• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | المكتبة المرئية   المكتبة المقروءة   المكتبة السمعية   مكتبة التصميمات   كتب د. خالد الجريسي   كتب د. سعد الحميد  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    كتاب بريق التميز
    أ. أحمد بن عبيد الحربي
  •  
    الاستدراكات الأصولية على "تنقيح الفصول وشرحه" ...
    سامي عبد القادر شعيب برناوي
  •  
    الإعجاز العلمي في الصلاة (PDF)
    د. غمدان بن أحمد شريح آل الشيخ
  •  
    صفر.. والحر..
    الدكتور علي بن عبدالعزيز الشبل
  •  
    رشحات مداد بأربعين حديثا في الصافنات الجياد
    بكر البعداني
  •  
    حادثة الإفك... عبر وعظات (PDF)
    الشيخ ندا أبو أحمد
  •  
    مراحل تنزلات وجمع القرآن - دروس وعبر
    الشيخ أ. د. عرفة بن طنطاوي
  •  
    من علامات حسن الخاتمة (PDF)
    أبو جعفر عبدالغني
  •  
    الاشتقاق بين الإجماع والابتداع: نظرة في أثر جودة ...
    محمود حمدي فريد نجم
  •  
    الأربعون المنتخبة المهمة لعامة الأمة (PDF)
    شيماء بنت مصطفى بن يوسف آل شلبي
  •  
    لصوص الصلاة (PDF)
    الشيخ الدكتور سمير بن أحمد الصباغ
  •  
    إتحاف الأبرار بتهذيب كتاب الأنوار في شمائل النبي ...
    منشورات مركز الأثر للبحث والتحقيق
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

الإحسان إلى الناس ونفعهم (خطبة) (باللغة الهندية)

الإحسان إلى الناس ونفعهم (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 30/11/2022 ميلادي - 7/5/1444 هجري

الزيارات: 6893

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

लोगों के साथ भलाई करना और उन्‍हें लाभ पहुँचाना

 

अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी

प्रथम उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वा (धर्मनिष्‍ठा) अपनाने की वसीयत करता हूँ।

فأوصيكم ونفسي بتقوى الله.

خَابَ الَّذِي سَارَ عَنْ دُنْيَاهُ مُرْتَحِلاً

وَلَيْسَ فِي كَفِّهِ مِنْ دِينِهِ طَرَفُ

لاَ خَيْرَ لِلْمَرْءِ إِلاَّ خَيْرَ آخِرَةٍ

अर्थात:वह व्‍यक्ति विफल है जो इस संसार से चला जाता है और उस के हाथ में धर्म का कोई यात्रा-खर्चनहीं रहता।मनुष्‍य की वास्‍तविक ख़ैर व भलाई उसकी आखि़रत की ख़ैर व भलाई है जिस पर यदि वह स्थिर रहे तो आदर व सम्‍मान के लिए प्रयाप्‍त है।

 

ईमानी भाइयो

आइये हम और आप अपने मन व भावनाओंको طيبه الطيبه (मदीना मनौव्‍वारा) की ओर ले जाते हैं,सह़ाबा के दिन के आंरभिक भाग में रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम के पास घेरा लगा कर बैठे हैं,आप के सुंदर अखलाक और ज्ञान से लाभा‍न्वित हो रहे हैं,वे लकी हैं,उन्‍हें सौभाग्‍य का अधिकार भी प्राप्‍त है,वे लोग इसी स्थिति में थे-और यह अति उत्‍तम स्थिति है -मोज़र क़बीला (जनजाति) के कुछ लोग उन के पास आते हैं,वे नंगे पैर होते हैं,वे फटे पुराने उून शरीर पर ओढ़े होते हैं,उन का कुर्ता इतना छोटा होता है कि शरीर का कुछ भाग ही ढक पाता है,उन की गरदनों में तलवारें लटकी होती हैं,वे इतने दरिद्रता एवं मोहताजगी में होते हैं कि जिसे अल्‍लाह ही अच्‍छा जानता है।

उन के पैर ऐसे व्‍यक्ति के पास उन्‍हें खी़च लाते हैं जो समस्‍त जीवों से बढ़ कर उदारहै,समस्‍त लोगों से अधिक लोगों पर दयालु थे,क्‍यों न हों वे ऐसे व्‍यक्ति के पास आए जो अपने पालनहार से यह दुआ़ करते थे कि उन्‍हें दरिद्रों का प्रेम प्रदान फरमा,अत: जब आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने उन्‍हें देखा तो आप के चेहरे का रंग बदल गया,उस के पश्‍चात आप अपने घर में प्रवेश हुए,और निकले तो परेशान थे,जेहन व्‍यस्‍थ था,उदास नज़र आ रहे थे,आप ने बिलाल को आदेश दिया,उन्‍हों ने अज़ान दिया,इक़ामत कही और आप ने नमाज़ पढ़ाई,उस के पश्‍चात उपदेशदिया और फरमाया:

﴿ يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ مِنْ نَفْسٍ وَاحِدَةٍ وَخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِيرًا وَنِسَاءً وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي تَسَاءَلُونَ بِهِ وَالْأَرْحَامَ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا ﴾ [النساء: 1]

अर्थात: हे मनुष्यों अपने उस पालनहार से डरो,जिस ने तुम को एक जीव (आदम) से उत्पन्न किया,तथा उसी से उस की पत्नी (हव्वा) को उत्पन्न किया,और उन दोनों से बहुत से नर नारी फैला दिये,उस अल्लाह से डरो जिस के द्वारा तुम एक दूसरे से (अधिकार) माँगते हो,तथा रक्त संबंधों को तोड़ने से डरो,निस्संदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षक है।


﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَلْتَنْظُرْ نَفْسٌ مَا قَدَّمَتْ لِغَدٍ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ ﴾ [الحشر: 18]

अर्थात: हे लोगो जो ईमान लाये हो अल्लाह से डरो,और देखना चाहिये प्रत्येक को कि उस ने क्या भेजा है कल के लिये,तथा डरते रहो अल्लाह से निश्चय अल्लाह सूचित है उस से जो तुम करते हो।


(फिर फरमाया) मनुष्‍य पर अनिवार्य है कि वह अपने दीनार से अपने दिरहम से अपने कपड़े से अपने गेहूं के एक साअ़ (साढ़े तीन किलो से अधिक) से अपने खजूर के एक साअ़ (साढ़े तीन किलो से अधिक) से-यहाँ तक कि आप ने फरमाया: चाहे खजूर के एक टुकड़े के द्वारा दान करे-(जरीर ने) कहा: तो अंसार में से एक व्‍यक्ति एक थेली लाया उस की हथेली उस (को उठाने) से विवशआने लगी थी बल्कि विवशआ गई थी-कहा: फिर लोग एक दूसरे के पीछे आने लगे यहाँ तक कि मैं ने खाने और कपड़ों के दो ढ़ेर देखे यहाँ तक कि मैं ने रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम का शुभ चेहरा देखा वह इस प्रकार से चमक रहा था जैसे उस पर सोना चढ़ा हुआ हो।


इसी प्रकार से आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम का चेहरा खिल उठा,आप की उदासी जाती रही,क्‍योंकि आप ने अपनी आंखों से देखा कि आप की उम्‍मत के लोग अपने भाइयों की आवश्‍यकता मह़सूस कर रहे हैं,उन के ग़म में शरीक हो रहे हैं,एक शरीर और उम्‍मत होने का उत्‍तम आदर्श प्रस्‍तुत कर रहे हैं,जब वह अंसारी आए जिन के हाथ में थैली थी औस उस का बोझ उन को दबा रहा था,तो आप ने इस धर्म का एक मूल्‍य बयान फरमाया जो धर्म की उच्‍चता एवं उस की महानता व आसानी पर साक्ष है,आप ने फरमाया: जिस ने इस्‍लाम में कोई अच्‍छा तरीका प्रचलित किया तो उस के लिए उस का (अपना भी) पुण्‍य है और उन के जैसा भी जिन्‍हों ने उस के पश्‍चात उस (तरीका) पर अ़मल किया इस के बिना कि उन के पुण्‍य में कोई कमी हो और जिस ने इस्‍लाम में किसी बुरे तरीक़े को प्रचलित किया उस का बोझ उसी पर है और उनका बोझ भी जिन्‍होंने उस के पश्‍चात उस पर अ़मल किया इस के बिना कि उन के बोझ में कोई कमी हो ।यह घटना सह़ीह़ मुस्लिम में आया है।


इस सार्थकह़दीस में कितना अधिक बलपूर्वक दावत दी गई है कि ख़ैर व भलाई के काम में और लाभदायक परियोजनाके आरंभ में हम एक दूसरे पर आगे बढ़ने का प्रयास करें यह केवल धार्मिक मामलों तक ही सीमित नहीं है,बल्कि संसारिक स्त्रोतों को भी समिल्लित है,इस का उदाहरण यह है कि ख़लीफा उ़मर बिन अलख़त्ताब रज़ीअल्लाहु अंहु ने फौजी छावनी बनाया और उस समय देश की नीति को देखते हुए प्रशासनिक मामले तैयार किये।


आदरणीय सज्जनो हमारे धर्म ने लोगों को लाभ पहुँचाने और उन के साथ सुंदर व्यवहार करने को एक महान वंदना कहा है,अल्लाह तआ़ला ने अनेक आयतों में इह़सान (दया) करने की दावत दी है,और यह सूचना दी है कि वह इह़सान (दया) करने वालों को पसंद करता है,वह इह़सान (कृपा) करने वालों के साथ है,वह इह़सान करने वालों का बदला इह़सान ही देता है,वह इह़सान करने वालों को स्वर्ग और अपना दर्शन प्रदान करेगा,वह इह़सान करने वालों का पुण्य नष्ट नहीं करता,और जो व्यक्ति पुण्य के कार्य करता है,उसक अ़मल नष्ट नहीं करता,क़ुर्आन पाक में अनेक स्थानों पर इह़सान (दया) का उल्लेख आया है,कभी ईमान के साथ और कभी तक़्वा (धर्मनिष्ठा) अथवा सदाचार के साथ यह इस बात पर साक्ष है कि इह़सान (दया) का बड़ा महत्व है और अल्लाह तआ़ला के निकट इस पर बड़ा पुण्य है।


इह़सान (दया) दूसरों के साथ सुंदर व्यवहार का नाम है,यह दूसरे पर उपकार एवं अनुदान करने का नाम है,इह़सान (कृपा) बंदा और उस के रब के बीच भी होता है,बल्कि यह धर्म का सर्वोच्च श्रेणी है,नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस की व्याख्या यह बयान फरमाई है कि:आप इस प्रकार से अल्लाह की प्रार्थना करें मानो आप उसे देख रहे हों और यदि यह भाव न पैदा हो पाए तो कम से कम यह कल्पना करें कि वह आप को देख रहा है।इस का मतलब यह है कि बंदा इस भाव से साथ प्रार्थना करे कि वह अल्लाह तआ़ला के निकट है,वह अपने पालनहार के समक्ष खड़ा है और वह उसे देख रहा है,इससे विनयशीलता,भय और आदर पैदा होता है,वंदना में मनुष्य पूर्णता,सुंदरता और संपूर्णता का ध्यान रखता है।


ए मोमिनो

लोगों को लाभ पहुँचाना और उन की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास करना पैगंबरों व रसूलों की विशेषताओं में से है,अत: उदारव दयालु यूसुफ अलैहिस्सलाम के भाइयों ने उन के साथ जो व्यवहार भी किया,उसको नजर अंदाज करते हुए उन्होंने उन के लिए जीवन यापन के स्त्रोतों का व्यवस्था किया,उन के साथ कोई कमी नहीं की,मूसा अलैहिस्सलाम जब मदयन के कुंए के पास पहुँचे तो वहाँ लोगों के एक समूह को देखा कि वह पानी पिला रहा है और दो दुर्बल महिलाएं अलग ख़ड़ी हैं,उन्होंने कुंवा से पत्थर उठाया और उन दोनों की बकरियों को स्वयं पिलाया यहाँ तक कि उनका पैट भर गया,ख़दीजा रज़ीअल्लाहु अंहा हमारे नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुण बयान करती हुई फरमाती हैं: आप सिला रह़मी करते हैं,कमज़ारों का बोझ उठाते हैं, विवश लोगों के लिए कमाते हैं मेहमानों को खाना खिलाते हैं,और सत्य पर स्थिर रहने वाले व्यक्ति पर आने वाली कठिनाइयों में उस की सहायता करते हैं ।


दरिद्र एवं मुहताज की दरिद्रता में धनी के लिए आज़माइश है,दुर्बल की मजबूरी में शक्तिशाली का परीक्षा है,रोगी के रोग में स्वस्थ के लिए नीति छुपा है,संसार की इसी सुन्नत के चलते इस्लाम में लोगों के बीच आपसी सहायता पर प्रोत्साहित किया गया है और उन की कठिनायों को दूर कर ने की रूचि दिलाई गई है,इब्नुलक़य्यिम रह़िमहुल्लाह लिखते हैं: बुद्धि व ग्रंथ एवं स्वभाव और समस्त समुदायों के अनुभव-यद्यपि वे विभिन्न लिंगों व जातियों एवं विभिन्न समुदायों से थे और उन के तरीके भी विभिन्न थे-इस बात पर साक्ष हैं कि अल्लाह तआ़ला की निकटता और उस की जीवों के साथ ख़ैर व भलाई और सुंदर व्यवहार करना उन महान कारणों में से है जिन से प्रत्येक प्रकार की भालाई प्राप्त होती है,जब कि उन के विपरीत अ़मलें उन महानतम कारणों में से है जिन से प्रत्येक प्रकार की दुष्टता प्राप्त होती है,अल्लाह के उपकार प्राप्त करने और उस की यातनाओं को दूर करने का सबसे प्रभावी तरीका यह है कि उसका अनुसरण किया जाए और उस के जीव के साथ इह़सान (दया) किया जाए ।समाप्त


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

लागों की सेवा करना और दुर्बलों के साथ खड़ा होना इस बात का प्रमाण है कि व्यक्ति अच्छे और पवित्र वंशवाला है,उसके सीने में पवित्र हृदय है,उसकी नीयत और स्वभाव भी अच्छा है,हमारा पालनहार उन बंदों पर कृपा करता है जो दूसरों पर कृपा करते हैं,सत्यवान अपनी ओर से कुछ नहीं बोलते थे-सलल्लाहु अलैहि वसल्लम-उन्होंने इह़सान (दया) के प्रति एक महान नियम बयान किया है:

जिस व्यक्ति ने किसी मुसलमान के संसारिक कठिनाइयों में से कोई किसी कठिनाई को दूर किया,अल्लाह तआ़ला उसकी प्रलय की कठिनाइयों में कोई कठिनाई दूर करेगा और जिस व्यक्ति ने किसी दरिद्र के लिए आसानी की,अल्लाह तआ़ला उस के लिए दुनिया एवं प्रलय में आसानी करेगा और जिस ने किसी मुसलमान के दोषको छुपाया,अल्लाह तआ़ला दुनिया एवं प्रलय में उसके दोषको छुपाएगा और अल्लाह तआ़ला उस समय तक बंदे की सहायता में लगा रहता है जब तक बंदा अपने भाई की सहायता में लगा रहता है ।मुस्लिम


यह सिद्धांत बिल्कुल स्पष्ट है,पुण्य एवं यातना अ़मल के अनुसार ही मिलता है।


मेरे इस्लामी भाइयो इह़सान (दया) से सर्व प्रथम लाभान्वित होने वाले वही होते हैं जो स्वयं इह़सान करते हैं,उनको ही इह़सान (कृपा) का फल मिलता है,जल्द ही उन को इह़सान का फल उन की आत्मा में,आदतों एवं व्यवहार में और अपने जमीर के अंदर मह़सूस होता है,वह खुला हृदय,शांति व संतुष्टि महसूस करते हैं।


इह़सान सुगन्धके जैसा है,जो उस को रखने वाले,उसे बेचने और खरीदने वाले सभों को लाभ पहुँचाती है,एक दुराचारीमहिला कुत्ते को पानी पिला कर उस स्वर्ग में प्रवेश हो जाती है जिस का विस्तार आकाशों एवं धरती के बराबर है।क्योंकि पुण्य देने वाला (पालनहार) बड़ा क्षमाशील,सम्मान रकने वला,बेपरवाह और गुणों वाला,उदार है,इस लिए-ए मेरे मोह़सिन (दयालु) भाई अपने इह़सान को,अपनी उदातराऔर प्रदान को तुच्छ न जानें,चाहे वे जितनी भी छोटी हो।

أَحْسِنْ إِلَى النَّاسِ تَسْتَأْسِرْ قُلُوبَهُمُ

فَطَالَمَا اسْتَأْسَرَ الإِنْسَانَ إِحْسَانُ

وَكُنْ عَلَى الدَّهْرِ مِعْوَانًا لِذِي أَمَلٍ

يَرْجُو نَدَاكَ فَإِنَّ الْحُرَّ مِعْوَانُ

अर्थात:

लोगों के साथ इह़सान (कृपा) करो,उन के दिल तुम्हारे अनुयायी हो जोएंगे।

अधिकतर ऐसा होता है कि इह़सान मनुष्य को अनुयायी बना लेता है।


सवैद आशावानव्यक्ति के लिए सहायक बन कर रहो,जो तेरी उदातराऔर सहायता की आशा करता हो,क्योंकि स्वतंत्र व्यक्ति सहायक होता है।

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • من مشكاة النبوة (6) "أين ابن عمك" (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (7) الطفلة والصلاة!! (خطبة) (باللغة الهندية)
  • من مشكاة النبوة (8) حفظ الجميل (خطبة) (باللغة الهندية)
  • تعظيم صلاة الفريضة وصلاة الليل (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الأم (خطبة) (باللغة الهندية)
  • الموت (خطبة) (باللغة الهندية)
  • ثمرات الإحسان (خطبة)
  • خطبة الإحسان إلى الناس

مختارات من الشبكة

  • فقه الإحسان (3): {هل جزاء الإحسان إلا الإحسان}(مقالة - موقع الشيخ إبراهيم بن محمد الحقيل)
  • كف الأذى عن الناس (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • سلسلة شرح الأربعين النووية: الحديث (26) «كل سلامى من الناس عليه صدقة» (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة المسجد الحرام 16/8/1433 هـ - الإحسان(مقالة - آفاق الشريعة)
  • تفسير: (وما أرسلناك إلا كافة للناس بشيرا ونذيرا ولكن أكثر الناس لا يعلمون)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الإحسان إلى الناس ونفعهم (باللغة الأردية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الإحسان إلى الناس ونفعهم(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: {وأنيبوا إلى ربكم} (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من مشكاة النبوة (5) "يا أم خالد هذا سنا" (خطبة) - باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أولى الناس بالنبي صلى الله عليه وسلم يوم القيامة أكثرهم صلاة عليه(مادة مرئية - مكتبة الألوكة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • 57 متسابقا يشاركون في المسابقة الرابعة عشرة لحفظ القرآن في بلغاريا
  • طلاب هارفارد المسلمون يحصلون على مصلى جديد ودائم بحلول هذا الخريف
  • المعرض الرابع للمسلمين الصم بمدينة دالاس الأمريكية
  • كاتشابوري تحتفل ببداية مشروع مسجد جديد في الجبل الأسود
  • نواكشوط تشهد تخرج نخبة جديدة من حفظة كتاب الله
  • مخيمات صيفية تعليمية لأطفال المسلمين في مساجد بختشيساراي
  • المؤتمر السنوي الرابع للرابطة العالمية للمدارس الإسلامية
  • التخطيط لإنشاء مسجد جديد في مدينة أيلزبري الإنجليزية

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 22/2/1447هـ - الساعة: 15:24
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب