• الصفحة الرئيسيةخريطة الموقعRSS
  • الصفحة الرئيسية
  • سجل الزوار
  • وثيقة الموقع
  • اتصل بنا
English Alukah شبكة الألوكة شبكة إسلامية وفكرية وثقافية شاملة تحت إشراف الدكتور سعد بن عبد الله الحميد
الدكتور سعد بن عبد الله الحميد  إشراف  الدكتور خالد بن عبد الرحمن الجريسي
  • الصفحة الرئيسية
  • موقع آفاق الشريعة
  • موقع ثقافة ومعرفة
  • موقع مجتمع وإصلاح
  • موقع حضارة الكلمة
  • موقع الاستشارات
  • موقع المسلمون في العالم
  • موقع المواقع الشخصية
  • موقع مكتبة الألوكة
  • موقع المكتبة الناطقة
  • موقع الإصدارات والمسابقات
  • موقع المترجمات
 كل الأقسام | المكتبة المرئية   المكتبة المقروءة   المكتبة السمعية   مكتبة التصميمات   كتب د. خالد الجريسي   كتب د. سعد الحميد  
اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة اضغط على زر آخر الإضافات لغلق أو فتح النافذة
  •  
    منهج أبي حيان الأندلسي في النقل عن كتاب [رؤوس ...
    د. ابتهال محمد علي البار
  •  
    قاعدة شرط الواقف كنص الشارع: دراسة فقهية مقارنة ...
    أ. د. عبدالمجيد بن محمد بن عبدالله ...
  •  
    بحث عن دراسة: (حروف المعاني: دراسة بلاغية) (PDF)
    خالد خميس طلبة
  •  
    ربحت الإسلام دينا ولم أخسر إيماني بالمسيح عليه ...
    محمد السيد محمد
  •  
    الموسوعة الندية في الآداب الإسلامية - آداب ...
    الشيخ ندا أبو أحمد
  •  
    أثر علامة القصيم ابن سعدي رحمه الله على الحركة ...
    أ. د. عبدالله بن محمد الطيار
  •  
    حكم السفر لبلاد يقصر فيها النهار لأجل الصوم بها: ...
    أ. د. عبدالمجيد بن محمد بن عبدالله ...
  •  
    تدبر سورة الزلزلة (PDF)
    عبدالله عوض محمد الحسن
  •  
    فتح الصمد شرح الزبد فيما عليه المعتمد في الفقه ...
    د. عبدالرحمن بن محمد موسى العامري
  •  
    فسخ الحج إلى عمرة: دراسة فقهية مقارنة (PDF)
    أ. د. عبدالمجيد بن محمد بن عبدالله ...
  •  
    الحلقة الثالثة: قالوا وما الرحمن
    الدكتور مثنى الزيدي
  •  
    ربحت الإسلام دينا ولم أخسر إيماني بالمسيح عليه ...
    محمد السيد محمد
شبكة الألوكة / آفاق الشريعة / منبر الجمعة / الخطب / خطب بلغات أجنبية
علامة باركود

أتى شهر الخيرات (خطبة) (باللغة الهندية)

أتى شهر الخيرات (خطبة) (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

مقالات متعلقة

تاريخ الإضافة: 9/1/2023 ميلادي - 17/6/1444 هجري

الزيارات: 4021

 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
النص الكامل  تكبير الخط الحجم الأصلي تصغير الخط
شارك وانشر

शीर्षक:

ख़ैर व बरकत का महीना आ गया


अनुवादक:

फैज़ुर रह़मान ह़िफज़ुर रह़मान तैमी


प्रथम उपदेश:-

प्रशंसाओं के पश्चात:

मैं आप को और स्वयं को अल्लाह का तक़्वा (धर्मनिष्ठा) अपनाने की वसीयत करता हूँ,क्योंकि तक़्वा आख़िरत के लिए सबसे बेहतरीन यात्रा-खर्च और अल्लाह की बहुमूल्य उपकारों का आभार व्यक्त करना है।


ए आदरणी रोज़ेदारो जब भी रमज़ान का चांद उदय होता है,मुसलमानों के लिए शुभ समय और उन बाबरकात दिनों की अनुदान लौट आती हैं,यह ऐसा महीना है जिस में रोज़ेदार पवित्रता की ओर अपना क़दम बढ़ाते हैं,और अपने ललाट से जीवन तीव्रताव कठिनाई को दूर कर लेते हैं,मुसलमान और मुत्तकी लोग प्रसन्नता के साथ इस महीने का स्वागत करते हैं।

أَتَى رَمَضَانُ مَزْرَعَةُ الْعِبَادِ
لِتَطْهِيرِ الْقُلُوبِ مِنَ الْفَسَادِ
فَأَدِّ حُقُوقَهُ قَوْلاً وَفِعْلاً
وَزَادَكَ فَاتَّخِذْهُ لِلْمَعَادِ
وَمَنْ زَرَعَ الْحُبُوبَ وَمَا سَقَاهَا
تَأَوَّهَ    نَادِمًا    يَوْمَ    الْحَصَادِ

 

अर्थात:रमज़ान आ गया जो बंदों के लिए (पुण्यों की) खेती है,ताकि वे अपने दिलों को (पापों की) मलिनतासे पवित्र कर सकें।अपने चरित्रव बातके द्वारा इस के अधिकारों को पूरा करो और इसे प्रलय के लिए यात्रा-खर्च के रूप में अपनाओ।जो व्यक्ति बीज तो बोता है किन्तु उस में पानी नहीं डालता तो उसे कटाई के मोसम में खेतव अफसोस के सिवा कुछ हाथ नहीं आता।


रोज़ा रचनाकार और जीव के बीच एक भेद है,इस के द्वारा बंदा इखलास के पाठ को व्यवहार में लाता है,ताकि देखावा से दूर रह कर समस्त इबादतों को रोज़ा ही के जैसे निष्कपटताके साथ करे,रोज़ा में बंदा प्यास की तीव्रताऔर भूक की तीव्रताब्रदाश्त करता है,जिस के बदले रोज़ेदारों के लिए स्वर्ग में एक ऐसा दरवाजा है जिस से रोज़ेदार के सिवा कोई प्रवेश नहीं होगा,रोज़ा के द्वारा भूके दरिद्र और निर्बल लोगों की याद दिलाई जाती है,क्योंकि रोज़ा की स्थीति में प्रसन्न दरिद्रसब बराबर होते हैं,सब के सब अपने पालनहार के लिए रोज़ा रखते हैं,अपने पापों पर क्षमा मांगते हैं,एक ही समय में खाने पीने से बचते हैं,और एक ही समय में इफ्तार करते हैं,भूक और प्यास के मामले में दिन भर उन सब की स्थिति सामान्य होती है,ताकि समस्त लोगों के प्रति अल्लाह का यह कथन सत्य सिद्ध हो कि:

﴿ إِنَّ هَذِهِ أُمَّتُكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَأَنَا رَبُّكُمْ فَاعْبُدُونِ ﴾ [الأنبياء: 92]

अर्थात:वास्तव में तुम्हारा धर्म एक ही धर्म है,और मैं ही तुम सब का पालनहार (पूज्य) हूँ,अत: मेरी ही इबादत (वंदना) करो।


इस महीने की रातें समस्त वर्ष की रातों का ताज है,इन रातों की घड़ियां सुरम्यहोते हैं और इन रातों की वंदनव कानाफूसीमीठी और सुरूपहोती है,नबी सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: (फर्ज़ नमाज़ के पश्चात सबसे अफजल नमाज़ रात की नमाज है) इस ह़दीस को मुस्लिम और सोनन वालों ने मरफूअ़न रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे सह़ी कहा है।(जिस ने इमाम के साथ क़्याम किया यहाँ तक कि वह पूरी कर ले तो उस के लिए पूरी रात का क़्याम लिखा जाएगा)।इस फजीलत को सामने रखते हुए आप भी इसका पालन करें-अल्लाह आप की रक्षा फरमाए-ताकि आप भी इस फजीलत से लाभान्वित हो सकें।


जो व्यक्ति अपनी आत्मा को अल्लाह की आज्ञाकारिता का आदी और अल्लाह के प्रेम का आदी नहीं बनाता वह अवज्ञा एवं अपमानसे दो चार होता है।


ए फजीलत वालो रमज़ान,दिल को लापरवाहीसे जगा करके इस में जीवन की आत्मा डालने और ईमान की आहारमुहैयाकरने का एक शुभ अवसर है। ताकि अल्लाह का प्रेम,उस (के पुण्य की) आशा और उस (की यातना) का भय हमारे दिल में पैदा हो ।रमज़ान,तक़्वा के गुणों से अपने दामन को भरने का एक बेहतरीन अवसर है,रमज़ान में अल्लाह तआ़ला से अपना संबंध मज़बूत करने और उस की निकटता प्राप्त करने के अनेक बहुमूल्य अवसर मिलते हैं।


रोज़ा से आत्माओं की सुधार होती है,इस के द्वारा रोज़ादार अच्छे गुणों को अपनाता है और बुरे गुणों से दूर रहता है,इस से पाप क्षमा होते और पुण्यों में वृद्धि होता है,मुस्त़फा सलल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं: (जिस ने रमज़ान का रोज़ा ईमान व विश्वास के साथ और पुण्य की प्राप्ति के नीयत से रखा उस के पूर्व के पाप क्षमा कर दिए जाएंगे) बोख़ारी व मुस्लिम।और बोख़ारी की मरफू रिवायत है: (जो व्यक्ति झूट और धोखा न छोड़े तो अल्लाह तआ़ला को इस की आवश्यकता नहीं कि वह (रोज़े के नाम से) अपना खाना पीना छोड़दे)।


रमज़ान आज्ञाकारिता,पुण्य और भलाई का महीना है,क्षमा व रह़मत एवं प्रसन्नता का महीना है,आप सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ह़दीस है: (जब रमज़ान आता है तो आकाश के दरवाजे पूरे रूप से खोल दिए जाते हैं और नरक के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं,तथा शैतानों को जकड़ दिये जाते हैं)।


तिरमिज़ी और इब्ने माजा की मरफू रिवायत है जिसे अल्बानी ने सह़ीह़ कहा है: (जब रमज़ान की प्रथम रात आती है,तो शैतान और बाग़ी जिन्न जकड़ दिये जाते हैं,नरक के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं,उन में से कोई भी दरवाजा नहीं खोला जाता।और स्वर्ग के दरवाजे खोल दिए जाते हैं,उन में से कोई भी दरवाजा बंद नहीं किया जाता,पुकारने वाला पुकारता है: ख़ैर के चाहने वाले आगे बढ़,और पाप के चाहने वाले रुक जा और आग से अल्लाह के अनेक से मुक्त किए हुए बंदे हैं (तो हो सकता है कि तू भी उन्हीं में से हो) और ऐसा (रमज़ान की) प्रत्येक रात को होता है)।बाग़ी जिन्नों को जकड़ दिया जाता है,किन्तु मनुष्य में जो शैतान हैं वे अपनी पिछली स्थिति पर स्वतंत्र फिरते रहते हैं,इस लिए उन से सचेत रहें।


ए रोज़ेदारो रमज़ान में कामुकऔर अशिष्टटीवी चैनलज अद्भुत रूप से सक्रियहो जाते हैं,जैसा कि हमारा अवलोकन है,मनुष्य सोचने लगता है कि: रमज़ान जो कि इबादतों का महीना है,और जिसे इस्लामी शरीअ़त में विशेष स्थान प्राप्त है,उस का इसविचित्र,नाटकीय,और मनोरंजनचीज़ से क्या संबंध है इस से भी अधिक घातक यह कि इन चैनलज में नग्नता,अश्लीलता और उसके कारणों एवं गतिविधियों को प्रकाशितकिये जाते हैं,इस लिए-ए मेरे प्रिय भाई-आप अपने पुण्य की रक्षा के प्रति चिंतित हैं,स्वयं को ख़ैर व भलाई और आज्ञाकारिता व वंदना में व्यस्त रखें और कम से कम ऐसे कामों में तो कदापि व्यस्त न रहें जो आप के लिए वबाले जान बन जाएं।


ईमानी भाइयो रमज़ान एक प्रशिक्षण शिविर है जिस में ईमान वाला मुसलामन यह प्रशिक्षण प्राप्त करता है कि गतिविधियों के आदर व सम्मान का इरादा ठोस करे और धरती व आकाश के मालिक के कथन के समक्ष स्वयं को समर्पित करदे,इस प्रकार से मुसलमान उस तक़्वा को अपनाता है जो रोज़ा के अनिवार्य होने के पीछे अल्लाह का उद्देश्य है:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ﴾ [البقرة: 183]

अर्थात:हे ईमान वालो तुम पर रोज़े उसी प्रकार अनिवार्य कर दिये गये हैं,जैसे तुम से पूर्व लोगों पर अनिवार्य किये गये,ताकि तुम अल्लाह से डरो।


आत्मा का अवलोकनलेने और गलतियों पर इस का समीक्षाकरने और आने वाले दिनों में क्षतिपूर्ति करने के लिए रमज़ान एक बड़ा अवसर है,विशेष रूप से इस लिए कि इस महीना में बाग़ी जिन्नों को क़ैद कर दिया जाता है,अत: हमें अल्लाह और उस के रसूल की वर्जित निषेद्धों एवं प्रतिषिद्धोंसे बचना चाहिए,और फर्ज़ों एवं वाजिबों का कापल करना चाहिए,सुन्नतों एवं मुस्तह़बों को प्रचुरता से अदा करना चाहिए,क्योंकि पुण्य पापों को समाप्त करदेती हैं।


अल्लाह तआ़ला मुझे और आप को क़ुर्आन व सुन्नत की बरकतों से माला-माल फरमाए,उन में जो आयतें और नीति की बातें हैं उन से हमें लाभ पहुँचाए,आप सब अल्लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील है।


द्वतीय उपदेश:

प्रशंसाओं के पश्चात:

मेरे प्रिय भाई आप के समक्ष इस ह़दीसे क़ुदसी से संबंधित कुछ चिंताजनक बिन्दुओं का उल्लेख कर रहा हूँ जिसे बोख़ारी व मुस्लिम ने रिवायत किया है,अल्लाह तआ़ला का फरमान है: (आदम के संतान के समस्त अ़मल उस के लिए हैं मगर रोज़ा,वह विशेष मेरे लिए है और स्वयं ही उस का बदला दुँगा)।मुस्लिम की एक रिवायत में आया है: (आदम के संतान के प्रत्येक अ़मल (के पुण्य) में वृद्धि किया जाता है,सदाचार का पुण्य दस गुना से सात सो गुना बल्कि (इस से भी अधिक) जितना अल्लाह चाहे मिलता है।अल्लाह तआ़ला फरमाता है:मगर रोज़ा (इस नियम से अलग है) क्योंकि वह (विशेष रूप से) मेरे लिए होता है और मैं ही इस का बदला दूँगा।बंदा मेरे लिए अपनी इच्छाओं एवं खाना छोड़ता है)।


प्रथम बिन्दु: यह अपवाद (मगर रोज़ा) इस महत्वपूर्ण प्रार्थना के स्थान एवं महत्व को स्पष्ट करता है।


द्वतीय बिन्दु: अल्लाह तआ़ला ने बदले को अपनी पवित्र हस्ती की ओर संबंधित किया है,यह बात मालूम है कि अनुदान देने वाले की हैसियत के अनुसार होता है,अल्लाह तआ़ला सर्वोच्च धनी व बेन्याज़,उदार दयालु और दानीहै,इस लिए आप इस इबादत को पूरी सुंदरता एवं पूर्णता के साथ करें,क्योकि रोज़ा केवल खाने पीने से रुकने का नाम नहीं है,(जो व्यक्ति झूट और धोका देना न छोड़े तो अल्लाह तआ़ला को इस की आवश्यकता नहीं कि वह (रोज़े के नाम से) अपना खाना पीना छोड़ दे) सह़ीह़ बोख़ारी।


तृतीय बिन्दु: प्रश्न पैदा होता है कि समस्त इबादतों में रोज़ा ही को यह विशेषता क्यों दी गई है कि: (सिवाए रोज़े के,क्योंकि वह (विशेष रूप से) मेरे लिए होता है और मैं ही उस का बदला दूँगा),जबकि समस्त प्रार्थनाओं का उद्दश्य अल्लाह की निकटता प्राप्त करना ही होता है इस का उत्तर यह है कि: इस विषय में विद्धानों के विभिन्न कथन हैं जिन में एक ठोस कथन यह है कि:

रोज़ा वह प्रार्थना है जिस के द्वारा मनुष्य किसी जीव की निकटता प्राप्त नहीं करता,अन्य प्रार्थनाओं के विरुद्ध,देखा गया है कि कुछ लोग अल्लाह के अतिरिक्त के लिए नमाज़ पढ़ते,धन खर्च करते,ज़ब्ह़ करते और उस से दुआ़ करते हैं,किन्तु रोज़ा में इस प्रकार का शिक्र नहीं पाया जाता,अन्य प्रार्थनाओं के विरुद्ध,यह भी नहीं आया है कि मुश्रेकीन अपने बुतों और पूज्यों के लिए रोज़ रखा करते थे,ज्ञात हुआ कि रोज़ा शुद्ध अल्लाह तआ़ला के लिए है।


एक उत्तर यह दिया गया है कि:आदम की संतान के समस्त अ़मल प्रलय के दिन क़िसास के रूप में (दूसरों को दिए जाएंगे) और जिन लोगों का उस ने दुनिया में अधिकार छीना होगा और उन पर अत्याचार किया होगा,वे उस से अपना बदला लेंगे,सिवाए रोज़ा के,अल्लाह तआ़ला उसे सुरक्षित रखेगा और उस पर क़िसास लेने वाले का अधिकार नहीं होगा,और यह अ़मल उस के मालिक के लिए अल्लाह के पास सुरक्षित रहेगा,इस का प्रमाण यह ह़दीस है: (आदम के संतान का प्रत्येक अ़मल,उस के लिए कफ्फारा है सिवाए रोज़ा के,वह विशेष मेरे लिए है और मैं ही उस का बदला दूँगा) सह़ीह़ बोख़ारी।


एक उत्तर यह भी दिया गया है कि: रोज़ा एक आंतरिक और छुपा अ़मल है जिस से अल्लाह तआ़ला के सिवा कोई अवगत नहीं होता,वह दिल की नीयत पर निर्भनहोता है,अन्य अ़मलों के विरुद्ध,क्योंकि समस्त अ़मल नज़र आते हैं और लोगों के सामने होते हैं,किन्तु रोज़ा बंदा और उस के रब के बीच एक भेद के जैसा होता है।


हे अल्लाह हमें ईमान व विश्वास एवं पुण्य की प्राप्ति की नीयत से रमज़ान के रोज़े रखने की तौफीक़ प्रदान करे,ईमान व विश्वास एवं पुण्य की प्राप्ति की नीयत से रमज़ान में क़्यामुल्लेल करने की तौफीक़ प्रदान कर,हे अल्लाह पवित्र क़ुर्आन को हमारे दिलों का वसंत बनादे।

صلى الله عليه وسلم

 

 





 حفظ بصيغة PDFنسخة ملائمة للطباعة أرسل إلى صديق تعليقات الزوارأضف تعليقكمتابعة التعليقات
شارك وانشر

مقالات ذات صلة

  • أتى شهر الخيرات
  • أتى شهر الخيرات (باللغة الأردية)
  • أنفقوا فقد جاء شهر الخير (خطبة)

مختارات من الشبكة

  • وقفات مع شهر الله المحرم (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة شهر صفر 1445هـ(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: الخير فيما اختاره الله وقسمه لكل عبد(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة: العدل ضمان والخير أمان(مقالة - آفاق الشريعة)
  • خطبة (أين الله)(مقالة - موقع د. علي بن عبدالعزيز الشبل)
  • ( ومن يوق شح نفسه فأولئك هم المفلحون ) (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • السعي في طلب الرزق (خطبة)(مقالة - آفاق الشريعة)
  • من ألطاف الله تعالى في الابتلاء (خطبة)(مقالة - موقع الشيخ إبراهيم بن محمد الحقيل)
  • خطبة: الذين يصلي عليهم الله عز وجل(مقالة - آفاق الشريعة)
  • أنين مسجد (5) - خطورة ترك الصلاة (خطبة)(مقالة - موقع د. صغير بن محمد الصغير)

 



أضف تعليقك:
الاسم  
البريد الإلكتروني (لن يتم عرضه للزوار)
الدولة
عنوان التعليق
نص التعليق

رجاء، اكتب كلمة : تعليق في المربع التالي

مرحباً بالضيف
الألوكة تقترب منك أكثر!
سجل الآن في شبكة الألوكة للتمتع بخدمات مميزة.
*

*

نسيت كلمة المرور؟
 
تعرّف أكثر على مزايا العضوية وتذكر أن جميع خدماتنا المميزة مجانية! سجل الآن.
شارك معنا
في نشر مشاركتك
في نشر الألوكة
سجل بريدك
  • بنر
  • بنر
كُتَّاب الألوكة
  • إعادة افتتاح مسجد مقاطعة بلطاسي بعد ترميمه وتطويره
  • في قلب بيلاروسيا.. مسجد خشبي من القرن التاسع عشر لا يزال عامرا بالمصلين
  • النسخة السادسة من مسابقة تلاوة القرآن الكريم للطلاب في قازان
  • المؤتمر الدولي الخامس لتعزيز القيم الإيمانية والأخلاقية في داغستان
  • برنامج علمي مكثف يناقش تطوير المدارس الإسلامية في بلغاريا
  • للسنة الخامسة على التوالي برنامج تعليمي نسائي يعزز الإيمان والتعلم في سراييفو
  • ندوة إسلامية للشباب تبرز القيم النبوية التربوية في مدينة زغرب
  • برنامج شبابي في توزلا يجمع بين الإيمان والمعرفة والتطوير الذاتي

  • بنر
  • بنر

تابعونا على
 
حقوق النشر محفوظة © 1447هـ / 2025م لموقع الألوكة
آخر تحديث للشبكة بتاريخ : 16/5/1447هـ - الساعة: 12:15
أضف محرك بحث الألوكة إلى متصفح الويب