• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | مواقع المشرفين   مواقع المشايخ والعلماء  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    تلاوة النبي صلى الله عليه وسلم للقرآن وقيامه به ...
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    بطلان موت الصحابي الجليل عبيدالله بن جحش رضي الله ...
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
  •  
    نماذج من سير الأتقياء والعلماء والصالحين (10) أبو ...
    د. صغير بن محمد الصغير
  •  
    استراتيجيات تحقيق الهدف الثاني لتدريس المفاهيم ...
    أ. د. فؤاد محمد موسى
  •  
    قسوة القلب (2)
    د. أمين بن عبدالله الشقاوي
  •  
    مساعدة أم غش؟
    د. صغير بن محمد الصغير
  •  
    وصية النبي - صلى الله عليه وسلم- بطلاب العلم
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    الأمن.. والنعم.. والذكاء الاصطناعي
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    يا معاشر المسلمين، زوجوا أولادكم عند البلوغ: ...
    د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر
  •  
    شرح كتاب السنة لأبي بكر الخلال (رحمه الله) المجلس ...
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    حديث: يا رسول الله، أرأيت أن لو وجد أحدنا امرأته ...
    الشيخ عبدالقادر شيبة الحمد
  •  
    الأحاديث الطوال (23) وصول النبي صلى الله عليه ...
    الشيخ د. إبراهيم بن محمد الحقيل
  •  
    ففروا إلى الله (خطبة)
    د. محمود بن أحمد الدوسري
  •  
    الذكاء الاصطناعي بين نعمة الشكر وخطر التزوير: ...
    د. صغير بن محمد الصغير
  •  
    زمان الدجال.. ومقدمات
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    خطبة الملائكة
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

زيادة الإيمان (خطبة) (باللغة الهندية)

زيادة الإيمان (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 7/1/2023 ميلادي - 15/6/1444 هجري

الزيارات: 4119

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

ईमान में वृद्धि

अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं से पश्चता

मेरे प्रिय मित्रो तक़्वा (धर्मनिष्ठा) की वास्तविकता यह है कि आज्ञाकारिता के कार्य किए जाएं और निषेद्धों से बचा जाए,हम में से प्रत्येक के पास कुछ ऐसे समय आते हैं जिन में इबातर (वंदना) करना आसान होता है,अत: वह रूचि एवं खुले सीनेके साथ अल्लाह की पुस्तक का सस्वर पाठ करता है,और कुछ समय ऐसे भी आते हैं जिन में दो पृष्ठ का सस्वर पाठ करने के लिए भी उसे आत्मा के साथ संघर्ष करना पड़ता है,जबकि मनुष्य तो वही है,उस की अवसर,स्वास्थ और समय भी वही है,कभी कभी आप किसी अनुपस्थित व्यक्ति ज़ैद के विषय में एक शब्द भी बोलने से बचते हैं और कभी कभी उसी ज़ैद की चुगली करते नहीं थकते।जब कि उस के साथ आप की स्थिति में कोई परिवर्तन भी नहीं आई कभी आप स्वयं को दान में आगे आगे रखते हैं और कभी खर्च करने के लिए आप को अपनी आत्मा से युद्ध करना पड़ता है,जबकि आप की स्थिति वही होती है,इस में कोई परिवर्तन नहीं आती कभी आप स्वयं को वित्र पढ़ते हुए,अधिक से अधिक रकअ़तें पढ़ते हुए और विनम्रता एवं विनयशीलता अपनाते हुए,जबकि दूसरी रातों में आप ऐसा नहीं करते,आप अपनी आंखों को अवैध से बचते हुए देखते हैं,जबकि कभी कभी उन आंखों से ही अवैध देखने लग जाते हैं...


हम आज्ञाकारिता के कार्यों में अनिच्छासे काम लेते हैं जबकि हम जानते हैं कि सदाचार ही अल्लाह की रह़मत से लाभान्वित होने और स्वर्ग के उच्च श्रेणियों की प्राप्ति का कारण है हम अंतत: पापों में क्यों पड़ जाते हैं जबकि हम जानते हैं कि वह यातना का कारण है,यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर हमें विचार करना चाहिए,विशेष रूप से इस लिए कि गतिविधि एवं अवसरदोनों स्थिति में बंदा की स्थिति समान होती है


शायद अल्लाह की तौफीक़ के पश्चात इस का सबसे महत्वपूर्ण कारण दिल में ईमान की शक्ति और कमज़ोरी है,अत: जब आप प्रवचनव परामर्श,स्मरण और क़ुर्आन का सस्वर पाठ सुनते हैं तो आप के दिल में भय व डर,आशा और अल्लाह तआ़ला का प्रेम बढ़ जाता है,और जब बंदा के दिल में यही ईमान (अल्लाह का प्रेम,आशा,भय और आदर) कमज़ोर पड़ जाता है तो बंदा पर शैतान प्रभावी हो जाता है,वह इस प्रकार से कि आज्ञाकारिता के कार्य इस के लिए कठिन हो जाते हैं और पाप करना आसान हो जाता है,अल्लाह तआ़ला का कथन है:

﴿فَإِذَا قَرَأْتَ الْقُرْآنَ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ * إِنَّهُ لَيْسَ لَهُ سُلْطَانٌ عَلَى الَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ﴾ [النحل: 98، 99]

अर्थात:तो (हे नबी ) जब आप क़ुर्आन का अध्ययन करें तो धिक्कारे हुये शैतान से अल्लाह की शरण माँग लिया करें।वस्तुत: उस का वश उन पर नहीं है जो ईमान लाये हैं,और अपने पालनहार ही पर भरोसा करते हैं।


आदरणी सज्जनो

जब मामला ऐसा हो तो हम में से प्रत्येक को चाहिए कि उन मामलों की खोज करें जिन से ईमान में वृद्धि होता और उस का दिल भय व आशा एवं निकटता व विनम्रता से भरा होता है शायद इस के इस के महत्वपूर्ण कारणों में से कुछ ये हैं:

प्रथम कारण: यह कि बंदा अपने आदरणीय एवं सर्वोच्च रब को उस के सुंदर नामों एवं पूर्ण विशेषताओं के साथ जाने,ताकि उस का दिल प्रेम,भय और आशा से भर सके,इस के पश्चात उन नामों एवं विशेषताओं के तक़ाज़ों के अनुसार अपने रब की वंदना करे,अल्लाह के शुभ नामों की व्याख्या एवं विवरण पर आधारित समकालीनविद्धानों की विभिन्न पुस्तकें हैं।


द्वतीय कारण: अल्लाह की रचना में विचार करना,अल्लाह की रचना में विचार करना एक महत्वपूर्ण वंदना है,आकाश एवं वातावरणमें जो शक्ति और अल्लाह तआ़ला की बारीक कारीगरी है,इसी प्रकार से धरती में जो चिन्हें हैं जिन्हें हम अपनी आंखों से देखते हैं अथवा हज़ारों बार टेली स्कोप से उन का अवलोकनकरते हैं,उन पर हमें विचार करना चाहिए,उन चिन्हों में वह चमतकार पाया जाता है जिस से व्यक्ति की बुद्धि आश्चर्य चकित हो जाती है और पवित्र व सर्वोच्च रचनाकार का आदर अधिक बढ़ जाता है:

﴿ وَفِي أَنْفُسِكُمْ أَفَلَا تُبْصِرُونَ ﴾ [الذاريات: 21]

अर्थात:तथा स्वयं तुम्हारे भीतर (भी) फिर क्या तुम देखते नहीं


﴿ أَوَلَمْ يَنْظُرُوا فِي مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا خَلَقَ اللَّهُ مِنْ شَيْءٍ ﴾ [الأعراف: 185]

अर्थात:क्या उन्हों ने आकाशों तथा धरती के राज्य को और जो कुछ अल्लाह ने पैदा किया है,उसे नहीं देखा।


﴿ أَفَلَمْ يَنْظُرُوا إِلَى السَّمَاءِ فَوْقَهُمْ كَيْفَ بَنَيْنَاهَا وَزَيَّنَّاهَا وَمَا لَهَا مِنْ فُرُوجٍ * وَالْأَرْضَ مَدَدْنَاهَا وَأَلْقَيْنَا فِيهَا رَوَاسِيَ وَأَنْبَتْنَا فِيهَا مِنْ كُلِّ زَوْجٍ بَهِيجٍ * تَبْصِرَةً وَذِكْرَى لِكُلِّ عَبْدٍ مُنِيبٍ ﴾ [ق: 6 - 8]

अर्थात:क्या उन्होंने नहीं देखा आकाश की ओर अपने उूपर कि कैसे बनाया है हम ने उसे और सजाया है उस को और नहीं है उस में कोई दराड़ तथा हम ने धरती को फैलाया,और डाला दिये उस में पर्वत,तथा उपजायी उस में प्रत्येक प्रकार की सुन्दर वनस्पतियाँ।आँख खोलने तथा शिक्षा देने के लिए प्रत्येक अल्लाह की ओर ध्यानमग्न भक्त के लिये।


﴿ وَفِي الْأَرْضِ قِطَعٌ مُتَجَاوِرَاتٌ وَجَنَّاتٌ مِنْ أَعْنَابٍ وَزَرْعٌ وَنَخِيلٌ صِنْوَانٌ وَغَيْرُ صِنْوَانٍ يُسْقَى بِمَاءٍ وَاحِدٍ وَنُفَضِّلُ بَعْضَهَا عَلَى بَعْضٍ فِي الْأُكُلِ إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ ﴾ [الرعد: 4].

अर्थात:और धरती में आपस में मिले हुये कई खण्ड हैं,और उद्यान (बाग़) हैं अँगूरों के तथा खेती और खजूर के वृक्ष हैं,कुछ एकहरे और कुछ दोहरे,सब एक ही जल से सींचे जाते हैं,और हम कुछ को स्वाद में कुछ से अधिक कर देते हैं,वास्तव में इस में बहुत सी निशानियाँ हैं,उन लोगों के लिये जो सूझ-बूझ रखते हैं।


तृतीय कारण: ईमान में वृद्धि का एक कारण क़ुर्आन सुनना और उस की आयतों पर विचार करना है,अल्लाह तआ़ला ने सत्य मोमिनों के गुण बयान करते हुए फरमाया:

﴿ وَإِذَا تُلِيَتْ عَلَيْهِمْ آيَاتُهُ زَادَتْهُمْ إِيمَاناً ﴾

अर्थात:और जब उन के समक्ष उस की आयतें पढ़ी जाये तो उन का ईमान अधिक हो जाता है।


﴿ اللَّهُ نَزَّلَ أَحْسَنَ الْحَدِيثِ كِتَابًا مُتَشَابِهًا مَثَانِيَ تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُودُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمْ وَقُلُوبُهُمْ إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ ﴾ [الزمر: 23].

अर्थात:अल्लाह ही है जिस ने सर्वोत्तम हदीस (क़ुर्आन) को अवतरित किया है,ऐसी पुस्तक जिस की आयतें मिलती जुलती बार-बार दुहराई जाने वाली है,जिसे (सुन कर) खड़े हो जाते हैं उन के रूँगटे जो डरते हैं अपने पालनहार से,फिर कोमल हो जाते हैं उन के अंग तथा दिल अल्लाह के स्मरण की ओर।


अल्लाह तआ़ला ने हमें यह आदेश भी दिया है कि हम क़ुर्आन में विचार करें,अल्लाह का फरमान है:

﴿ كِتَابٌ أَنزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَكٌ لِّيَدَّبَّرُوا آيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ أُوْلُوا الْأَلْبَابِ ﴾

अर्थात:यह (क़ुर्आन) एक शुभ पुस्तक है जिसे हम ने अवतरित किया है आप की ओर,ताकि लोग विचार करें उस की आयतों पर और ताकि शिक्षा ग्रहण करें मतिमान।


मानो विचार करने से सोनड माइंड प्राप्त होती है और मनुष्य सह़ीह़ कार्य करता है।


इब्नुलक़य्यिम फरमाते हैं: यदि आप क़ुर्आन से लाभ उठाना चाहते हैं तो उस के सस्वर पाठ और सुनने समय ध्यान लगाए रखें,ध्यान से सुनें और इस प्रकार से ध्यान मग्न रहें मानो क़ुर्आन आप से संबोधित हो,क्योंकि क़ुर्आन नबी मुस्त़फा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के द्वारा आप के लिए अल्लाह का संबोधन है... ।


ह़दीस है कि: आप रात ऐसी आयतें अवतरित हुईं हैं कि जो व्यक्ति उन का सस्वर पाठ करे किन्तु उन में विचार न करे तो उस के लिए वैल (तबाही) है: إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَوَاتِ وَ الْأَرْضِ.... ﴾ الآية ﴿ इस ह़दीस को अल्बानी ने ह़सन कहा है।


हे अल्लाह हम तुझ से पूर्ण ईमान मांगते हैं..हे अल्लाह हमारे लिए ईमान को प्रिय और सुन्दर बना दे।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

आदरणीय सज्जनो

हर मुसलमान को चाहिए कि अपने दिल में ईमान के पेड़ को जल देता रहे और उसे खाद्य मुहैया करता रहे ताकि वह पेड़ बेहतर,स्थिर और मज़बूत रहे,और फल देता रहे,जो कि इबादतों को करने और पापों के कारणों से दूरी पर होता है जैसे इच्छाओं की लहर,नफसे अम्मारह (दुष्ट आत्मा) से दूरी।


ईमान में वृद्धि का एक कारण यह भी है कि:

क़ब्रों का दर्शन किया जाए,इससे प्रलय की याद ताजा होती है,सह़ीह़ ह़दीस है कि: मैं ने तुम्हें क़ब्रों के दर्शन से रोक दिया था,अब तुम क़ब्रों का दर्शन किया करो,क्योंकि यह प्रलय की याद दिलाती है ।


ए मेरे भाई आप क़ब्रस्तान का दर्शन किया करें,और विचार करें कि आप जब क़ब्रस्तान की एक क़ब्र में दफन किए जाएंगे तो उस समय आप की क्या स्थिति होगी,आप उस समय का याद करें ताकि अभी परचुरता से पुण्य करें,जब तक कि आप को अवसरऔर अवसर है,क़ब्रस्तान के दर्शन से हमारे अंदर यह भाव पैदा होता है कि हम अपना समीक्षाकरें,हम ने कौन से ऐसे पाप किये जिन से हम ने तौबा नहीं किया,क़ब्रस्तान का दर्शन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कौन से ऐसे पाप हैं जिन पर हम डटे रहे,क़ब्रस्तान का दर्शन हमें ऐसे पाप से रोक देता है जिस के विषय में हम सोच रहे होते हैं अथवा जिस की हम नीयत कर चुके होते हैं।


पांचवा कारण: वंदना एवं आज्ञाकारिता के वातावरण से निकट होना: ज्ञान एवं स्मरण के सभाओं से अल्लाह की वंदना की रूचि पैदा होती है,और बंदा को पापों से दूर रहने में सहायता मिलती है,पाप करने पर बंदा तौबा करने में जल्दी करता है,क्योंकि अल्लाह और उस के रसूल का बात दिल में ईमान का खोराक मुहैया करता है,और कोई जरूरी नहीं कि क़ुर्आन सुन कर ही यह स्थिति पैदा हो,बल्कि पढ़ कर भी ईमान में वृद्धि होता है,साहस बोलंद होता और मनुष्य आत्मा की सुधार की ओर बढ़ता है।


छटा कारण: शायद यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है,वह यह कि अल्लाह से सहायता मांगी जाए,उस से दुआ़ व आग्रह व अनुरोध किया जाए कि हमारे दिलों में ईमान को प्रिय और सुन्दर बनादे,हमारे दिलों में कुफ्र,फिस्क (अश्रद्धा) और अवज्ञा को अप्रिय बनादे और हमें सुपथ (सीधा मार्ग) पर चलने वाला बनाए,ह़दीसे क़ुदसी में आया है: ए मेरे बंदो तुम सब के सब गुमराह हो,सिवाए उस के जिस मैं हिदायत दूँ,तुम मुझ से हिदायत मांगो,मैं तुम्हें हिदायत दूँगा ।


(सह़ीह़ मुस्लिम)।

फजीलत वालो

आज्ञाकारिता से ईमान में वृद्धि होता और अवज्ञा से उस में कमी आती है,ईमान की कमी व वृद्धि में हमारा उदाहरण उस व्यक्ति के जैसा है जो एक कनटेनर को पानी से भरना चाहता है,किन्तु उस कनटेनर में बहुत से सुराख़ हैं जिन से पानी बह जाता है,उस में बड़े बड़े खुले हुए पाइप हैं,वह व्यक्ति कनटेनर में पानी डालता है और पानी रिस कर निकल जाता है,यदि वह पाइप के मुँह को और उस के समस्त सूराख़ को बंद करदे तो पानी को सुरक्षित करना आसान हो जाएगा और कनटेनर पानी से भर जाएगा,अवज्ञा भी वे सूराख़ हैं जिन के द्वारा ईमान की शक्ति रिस का निकल जाती है,उन सुराख़ों की संख्या अनेक होती है,कुछ सुराख़ छोटे होते हैं तो कुछ बड़े होते हैं,ह़दीस है कि: बलात्कारी मोमिन रहते हुए बलात्कार नहीं कर सकता,शराब पीने वाला मोमिन रहते हुए शराब नहीं पी सकता,चोर मोमिन रहते हुए चोरी नहीं कर सकता,और कोई व्यक्ति मोमिन रहते हुए लूट मार नहीं कर सकता कि लोगों की नज़रें उस की ओर उठी हुई हों और वह लूट रहा हो (सह़ीह़ बोख़ारी व सह़ीह़ मुस्लिम)।सुराख़ का आशय दुनिया में हमारी मबाह़ ( वे धार्मिक गतिविधि जिस के करने से पुण्य और न करने से पाप न हो) आवश्यकताएं हैं।


अंतिम बात: ए मेरे आदरणीय मित्रो

आज्ञाकारिता,ईमान,ख़ैर व भलाई और इह़सान का बहुमूल्य मोसम हमारे उूपर है,हम अल्लाह से दुआ़ करते हैं कि अल्लाह हमें यह मोसम नसीब करे और इस में आज्ञा और स्थिरता पर स्थिर रहने में हमारी सहायता फरमाए।


أعوذ بالله من الشيطان الرجيم: ﴿ مَنْ عَمِلَ صَالِحاً مِنْ ذَكَرٍ أَوْ أُنثَى وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَنُحْيِيَنَّهُ حَيَاةً طَيِّبَةً وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحسَنِ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ ﴾

अर्थात:जो भी सदाचार करेगा,वह नर हो अथवा नारी,और ईमान वाला हो तो हम उसे स्वच्छ जीवन व्यतीवत करायेंगे और उन्हें उन का पारिश्रमिक उन के उत्तम कर्मों के अनुसार अवश्य प्रदान करेंगे।


صلى الله عليه وسلم

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • زيادة الإيمان
  • زيادة الإيمان (باللغة الأردية)

مختارات من الشبكة

  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • فقه يوم عاشوراء (باللغة الفرنسية)(كتاب - موقع د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر)
  • كيفية الصلاة على الميت: فضلها والأدعية المشروعة فيها (مطوية باللغة الأردية)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • العناية بالشَّعر في السنة النبوية(مقالة - موقع د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر)
  • العناية بالقدمين في السنة النبوية(مقالة - موقع د. عبدالعزيز بن سعد الدغيثر)
  • الدبابة بين اللغة والتاريخ (WORD)(كتاب - ثقافة ومعرفة)
  • غنائم العمر - بلغة البشتو (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • "كلمة سواء" من أهل سنة الحبيب النبي محمد صلى الله عليه وسلم إلى أهل التشيع - باللغة الفارسية (مطوية)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • "كلمة سواء" من أهل سنة الحبيب النبي محمد صلى الله عليه وسلم إلى أهل التشيع - باللغة الروسية (مطوية)(كتاب - مكتبة الألوكة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • التخطيط لإنشاء مسجد جديد في مدينة أيلزبري الإنجليزية
  • مسجد جديد يزين بوسانسكا كروبا بعد 3 سنوات من العمل
  • تيوتشاك تحتضن ندوة شاملة عن الدين والدنيا والبيت
  • مسلمون يقيمون ندوة مجتمعية عن الصحة النفسية في كانبرا
  • أول مؤتمر دعوي من نوعه في ليستر بمشاركة أكثر من 100 مؤسسة إسلامية
  • بدأ تطوير مسجد الكاف كامبونج ملايو في سنغافورة
  • أهالي قرية شمبولات يحتفلون بافتتاح أول مسجد بعد أعوام من الانتظار
  • دورات إسلامية وصحية متكاملة للأطفال بمدينة دروججانوفسكي

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 10/2/1447هـ - الساعة: 21:56
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب