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بين النفس والعقل (3) تزكية النفس (باللغة الهندية)

بين النفس والعقل (3) تزكية النفس (باللغة الهندية)
حسام بن عبدالعزيز الجبرين

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تاريخ الإضافة: 22/6/2022 ميلادي - 23/11/1443 هجري

الزيارات: 8468

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आत्‍मा एवं बुद्धि के बीच3


प्रथम उपदेश

प्रशंसाओं के पश्‍चात

मैं आप को और स्‍वयं को अल्‍लाह का तक्‍़वाधर्मनिष्‍ठाअपनाने की वसीयत करता हूँ:

﴿ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا * يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا ﴾ [الأحزاب: 70، 71]

अर्थात:वह सुधार देगा तुम्‍हारे लिये तुम्‍हारे कर्मों को,तथा क्षमा कर देगा तुम्‍हारे पापों को और जो अनुपालन करेगा अल्‍लाह तथा उस के रसूल का तो उस ने बड़ी सफलता प्राप्‍त कर ली


ईमानी भाइयोपिछले शुक्रवार के उपदेश में हम ने आत्‍माओं और उनकी इच्‍छाओं के विषय में चर्चा की,और आज हमारे चर्चा का विषय आत्‍मा की पवित्रवा एवं शुद्धिकरण है,अल्‍लाह तआ़ला ने स्‍वर्ग उन लोगों के लिये परिणाम के रूप में त्‍यार किया है जो अपने आत्‍मा को पवित्र रखते हैं,अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَذَلِكَ جَزَاءُ مَنْ تَزَكَّى ﴾ [طه: 76]

अर्थात:स्‍थायी स्‍वर्ग जिन में नहरें बहती होंगी,जिस में सदावासी होंगे,और यही उस का प्रतिफल है जो पवित्र हो गया


शुद्धिकरण के दो अर्थ हैं: प्रथम:पवित्र करना और गंदगी दूर करना,दूसरा:आत्‍मा के अंदर खैर व भलाई का पनपना


अल्‍लाह के बंदोआज्ञाकारिता एवं प्रार्थना करने,पाप एवं अवज्ञा को छोड़ने और उससे तौबा करने से आत्‍मा पवित्र होता,कुछ प्रार्थनाओं के विषय में स्‍पष्‍टीकरण आया है कि उससे आत्‍मा का शुद्धिकरण होता है,अत: सदक़ादानके विषय में अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ خُذْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِمْ بِهَا ﴾ [التوبة: 103]

अर्थात:हे नबीआप उन के धनों से दान लें,और उस के द्वारा उनके धनोंको पवित्र और उनके मनोंको शुद्ध करें


अल्‍लाह का स्‍मरण और नमाज़ के विषय में अल्‍लाह ने फरमाया:

﴿ قَدْ أَفْلَحَ مَنْ تَزَكَّى * وَذَكَرَ اسْمَ رَبِّهِ فَصَلَّى ﴾ [الأعلى: 14، 15]

अर्थात:वह सफल हो गया जिस ने अपना शुद्धिकरण कियातथा अपने पालनहार के नाम का स्‍मरण किया,और नमाज़ पढ़ी


तथा नज़र को नीचे रखने और शुद्धता अपनाने के विषय में अल्‍लाह ने फरमाया:

﴿ قُلْ لِلْمُؤْمِنِينَ يَغُضُّوا مِنْ أَبْصَارِهِمْ وَيَحْفَظُوا فُرُوجَهُمْ ذَلِكَ أَزْكَى لَهُمْ ﴾ [النور: 30]

अर्थात:हे नबीआप ईमान वालों से कहें कि अपनी आँखें नीची नखें और अपने गुप्‍तांगों की रक्षा करे,यह उन के लिये अधिक पवित्र है


अल्‍लाह के बंदोआत्‍मा को पवित्र करने और उसके स्‍वभाव एवं इच्‍छा पर प्रभुत्‍व प्राप्‍त करने के जो स्‍त्रोत हैं,उनका उल्‍लेख करना अति महत्‍व है,कुछ महत्‍वपूर्ण स्‍त्रोत निम्‍न में हैं:

ईमान की शक्ति,अत: जब ईमान शक्तिशाली होता है तो आत्‍मा के बहाउ पर नियंत्रण रखता है और आत्‍मा को बुद्धि पर प्रभावी नहीं होने देात,क्‍योंकि मोमिन को यह विश्‍वास रहता है कि आदेशों एवं निषेधों के प्रति अल्‍लाह के अधिकार क्‍या हैं


आत्‍मा पर प्रभुत्‍व पाने के स्‍त्रोतों में:ज्ञान एवं अनुभव भी शामिल हैं,क्‍योंकि ये दोनों मनोवैज्ञानिक इच्‍छाओं पर लगाम लगाते हैं,मनुष्‍य जितना अपनी इच्‍छाओं के परिणाम से अवज्ञत रहता है,उतना ही अपने आत्‍मा को उन इच्‍छाओं से दूर रखता है


आत्‍मा की पवित्रता एक स्‍त्रोत:उसका समीक्षा भी है,आत्‍मा के समीक्षा करने और आत्‍मा जब सत्‍य का विरोध करे तो उसके विरोध करने में जो चीज सहायक सिद्ध होती है वह यह कि:उसे यह ज्ञान एवं विशवास होना चाहिए कि आज वह जितना अपने आत्‍मा से लड़ने में परिश्रम करेगा,उतना ही कल उसे शांति मिलेगी,और उस व्‍यापार का लाभ यह है कि उसे फिरदौसस्‍वर्ग के उच्‍च श्रेणीमें आवास मिलेगा


आत्‍मा पर प्रभुत्‍व प्राप्‍त करने में जो चीज सहायक हैं उन में यह भी है कि:आत्‍मा के निर्माता से दुआ़ और सहायता मांगे कि वह उसके आत्‍मा का शुद्धिकरण फरमाए और उस की दुष्टता से उसे सुरक्षित रखे,नबी यह दुआ़ किया करते थे:

((اللهم آتِ نفسي تقواها، وزكها أنت خير من زكاها، أنت وليها ومولاها))

अर्थात:हे अल्‍लाहमेरे हृदय को तक्‍़वाधर्मनिष्‍ठादे,इसको पवित्र करदे,तू ही इसहृदयको सबसे अच्‍छा पवित्र करने वाला है,तू ही इसका रखवाला और इसका सहायक हैमुस्लिम


अबू बकर रज़ीअल्‍लाहु अंहु ने कहा:ऐ अल्‍लाह के रसूलमुझे कोई ऐसी चीज बता दीजिए जिसे मैं सुबह व शाम में पढ़ लिया करूं,आप ने फरमाया:कह लिया करो:

" اللهم عالم الغيب والشهادة، فاطر السماوات والأرض، رب كل شيء ومليكه، أشهد أن لا إله إلا أنت، أعوذ بك من شر نفسي ومن شر الشيطان وشَرَكِهِ"

अर्थात:हे अल्‍लाहगाएब एवं उपस्थित के ज्ञानी,आकाशों एवं पृथ्वियों के पैदा करने वाले,हर वस्‍तु के मालिकमैं गवाही देता हूँ कि तेरे अतिरिक्‍त कोई सत्‍य पूज्‍य नहीं है,मैं अपने आत्‍मा की दुष्‍टता से,शैतान की दुष्‍टता और उसकी चाल एवं जाल से तेरा शरण चाहता हूँ


आप ने फरमाया:यह दुआ़ सुबह व शाम और जब शयन कक्ष में सोने चलो तो पढ़ लिया करोइसे अह़मद,निसाई,अबूदाउूद,और तिरमिज़ी ने रिवायत किया हैआप खोतबा-ए-ह़ाजावह उपदेश जिस के द्वारा अपनी बात आरंभ करतेमें यह दुआ़ किया करते थे:हम अपने आत्‍मा और दुराचारियों की दुष्‍टता से अल्‍लाह के शरण में आते हैं


आत्‍मा की शुद्धिकरण का एक महत्‍तम कारण यह है:पावित्र वातावरण एवं नेक संगत,अत: वह ह़दीस जिस में आया है कि एक व्‍यक्ति ने सो100व्‍यक्तियों की हत्‍या करने के पश्‍चात तौबा किया और विद्वान ने उससे कहा:तुम अमुक अमुक स्‍थान पर चले जाओ,वहाँऐसेलोग हैं जो अल्‍लाह तआ़ला की प्रार्थना करते हैं,तुम भी उन के साथ अल्‍लाह की प्रार्थना में व्‍यस्त हो जाओ और अपनी भूमि पर वापस न आओ,यह बुरी बातों से भरी हुईभूमि हैमुस्लिम


सोमामा बिन ओसाल को मस्जिद के एक खंभे से बांध दिया गया जब कि वह काफिर थे,रसूल ने उनसे पूछा:ऐ सोमामा तुम्‍हारे पास क्‍यासूचनाहैउसने उत्‍तर दिया:ऐ मोह़म्‍मदमेरे पास अच्‍छी बात है,यदि आप हत्‍या करेंगे तो एक ऐसे व्‍यक्ति की हत्‍या करेंगे जिसके रक्‍त का अधिकार मांगा जाता है और यदि एह़सानकृपाकरेंगे तो उस पर एह़सान करेंगे जो आभार व्‍यक्‍त करने वाला है,और यदि धन चाहते हैं तो मांग लीजिए,आप जो चाहते हैं,आप को दिया जाएगा,अल्‍लाह के रसूल ने उसेउसके स्थिति पेछोड़ दिया यहां तक कि जब अगले दिन हुआ तो आप ने वही प्रश्‍प पूछा और उसने वही उत्‍तर दिया,जब तीसरा दिन हुआ तो आप ने वही प्रश्‍न पूछा औरसोमामा ने वही उत्‍तर दियाजिस पर आप ने फरमाया:सोमामा को आज़ाद करदो,उसे आज़ाद करदो,वह मस्जिद के निकट खजूरों के एक बगीचे की ओर गया,स्‍नान किया,और वापस हो कर अपने इस्‍लाम लाने की घोषणा कर दियासोमामा ने इस्‍लाम लाने से पहले मस्जिद के अंदर एक पवित्र और ईमानी वातावरण में समय गुजारा,जहां नमाज़ स्‍थापित होती और अज़ान दी जाती,जि़क्र व अज़कार पढ़े जाते,क़ुरान का सस्‍वर पाठ किया जाता और दुआ़ की जाती...आदि


हे अल्‍लाहहे अल्‍लाहहमारे हृदयों को तक्‍़वाधर्मनिष्‍ठाप्रदान कर,इनको पवित्र कर दे,तू ही इनहृदयोंको सबसे अच्‍छा पवित्र करने वाला है,तू ही इनका रखवाला और सहायक हैआप अल्‍लाह से क्षमा मांगें,नि:संदेह वह अति क्षमाशील है


द्वितीय उपदेश:

الحمد لله على إحسانه، والشكر له على توفيقه وامتنانه، وأشهد أن لا إله إلا الله وحده لا شريك له، وأشهد أن محمدًا عبده ورسوله الداعي إلى رضوانه، صلى الله عليه وعلى آله وصحبه وسلم تسليمًا كثيرًا.


प्रशंसाओं के पश्‍चात:

ऐ मेरे बंधुओशरीर का भोजन खाना और पानी है,और आत्‍मा का भोजन ईमान और अल्‍लाह का स्‍मरण है,सबसे महत्‍तम स्‍मरण पवित्र क़ुरान है,इसी लिए अल्‍लाह ने क़ुरान को रूह़ का नाम दिया है,जैसा कि अल्‍लाह तआ़ला के इस फरमान में है:

﴿ وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ رُوحًا مِنْ أَمْرِنَا ﴾ [الشورى: 52]

अर्थात:और इसी प्रकार हम ने वह़्यीप्रकाशनाकी है आप की ओर अपने आदेश की रूह़क़ुरान


तथा स्‍वश्रेष्ठ अल्‍लाह ने फरमाया:

﴿ الَّذِينَ آمَنُوا وَتَطْمَئِنُّ قُلُوبُهُمْ بِذِكْرِ اللَّهِ أَلَا بِذِكْرِ اللَّهِ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ ﴾ [الرعد: 28]

अर्थात:अर्थात वहलोग जो ईमान लाये,तथा जिन के दिल अल्‍लाह के स्‍मरण से संतुष्‍ट होते हैं,सुन लोअल्‍लाह के स्‍मरण ही से दिलों को संतोष होता है


﴿ وَمَنْ أَعْرَضَ عَنْ ذِكْرِي فَإِنَّ لَهُ مَعِيشَةً ضَنْكًا ﴾ [طه: 124]

अर्थात:तथा जो मुख फेर लेगा मेरे स्‍मरण से,तो उसी का संसारिक जीवन संकीर्णतंगहोगा


यह अल्‍लाह का कृपा और नीति है कि उस ने अपने बंदो के लिए संयम एवं संतुलन को अनिवार्य किया और आत्‍मा को उसकी शक्ति से अधिक भार नहीं दिया,जैसा कि ह़दीस में हैतुम पर तुम्‍हारे रब का भी अधिकार हैतथा तुम्‍हारे प्राण और तुम्‍हारी पत्‍नी का भी तुम पर अधिकार है,अत: तुम्‍हें सबके अधिकारों को पूरा करना चाहिएबोखारी


ऐ मेरे प्रिये मित्रोमनुष्‍य को यह आदेश दिया गया है कि वह अपने आत्‍मा को बुरे तत्‍वों से दूर रखे जैसे क्रोध और उदासी जिससे न कोई लाभ प्राप्‍त होता है और न कोई हानि दूर होता है,पवित्र क़ुरान में अनेक स्‍थानों पर नबी को उदासी से रोका गया है:

﴿ وَلَا يَحْزُنْكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ ﴾ [آل عمران: 176]

अर्थात:हे नबीआप को वह काफिर उदासीन न करें,जो कुफ्र में अग्रसर हैं


﴿ وَلَا يَحْزُنْكَ قَوْلُهُمْ ﴾ [يونس: 65]

अर्थात:तथाहे नबीआप को उनकाफिरोंकी बात उदासीन न करे


﴿ وَمَنْ كَفَرَ فَلَا يَحْزُنْكَ كُفْرُهُ ﴾ [لقمان: 23]

अर्थात:तथा जो काफिर हो गया तो आप को उदासीन न करे उस का कुफ्र


मरयम को यह आवाज़ दी गई कि:

﴿ أَلَّا تَحْزَنِي ﴾ [مريم: 24]

अर्थात:उदासीन न हो


अल्‍लाह तआ़ला ने कानाफूसी के पीछे के शैतानी उद्दश्‍य से अवज्ञत करते हुए फरमाया:

﴿ إِنَّمَا النَّجْوَى مِنَ الشَّيْطَانِ لِيَحْزُنَ الَّذِينَ آمَنُوا ﴾ [المجادلة: 10]

अर्थात:वास्‍तव में काना फूसी शैतानी काम है ताकि वह उदासीन हो जो ईमान लाये


मा‍नसिक शांति एक इश्‍वरकृपा है,क्‍योंकि बुद्धि और शरीरका अपना कर्तव्‍यपूरे तरीके से अदा करना आत्‍मा की शांति पर निर्धारित है,इसी लिए उदासी से मुक्ति पानाएक ऐसा प्रदान एवं इश्‍वरकृपा हैजिस पर अल्‍लाह का आभार व्‍यक्‍त करना अनिवार्य है:

﴿ وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنَّا الْحَزَنَ ﴾ [فاطر: 34]

अर्थात:तथा वे कहेंगे:सब प्रशंसा उस अल्‍लाह के लिये है जिस ने दूर कर दिया हम से शोक


सत्‍य ह़दीस के अनुसार नबी ने उदासी से अल्‍लाह का शरण मांगा,तथा नबी ने यह रुची दिखलाई कि आप के चचा ह़मज़ा का हत्‍यारा वह़शी आप की नजर से दूर रहे ताकि आपका ग़म ताजा न हो

واللہ اعلم


जो व्‍यक्ति उदास हो जाए और उसके ग़म में किसी ह़रामअवैधचीज की मिलावट न हो,तो वह पापी नहीं होता,उदाहरण स्‍वरूप वह व्‍यक्ति जो कठिनाइयों के कारण उदास हो जाता है,जैसा कि ह़दीस में आया है:अल्‍लाह तआ़ला आंख के रोने और हृदय के दुखी होने से यातना नहीं देता बल्कि...आप ने अपने जीभ की ओर इशारा करके फरमाया...इसके कारण से यातना देता अथवा दया करता हैबोखारी व मुस्लिम


इसी विषय में अल्‍लाह का फरमान है:

﴿ وَتَوَلَّى عَنْهُمْ وَقَالَ يَا أَسَفَى عَلَى يُوسُفَ وَابْيَضَّتْ عَيْنَاهُ مِنَ الْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيمٌ ﴾ [يوسف: 84]

अर्थात:और उस से मूँह फेर लिया,और कहा:हाय यूसुफऔर उस की दोनों आखें शोक के कारणरोते-रोतेसफेद हो गयीं,और उस का दिल शोक से भर गया


इब्‍ने तैमिया रहि़महुल्‍लाहु फरमाते हैं:ग़म व उदासी के साथ ऐसा अ़मल भी शामिल हो सकता है जिस पर बंदा को पुण्‍य मिले,उसको सराहा जाए और वह इस प्रकार प्रशंसनीय हो,न कि उदासी के कारण,उस व्‍यक्ति के जैसे जो अपनी धार्मिक कठिनाई के कारण उदास हो और आम मुस्‍लमानों की कठिनाइयों पर उदास हो,तो ऐसे व्‍यक्ति के हृदय में खैर व भलाई का जो प्रेम और बुराई व उसके परिणाम से घृणा होती है,उस पर उसे पुण्‍य मिलता है,किन्‍तु उस पर उदास होने से जब धैर्य एवं जिहाद,लाभ को प्राप्‍त करने और हानि को दूर करने जैसे आदिष्ट आदेशों को छोड़ना अनिवार्य हो तो ऐसी परिस्थिति में वह उदासी वर्जित हो जाता है الفتاوی:10/16

والنفس كالطفل إن تهمله شب على
حب الرضاع وإن تفطمه ينفطمِ
وخالف النفس والشيطان واعصهما
وإن هما محضاك النصح فاتهمِ
ولا تطع منهما خصمًا ولا حكمًا
فأنت تعرف كيد الخصم والحكمِ
أستغفر الله من قول بلا عمل
لقد نسبتُ به نسلًا لذي عقمِ


अर्थात:आत्‍मा दूध पीते बच्‍चे के जैसा है,यदि आप उसे छोड़ दें तो वह दूध पीने के प्रेम को सीने में लीए हुए जवान होता चला जा‍ता है और यदि उस का दूध छुड़ा दें तो वह छोड़ देता हैआत्‍मा और शैतान का विरोध करेंयदि यह दोनों अपने परामर्श में निष्‍कप होने का दावा करें तो आप इन्‍हें अभियुक्‍त समझें और इन पर विश्‍वास न करेंन इन दोनों के किसी शत्रु का अनुगमन करें और न किसी न्‍यायाधीश का,क्‍योंकि आप शत्रु एवं न्‍यायाधीश दोनों की दुराचरण से अवगत हैं,मैं बिना कार्य के केवल कथन से अल्‍लाह की मुक्ति चाहता हूँ,यह ऐसा है जैसे किसी बांझ की ओर संतान का संबंध करना


आप पर दरूद व सलाम भेजते रहें जो समस्‍त जीवों में स्‍वश्रेष्‍ठ हैं

صلى اللہ علیہ وسلم.

 






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