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اللهم يا مقلب القلوب ثبت قلبي على دينك (باللغة الهندية)

اللهم يا مقلب القلوب ثبت قلبي على دينك (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

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تاريخ الإضافة: 14/12/2022 ميلادي - 21/5/1444 هجري

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(हे दिलों को फेरने वाले तू मेरे दिल को अपने धर्म पर स्थिर रख)


र्स्‍वश्रेष्‍ठ बात अल्‍लाह की बात है,र्स्‍वोत्‍तम मार्ग दर्शन मोह़म्‍मद सलल्‍लाहु अलैहि सवल्‍लम का मार्ग दर्शन है और दुष्‍टतम चीज़ (इस्‍लाम में) नवाचार हैं और प्रत्‍येक बिदअ़त (नवाचार) गुमराही है।


ऐ ईमानी भाइयो अल्‍लाह का र्स्‍वेश्रेष्‍ठ उपकार सुपथ (सीधा मार्ग) है जिसे अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने अपने रब से मांगा और अपने सह़ाबा को इसको मांगने का निर्देश दिया,यह वही हिदायत है जिसे नमाज़ी प्रत्‍येक रकअ़त में अपने रब से मांगता है

﴿اهدِنَـا الصِّرَاطَ المُستَقِيمَ﴾ [الفاتحة:6]

अर्थात:हमें सुपथ (सीधी मार्ग) दिखा।


ऐ रह़मान के बंदो आज हमारे चर्चा का विषय सुपथ पर स्थिरता है।


हां,यह रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम हैं जैसा कि आपके सेवक अनस बिन मालिक,नव्‍वास बिन समआ़न,आयशा और उम्‍मे सलमा रज़ीअल्‍लाहु अंहुम ने आप के विषय में बताया कि आप अल्‍लाह से अधिक स्थिरता की दुआ़ किया करते थे,अत: अनस बिन मालिक रज़ीअल्‍लाहु अंहु से वर्णित है वह कहते हैं कि रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम अधिकरत यह कहा करते थे: हे अल्‍लाह मेरे दिल को अपने धर्म पर स्थिर रख ,मैं ने पूछा:हे अल्‍लाह के रसूल हम तो आप पर और उन शिक्षाओं पर ईमान ला चुके हैं जो आप ले कर आए,तो क्‍या आप हमारे प्रति भय रखते हैं आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया: नि:संदेह लोगों के दिल रह़मान के दोनों उंगलियों के बीच हैं,उन्‍हें वह उलटता पलटता है (इस ह़दीस को इमाम अह़मद और इमाम तिरमिज़ी ने वर्णित किया है और अ़ल्‍लामा अल्‍बानी ने इस ह़सन कहा है)।


आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम समृद्धिके बाद दुर्गतिसे शरण मांगते थे।


ए ईमानी भाइयो हिदायत के बाद गुमराही का डर विश्‍वासियों बल्कि ठोस ज्ञान वालों के दिलों में भी खटकता रहता है:

﴿وَالرَّاسِخُونَ فِي الْعِلْمِ يَقُولُونَ آمَنَّا بِهِ كُلٌّ مِّنْ عِندِ رَبِّنَا وَمَا يَذَّكَّرُ إِلاَّ أُوْلُواْ الألْبَابِ * رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ﴾ [آل عمران: 7-8]

 

अर्थात:उसी ने आप पर यह पुस्‍तक उतारी है जिस में कुछ आयतें मुह़्कम (सुदृढ़) हैं जो पुस्‍तक का मूल आधार हैं,तथा कुछ दूसरी मुतशाबिह (संदिग्‍ध) हैं।तो जिन के दिलों में कुटिलता है वह उपद्रव की खोज तथा मनमानी अर्थ करने के लिये संदिग्‍ध के पीछे पड़ जाते हैं,जब कि उन का वास्‍तविक अर्थ अल्‍लाह के सिवा कोई नहीं जानता,तथा जो ज्ञान में जक्‍के हैं वह कहते हैं कि सब हमारे पालनहार के पास से है,और बुद्धिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।


(तथा कहते हैं): हे हमारे पालनहार।हमारे दिलों को मार्गदर्शन देने के पश्‍चात कुटिल न कर,तथा हमें अपनी दया प्रदान कर,वास्‍तव में तू बहुत बड़ा दाता है।


इच्‍छाओं एवं आशंकाओं के फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) किसी भी युग में इस प्रकार से प्रचलित नहीं थे जिस प्रकार से हमारे युग में है, والله أعلم ,काफिरों कपटियों,नास्तिकों,अशिकक्षतों और इच्‍छा के पीछे भागने वालों के ओर से पढ़ने,देखने और सुनने के विभिन्‍न माध्‍यमों के द्वारा उन्‍हें प्रचलित किया जा रहा है।


ऐ सज्‍जनों के समूह फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) दो प्रकार के होते हैं,एक इच्‍छाओं का फितना (अत्‍याचार एवं उपद्रव) और दूसरा आशंकाओं का फितना (अत्‍याचार एवं उपद्रव) है,अधिक फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) इच्‍छाओं के कारण होते हैं और अधिक खतरनाक आशंकाओं का फितना (अत्‍याचार एवं उपद्रव) है,क्‍योंकि यह फितना (अत्‍याचार एवं उपद्रव) कभी कभी नास्तिकताव कुफ्र के मार्ग पर ले जाता है,आशंकाओं का फितना (अत्‍याचार एवं उपद्रव) दोनों वह़्य (क़ुर्रान एवं ह़दीस के) से सिद्ध चीज़ों को संदिग्ध बनाना,अथवा उसे व्‍यर्थकरना है,आशंकाओं का एक दूसरा फितना (अत्‍याचार एवं उपद्रव) इस्‍लामी स्‍त्रोतों में निराधार व्‍याख्‍याओंकरना है जो आत्‍म के इच्‍छाओं के बल पर किए जाते हैं,आशंकाओं का एक फितना उम्‍मत में होने वाली निराधार काफिर बनाने,विनाश,बमबारी और मासूम प्राणों की हत्‍या है।


ऐ रह़मान के बंदो फितनें (अत्‍याचार एवं उपद्रव) भिन्‍न प्रकार के होते हैं: ह़ोज़ैफा बिन यमान रज़ीअल्‍लाहु अंहुमा ने बताया कि अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम एक सभा में फितनों (अत्‍याचार एवं उपद्रव) को गिना रहे थे: उन में से तीन (फितने) ऐसे हैं जो तकरीबन किसी चीज़ को बाकी नहीं छोड़ेंगे और उन में से कुछ फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) ऐसे हैं जो गरमी ऋीतु की आंधियों के जैसे हैं उनमें कुछ छोटे हैं कुछ बड़े हैं। (इस ह़दीस को इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है)।


ऐ ईमानी भाइयो फितनों (अत्‍याचार एवं उपद्रव) की नीति आज़माइश व परीक्षण है:

﴿ الم * أَحَسِبَ النَّاسُ أَن يُتْرَكُوا أَن يَقُولُوا آمَنَّا وَهُمْ لَا يُفْتَنُونَوَلَقَدْ فَتَنَّا الَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ فَلَيَعْلَمَنَّ اللَّهُ الَّذِينَ صَدَقُوا وَلَيَعْلَمَنَّ الْكَاذِبِينَ ﴾ [العنكبوت1-3].

अर्थात:अलिफ़,लाम,मीम। क्‍या लोगों ने समझ रखा है कि वह छोड़ दिये जायेंगे कि वह कहते हैं,हम ईमान लाये और उन की परिक्षा नहीं ली जायेगी और हम ने परीक्षा ली है उन से पूर्व के लोगों की ,तो अल्‍लाह अवश्‍य जानेगा उन को जो सच्‍चे हैं,तथा अवश्‍य जोनगा झूठों को।


अल्‍लाह तआ़ला फरमाता है:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ لَيَبْلُوَنَّكُمُ اللّهُ بِشَيْءٍ مِّنَ الصَّيْدِ تَنَالُهُ أَيْدِيكُمْ وَرِمَاحُكُمْ لِيَعْلَمَ اللّهُ مَن يَخَافُهُ بِالْغَيْبِ فَمَنِ اعْتَدَى بَعْدَ ذَلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴾ [المائدة 94].

अर्थात:हे ईमान वालो अल्‍लाह कुछ शिकार द्वारा जिन त‍क तुम्‍हारे हाथ तथा भाले पहुंचेंगे,अवश्‍य तुम्‍हारी प‍रीक्षा लेगा,ताकि यह जाप ले कि तुम में फिर इस (आदेश) के पश्‍चात जिस ने (इस का) उल्‍लंघन किया,तो उसी के लिये दु:खदायी यातना है।


सत्‍य एवं असत्‍य के मध्‍य युद्ध प्राचीन काल से चली आ रही है।


ऐ सज्‍जनों के समूह क्‍या आप क़सम के उस संस्‍करणको जानते हैं जिस के द्वारा अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम अधिकतर क़सम खाया करते थे :इब्‍ने उ़मर रज़ीअल्‍लाहु अंहुमा कहते हैं कि नबी सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम अधिकतर इस प्रकार से क़सम खाया करते थे: क़सम उसकी जो दिल को फेर देने वाला है (इस ह़दीस को इमाम बोखारी ने रिवायत किया है)।


इमाम निसाई ने इब्‍ने उ़मर रज़ीअल्‍लाहु अंहुमा से रिवायत किया है वह कहते हैं:रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम जो क़सम खाते थे वह यह थी «لا ومصرف القلوب»  (नहीं,उसकी क़सम जो दिलों को फेरने वाला है)।


आप की यह स्थिति है जब आप के उूपर अल्‍लाह तआ़ला का यह कथन अवतरित हुआ:

﴿وَإِن كَادُواْ لَيَفْتِنُونَكَ عَنِ الَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ لِتفْتَرِيَ عَلَيْنَا غَيْرَهُ وَإِذاً لاَّتَّخَذُوكَ خَلِيلاً * وَلَوْلاَ أَن ثَبَّتْنَاكَ لَقَدْ كِدتَّ تَرْكَنُ إِلَيْهِمْ شَيْئاً قَلِيلاً * إِذاً لَّأَذَقْنَاكَ ضِعْفَ الْحَيَاةِ وَضِعْفَ الْمَمَاتِ ثُمَّ لاَ تَجِدُ لَكَ عَلَيْنَا نَصِيراً﴾ [الإسراء من 73-75].

अ‍र्थात:और (हे नबी ) वह (काफिर) समीप था कि आप को उस वह्यी से फेर दें,जो हम ने आप की ओर भेजी है,ताकि आप हमारे उूपर अपनी ओर से कोई दूसरी बात घड़ लें,और उस समय व‍ह आप को अवश्‍य अपना मित्र बना लेते।


और यदि हम आप को सुदृढ़ न रखते,तो आप उन की ओर कुछ न कुछ झुक जोते।तब हम आप को जीवन की दुगुनी तथा मरण की दोहरी यातना चखाते,फिर आप अपने लिये हमारे उूपर कोई सहायक न पाते।


हे अल्‍लाह,दिलों को फेरने वाले हमारे दिलों को अपने धर्म पर जमादे,हे अल्‍लाह हम तुछ से हिदायत मांगते हैं,तक्‍़वा मांगते हैं,सतीत्‍व की दुआ़ करते हैं,प्रचुरता एवं उदासीनतामांगते हैं:

﴿ رَبَّنَا لاَ تُزِغْ قُلُوبَنَا بَعْدَ إِذْ هَدَيْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحْمَةً إِنَّكَ أَنتَ الْوَهَّابُ ﴾

अर्थातLतथा कहते हैं):हे हमारे पालनहार हमारे दिलों को हमें मार्गदर्शन देने के पश्‍चात कुटिल न कर,तथा हमें अपनी दया प्रदान कर।वास्‍तव में तू ब‍हूत बड़ा दाता है।


अल्‍लाह से तौबा व इस्तिगफार कीजिए नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।

 

द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्‍चात:ऐ रह़मान के बंदो अल्‍लाह की तौफीक़ (कृपा) से हिदायत पर स्थिरता प्राप्‍त होती है,और इसके कई कारण हैं,और बंदा के लिए अनिवार्य है कि वह हिदायत पर स्थिर रहने चाह के लिए इन कारणों को अपनाए।


अल्‍लाह जिन कारणों से बंदा को स्थिरता प्रदान करता है उन में से एक यह है कि बंदा यह भाव एवं इहसास पैदा करे कि वह फकीर,दुर्बल है और उसे अल्‍लाह की आवश्‍यकता है,और स्थिरता के लिए अल्‍लाह से दुआ़ करे,और हम ने कुछ पहले जिन स्‍त्रोतों का उल्‍लेख किया है वे प्रयाप्‍त हैं।


हिदायत पर स्थि‍र रहने का एक दूसरा कारण इस्‍लाम के समस्‍त आदेशों एवं नियमों का पालन किया जाए:

﴿ وَلَوْ أَنَّهُمْ فَعَلُواْ مَا يُوعَظُونَ بِهِ لَكَانَ خَيْراً لَّهُمْ وَأَشَدَّ تَثْبِيتاً * وَإِذاً لَّآتَيْنَاهُم مِّن لَّدُنَّـا أَجْراً عَظِيماً * وَلَهَدَيْنَاهُمْ صِرَاطاً مُّسْتَقِيما﴾ [النساء 66-68].

अर्थात:और यदि हम उन्‍हें आदेश देते कि स्‍वयं को बध करो,तथा अपने घरों से निकल जाओ तो इन में से थोड़े के सिवा कोई ऐसा नहीं करता,और यदि उन्‍हें जो दिर्देश दिया जाता है वह उस का पालन करते तो उन के लिये अच्‍छा और अधिक स्थिरता का कारण होता।और हम उन को अपने पास से बहुत बड़ा प्रतिफल देते।तथा हम उन्‍हें सीधी डगर दर्शा देते।


﴿ فَعَلُواْ مَا يُوعَظُونَ بِهِ ﴾

(यदि यह वही करें जिस की उन्‍हें परामर्श की जाती है)इन परामर्शों को सुनने के पश्‍चात महत्‍वपूर्ण बात यह है कि उसका पालन किया जाए,केवल सुन लेना प्रयाप्‍त नहीं:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ ادْخُلُواْ فِي السِّلْمِ كَافَّةً ﴾ [البقرة208].

अर्थात:हे ईमान वालो तुम सर्वथा इस्‍लाम में प्रवेश कर जाओ।


फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) के युग में जमे रहने का एक कारण क़ुर्रान पाक के द्वारा हिदायत प्राप्‍त करना है,अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ قُلْ نَزَّلَهُ رُوحُ الْقُدُسِ مِن رَّبِّكَ بِالْحَقِّ لِيُثَبِّتَ الَّذِينَ آمَنُواْ وَهُدًى وَبُشْرَى لِلْمُسْلِمِينَ ﴾ [النحل102].

अर्था‍त:आप कह दें कि इसे ((रूहुल कुदुस)) ने आप के पालनहार की ओर से सत्‍य के साथ क्रमश: उतारा है ताकि उन्‍हें सुदृढ़ कर दे जो ईमान लाये हैं,तथा मार्ग दर्शन और शुभ सूचना है आज्ञाकारियों के लिये।


फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) एवं इच्‍छा के तूफान के युग में जमे रहने का एक कारण मुक्ति लोगों की संगत है जो एक दूसरे को सत्‍य एवं सब्र की वसीयत करते हैं:

﴿ وَاصْبِرْ نَفْسَكَ مَعَ الَّذِينَ يَدْعُونَ رَبَّهُم بِالْغَدَاةِ وَالْعَشِيِّ يُرِيدُونَ وَجْهَهُ وَلَا تَعْدُ عَيْنَاكَ عَنْهُمْ تُرِيدُ زِينَةَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَا تُطِعْ مَنْ أَغْفَلْنَا قَلْبَهُ عَن ذِكْرِنَا وَاتَّبَعَ هَوَاهُ وَكَانَ أَمْرُهُ فُرُطاً ﴾ [الكهف 28].

अर्थात:और आप उन के साथ रहें जो अपने पालनहार की प्रात: संध्‍या बंदगी करते हैं,वे उस की प्रसन्‍नता चाहते हैं और आप की आँख संसारिक जीवन की शोभा के लिये उन से न फिरने पायें और उस की बात न मानें जिस के दिल को हम ने अपनी याद से निश्‍चेत कर दिया,और उस ने मनमानी की,और जिस का काम ही उल्‍लंघन (अवैज्ञा करना) है।


हिदायत पर जमे रहने का एक दूसरा कारण यह भी है कि अल्‍लाह के रसूल की जीवनी,पैगंबरों के किस्‍से,सह़ाबा और उनके पश्‍चात के सत्‍य लोगों की कहानियों को अध्‍ययन करके आत्‍मा की खुशकी को दूर किया जाए और उसे प्रसन्‍न किया जाए:

﴿ وَكُـلاًّ نَّقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ أَنبَاء الرُّسُلِ مَا نُثَبِّتُ بِهِ فُؤَادَكَ ﴾ [هود120].

अर्थात:और (हे बनी ) यह नबियों की सब कथाऐं हम आप को सुना रहे हैं,जिन के द्वारा आप के दिल को सुदृढ़ कर दें।


स्थिर रहने और फितनों से मुक्ति प्राप्‍त करने का एक कारण अल्‍लाह के रसूल सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम की सुन्‍न्‍त को बलपूर्वक थामना है,सह़ी ह़दीस में आया है: इस लिए कि जो मेरे पश्‍चात तुम में से जीवित रहेगा जल्‍द ही वह अनेक वि‍वाद देखेगा,तो तुम मेरी सुन्‍नत और सीधीडगरखलीफाओं के मार्ग को अपनाना,तुम उससे चिमट जाना,और उसे दांतों से बलपूर्वक पकड़ लेना (इस ह़दीस को इमाम अह़मद,इमाम अबू दाउूद और तिरमिज़ी ने रिवायत किया है और इब्‍ने हि़ब्‍बान ने इसे सह़ी कहा है)।


इच्‍छाओं एवं संदेहों के फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) में आने से बचने का एक कारण इन इच्‍छाओं एवं संदेहों के स्‍थानों से दूर रहना,ह़दीस में आया है: जो दज्‍जाल के विषय में सुने कि वह प्रकट हो चुका है तो वह उससे दूर रहे (इसे इमाम अह़मद और इमाम अबू दाउूद ने रिवायत किया है)।


विद्धानों ने कहा कि इस ह़दीस में जहां फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) के स्‍थानों पर जाने से रोका गया है वहीं इस बात को स्‍पष्‍ट भी किया गया है कि फितनों से मुक्ति पाने का एक बड़ा कारण फितना (अत्‍याचार एवं उपद्रव) एवं फितने (अत्‍याचार एवं उपद्रव) के स्‍थानों से दूर रहना है।


अंत में जमे रहने का एक बड़ा करण दिल की अच्‍छाईऔर अल्‍लाह के लिए एखलास(निष्‍कपटता) पैदा करना है,स‍ह़ी ह़दीस में आया है: एक व्‍यक्ति जीवन भर देखने में स्‍वर्ग वासियों वाला कार्य करता है जबकि वह नरक वासियों में से होता है और एक व्‍यक्ति देखने में नरक वासियों वाला कार्य करता है ज‍बकि वह स्‍वर्ग वासियों में से होता है ।(इस ह़दीस को इमाम बोखारी एवं इमाम मुस्लिम ने रिवायत किया है)।


रसूलुल्‍लाह सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम का यह फरमान: इस बात की ओर इशारा करता है कि उसका भीतर,बाहरके विपरीत होता है,इसी लिए नीयत की बुराई मनुष्‍य पर प्रभावित हो जाती है और उसे हिदायत से गुमराही की ओर फेर देती है....


दरूद व सलाम पढ़ें

صلى الله عليه وسلم.

 

 





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