवाजे खोल दिये जाते,नरक के दरवाजे बंद कर दिये जाते और सरकश शैतानों को जकड़ दिया जाता है:

.﴿ وَآخَرُونَ اعْتَرَفُوا بِذُنُوبِهِمْ خَلَطُوا عَمَلًا صَالِحًا وَآخَرَ سَيِّئًا عَسَى اللَّهُ أَنْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ ﴾ [التوبة: 102]

अर्थात:और कुछ दूसरे भी हैं जिन्होंने अपने पापों को स्वीकार कर लिया है,उन्होंने कुछ सुकर्म और कुछ दूसरे कुकर्म को मिश्रित कर लिया है,आशा है कि अल्लाह उन्हें क्षमा कर देगा,वास्तव में अल्लाह अति क्षमी दयावान है।

 

صلى الله عليه وسلم.

 

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • الوصية الإلهية
  • الوصية الإلهية (باللغة الأردية)
  • إدمان الذنوب (خطبة) (باللغة الهندية)

مختارات من الشبكة

  • خطبة الوصية(مقالة - موقع د. علي بن عبدالعزيز الشبل)
  • الوصية بالوالدين (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • اللآلئ والدرر شرح وصية أبي بكر لعمر رضي الله عنهما (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • وصايا نبوية غالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • المندوبات في الوصايا عند الحنابلة: دراسة فقهية مقارنة (PDF)(كتاب - آفاق الشريعة)
  • التسبيح في سورة (ق) تفسيره ووصية النبي صلى الله عليه وسلم(مقالة - آفاق الشريعة)
  • وصية النبي - صلى الله عليه وسلم- بطلاب العلم(مادة مرئية - موقع الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي)
  • أولويات وأسس التربية في وصايا لقمان لابنه من سورة لقمان (WORD)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • خطبة: الشهود يوم القيامة(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: وصايا نبوية إلى كل فتاة مسلمة(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • برنامج علمي مكثف يناقش تطوير المدارس الإسلامية في بلغاريا
  • للسنة الخامسة على التوالي برنامج تعليمي نسائي يعزز الإيمان والتعلم في سراييفو
  • ندوة إسلامية للشباب تبرز القيم النبوية التربوية في مدينة زغرب
  • برنامج شبابي في توزلا يجمع بين الإيمان والمعرفة والتطوير الذاتي
  • ندوة نسائية وأخرى طلابية في القرم تناقشان التربية والقيم الإسلامية
  • مركز إسلامي وتعليمي جديد في مدينة فولجسكي الروسية
  • ختام دورة قرآنية ناجحة في توزلا بمشاركة واسعة من الطلاب المسلمين
  • يوم مفتوح للمسجد للتعرف على الإسلام غرب ماريلاند

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 11/5/1447هـ - الساعة: 17:35
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب