• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | المكتبة المرئية   المكتبة المقروءة   المكتبة السمعية   مكتبة التصميمات   المكتبة الناطقة   كتب د. خالد الجريسي   كتب د. سعد الحميد  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    الاستدراكات الأصولية لشمس الدين الكرماني (ت ...
    محمد عايد الشمري
  •  
    ربحت الإسلام دينا ولم أخسر إيماني بالمسيح عليه ...
    محمد السيد محمد
  •  
    قصص القرآن والسنة دروس وعبر: دعوة نبي الله سليمان ...
    الشيخ الدكتور سمير بن أحمد الصباغ
  •  
    الحج المبرور ثوابه الجنة
    جمعية مشكاة النبوة
  •  
    أسلوبية التضاد الدلالي في أحاديث رياض الصالحين ...
    أ. م. د. مازن موفق صديق الخيرو
  •  
    فتح الرحيم في ضبط المتشابه في القرآن الكريم (PDF)
    منصة دار التوحيد
  •  
    جني الثمار شرح صحيح الأذكار - باللغة الإنجليزية ...
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
  •  
    مخطوط فقده مؤلفه: الاستمساك بأوثق عروة في الأحكام ...
    د. أحمد عبدالباسط
  •  
    مصادر الأخلاق الحسنة (3)
    أ. د. حسن بن محمد بن علي شبالة
  •  
    غسل الحوبة بأربعين حديثا في التوبة (PDF)
    منشورات مركز الأثر للبحث والتحقيق
  •  
    الذبح والنذر والركوع والسجود لغير الله تعالى، ...
    غادة صالح سليمان الدواس
  •  
    القول الأبلغ على القواعد الأربع - باللغة ...
    د. خالد بن محمود بن عبدالعزيز الجهني
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / مواضيع عامة
علامة باركود

بين النفس والعقل (2) (باللغة الهندية)

بين النفس والعقل (2) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 12/10/2022 ميلادي - 17/3/1444 هجري

الزيارات: 5750

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

बुद्धि एवं आत्‍मा के बीच 2


प्रथम उपदेश:

प्रशंसा के पश्‍चात

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वा धर्मनिष्‍ठा अपनाने की वसीयत करता हूँ:

﴿ وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ ﴾ [ البقرة: 203]

अर्थात: तथा तुम अल्‍लाह से डरते रहो और यह समझ लो कि तुम उसी के पास प्रयल के दिन एकत्र किये जाओगे


रह़मान के बंदो यदि आप यह प्रशन करें कि आत्‍मा किया है तो प्रमाणों से स्‍पष्‍ट होता है कि वह रूह़ है,कुछ लोगों ने कहा:आत्‍मा शरीर के साथ रहने वाली रुह़ का नाम है,अल्‍लाह तआ़ला का वर्णन है:

﴿ اللَّهُ يَتَوَفَّى الْأَنْفُسَ حِينَ مَوْتِهَا وَالَّتِي لَمْ تَمُتْ فِي مَنَامِهَا فَيُمْسِكُ الَّتِي قَضَى عَلَيْهَا الْمَوْتَ وَيُرْسِلُ الْأُخْرَى إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ ﴾ [الزمر: 42]

आर्थात:अल्‍लाह ही खींचता है प्राणों को उन के मरण के समय,तथा जिस के मरण का समय नहीं आया उस की निद्रा में फिर रोक लेता है जिस पर निर्णय कर दिया हो मरण का तथा भेज देता है अन्‍य को एक निर्धारित समय तक के लिये वास्‍तव में इस में कई निशानियाँ हैं उन के लिये जो मनन-चिन्‍तन करते हों


ह़दीस में आया है कि: जब लेटे तो कहे:

"باسمك ربي، وضعتُ جنبي، وبك أرفعه، فإن أمسكتَ نفسي فارحمها، وإن أرسلتها فاحفظها بما تحفظ به عبادك الصالحين"


अर्थात:हे मेरे रब मैं तेरा नाम ले कर अपने बिस्‍तर पर अपने पहलू को डालत रहा हूँ अर्थात सोने जा रहा हूँ,और तेरा ही नाम ले कर मैं इससे उठूंगा भी,फिर यदि तू मेरे प्राण को सोने की अवस्‍था में रो‍क लेता है अर्थात मुझे मृत्‍यु दे देता है तो मेरे आत्‍मा पर कृपा कर,और यदि तू सोने देता है तो उसकी वैसे ही रक्षा फरमा जैसी तू अपने सदाचारी बंदों की रक्षा करता है फिर जब नींन्‍द से उठ जाए तो यह दुआ़ पढ़े:

"الحمد لله الذي عافاني في جسدي، وردَّ عليَّ روحي، وأذِن لي بذكره".


अर्थात:समस्‍त प्रशंसाऐं उस अल्‍लाह के लिए हैं जिस ने मेरी शरीर को स्‍वस्‍थ रखा,और मेरे आत्‍मा को मुझ में लौटा दिया और मुझे अपनी स्‍मरण की अनुमति और तौफीक़ प्रदान की इय ह़दीस को तिरमिज़ी,निसाई ने रिवायत किया है और अल्‍बानी ने ह़सन कहा है


सत्‍य ह़दीसों से सिद्ध है कि शहीदों की: आत्‍माएं हरे पंक्षियों के अंदर रहती हैं,,वे आत्‍माएं स्‍वर्ग में जहां चाहें खाती पीती हैं,फिर उन कंदीलों की ओर लोट आती हैं तो अल्‍लाह के अ़र्श के साथ लटकी हुई हैं


आ़ल-ए-अरवाह़ आत्‍माओं की दुनिया का मामला बड़ा अजीब है, यद्यपि हम आत्‍मा के विषय में जानते हैं और वह हमारे शरीर में मौजूद है,किन्‍तु हमें उसकी स्थिति का ज्ञान नहीं,अल्‍लाह पाक का फरमान है:

﴿ وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الرُّوحِ قُلِ الرُّوحُ مِنْ أَمْرِ رَبِّي وَمَا أُوتِيتُمْ مِنَ الْعِلْمِ إِلَّا قَلِيلًا ﴾ [الإسراء: 85]

अर्थात: हे नबी लोग आप से रूह़ के विषय में पूछते हैं,आप कह दें:रूह़ मेरे पालनहार के आदेश से है,और तुम्‍हें जो ज्ञान दिया गया वह बहुत थोड़ा है


ह़दीस में आया है कि: समस्‍त आत्‍माएं एकत्र सेनाएं थीं,जिस जिस ने एक दूसने को पहचाना वे दुनिया में एक दूसरे से प्रेम करते हैं और जिस जिस आत्‍मा ने वहां एक दूसरे की पहचान न की वे यहां एक दूसरे से अंजाने रहती हैं इसे मुस्लिम ने वर्णित किया है


ऐ मेरे प्रियेबंधुओ पवित्र क़ुरान में संतुष्‍ट आत्‍मा,निन्‍दा करने वाले आत्‍मा और बुराई का आदेश देने वाले आत्‍मा का उल्‍लेख आया है,इब्‍ने तैमिया रहि़महुल्‍लाहु फरमाते हैं: आत्‍मा तीन प्रकार के होते हैं:

पाप का आदेश देने वाता अत्‍मा,इसका आशय वह आम्‍ता है:जिस पर अपनी इच्‍छा के अनुगमन का प्रभाव रहता है,वह इस प्रकार से कि वह पापों एवं अवज्ञाओं में लतपत रहता है


निन्‍दा करने वाला आत्‍मा,इसका आशय वह आत्‍मा है:जो पाप तो करता है,किन्‍तु तौबा भी करता है,उसके अंदरे अच्‍छाइ एवं बुराई दोनों पाए जाते हैं,किन्‍तु जब पाप करता है तो तौबा भी करता है,इसी लिए لوامة निन्‍दा करने वाला कहा गया है,क्‍योंकि पापों एवं अवज्ञाओं के करने पर वह अपने स्‍वामी की निन्‍दा करता है,और इस लिए भी कि वह अच्‍छाइ एवं बुराइ के बीच वह संकोच में रहता है


संतुष्ट आत्‍मा का आशय वह आत्‍मा है:जो अच्‍छाइ को पसंद करता और पुण्‍यों से प्रेम करता है,पापों को नापसंद करता और उससेघृणा रखता है,यह उसकी नैतिकता,आदत व रीति-रिवाज एवं क्षमता व योग्‍यता का भाग बन जाता है,एक ही हस्‍ती के अंदर ये भिन्‍य परिस्थितियां एवं विशेषताएं पाई जाती हैं,किन्‍तु प्रत्‍येक व्‍यक्ति के अंदर एक ही आत्‍मा होता है,यह ऐसी चीज है जिसे हर व्‍यक्ति अपने अंदर महसूस करता है आप रहि़महुल्‍लाहु का वर्णन समाप्‍त हुआ, الفتاوی: 9/294


ओ़सैमीन रहि़महुल्‍लाहु फरमाते हैं: मनुष्‍य अपने आत्‍मा के द्वारा आत्‍माओं के इन भिन्‍य प्रकारों को महसूस करता है,कभी अपने आत्‍मा में पुण्‍य की इच्‍छा पाता है,पुण्‍य के कार्य करता है,और यह نفس مطمئنة संतुष्‍ट आत्‍मा है,और कभी अपने आत्‍मा में पाप की इच्‍छा पाता है,पाप के कार्य भी करता है,और यह पाप का आदेश देना वाला आत्‍मा है,इसके पश्‍चात نفس اللوامة निन्‍दा करने वाला आत्‍मा है जो पाप करने पर उसकी निन्‍दा करता है,अत: आप देखते हैं कि पाप करने के पश्‍चात उस पर उसे पछतावा होता है


इब्‍नुल क़य्यिम रहि़महुल्‍लाहु लिखते हैं: बल्कि आत्‍मा की परिस्थिति एक ही दिन बल्कि एक ही घड़ी में एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में परिवर्तित हो जाती है


मेरे ईमानी भा‍इयो अल्‍लाह तआ़ला ने बुद्धि को इस लिए पैदा किया ताकि वह सत्‍य का निर्देश करे,चिंता करे और अपने स्‍वामी को सत्‍य मार्ग दिखाए,किन्‍तु आत्‍मा को इस लिए पैदा किया गया है कि वह इच्‍छा एवं लालसा करे,अत: आत्‍मा ही प्रेम व घृणा करात है,प्रसन्‍न एवं उदास होता है,और राजी होता एवं क्रोध करता है,जब कि बुद्धि का काम यह है कि वह बुद्धि वाले के सामने आत्‍मा के स्‍वभाव,इच्‍छा और उद्देश्‍यों में सही व गलत का अंतर करता,बुरा व भला का अंतर करता,और लाभ एवं हानि से अवज्ञत होता है


अल्‍लाह के बंदो यह सही नहीं कि आत्‍मा जिस चीज की,जिस प्रकार और जिस मात्रा में इच्‍छा करे,उसे देदी जाए,बल्कि बुद्धि का अस्तित्‍व अवश्‍य है जो उस पर नियंत्रण रखे,अत: त्‍वचे के रोग में ग्रस्‍त व्‍यक्ति का आत्‍मा त्‍वचे को खुजलाना पसंद करता है जब तक कि उसे खुजलाने से आनंद मिलता और दरद की कमी महसूस होती रहती है,किन्‍तु बुद्धि उसे अधिक खुजलाने से मना करती है ताकि उसके लिए हानिकारक न हो


बुद्धि यद्यपि आत्‍मा को कुछ चीजों से रोकता है पर वह उसका शत्रु नहीं,किन्‍तु आत्‍मा बुद्धि का शत्रु हो सकता है,अत: जो व्‍यक्ति मादक व नशा व्‍यसनी होता है उसकी बुद्धि उसे नशा से बचने का आदेश देती है और उसी में उस के लिए नीति एवं लाभ भी है,किन्‍तु उसका आत्‍मा यह आदेश देता है कि अपनी आदत एवं इच्‍छा के अनुसार नशा का प्रयोग करता रहे चाहे यह कार्य उसके लिए हानिकारक एवं घातक ही क्‍यों न हो,और शैतान के दुराचरण से यह चीज उसके लिए अधिक अच्छा बन जाती है,इसी लिए ह़दीस में आया है: मैं अपने आत्‍मा की दुष्‍टता से और शैतान की दुष्‍टता से तेरा शरण चाहता हूँ... इसे अह़मद,अ‍बूदाउूद,तिरमिज़ी और निसाई ने वर्णित किया है


मेरे मोमिन भा‍इयो नबी ने गरीबी एवं भुखमरी से अल्‍लाह की शरण मांगी,इसकी व्‍यख्‍या इमाम अह़मद ने यह बयान की कि यह आत्‍मा की फकीरी है,और फकीर आत्‍मा वह है जो इच्‍छा का गुलाम बन चुका हो,जब आत्‍मा फकीर हो तो धनी को उसकी फकीरी हानि नहीं पहुंचा सकती है,क्‍योंकि आत्‍मा की उदासीनता व धनवनता यह है कि जो उपलब्‍ध हो उसी पर संतुष्ट हो,आप सलल्‍लाहु अलैहि वसल्‍लम ने फरमाया: धनवनता यह नहीं कि सामान अधिक हो बल्कि धनवनता यह है कि हृदय धनीव उदासीन हो बोखारी व मुस्लिम नबी ने ऐसे आत्‍मा से शरण मांगी जो संतुष्‍ट न हो


अल्‍लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुरान व सुन्‍नत की बरकत से लाभान्वित फरमाए,उन में जो आयत और नीति की बात आई है,उससे हमें लाभ पहुंचाए,आप अल्‍लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमी है


द्वितीय उपदेश:

الحمد لله القائل ﴿ وَأَمَّا مَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ وَنَهَى النَّفْسَ عَنِ الْهَوَى * فَإِنَّ الْجَنَّةَ هِيَ الْمَأْوَى ﴾ [النازعات: 40، 41].

 

प्रशंसाओं के पश्‍चात:

इस्‍लामी भाइयो प्रत्‍येक आत्‍मा का स्‍वभाव विभिन्न होता है,और मानसिक स्‍वभाव में कुछगुण ऐसे होते हैं जिन पर मनुष्‍य की रचना होती है,जैसे जल्‍दबाजी,क्रोध,गंभीरता और धैर्य,इस प्रकार का स्‍वभाव जिस पर मनुष्‍य की रचना होती है,उसको पृथ्‍वी में पैदा किए गए खनिज खान के समान कहा गया है,ह़दीस में है कि: लोग सोने चाँदी के खानों के जैसे खनिजों के खान हैं,जो अज्ञानता के युग में अच्‍छे थे,वे यदि इस्‍लाम धर्म को समझ लें तो इस्‍लामी युग में भी अच्‍छे हैं मुस्लिम


आत्‍मा के अंदर अनेक प्रकार की इच्‍छाएं होती हैं,उन में से कुछ इच्‍छाएं सब लोगों में होती हैं तो कुछ सब में विभिन्न होते हैं,और वे इच्‍छाएं जो सब में समान होते हैं,उनकी मात्रा भी सब में विभिन्न होती है,उदाहरण स्‍वरूप धन-संपत्ति,खाने पीने,वैभव,और अच्‍छे प्रसिद्धि के प्रेम में सारे लोग एक समान हैं,किन्‍तु इनकी मात्रा सब में विभिन्न होती है,हमारी वह इच्‍छा वर्जित है जो अपने स्‍वामी को शरीअ़त के विरोध तक पहुंचा दे,उदाहरण स्‍वरूप धम से प्रेम इतना अधिक हो जाए कि वह धोखा,रिश्‍वत और बखीली जैसे निंदाजनक विशेषताओं के द्वारा उसे प्राप्‍त करने लगे,मानसिक इच्‍छा में सबसे खतरनाक इच्‍छा पद की इच्‍छा है,मेरा आशय यह है कि:वैभव व पद की इच्‍छा इतनी बढ़ जाए कि वही उसका उद्दश्‍य एवं लक्ष्‍य बन जाए,यही कारण है कि कुछ आत्‍माएं धन की इच्‍छा रखने के बावजूद लोगों के बीच वैभव पाने के लिए धन लुटाते और उदारता का प्रदर्शेन करते हैं,बल्कि कभी कभी तो लोगों की प्रशंसा बटोरने के लिए प्राण लेने से भी पीछे नहीं हटते,ह़दीस में आया है कि: सबसे पहले जिन लोगों से नरक की अग्नि भड़काई जाएगी उनमें एक प्रकार उन लोगों का होगा जिन्‍हों ने अपने जीवन की आहुति दी होगी किन्‍तु उनसे कहा जाएगा कि: किन्‍तु तू ने इस लिए युद्ध की ताकि कहा जाए कि:अमुक व्‍यक्त्‍िा बहादुर है एक प्रकार उन लोगों का होगा जो धन लुटाया होगा किन्तु उनसे कहा जाएगा कि:किन्‍तु तू ने ऐसा इस लिए किया ताकि कहा जाए कि:वह दानशील व दानी है तीसरे प्रकार के वे लोग होंगे जिन्‍होंने अपना समय लगा कर ज्ञान प्राप्‍त किया होगा किन्‍तु उनसे कहा जाएगा कि: तू ने इस लिए ज्ञान प्राप्त किया ताकि कहा जाए कि:अमुक व्‍यक्ति विद्वान है,तू ने क़ुरान इस लिए पढ़ा ताकि कहा जाए कि:वह क़ारी है ,ऐसे समस्‍त लोगों ने सत्‍यता के साथ प्रार्थना नहीं की,बल्कि उनका उद्देश्‍य केवल वैभव एवं पद की प्राप्ति थी,अल्‍लाह से हम क्षमा एवं शांति की प्रार्थना करते हैं,जो व्‍यक्ति वैभव एवं पद के प्रेम पड़ता है,वह अभिमान एवं अहंकार में डूब जाता है,‍अभिमान व अहंकार इस लिए कि वैभव एवं पद के द्वारा आत्‍मा प्रभुत्‍व एवं उच्‍चता प्राप्‍त करना चाहता है,इसी लिए अबूजहल ने कहा: अल्‍लाह की क़सम मैं जानता हूँ कि वह नबी हैं,किन्‍तु हम अ़बदे मनाफ के बेटों का अनुगमन करने वाले नहीं इसी विषय में अल्‍लाह तआ़ला का यह फरमान नाजि़ल हुआ:

﴿ فَإِنَّهُمْ لَا يُكَذِّبُونَكَ وَلَكِنَّ الظَّالِمِينَ بِآيَاتِ اللَّهِ يَجْحَدُونَ ﴾ [الأنعام: 33].

अर्थात:तो वास्‍तव में वह आप को नहीं झुठलाते,परन्‍तु यह अत्‍याचारी की आयतों को नकारते हैं


रसूलों की लाईहुई शरीअ़त के स्‍वीकार करने से अहंकारी आत्‍मा के वैभव पर चोट पड़ती है,अल्‍लाह तआ़ला ने फिरऔ़न और उसके समुदाय के विषय में फरमाया:

﴿ وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنْفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ﴾ [النمل: 14]

अर्थात:तथा उन्‍होंने नकार दिया उन्‍हें,अत्‍याचार तथा अभिमान के कारण,जब कि उन के दिलों ने उन का विश्‍वास कर लिया


तथा अल्‍लाह पाक ने बनी इसराइल के विषय में फरमाया:

﴿ أَفَكُلَّمَا جَاءَكُمْ رَسُولٌ بِمَا لَا تَهْوَى أَنْفُسُكُمُ اسْتَكْبَرْتُمْ ﴾ [البقرة: 87]

अर्थात:तो क्‍या जब भी कोई रसूल तुम्‍हारी अपनी मनमानी के विरूद्ध कोई बात तुम्‍हारे पास लेकर आया तो तुम अकड़ गये


ह़दीस में आया है कि: अहंकार:सत्‍य को स्‍वीकार न करना और लोगों को नीच समझन है


अहंकार मनुष्‍य को सत्‍य के समक्ष झुकने से रोकता है,यदपि सत्‍य उसके लिए स्‍पष्‍ट ही क्‍यों न हो


जब वैभव की चाहत अधिक बढ़ जाती है तो कुछ डाह पैदा होता है,अत: जब वह अपने सामने अन्‍य प्रतियोगी को पाता है अथवा किसी को स्‍वयं से उूंचा देखता है,तो आत्‍मा चाहता है कि वह सब उससे पीछे रह जाएं ताकि उसकी उच्‍चता प्रकट हो और लोगों के दृश्‍य में विशेष दिखाई दे उस प्रकाश के जैसा जो आंखों के सामने हो तो उसका जो शक्तिशाली भाग होता है वही देखता है और मंद आलोक दिखाई नहीं देता आत्‍मा में डाह पाए जाने का चिन्‍ह यह है कि:वह अपने अपने प्रतियोगी की गलतीसे एतना प्रसन्‍न होता है कि अपनी अच्‍छाई पर भी उतना प्रसन्‍न नहीं होता,क्‍योंकि वह उनका पतन चाहता है,उसकी उन्‍नति नहीं,अत: वह सोचता है कि यदि वह अपने स्‍थान पर भी रहे तो उसके प्रतियोगी के पीछे रहने से उसकी उच्‍चता प्रकट होजाएगी,किन्‍तु जो पवित्र आत्‍मा होते हैं वे महानता एवं प्रभुत्‍व के कारण की खोज में रहते हैं,वैभव एवं पद उनका उद्देश्‍य नहीं होता और यदि वह परिणाम के रूप में प्राप्‍त हो जाए तो वे उस पर अल्‍लाह की प्रशंसा करते और उसके रिष्टि से शरण मांगते हैं,और इस बात से बचते हैं कि कहीं समय के साथ उनकी निय्यत और इरादा बदल न जाए


हे अल्‍लाह हमारे हृदयों को तक्‍़वा धर्मनिष्‍ठा प्रदान कर,उनको पवित्र करदे,तू ही इन हृदयों को सबसे अच्‍छा पवित्र करने वाला है,तू ही इनका रखवाला और सहायक है,हे अल्‍लाह हम अपने आत्‍मा और अपने दुराचारों की दुष्‍टता से तेरा शरण चाहते हैं,हे अल्‍लाह हम ऐसे ज्ञान से तेरा शरण चाहते हैं जो कोई लाभ न दे,ऐसे हृदय से जो तेरे समक्ष झुक कर संतुष्‍ट न होता हो और ऐसे जी से जो संतुष्‍ट न हो और ऐसी दआ़ से जो स्‍वीकार न हो


صلى الله عليه وسلم

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • بين النفس والعقل (2)
  • بين النفس والعقل (2) (باللغة الأردية)
  • بين النفس والعقل (1) (باللغة الهندية)
  • حقوق النفس على صاحبها (خطبة)
  • خطبة: بين النفس والعقل (1) - باللغة البنغالية
  • خطبة: بين النفس والعقل (2) - باللغة البنغالية
  • بين النفس والعقل (2) (خطبة) باللغة النيبالية

مختارات من الشبكة

  • جني الثمار شرح صحيح الأذكار - باللغة الإنجليزية (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • القول الأبلغ على القواعد الأربع - باللغة الإنجليزية (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • خطبة: تأملات في بشرى ثلاث تمرات - (باللغة البنغالية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • مقدمة كتاب تعلم التوحيد حق الله على العبيد - باللغة الفرنسية (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • الله الخالق الخلاق (خطبة) – باللغة النيبالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الشرح المأمول على ثلاثة الأصول - باللغة الإنجليزية (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • خطبة: تأملات في بشرى ثلاث تمرات - (باللغة الإندونيسية)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • الله البصير (خطبة) - باللغة البنغالية(مقالة - آفاق الشريعة)
  • التحفة السنية في شرح الأربعين النووية - باللغة الفرنسية (PDF)(كتاب - مكتبة الألوكة)
  • الله الخالق الخلاق (خطبة) – باللغة الإندونيسية(مقالة - آفاق الشريعة)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • نابريجني تشلني تستضيف المسابقة المفتوحة لتلاوة القرآن للأطفال في دورتها الـ27
  • دورة علمية في مودريتشا تعزز الوعي الإسلامي والنفسي لدى الشباب
  • مبادرة إسلامية خيرية في مدينة برمنغهام الأمريكية تجهز 42 ألف وجبة للمحتاجين
  • أكثر من 40 مسجدا يشاركون في حملة التبرع بالدم في أستراليا
  • 150 مشاركا ينالون شهادات دورة مكثفة في أصول الإسلام بقازان
  • فاريش تستضيف ندوة نسائية بعنوان: "طريق الفتنة - الإيمان سندا وأملا وقوة"
  • بحث مخاطر المهدئات وسوء استخدامها في ضوء الطب النفسي والشريعة الإسلامية
  • مسلمات سراييفو يشاركن في ندوة علمية عن أحكام زكاة الذهب والفضة

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 24/6/1447هـ - الساعة: 19:28
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب