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من مشكاة النبوة (8) حفظ الجميل (خطبة) (باللغة الهندية)

حسام بن عبدالعزيز الجبرين

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تاريخ الإضافة: 21/11/2022 ميلادي - 26/4/1444 هجري

الزيارات: 1072

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शीर्षक

पैगंबरी मशाल (8)

इह़सान (दया) की रक्षा

अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात

मैं आप को और स्वयं को अल्लाह का तक़्वा (धर्मनिष्ठा) की वसीयत करता हूँ,क्योंकि जो अल्लाह का तक़्वा पैदा करेगा उसे असत्य के बीच सत्य की ज्ञानप्राप्त होगी,अल्लाह उस के पापों को मिटा देगा और उस के श्रेणियों को उच्च फरमाएगा:

﴿ يِا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إَن تَتَّقُواْ اللّهَ يَجْعَل لَّكُمْ فُرْقَانًا وَيُكَفِّرْ عَنكُمْ سَيِّئَاتِكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ وَاللّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ ﴾ [الأنفال29].

अर्थात:हे ईमान वालो यदि तुम अल्लाह से डरोगे तो तुम्हारे लिये विवेक बना देगा,तथा तुम से तम्हारी बुराईयाँ दूर कर देगा,और तुम्हें क्षमा कर देगा,और अल्लाह बड़ा दयाशील है।


ए रह़मान के बंदो बदर के युद्ध का आरंभ नैतिकपाठ से होता है इसी प्रकार से उसका अंत भी नैतिकपाठ के साथ होता है।


यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं क्योंकि यह हमारे नबी मोह़म्मद सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के कारण से हुआ जिन्हें उच्च नैतिकता की समापन के लिए अवतरित किया गया,आप युद्ध के अपवादात्मकस्थिति में भी उच्च नैतिकता की तकमील का ध्यान रखा करते थे।


जहाँ तक प्रथम पाठ की बात है तो इसका संबंध युद्ध से पहले से है,वह इस प्रकार से कि मुसलमानों की आत्माएं अत्याचार की तीव्रताऔर अल्लाह और उस के रसूल से शत्रुता रखने वालों के घृणा व नफरतसे भरे थे,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की जीविका में आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह कथन बयान किया गया है कि: जो अबुल बख़तरी बिन हिशाम से मोलाक़ात करे,वह उसकी हत्या न करे” इस का कारण यह बताया गया है कि वह मुश्रिकों में सबसे अधिक रसूल सलल्लाहु अलैहि वसल्लम को कष्ट देने से बचता था,उस का अत्याचार पर आधारित प्रतिज्ञाव वचनको तौड़ने में उत्तम भूमिका था जो बनू हाशिम से संबंध तोड़ने और उन्हें (शअ़ब-ए-अबी त़ालिब) में घिरावकरने के लिए लगाया गया था।


इसी लिए आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस के लिए इस प्रकार का विचारअपनाया।


जहाँ तक द्वतीय पाठ की बात है तो उसका संबंध बदर के युद्ध से है,जब मुसलमानों को विजय प्राप्त हुआ,और उस के परिणाम में सत्तर ऐसे क़ैदी हाथ लगे जिन में कुछ लोग ऐसे थे जो रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से बड़ी शत्रुता रखते थे और आप को अति अधिक कष्ट पहुँचाया करते थे।जैसे नज़र बिन ह़ारिस और उ़क़्बा बिन मोह़ीत,मक्का में इन अपराधियोंके अपराधव बर्बरताऔर उन का अत्याचार,दुर्बल मुसलमानों के साथ उन का अत्याचार और रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के विरुद्ध उन की दुर्व्यवहारका कष्टदायकदासतान अब तक मुसलमानों के जेहनों में ताज़ा था,जिस के कारण वे उदासथे,दिलों में क्रोध था,और मोमिनों के दिल भड़ास निकालने के लिए किसी ऐसे गतिविधिकी प्रतीक्षा कर रहे थे जिस के द्वारा उन के दिल का क्रोध ठंडा पड़ जाए।किन्तु इन सब के बावजूद रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम उन क़ैदियों के प्रति फरमा रहे हैं: यदि मुत़इ़म बिन अ़दी जीवित होता और वह इन अशुद्धऔर गंदे लोगों की अनुशंसाकरता तो मैं उस की अनुशंसासे इन्हें छोड़ देता ।(बोख़ारी)


आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने घोषणा करके यह कहा कि ये समस्त लोग मुक्ति प्राप्त कर लेते यदि मुत़इ़म जीवित होता और रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा:ए मोह़म्मद आप मेरे कारण उन्हें छोड़ दिजीए,यह जानने के बावजूद कि उसकी मृत्यु शिर्क में हुई है,किन्तु हम अब भी यह जानते हैं वह उदारऔर नैतिकव्यक्ति था,इस की एक झलक यह है कि जब रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की त़ाइफ से वापसी हो रही थी तो उस व्यक्ति ने आप की समर्थनऔर रक्षा फरमाई,जिस के सामने क़ोरैश को झुकना पड़ा,और क़ोरैशियों ने मुत़इ़म से कहा:आप ही वह व्यक्ति हैं जिस ने अपने अपने वचन पूरे नहीं किए।


उन्होंने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिजरत के पश्चात क़ोरैश के लोगों को इकट्ठा किया और उन से कहा: तुम लोग मोह़म्मद के साथ जो करना था वह कर चुके,अब तुम उन को कष्ट पहुँचाने से पूरी तरह रुक जाओ ।


ए ईमानी भाइयो आइय हम उन पैगंबरी घटनाओं के कुछ बिन्दुओं पर विचार करते हैं:

1- गु़ंभीर स्थिति में भी रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ओर से अच्छे नैतिकता का प्रदर्शन करने वालों के लिए वफादारी,सुंदर व्यवहार और अच्छे नैतिकता का ज़िक्र और उस का प्रदर्शन,युद्ध की स्थिति,और तनाव,मुडभेड़ और क्रोध की स्थितियों में भी आप ने उन नैतिकता को नहीं भुलाया।


2- युद्ध के मुडभेड़ और क्रोध की स्थिति में रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम का इस प्रकार से बात करना यह स्पष्ट करता है कि आप का यह नजरिया नैतिकसिधांतों का भाग है,न कि कोई राजनीतिक तकनीक (प्रविधि) है,बल्कि यह ऐसी नेतृत्वहै जो सिधांतों पर आधारित है।


3- रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम (अपने विरुध) उन मुश्रेकीन की बातों को उन के परिजनों के के बीच नहीं सुनाते थे,बल्कि आप अपने मोमिन सह़ाबा को संबोधित फरमाते थे,ताकि आप (अपने अनोखाप्रशिक्षणा शैलीके द्वारा) उनकी आत्माओं में नैतिकगुणों का बढ़वा दे सकें,ताकि वह उस के पात्र और अधिक योग बन सकें और उन्हें इन नैतिकता का बेहतर से बेहतर बदला मिल सके,तथा यह पैगंबरी हिदायत मार्गदर्शन भी है कि वह न्याय के मानकोंपर जमे रहें और लोगों का जो स्थान है वह उन्हें अवश्य दें।


अल्लाह मुझे और आप को क़ुर्आन व ह़दीस और उन में पाए जाने वाली हिदायत व नीति की बातों से लाभ पहुँचाए,अल्लाह से तौबा व इस्तिग़फार कीजिए नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।


द्वतीय उपदेश:

الحمد لله القائل لرسوله ﴿ وَإِنَّكَ لَعَلى خُلُقٍ عَظِيمٍ ﴾ [القلم: 4]، وصلى الله وسلم وبارك عليه وعلى آله وأصحابه.


प्रशंसाओं के पश्चात:

चौथा बिन्दु:सह़ाबा न्याय एवं अधिकार की रक्षा का अर्थ समझ चुके थे यहाँ तक कि उन लोगों ने इस मानक को उन लोगों के साथ भी अपनाया जिन लोगों ने धर्म व प्रदेश में उनका विरोध किया,अत: अ़म्र बिन अलआ़स रज़ीअल्लाहु अंहु रूमियों का ज़िक्र करते हुए फरमाते हैं: उन के अंदर पांच गुण पाए जाते हैं फिर उन्होंने नैतिकता व व्यवहार के मानक और नेतृत्वके कारणों से संबंधित उन के पांच गुणों का उल्लेख किया,यह ह़स्सान बिन साबित रज़ीअल्लाहु अंहु हैं जिन्होंने मुत़इ़म बिन अ़दी की मृत्यु पर उन के लिए मरसिया (समाधिवाला गीत) कहा,जिस में उस के उन कारनामों का उल्लेख किया जिन में उस ने दाद प्राप्त किया।


अंत में ए मेरे भाइयो जब रसूलुल्लाह सलल्लाहु अलैहि वसल्लम न्याय के सर्वोच्च मानक को उन लोगों के प्रति अपनाया जिन के मध्य और आप के मध्य विभाजन रेखा शिर्कअकबर (बड़ा) था,तो हमें इस बात की अधिक आवश्यकता है कि हम इस मानक को अपने भाइयों के लिए अपनाएं जिन के साथ हमारी एकता के कारण हमारे भेद के कारणों से कहीं अधिक हैं,और जिन से निकट होने के कारण दूरी के कारणों से कहीं अधिक हैं,अल्लाह हमें नैतिकता का मार्गदर्शन फरमाए।

 

 





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